Author(s): सीमा जायसी, आरिफा परवीन

Email(s): jaysiseema34@gmail-com

DOI: 10.52711/2454-2679.2024.00024   

Address: सीमा जायसी1, आरिफा परवीन2
1सहा.प्राध्यापक (अंग्रेजी) शासकीय डॉ. इंद्रजीत सिंह महाविद्यालय अकलतरा, जांजगीर चांपा छत्तीसगढ़.
2सहा. प्राध्यापक (प्राणीशास्त्र) शासकीय डॉ. इंद्रजीत सिंह महाविद्यालय अकलतरा, जांजगीर चांपा छत्तीसगढ़.
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 12,      Issue - 3,     Year - 2024


ABSTRACT:
संधारणीय विकास अथवा सतत विकास (sustainable developmentt) विकास की वह अवधारणा है जिसमें प्राकृतिक संसाधन एवं मानव के मध्य सामंजस्य स्थापित हो सके। जल, वायु भूमि, मकान, वृक्ष अग्नि जैव विविधता आदि प्राकृतिक संसाधन है। सतत् विकास की नीतियां बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान दिया जाता है कि मानव की न केवल वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित हो वरन् अनंतकाल तक मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति हो। इससे प्राकृतिक संसाधन एवं प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा पर विशेष बल दिया जाता है, जब से मनुष्य का जन्म इस पृथ्वी में हुआ है तब से लगातार अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्राकृतिक संसाधन यानि जल, भूमि, पशु, वन, जानवर एवं जन का उपयोग करता रहा है किंतु औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, नगरीयकरण एवं बढ़ती हुई जनसंख्या की मूलभूत का विलासतापूर्ण जीवन यापन हेतु इन संसाधनों का अनुचित दोहन होने से इन पर दबाव बढ़ा है और वर्तमान में संपूर्ण जीव जगत का अस्तित्व ही खतरे में है। संधारणीय विकास अथवा सतत् विकास (sustainable developmentt) विकास की वह अवधारणा है जिसमें विकास की नीतियां बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि मानव की न केवल वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित हो सके वरन् अनंतकाल मानव आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित हो सकें। इसमें प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा पर विशेष बल दिया जाता है।सतत् विकास सामाजिक आर्थिक विकास की वह प्रक्रिया है जिसमें पृथ्वी की सहनशक्ति के अनुसार विकास की बात की जाती है। यह अवधारणा 1960 के दशक तक विकसित हुई जब लोग औद्योगिकरण के पर्यावरण पर हानिकारक प्रभावों से अवगत हुए। सतत विकास का उद्भव प्राकृतिक संसाधनों की समाप्ति तथा उसके कारण आर्थिक क्रियाओं का उत्पादन प्रणालियों के धीमे होने या उनके बंद होने के भय से हुआ। यह अवधारणा उत्पादन प्रणालियों पर नियंत्रण करने वाले कुछ लोगों द्वारा प्रकृति के बहुमूल्य तथा सीमित संसाधनों के लक्ष्यपूर्ण दुरूपयोग का परिणाम है। सतत् विकास कोयला, तेल तथा जल जैसे संसाधनों के दोहन के लिए उत्पादन तकनीकी औद्योगिक प्रक्रियाओं तथा विकास की उचित नीतियों के संबंध में दीर्घकालीन योजना प्रस्तुत करता है।


Cite this article:
सीमा जायसी, आरिफा परवीन. राष्ट्र निर्माण में सतत विकास तथा पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन. International Journal of Advances in Social Sciences. 2024; 12(3):143-3. doi: 10.52711/2454-2679.2024.00024

Cite(Electronic):
सीमा जायसी, आरिफा परवीन. राष्ट्र निर्माण में सतत विकास तथा पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन. International Journal of Advances in Social Sciences. 2024; 12(3):143-3. doi: 10.52711/2454-2679.2024.00024   Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2024-12-3-4


संदर्भ ग्रंथ
1.     शर्मा दीप्ति, कुमार, महेंद्र पर्यावरण प्रबंधन एवं प्राकृतिक संसाधन, अर्जुन पब्लिशिंग हाऊस, नई दिल्ली-110002 (2009)।
2.      शर्मा. दीप्ति, कुमार महेंद्र, मानव एवं पर्यावरण अर्जुन पब्लिशिंग हाऊस, नई दिल्ली-110002 (2009)।
3.      जोशी, लता, पर्यावरण की राजनीति, अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स (प्रा.) लिमिटेड, नई दिल्ली।
4.      श्रीवास्तव, राव, पर्यावरण और पारिस्थितिकी, वसुंधरा प्रकाशन, गोरखपुर (2009)।
5.      शर्मा दीप्ति कुमार महेंद्र पर्यावरण शिक्षण एवं जनचेतना, अर्जुन पब्लिशिंग हाऊस, नई दिल्ली-110002 (2009) ।
6.      डॉ. कुमारी प्रभा, जनसंख्या विस्फोट एवं पर्यावरण प्रदूषण, वाणी प्रकाशन, शगुन आफसेट, शाहदरा, दिल्ली-110032।
7.      कौशिक, देवेश, संसाधन भूगोल, अर्जुन पब्लिशिंग हाऊस, दरियागंज, नई दिल्ली-110002 (2012)।
8.      नागावेल, भवानी पर्यावरण एवं इसका संरक्षण, शोध-प्रकल्प, 2278 394 (2013) पृष्ठ सं.37।
9.      यादव, रामजी यादव, के.एन.एस. अर्जुन पब्लिशिंग हाऊस, दरियागंज, नई दिल्ली-110002 (2014)।
10.    डॉ.छिब्बर एस. के. पर्यावरण संरक्षण और न्यायपालिका, अर्जुन पब्लिशिंग हाऊस, दरियागंज, नई दिल्ली-110002 (2009)1
11.    डॉ. पाल, सुरेंद्र कश्यप, के. के. पर्यावरण एवं समाज, अर्जुन पब्लिशिंग हाऊस, दरियागंज, नई दिल्ली-110002 (2014)।
12.    नेमी बी.एस., “पारिस्थितिकीय विकास एवं पर्यावरण भूगोल, रस्तोगी एंड कंपनी, मेरठ (1991)।
13.    www.debadityo.com/2015/2/11 environment - conservation and sustainable development.
14.    https:@@cropgenebank-sgrp-cgir-org
15.    http:@@www-cginfo-in
16.    https:@@wii-gov-in
17.https:@@unacademycom@content@railway&exam@study&material@general&awareness@a&brief&note&on&botanical&gardens&in&india
18.    https:@@en-m-wikipedia-org@wiki@Main&Page
19.    पर्यावरण अध्ययन साहित्य भवन पब्लिकेशन।
20.    https:@@wwwgeeksforgeekorg@what&is&biodiversity&why&is&biodiversity&Important&for&human&lives@A

Recomonded Articles:

International Journal of Advances in Social Sciences (IJASS) is an international, peer-reviewed journal, correspondence in the fields....... Read more >>>

RNI:                      
DOI:  

Popular Articles


Recent Articles




Tags