Author(s): गैंद दास मानिकपुरी, अब्दुल सत्तार, देवेन्द्र कुमार

Email(s): gviplov@gmail.com

DOI: Not Available

Address: गैंद दास मानिकपुरी , अब्दुल सत्तार, देवेन्द्र कुमार
कंिलंगा विष्वविद्यालय, नया रायपुर.
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 8,      Issue - 4,     Year - 2020


ABSTRACT:
शिक्षा जन्म से मृत्युपर्यनत चलने वाली प्रक्रिया है। षिक्षा के माध्यम से बालक या व्यक्ति स्वंय को ज्ञान और अनुभव का धनी बनाता है। ज्ञान, अनुभव और समायोजन द्वारा वह अपने व्यवहार को परिवर्तित कर समय उपयोगीसिद्ध और कल्याणकारी बनाता है। अतः हम कह सकते हैं, कि षिक्षा मानव चेतना का ज्योर्तिमय सांस्कृतिक पक्ष है, जिससे व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास होता है। किसी भी देष की प्रगति में वहां की स्त्रियों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। स्त्री ही ऐसे बालकों के निर्माण में सक्षम होती है, जो देष की प्रगति के पथ पर अग्रसर करने में समर्थ होती है। षिक्षित नारी समूह ही परिवार व समाज को सुसंस्कृत बनाती है। इसी कारण मनु ने कहा हैं, कि -‘‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तन्त्र देवता‘‘ अर्थात् जहां नारी की पूजा होती है, वहां ईष्वर निवास करते है। पूजा का अर्थ रोली अक्षत लेकर चढ़ाने से नहीं है बल्कि इसका अर्थ हैं,कि जहाॅं नारी को गौरव दिया जाता है। उसकी षिक्षा की उचित व्यवस्था की जाती है। और उसको समाज के निर्माण में पुरूषों के समान की स्वतंत्रता प्रदान की जाती है, वहांॅ देवता निवास करते है। भारत के बहुमुखी विकास हेतु स्त्रियों को गौरव प्रदान करना चाहिए और स्त्री षिक्षा को अधिक से अधिक प्रसार करने का भी प्रयास किया जाना चाहिए।


Cite this article:
गैंद दास मानिकपुरी , अब्दुल सत्तार, देवेन्द्र कुमार . ग्रामीण महिला स्वसहायता समूह के विकास में षिक्षा के महत्व का अध्ययन. International Journal of Advances in Social Sciences. 2020; 8(4):159-165.

Cite(Electronic):
गैंद दास मानिकपुरी , अब्दुल सत्तार, देवेन्द्र कुमार . ग्रामीण महिला स्वसहायता समूह के विकास में षिक्षा के महत्व का अध्ययन. International Journal of Advances in Social Sciences. 2020; 8(4):159-165.   Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2020-8-4-7


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