ABSTRACT:
प्राकृतिक सौदर्य की छटा बिखरते हुए छत्तीसगढ़ अपनी सांस्कृतिक गौरव के लिए जाना जाता है। तात्कालीन समय में छत्तीसगढ़ भारत के हृदय स्थल मध्यप्रदेष का अविभाजित अंग था। मध्यप्रदेष का स्थानक ऐसी है कि उत्तर से दक्षिण एवं पूर्व से पष्चिम जाने के लिए यहां से गुजरना पड़ता है। षायद यही वजह होगा कि महर्षि दयानंद का मध्यप्रदेष एवं विदर्भ में अनेक बार आगमन हुआ। महर्षि का किसी निष्चित रचनात्मक कार्यक्रम के निमित्त छत्तीसगढ़ आगमन होना विदित नहीं है। किन्तु काषी में श्री सच्चिदानंद परमहंस स्वामी के परामर्ष, ब्रम्हचारी शुद्ध चैतन्य (महर्षि दयानंद) को नर्मदा नदी के तटवर्ती तीर्थ स्थलों-चाबोद, कर्णाली, और व्यास आश्रमादि स्थानों पर जाना चाहिए, मानकर काषी से भाद्रपक्ष संवत 1904 वि. (26 अगस्त से 24 सितम्बर 1847) के बीच किसी तिथी को गुरूजनों से विदाई लेकर नर्मदा नदी के स्रोत की ओर प्रस्थान किया
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सीमा पाण्डे, गोविंद सिंह ठाकुर. समकालिन छत्तीसगढ़ में आर्य समाज का षिक्षा के क्षेत्र में योगदान. International Journal of Advances in Social Sciences. 2023; 11(2):90-5. doi: 10.52711/2454-2679.2023.00014
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सीमा पाण्डे, गोविंद सिंह ठाकुर. समकालिन छत्तीसगढ़ में आर्य समाज का षिक्षा के क्षेत्र में योगदान. International Journal of Advances in Social Sciences. 2023; 11(2):90-5. doi: 10.52711/2454-2679.2023.00014 Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2023-11-2-5
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