ABSTRACT:
पूंजीवादी नीति पूरी तरह धन का असमान वितरण एवं धन का व्यक्तिवादी संचयीकरण के बुनियाद पर खडा है अर्थात धन अर्जित करने के स्वतंत्रता बाजार, लाभ तथा वर्ग विभाजन । वह पूंजी के वृृद्वि के लिए न केवल वचनबद्व है वरन्् इसके लिए शोषण के किसी भी हद को पार करने के उतारू रही है। चाहे वह मजदूरों की छटनी हो या कार्य के घंटें में वृृद्वि अथवा अतिरिक्त मूल्य के रूप में धन का संग्रहण करना हो ? पंूजीवाद की इस नीति ने पूरे विश्व में औद्योगीकरण और नगरीकरण को बल दिया जिससे विश्वभर में औद्योगीकारण का बेतहासा वृद्वि हुआ, कृषि भूमि, घरेलू उुद्योग जैसे जीविका के परम्परागत किन्तु टिकाउ साधन समाप्त होता चला गया और वैष्विक समुदाय के आत्मनिर्भता धीरे-धीरे समाप्त हो गया और आत्मनिर्भर समाज जीविका के लिए उद्योगों पर आश्रित हो गया तथा इस नीति से पूंजीपति और धनाडय बनता गया और श्रमिक व कमजोर वर्ग और भी निर्धन व कमजोर होत चला गया। इस प्रकार पूरा समाज दो बडे वर्ग में विभाजित हो गया एक पूंजीपति और दूसरा श्रमिक व सर्वहारा। पूंजीपति अपने पंजी के दम पर अलीषान जीवन यापन करता वहीं दूसरा वर्ग प्रथम वर्ग के षोशक के षिकार से मानसिक और षारीरिक दोनों ही दृष्टि से कमजोर होता चला गया । षोशण के विरूद्व आन्दोलन करता चंूकि इसमें भी छटनी और मजदूरी से बेदखल होने के भय से हमेषा चिन्तित रहता है। पूंजीवादी षोशण की इन नीति के विरूद्व माक्र्स ने अवश्य श्रमिको का पूरजोर सहयोग किय है और अपने भविष्यवाणी में श्रमिकों व सर्वहारा वर्ग के लिए एक महान आषा प्रकट की है कि एक समय आयेगा जिसमें सर्वहारा और पूंजीपतियों बीच संघर्ष के फलस्वरूव उनके पंूजी की षक्ति को तोडकर ध्वस्त करेगी और समाजवादी समाज व्यवस्था की स्थापना करेगा।
Cite this article:
Nister Kujur. पूंजीवादी षोशण नीति और लोकतंत्रीय समाज व्यवस्था. Int. J. Ad. Social Sciences 1(2): Oct. - Dec. 2013; Page 48-50.