Author(s): रत्नाबाला मोहंती, दानेन्द्र श्रीहोल

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DOI: 10.52711/2454-2679.2025.00034   

Address: रत्नाबाला मोहंती1, दानेन्द्र श्रीहोल2
1विभागाध्यक्ष (समाजशास्त्र), शासकीय दंतेश्वरी स्नातकोत्तर महाविद्यालय] दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़, भारत।
2अतिथि व्याख्याता (समाजशास्त्र), शासकीय दंतेश्वरी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़, भारत।
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 13,      Issue - 4,     Year - 2025


ABSTRACT:
आदिम समाजों को अपने पारिवारिक क्षेत्रों में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का गहन ज्ञान होता है। उनका जीवन प्रकृति के साथ अत्यंत घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ होता है। प्रकृति ही उनके जीवन दर्शन का केंद्र होती है और उनकी आस्था का आधार भी। यही कारण है कि आदिवासी समुदायों में अनेक सामाजिक मान्यताएँ और धार्मिक विश्वास प्रकृति से गहरे जुड़े होते हैं। मुरिया जनजाति की सामाजिक संरचना में गोत्र (क्लैन) की विशेष भूमिका होती है। प्रत्येक गोत्र किसी न किसी पवित्र प्राकृतिक प्रतीक जिसे टोटम कहा जाता है, से संबंधित होता है। यह टोटम कोई वृक्ष, पशु, पक्षी अथवा कोई अन्य प्राकृतिक तत्व हो सकता है। मुरिया जनजाति अपने टोटम से संबंधित वस्तुओं को अत्यंत पवित्र मानती है। उन्हें न तो क्षति पहुंचाई जाती है और न ही उनका उपभोग किया जाता है, क्योंकि यह धार्मिक और सामाजिक रूप से वर्जित माना जाता है। टोटम चाहे जीवित हों या निर्जीव, वे जनजातियों की विशिष्ट पहचान और सांस्कृतिक एकता के प्रतीक होते हैं। इस प्रकार, आदिवासी समाज और प्रकृति के मध्य एक जीवंत, धार्मिक तथा सांस्कृतिक संबंध स्थापित होता है, जो उनके जीवन की आधारशिला बनती है।


Cite this article:
रत्नाबाला मोहंती, दानेन्द्र श्रीहोल. मुरिया जनजाति के गोत्रों (टोटम) का जीव एवं प्राकृतिक जगत से संबंध (बस्तर संभाग के विशेष संदर्भ में). International Journal of Advances in Social Sciences. 2025; 13(4):209-2. doi: 10.52711/2454-2679.2025.00034

Cite(Electronic):
रत्नाबाला मोहंती, दानेन्द्र श्रीहोल. मुरिया जनजाति के गोत्रों (टोटम) का जीव एवं प्राकृतिक जगत से संबंध (बस्तर संभाग के विशेष संदर्भ में). International Journal of Advances in Social Sciences. 2025; 13(4):209-2. doi: 10.52711/2454-2679.2025.00034   Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2025-13-4-9


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