Author(s): सीमा जायसी, विनोद कुमार साहू

Email(s): jaysiseema34@gmail.com

DOI: 10.52711/2454-2679.2023.00012   

Address: प्रो. सीमा जायसी1, डॉ. विनोद कुमार साहू2
1शासकीय डॉ. इन्द्रजीत सिंह महाविद्यालय अकलतरा, जिला - जांजगीर-चांपा (छ.ग.)
2अतिथि व्याख्याता, हिन्दी षासकीय डॉ. इन्द्रजीत सिंह महाविद्यालय, अकलतरा, जिला - जांजगीर-चांपा (छ.ग.)
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 11,      Issue - 2,     Year - 2023


ABSTRACT:
छत्तीसगढ़ में सतनाम पंथ की शुरूआत कैसे हुई? रायपुर जिले के गजेटियर 1973 के अनुसार अधिकांष सतनामी संत रामानंद के षिष्य रोहिदास (रविदास, रैदास) को सतनाम नंथ के पवर्तक मानते है, इसी कारण वे अपने आप को रोहिदासी भी कहते है। क्या स्वयं संत रोहिदास ने छत्तीसगढ़ में आकर सतनाम का प्रचार किया था या किसी अन्य के माध्यम से सतनाम पंथ के उपदेष का आगमन छत्तीसगढ़ में हुआ। हीरालाल ने यह संभावना व्यक्त की है कि बाराबंकी जिले के एक राजपूत जगजीवन उसय ने उत्तर भारत में सतनामी पंथ की शुरूआत की थी तथा गुरूघासीदास ने उनसे प्रेरणा ग्रहण की थी। गुरूघासीदास द्वारा ज्ञान प्राप्त करने की घटना के पीछे तीन विवरण प्रचलित है। रसेल और हीरालाल के अनुसार गुरूघासीदास जगन्नाथ पुरी की यात्रा के लिए निकले थे, सारंगढ़ (जिला - रायगढ़) के पास उसमें ज्ञान की ज्योति जागी, अतः वे जगन्नाथ पुरी की यात्रा में आगे न जाकर सतनाम-सतनाम कहते वापस आ गये। सोनाखान के जंगलों में लम्बी साधना और कठीन तपस्या कर उन्होने अपने सिद्धांतो और विचारों को अधिक स्पष्ट स्वरूप प्रदान किया। अन्य विवरणों के अनुसार सोनखान के जंगल में ही साधना और तपस्या से उन्हे ज्ञान की प्राप्ति हुई। एक अन्य विवरण के अनुसार वे जगन्नाथ पुरी की यात्रा में गये और वहां से सतनाम पंथ के सिद्धांतो का ज्ञान प्रकाष लेकर छत्तीसगढ़ वापस आये। इस संबंध में सही निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए छत्तीसगढ़ के सतनाम पंथ के सिद्धांतो, उनके अनुयायियों के विचार, जीवन प्रणाली एवं इतिहास का व्यवस्थित अध्ययन की आवष्यकता है। सतनामी समाज संत षिरोमणी गुरूघासीदास जी के सतनाम धर्म के पथ पर चलने वाले लोगो का विषाल जनसमुह है, जिसका प्रमुख उद्देष्य मानव-मानव एक समान, सत्य, प्रेम, अहिंसा, स्वतंत्रता, स्वाधीनता, समानता का संदेष है। गुरूघासीदास जी के अनुसार - ‘‘मनखे-मनखे एक समान‘‘ अर्थात् मानव एवं अन्य पषु-पक्षी सहित समस्त सजीव-निर्जीव निर्माण का निर्धारण व योनी अनुकूल मूल प्रवृत्तियों में समानता प्रकृति प्रदत्त हो। इसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो। जाति वर्ग निर्धारण मानव निर्मित भेदभाव, छुआछूत के भंवर में उलझकर अपने मूल मानव धर्म को भूल चुका है।


Cite this article:
सीमा जायसी, विनोद कुमार साहू. सतनाम दर्षन एवं महिला समानता. International Journal of Advances in Social Sciences. 2023; 11(2):74-9. doi: 10.52711/2454-2679.2023.00012

Cite(Electronic):
सीमा जायसी, विनोद कुमार साहू. सतनाम दर्षन एवं महिला समानता. International Journal of Advances in Social Sciences. 2023; 11(2):74-9. doi: 10.52711/2454-2679.2023.00012   Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2023-11-2-3


संदर्भ ग्रंथ सूची
1.  डॉ. सूषमा जैन - प्रेमचंद के उपन्यासों में शोषित नारी, प्रकाषक - साहित्यकार - जयपुर।
2.  सीमा कुमारी - महिला अधिकार और भारतीय प्रावधान, उपकार प्रकाषक आगरा।
3.  राजबाला सिंह - मानवाधिकार और महिलायें, प्रकाषक - आविष्कार पब्लिषर्स, जयपुर 2006
4.  डॉ. एम.एम.लवानिया, डॉ. श्रीमती शीताली पडिवार-भारत में सामाजिक समस्यायें, प्रकाषक - रिसर्च पब्किेषन्स, जयपुर 2010
5.  डॉ.नूर मोहम्मद, डॉ.एम.एम.लवानिया - भारतीय समाज विस्तृत अध्ययन, प्रकाषक - कालेज बुक डिपो, जयपुर 2010
6.  रामनारायण शुक्ल, डॉ. विनय कुमार पाठक - गुरूघासीदास, प्रकाषक - गुरूघासीदास विष्वविद्यालय बिलासपुर 1986

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