Author(s): निधि, प्रांशु कुमार मौर्य, अमित कुमार

Email(s): nidhichandrakar571@gmail.com

DOI: 10.52711/2454-2679.2025.00025   

Address: निधि1, प्रांशु कुमार मौर्य2, अमित कुमार3
1शोधार्थी, पंचकर्म विभाग, आयुर्वेद संकाय, चिकित्सा विज्ञान संस्थान, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश।
2सहायक प्राध्यापक, योग विज्ञान विभाग, देव संस्कृति विश्वविद्यालय, सांकरा, दुर्ग, छत्तीसगढ़।
3योग विज्ञान विभाग, देव संस्कृति विश्वविद्यालय, सांकरा, दुर्ग, छत्तीसगढ़।
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 13,      Issue - 3,     Year - 2025


ABSTRACT:
वर्तमान समय में भौतिकवादी दिनचर्या के कारण व्यक्ति का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। मनुष्य अपने दैनिक चर्या का पालन न करते हुए अनुशासनहीन तथा असंयमपूर्वक आहार विहार को अपनाकर अपने जीवन को विभिन्न समस्याओं के गर्त की ओर ले जा रहा है जिसके कारण वह विभिन्न प्रकार के शारीरिक मानसिक रोग से ग्रसित होता जा रहा है। व्यक्ति ना ही अपने शरीर को स्वस्थ रखता है अपितु साथ में चिंता, निराशा, तनाव, जैसे अवांछनीय तत्वों के कारण स्वयं को मानसिक तथा बौद्धिक रूप से भी अस्वस्थ अनुभव करता है फल स्वरुप उनके समग्र स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वर्तमान समय में प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार की शारीरिक रोग अथवा मानसिक रोग से ग्रसित है अथवा वह स्वयं, समाज एवं पर्यावरण के मध्य तालमेल नहीं बिठा पाता जिसके कारण वह अपने लक्ष्य से विमुख होकर चोरी, हिंसा, आत्महत्या आदि दुर्भावनाओं में पड़ जाता है तथा अपने अमूल्य जीवन को व्यर्थ ही गवा देता है। समग्र स्वास्थ्य अर्थात जिसमें स्वास्थ्य के विभिन्न जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक, बौद्धिक, नैतिक पहलू शामिल होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार समग्र स्वास्थ्य “स्वास्थ्य केवल रोग अथवा दुर्बलता की अनुपस्थिति नहीं अपितु एक पूर्ण शारीरिक मानसिक और सामाजिक खुशहाली की स्थिति है।“ शारीरिक स्वास्थ्य यह शरीर से संबंधित होता है जिसमें शरीर के समस्त तंत्र, पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र, उत्सर्जन तंत्र, परिवहन तथा हार्मोनल सभी अपने कार्यों को उचित प्रकार से संचालित करते हो आयुर्वेद के अनुसार दोष धातु मेलों की सम अवस्था को स्वास्थ्य कहा गया है तथा विषम अवस्था को रोग का नाम दिया गया है शरीर का पोषण आहार के माध्यम से होता है अतः शारीरिक स्वास्थ्य पर आहार का विशेष प्रभाव पड़ता है। मानसिक स्वास्थ्य यह हमारे मानसिक योग्यता भावनात्मक, संज्ञानात्मक क्रियाकलापों एवं विकास व्यवहार से संबंधित होता है जो हमें अपने जीवन में प्रसन्नता शांति व्यक्तित्व विकास परस्पर सद्भावना आदि प्रदान करता है। मन की अशांति जिसे सामान्य भाषा में चित्त विक्षेप कहते हैं विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं जैसे क्रोध, ईर्ष्या, तनाव, अवसाद है आदि। सामाजिक स्वास्थ्य सामाजिक स्वास्थ्य हमें अपने समाज में पर्यावरण के विषय में जागरूकता प्रदान करता है जिसमें व्यक्ति स्वयं के लिए एक उत्तम समाज का निर्माण करता है अपने पर्यावरण को शुद्ध एवं समृद्ध करने का प्रयास करता है। विभिन्न प्रकार के सामाजिक सहयोग के कारण पर्यावरण प्रदूषण उत्पन्न होते हैं तथा उन प्रदूषणों से घातक रोगों की उत्पत्ति होती है। विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक आपदाएं आती हैं जलवायु प्रदूषण ध्वनि प्रदूषण मृदा प्रदूषण मृदा अपरदन जैसे विभिन्न समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। आध्यात्मिक स्वस्थ व्यक्ति अपने नैतिक मूल्यों का पालन करता है वह स्वयं को समाज का एक अभिन्न अंग मानकर प्राणी मात्र के कल्याण की कामना करता है समस्त जीवन के प्रति दया सहिष्णुता प्रेम तथा करुणा रखता है पाप कर्मों से सदैव दूर रहता है समझ में हिंसा झूठा चोरी असहयम तथा परिग्रही व्यवहार आदि के कारण आतंकवाद जैसी समस्याएं समाज में बढ़ती जा रही हैं आध्यात्मिक स्वास्थ्य के अभाव में प्राणी मात्र परस्पर अहिंसक व्यवहार करने लगते हैं तथा अपने हम को संरक्षित रखने हेतु वह मानव समुदाय को तथा पर्यावरण को नष्ट करने लगते हैं विभिन्न प्रकार के युद्ध उत्पन्न हो जाते हैं जैसे राष्ट्र के जन धन की हानि होती है महर्षि पतंजलि कृति योग सूत्र के अनुसार रोग का मुख्य कारण अविद्या को माना गया है जिससे अस्मिता, राग, द्वेष, अभिनिवेश की उत्पत्ति होती है जो व्यक्ति के चित की एकाग्रता को भंग करते हैं जिससे विभिन्न प्रकार की आधी तथा उन आधियों से विभिन्न प्रकार की व्याधियों की उत्पत्ति होती है उनके निवारण के लिए तथा समग्र स्वास्थ्य हेतु योग सूत्र में अष्टांग योग का वर्णन मिलता है जिसमें योग के आठ अंग यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि के माध्यम से व्यक्ति अपने शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक स्वास्थ्य को उन्नत बनाकर अपने जीवन को उद्देश्य पूर्ण तरीके से सुख पूर्वक व्यतीत कर सकता है तथा समग्र रूप से स्वास्थ्य की प्राप्ति कर सकता है योग सूत्र में स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का समाधान निहित है जिसमें व्यक्ति के नैतिक मूल्यों से लेकर शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक व्यवहार तथा आध्यात्मिकता प्रदर्शित होती है योग सूत्र का अध्ययन तथा उनके विचारधाराओं को यदि व्यक्ति अपने जीवन शैली में शामिल करता है तो वह समग्र स्वास्थ्य को प्राप्त कर सकता है जिससे वह अपने समाज व वातावरण को स्वच्छता, समृद्धि एवं आरोग्यता के दिशाओं की और उन्नत कर सकता है।


Cite this article:
निधि, प्रांशु कुमार मौर्य, अमित कुमार. समग्र स्वास्थय संवर्धन के परिपेक्ष्य में पतंजलि योग सूत्र की व्यवहारिक जीवन में भूमिका. International Journal of Advances in Social Sciences. 2025; 13(3):163-9. doi: 10.52711/2454-2679.2025.00025

Cite(Electronic):
निधि, प्रांशु कुमार मौर्य, अमित कुमार. समग्र स्वास्थय संवर्धन के परिपेक्ष्य में पतंजलि योग सूत्र की व्यवहारिक जीवन में भूमिका. International Journal of Advances in Social Sciences. 2025; 13(3):163-9. doi: 10.52711/2454-2679.2025.00025   Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2025-13-3-9


संदर्भः-
1.  शर्मा, आचार्य श्रीराम. (1998). व्यक्तित्व विकास हेतु उच्चस्तरीय साधनाएँ मथुरा अखण्ड ज्योति संस्थान।
2.  शर्मा, आचार्य श्रीराम (1998) प्राणशक्ति एक द्विव्य विभूति नथुरा अखण्ड ज्योति संस्थान।
3.  पांतजल योगसूत्र (व्यासमाष्य) 2001 गोविन्दभवन कार्यालय गोरखपुर गीताप्रेस।
4.  सरस्वती, स्वामी निरजनानन्द-योगदर्शन मुंगेर योगपब्लिकेशन ट्रस्टबिहार भारत।
5.  योगदर्शन, गीताप्रेस गोरखपुर।
6.  श्रीमदभागवद्गीता हिन्दी टीका गीताप्रेस गोरखपुर।

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