Author(s):
बृजेन्द्र पाण्डेय
Email(s):
Email ID Not Available
DOI:
Not Available
Address:
बृजेन्द्र पाण्डेय
सहायक प्राध्यापक, मानव संसाधन विकास केन्द्र, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर
’ब्वततमेचवदकपदह ।नजीवत म्.उंपसरू इतपरचंदकमल09/हउंपसण्बवउ
Published In:
Volume - 3,
Issue - 3,
Year - 2015
ABSTRACT:
हिन्दी साहित्य का आधुनिक काल भारत के इतिहास के बदलते स्वरूप से प्रभावित था। स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीयता का प्रभाव साहित्य मे भी आया। हिन्दी साहित्य मे प्रगतिवाद का जन्म कोई आश्चर्यजनक घटना नही है इसके जन्म और विकास के पीछे तत्कालीन परिस्थितियों का बहुत बडा हाॅंथ था। अतः सर्वप्रथम उन कारणों पर दृष्टिपात करना समीचीन होगा जिनके कारण हिन्दी साहित्य मे प्रगतिवाद आया।
प्रगति का सामान्य अर्थ है आगे बढना और वाद का अर्थ है सिद्वांत। इस प्रकार प्रगतिवाद का सामान्य अर्थ है आगे बढने का सिद्वांत। लेकिन प्रगतिवाद मे इस आगे बढने का एक विशेष ढंग है, एक विशेष दिशा है, जो उसे विशिष्ठ परिभाषा देता है। इस अर्थ मे पुराने सिद्वांतो से नये सिद्वांतों की ओर, आदर्श से यथार्थ की ओर, पंूजीवाद से समाजवाद की ओर, परतंत्रता से स्वतंत्रता की ओर, प्राचीन मान्यत्याओं(रूढियों) से नई मान्यात्याओं की ओर बढना ही प्रगतिवाद है।
Cite this article:
हिन्दी साहित्य मे प्रगतिवाद. Int. J. Ad. Social Sciences 3(3): July- Sept., 2015; Page 121-123
Cite(Electronic):
हिन्दी साहित्य मे प्रगतिवाद. Int. J. Ad. Social Sciences 3(3): July- Sept., 2015; Page 121-123 Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2015-3-3-6