Author(s):
Sanjay Kumar
Email(s):
Email ID Not Available
DOI:
Not Available
Address:
Prof. (Dr.) Sanjay Kumar
Assistant Professor, PG Department of Political Science, Kartik Oraon College, Gumla (Ranchi University, Ranchi) Jharkhand
*Corresponding Author
Published In:
Volume - 8,
Issue - 4,
Year - 2020
ABSTRACT:
दशकों के लंबे संघर्ष के पश्चात 15 नवंबर सन 2000 को भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर तत्कालीन बिहार प्रांत के आदिवासी बहुल 14 पठारी जिलों को मिलाकर झारखंड प्रांत का निर्माण किया गया। इस प्रांत के लिए संघर्ष करने वाले आदिवासी व अन्य समूहों का मानना था कि बंगाल से बिहार के अलग होने के समय से ही क्षेत्र में विकास तो बहुत हुआ, बहुत सारे कल-कारखाने लगे, नए शहर बसाए गए, तकनीकी शिक्षण संस्थान खोले गए लेकिन इसका फायदा मुख्य रूप से बिहार के मैदानी इलाके के लोगों के साथ साथ उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के लोगों को मिला जबकि बदले में विस्थापन, वनों का विनाश, क्षेत्रीय स्तर पर पाए जाने वाले जीव जंतुओं का लुप्त प्राय होना, पर्यावरण की क्षति, जल स्रोतों का दूषित होना जैसे कारणों से स्थानीय जनता ही मुख्य रूप से प्रभावित हुई ।एक और कारण यह था कि झारखंड क्षेत्र से आने वाले आदिवासी और दलित समुदाय के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को पटना और दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में दोयम दर्जे के व्यवहार को सहन करना पड़ता था ।अलग राज्य का निर्माण करने वाले लोगों के लंबे संघर्ष के पश्चात 15 नवंबर 2000 को जब झारखंड राज्य का गठन हुआ तब लोगों के मन में बहुत सारी आकांक्षाएं थी। उनका मानना था कि अब यहां की सत्ता मुख्य रूप से आदिवासी, दलित एवं पिछड़े वर्गों के हाथ में रहेगी और वह न सिर्फ अपने जल,जंगल, जमीन की रक्षा करेंगे वरन साथ ही साथ उद्योग धंधों की स्थापना होगी, नए - नए शैक्षणिक संस्थान स्थापित होंगे, सड़क, बिजली, पानी, अस्पताल, विद्यालय जैसे आधारभूत संरचना को मजबूत किया जाएगा जिससे विकास की रोशनी गांव गांव तक पहुंचेगी और स्थानीय तौर पर भी बड़ी संख्या में कुशल और अर्ध कुशल मजदूरों के लिए रोजगार का सृजन होगा जिससे झारखंड के युवाओं को रोजगार की कोई कमी नहीं रहेगी और झारखंड दूसरे प्रांतों के लोगों को भी बड़े पैमाने पर रोजगार प्रदान करने वाला राज्य बन जाएगा। परंतु, झारखंड निर्माण के दो दशक के पश्चात भी झारखंड वासियों की अधिकांश अपेक्षाएं सपना बनकर रह गई है। कोविड-19 या कोरोनावायरस से फैली महामारी के दौड़ में झारखंड में रोजगार की कमी और देश के विभिन्न प्रांतों में लगभग 9 से 10 लाख झारखंडी मजदूरों की दयनीय दशा इस काल में सबके सामने आ गई है। प्रस्तुत आलेख झारखंड के प्रवासी मजदूरों की स्थिति का बयान करती है और साथ ही साथ इस समस्या के कारण और इसके निदान के लिए सुझाव प्रस्तुत करती है।
Cite this article:
Sanjay Kumar. कोरोना संकट का ग्रामीण रोजगार पर प्रभाव: झारखंड राज्य के विशेष संदर्भ में. Int. J. Ad. Social Sciences. 2020; 8(4):196-206.
Cite(Electronic):
Sanjay Kumar. कोरोना संकट का ग्रामीण रोजगार पर प्रभाव: झारखंड राज्य के विशेष संदर्भ में. Int. J. Ad. Social Sciences. 2020; 8(4):196-206. Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2020-8-4-13
REFERENCE:
12. "यूपी, महाराष्ट्र के बाद अब बिहार में सड़क हादसा, ट्रक और बस की टक्कर में नौ मजदूरों की मौत।" न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भागलपुर" , 19 May
2020
21. " प्राइवेट सेक्टर के लिए भी अवसर,लेबर को देखते हुए बढ़ा सकते हैं अपना दायरा, "- हरीश्वर दयाल, सेंटर फॉर फिजिकल स्टडीज ।दैनिक भास्कर 03 जुलाई 2020