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Vrinda Sengupta, Satish Agrawa
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Dr.(Mrs.) Vrinda Sengupta1, Dr. Satish Agrawal2
1Asstt.Prof. (Sociology), Deptt.of Sociology, Govt.T.C.L.P.G. College, Janjgir (C.G.)
2Govt. College, Katagora (C.G.)
*Corresponding Author
Published In:
Volume - 3,
Issue - 4,
Year - 2015
ABSTRACT:
बाल्यकाल जीवन की बगियारूपी राष्ट्र की वह सुन्दर कली है, जिसे पुष्प के रूप में खिलकर राष्ट्र को महकाना है। इस अवस्था में मनुष्य की शारीरिक और मानसिक क्षमताओं का विकास होता है। बाल्यकाल में ही विकास की नींव रखी जाती है, क्योंकि आपका बालक ही भावी जीवन की पृष्ठभूमि तैयार करता है। महात्मा गाँधी के शब्दों में- ”बच्चे देश का भविष्य है।“ बच्चे देश का भविष्य होते हैं और समाज तथा देश अपने बच्चों का जिस प्रकार पालन-पोषण करेगा, शिक्षा प्रदान करेगा, संस्कार देगा, वे बच्चे देश तथा समाज को उसी के अनुसार प्रतिफल देंगे, जिस आयु के बच्चों को स्कूल की बेंच पर बैठाकर अपना पाठ याद करना चाहिए तथा एक आदर्श नागरिक बनने हेतु सुसंस्कार ग्रहण करने चाहिए, उसी आयु में वे बच्चे होटल अथवा रेस्टारेंट की मेजों की गंदगी साफ करते हैं। गंदे बर्तनों को धोते हैं। कल-कारखानों में दूषित वायुमण्डल की खतरनाक मशीनों से जूझते हैं। इन्हीं बच्चों को बाल्यकाल में ही अपने जीवन को जीने के लिए दो जून की दो रोटी जुटाने के लिए सड़क पर आना पड़े तो आसानी से अंदाजा लगाया सकता है कि उस देश का भविष्य क्या होगा? जो दिन बच्चों के खेलने-कूदने तथा खाने-पीने के होते हैं। उन दिनों में बच्चांे को अपने परिवार तथा स्वयं के लिए रोटी जुटाने के लिए काम करना पड़ता है।
Cite this article:
Vrinda Sengupta, Satish Agrawa. बाल मजदूरी, बाल अधिकार का समाजशास्त्रीय अध्ययन (जिला: जाँजगीर-चाम्पा के विशेष संदर्भ में). Int. J. Ad. Social Sciences 3(4): Oct. - Dec., 2015; Page 183-186.
Cite(Electronic):
Vrinda Sengupta, Satish Agrawa. बाल मजदूरी, बाल अधिकार का समाजशास्त्रीय अध्ययन (जिला: जाँजगीर-चाम्पा के विशेष संदर्भ में). Int. J. Ad. Social Sciences 3(4): Oct. - Dec., 2015; Page 183-186. Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2015-3-4-9