Author(s): अलेख कुमार साहू, ए.ए. खान

Email(s): alekh.ku.sahu@gmail.com

DOI: Not Available

Address: अलेख कुमार साहू1, ए.ए. खान2
1वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक, विधि अध्ययन शाला, पं. रविशंकर वि.वि. रायपुर
2प्राध्यापक, विधि अध्ययन शाला, पं. रविशंकर वि.वि. रायपुर
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 4,      Issue - 2,     Year - 2016


ABSTRACT:
संसदीय प्रजातंत्र की स्थापना के साथ हमारे देश और समाज में राज्य व्यवस्था को पृथक परन्तु पूरक स्तंभों में बांटा। हमारा लोकतंत्र सिद्धांततः ऊपर से नीचे तक सत्ता के विकेन्द्रीकरण का पक्षधर तो था, लेकिन व्यवहारतः यह पक्षधरता सत्ता के केन्द्रीकरण को बनाये रखने का मात्र एक नारा बनकर रह जाती थी। इस केन्द्रीय विकेन्द्रीकरण के चलते हमारे लोकतंत्र का जो भी रूप-स्वरूप बना, उसके तीन खम्भे घोषित किये गये। न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका - इन तीनों खम्भों को संवैधानिक मान्यता दी गई। भारतीय प्रेस को चैथा खम्भा माना गया, परन्तु यह मान्यता अघोषित थी और इसका संविधान में कहीं उल्लेख नहीं था।


Cite this article:
अलेख कुमार साहू, ए.ए. खान. न्यायिक सक्रियता बनाम शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत. nt. J. Ad. Social Sciences 4(2): April- June, 2016; Page 119-121 .

Cite(Electronic):
अलेख कुमार साहू, ए.ए. खान. न्यायिक सक्रियता बनाम शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत. nt. J. Ad. Social Sciences 4(2): April- June, 2016; Page 119-121 .   Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2016-4-2-11


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