Author(s):
महेन्द्र कुमार प्रेमी, जितेन्द्र कुमार प्रेमी
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महेन्द्र कुमार प्रेमी1 एवं जितेन्द्र कुमार प्रेमी2
1शोध छात्र (पी-एच.डी.), स्वामी विवेकानन्द स्मृति तुलनात्मक धर्म, दर्शन एवं योग अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर छत्तीसगढ़
2सहा. प्रा. मानवविज्ञान अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर छत्तीसगढ़
Published In:
Volume - 1,
Issue - 2,
Year - 2013
ABSTRACT:
सर्वाधिक रहस्यवान् होने के उपरांत भी मानव जिसके प्रति सर्वाधिक श्रद्धावनत और समर्पित है उसे धर्म से संबोधित किया जाता है। इस शब्द का आश्रय लेकर मानव ने एक ओर जहाँ सर्वाधिक सृजनात्मक कार्य किए है तथा मानवता के श्रेष्ठतम् मूल्यों को उद्घाटित किया है वहीं दूसरी ओर इस शब्द का आड़ लेकर उसने सर्वाधिक रक्त भी बहाया है। मानव का समस्त पाखण्ड, समस्त अंधविश्वास धर्म से ही जुड़ा हुआ है। कहने को तो सभी धर्माें मे समानता का उपदेश निहित होते हैं लेकिन जहाँ स्त्रियों के प्रति रूख अपनाने का सवाल आता है वहाँ समानता की अवधारणा उपेक्षित, गौण या फिर भ्रष्ट हो जाती है। धर्म के नाम पर स्त्रियों को पद्दलित कर इन्हें उपभोग्या बनाकर विकास की पिछली कतार में धकेल दिया गया है । विकास में स्त्री सदा हासिये पर ही रही, बाद में आए विचार की तरह।
Cite this article:
महेन्द्र कुमार प्रेमी, जितेन्द्र कुमार प्रेमी. धर्मों में नारी की स्थिति-एक दार्शनिक एवं मानवशास्त्रीय विमर्श.
Int. J. Ad. Social Sciences 1(2): Oct. - Dec. 2013; Page 39-44.
Cite(Electronic):
महेन्द्र कुमार प्रेमी, जितेन्द्र कुमार प्रेमी. धर्मों में नारी की स्थिति-एक दार्शनिक एवं मानवशास्त्रीय विमर्श.
Int. J. Ad. Social Sciences 1(2): Oct. - Dec. 2013; Page 39-44. Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2013-1-2-1