Author(s): जी.एस. धु्रवे

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Address: डाॅ जी.एस. धु्रवे सहायक प्राध्यापक, राजनीति विज्ञान,शास. महाविद्यालय पथरिया, मुंगेली (छ.ग.) ’ब्वततमेचवदकपदह ।नजीवत म्.उंपसरू

Published In:   Volume - 3,      Issue - 2,     Year - 2015


ABSTRACT:
संसद का उद्देश्य ही सामाजिक बदलाव रहा है। समाज की सामाजिक गतिविधियों की सुचारूता तभी सफलतापूर्वक गति करती है, जब उसका आर्थिक पक्ष मजबूत होता है, और संसदीय प्रयोजनों का एक लक्ष्य समाज को आर्थिक रूप से सशक्त करना भी है। विकास का आधार संसदीय लोकतंत्र से ही तो शुरू हो रहा है, क्योंकि- ‘‘भारत में विकास संबंधी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए संसदीय प्रणाली को अपनाया गया है। यदि संसदीय प्रणाली सामाजिक प्रयोजनों की पूर्ति में कारगर नहीं होती है, तो लोकतंत्र की अन्य प्रणालियों को आजमाया जा सकता है। सरकार का स्वरूप कुछ भी हो, काम तो आमतौर पर नौकरशाही तंत्र ही सम्पन्न करता है। अतः विकास संबंधी प्रयोजनों की पूर्ति के लिए संसदीय तंत्र के साथ नौकरशाही तंत्र का मजबूत होना भी जरूरी है।’’1


Cite this article:
जी.एस. धु्रवे. भारत में संसदात्मक शासन की मूलभूत उपलब्धियाँ. Int. J. Ad. Social Sciences 3(2): April-June, 2015; Page 92-96

Cite(Electronic):
जी.एस. धु्रवे. भारत में संसदात्मक शासन की मूलभूत उपलब्धियाँ. Int. J. Ad. Social Sciences 3(2): April-June, 2015; Page 92-96   Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2015-3-2-11


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