ABSTRACT:
हिंदी काव्य में नारी के संघर्ष और शक्ति का चित्रण भारतीय समाज की सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक धारा को प्रतिबिंबित करता है। प्रारंभिक साहित्य में नारी को देवी, शक्ति या आदर्श पत्नी-माता के रूप में दर्शाया गया, किंतु समय के साथ उसका चित्रण संघर्षशील, आत्मनिर्भर एवं सशक्त व्यक्तित्व के रूप में हुआ। सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों के साथ, विशेष रूप से स्वतंत्रता संग्राम और सुधार आंदोलनों के प्रभाव में, नारी ने अपने अधिकारों को पहचाना और उनके लिए संघर्ष किया।
हिंदी काव्य में नारी को केवल सहनशीलता और त्याग की मूर्ति के रूप में नहीं, बल्कि साहसी, आत्मनिर्भर और सामाजिक परिवर्तन की वाहक के रूप में चित्रित किया गया है। कवियों ने उसकी मानसिक, भावनात्मक एवं सामाजिक शक्ति को उभारते हुए उसके संघर्ष को व्यापक संदर्भों में प्रस्तुत किया है। इस प्रकार, हिंदी काव्य में नारी का चित्रण केवल साहित्यिक सौंदर्य नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता और नारी की स्वतंत्रता की दिशा में एक सशक्त प्रेरणा का स्रोत है।
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सीताराम यादव. हिंदी काव्य में नारी के संघर्ष और शक्ति का चित्रण. International Journal of Advances in Social Sciences. 2025; 13(2):95-1. doi: 10.52711/2454-2679.2025.00015
Cite(Electronic):
सीताराम यादव. हिंदी काव्य में नारी के संघर्ष और शक्ति का चित्रण. International Journal of Advances in Social Sciences. 2025; 13(2):95-1. doi: 10.52711/2454-2679.2025.00015 Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2025-13-2-9
संदर्भ ग्रन्थ:
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2. पंत, सुमित्रानंदन, मन के भगवाने।
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