ABSTRACT:
भारत की विकासषील अर्थव्यवस्था में आयुर्वेद औषधि निर्माणी उद्योग का अद्वितीय स्थान है। भारत में उद्योग आज से हजारो वर्ष पूर्व अत्याधिक विकसित अवस्था में था तथा इनके व्दारा निर्मित माल (जड़ी-बुटिया) विष्व के सभी देषो में बड़े आदर के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्राप्त हुआ करती थी परन्तु अंग्रेजी षासन में विदेषी सरकार की स्वार्थ पूर्ण नीति के कारण इनका बहुत अधिक पतन हुआ भारतीय कारीगरों एवं दस्तकारों ने सभी प्रकार के कठिनाइयों के बावजूद भी अनेक प्रकार के ज्ञानों की प्रचीन उद्योगो को जीवित रखा। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारी सरकार का यह प्रयत्न रहा है कि देष के औषधी उद्योगों का बड़े उद्योगो के साथ समन्वित विकास हो। आयुर्वेदिक औषधि निर्माणी उद्योग के वित्तीय प्रबंध में सबसे बड़ी समस्या वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये नवीन वित्त की प्राप्ती है। उद्योग के वित्त प्रबंध के पास नवीन वित्त प्राप्त करने के लिए अनेक साधन होते हैं जैसे समता अंषपूंजी, पूर्वाधिकारी अंषपूंजी, ऋणपूंजी (ऋण पत्र), मध्यकालीन ऋण तथा अल्पकालीन ऋण उद्योगों द्वारा इन साधनों में सामंजस्य स्थापित करते हुए सर्वोत्तम साधन का प्रयोग कर नवीन वित्त की प्राप्ति की जाती है। और वित्तीय आवष्यकताओं को पूरा किया जाता है। आयुर्वेद उद्योगों द्वारा पूर्वाधिकार अंषों के निर्गमन में किसी भी प्रकार की रुचि नही दिखाई गई है। साथ ही पिछले दस वर्षो में नये समता अंशों के निर्गमन पर भी ज्यादा ध्यान नही दिया गया।
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पुष्पराज कुमारी पाण्डेय. मध्यप्रदेश में आयुर्वेद औषधि निर्माणी उद्योगों की वित्त-व्यवस्था (सतना जिले के विषेष संदर्भ में). Int. J. Ad. Social Sciences. 2020; 8(4):181-186.
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पुष्पराज कुमारी पाण्डेय. मध्यप्रदेश में आयुर्वेद औषधि निर्माणी उद्योगों की वित्त-व्यवस्था (सतना जिले के विषेष संदर्भ में). Int. J. Ad. Social Sciences. 2020; 8(4):181-186. Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2020-8-4-10
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