Author(s): बी. एल. सोनेकर, वंदना ध्रुव

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Address: डाॅ. बी. एल. सोनेकर1, कु. वंदना ध्रुव2
1सहप्रध्यापक अर्थशास्त्र, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर (छ.ग.)
2शोध छात्रा अर्थशास्त्र, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर (छ.ग.)
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 6,      Issue - 3,     Year - 2018


ABSTRACT:
प्राचीन काल से ही पंचायतें हमारे सामाजिक, राजनैतिक व्यवस्था का अंग रही है। संविधान के 73वें संशोधन द्वारा पंचायती राज व्यवस्था को सभी राज्य में अनिवार्य रूप से लागू करने का प्रावधान किया गया है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य से ग्रामीण विकास की नीतियों का मूल्यांकन करना और उन पर पुनर्विचार करना आवश्यक हो गया है, क्योंकि सरकार द्वारा ग्रामीण विकास हेतु अनेक योजनाएँ संचालित किया जा रहा है। इसी आधार पर वर्तमान अध्ययन नगरी विकासखण्ड के ग्राम पंचायत केरेगांव का किया गया है, जिसमें उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कुल 114 परिवारों का चयन किया गया है तथा साक्षात्कार अनुसूची के माध्यम से आंकड़ों का संकलन किया गया है एवं आंकड़ों के विश्लेशण के लिए प्रतिशत विधि का प्रयोग किया गया है जिसमें चयनित परिवारों के सामाजिक, आर्थिक स्थिति के अन्तर्गत आयु, जाति, शिक्षा एवं वैवाहिक स्थिति शामिल है तथा पंचायती राज द्वारा संचालित योजनाओं के माध्यम से रोजगार योजना के अन्तर्गत अधिकाधिक लोग मनरेगा से लाभान्वित हुए एवं अधिकांश लोगों के घरों में सरकारी शौचालय की व्यवस्था है तथा खाद्यान्न योजना से भी 100 प्रतिशत लोग लाभान्वित हुए हैं तथा आवास योजना का लाभ ज्यादातर परिवारों को नहीं मिल पाया है इस प्रकार सरकार द्वारा संचालित पंचायती राज व्यवस्था द्वारा क्रियान्वित कार्यक्रमों का ग्रामीण विकास पर अधिकाधिक सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।


Cite this article:
बी. एल. सोनेकर, वंदना ध्रुव. छत्तीसगढ़ में ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज (नगरी विकासखण्ड के ग्राम पंचायत केरेगाँव के संदर्भ में). Int. J. Ad. Social Sciences. 2018; 6(3): 145-154.

Cite(Electronic):
बी. एल. सोनेकर, वंदना ध्रुव. छत्तीसगढ़ में ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज (नगरी विकासखण्ड के ग्राम पंचायत केरेगाँव के संदर्भ में). Int. J. Ad. Social Sciences. 2018; 6(3): 145-154.   Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2018-6-3-1


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