ABSTRACT:
तुलसी दर्शन ग्रंथों के विवाद में न पड़कर अज्ञान रूपी अंधकार को, ज्ञान भक्ति के माध्यम से अद्वैत के दर्शन का मार्ग प्रशस्त करते हैं। जगत् मृगतृष्णा के जल के समान असत्य है। जीव भ्रमवश जगत् में आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक तापों से व्याकुल है। इन तीन तापों से मुक्ति केवल राम की भक्ति से मिल सकती है। राम ब्रह्म हैं जो लीला करने प्रकट होते हैं और प्रेम के वशीभूत होकर भक्तों का कल्याण करते हैं। कलयुग में जहाँ ज्ञान, भक्ति, परोपकार और धर्म धनलाभ का विषय हो गया है लोग सच्चे हृदय से भक्ति करने के स्थान पर कपट पूर्वक भक्ति कर रहे हैं। जिस प्रकार तोता पढ़ता है किन्तु उसे ज्ञान नहीं होता वैसे ही वे शस्त्रों को केवल पढ़ने से परमात्मा के दर्शन नहीं हो सकते। परमात्मा के द्वार ऊंच-नीच, अमीर गरीब सभी के लिए खुले हैं किन्तु वह द्वार प्रेम, विष्वास, श्रद्धा, समर्पण के साथ भक्ति करने से ही खुल सकता है। मनुष्य आज काम, क्रोध, मोह, लोभ, मद, अहंकार के वश में होकर लूटमार, अन्याय, अत्याचार, व्यभिचार, अनाचार में लिप्त हो गया है। लोक में विश्वास, प्रेम, धर्म की, और कुल की मर्यादा का अभाव है। संसार वर्ण और आश्रम धर्म से विहीन हो गया है लोक और वेद दोनों की मर्यादा चली गयी है। परमार्थ स्वार्थ में परिणत हो गया है, और मोक्ष का साधन ज्ञान आज पेट भरने का साधन हो रहा है। इस प्रकार कर्म, उपासना, ज्ञान तीनों की ही बुरी दशा है। करनी कुछ भी नहीं केवल कथनी है। वाणी और आचरण में विषमता है। तुलसीदास का मानना है कलिकाल के दुखों से मुक्ति के लिए, एक मात्र राम नाम कल्पवृक्ष के समान हैं। मुनियों के अनेक मत हैं दर्शन और पुराणों में नाना प्रकार के पंथ देखकर झगड़ा ही जान पड़ता है। जीव यदि बिना योग, यज्ञ, व्रत और संयम के संसार सागर से पार जाना चाहता है तो राजमार्ग के समान राम भजन ही उत्तम है। ब्राह्मण, देवता, गुरु, हरि और संतों की कृपा से संसार सागर को पार किया जा सकता है।
Cite this article:
यशवंत कुमार साव. विनय पत्रिका के माध्यम से तुलसीदास का दार्शनिक चिंतन. International Journal of Advances in Social Sciences. 2025; 13(3):157-2. doi: 10.52711/2454-2679.2025.00024
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यशवंत कुमार साव. विनय पत्रिका के माध्यम से तुलसीदास का दार्शनिक चिंतन. International Journal of Advances in Social Sciences. 2025; 13(3):157-2. doi: 10.52711/2454-2679.2025.00024 Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2025-13-3-8