ABSTRACT:
यह शोध पत्र भारतीय संविधान निर्माण की ऐतिहासिक प्रक्रिया को एक वैचारिक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करता है, जिसमें कनक तिवारी जैसे प्रख्यात विधिवेत्ता, लेखक एवं चिंतक के संवैधानिक विचारों का विश्लेषण किया गया है। भारतीय संविधान न केवल एक विधिक दस्तावेज है, बल्कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक मूल्यों का संवाहक भी है। संविधान निर्माण की प्रक्रिया 1857 की क्रांति के बाद उपजे सामाजिक-राजनीतिक चेतना से प्रारंभ होकर संविधान सभा की स्थापना एवं संविधान के अंगीकरण तक एक निरंतर संघर्ष और वैचारिक मंथन की परिणति है। इस क्रम में मोतीलाल नेहरू, डॉ. अंबेडकर, नेहरू, गांधी जैसे विचारकों के योगदान के साथ-साथ कनक तिवारी का चिंतन भी महत्वपूर्ण बन जाता है। कनक तिवारी संविधान को ‘राजपथ से जनपथ’ की दिशा में ले जाने की आवश्यकता पर बल देते हैं। उनके विचारों में संविधान को केवल शासकीय नियंत्रण का साधन नहीं बल्कि सामाजिक न्याय, आदिवासी अधिकारों, मानवाधिकार, और लोकतांत्रिक चेतना का संवाहक माना गया है। उन्होंने संविधान को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की उपलब्धि और सामाजिक बदलाव का माध्यम बताया है। शोध में यह भी विश्लेषण किया गया है कि तिवारी का चिंतन गांधीवादी समाजवाद, नेहरूवादी लोकतंत्र और अंबेडकरवादी न्याय व्यवस्था के समन्वय को प्रतिबिंबित करता है। उन्होंने समकालीन संवैधानिक संकटों पर खुलकर आलोचना की है और संविधान की आत्मा को संरक्षित रखने की आवश्यकता पर बल दिया है।
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प्रदीप शुक्ल, सरस कुमार ध्रुव. कनक तिवारी का संविधान निर्माण में चिंतन% एक ऐतिहासिक तथा वैचारिक दृष्टि. International Journal of Advances in Social Sciences. 2025; 13(3):141-8. doi: 10.52711/2454-2679.2025.00022
Cite(Electronic):
प्रदीप शुक्ल, सरस कुमार ध्रुव. कनक तिवारी का संविधान निर्माण में चिंतन% एक ऐतिहासिक तथा वैचारिक दृष्टि. International Journal of Advances in Social Sciences. 2025; 13(3):141-8. doi: 10.52711/2454-2679.2025.00022 Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2025-13-3-6
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