ABSTRACT:
लघु वित्त संस्थाओं ने पारंपरिक बैंकिग तंत्र द्वारा वंचित ग्राहकों को सेवा प्रदान करने के प्रति एक साझा वचन बद्धता व्यक्त की है। मांग की कुशलता पूर्वक पूर्ति करना तथा ग्राहकों को सरलता से समझ आने वाली सेवाएं उपलब्ध करना ही लघु वित्त की सफलता की कुंजी है। इसी आधार पर बांग्लादेश, बोलिविया, इंडोनेशिया जैसे देशों में कार्यरत् संस्थाओं ने सिद्ध कर दिया कि गरीबों को मांग आधारित वित्तीय सेवाएं प्रदान कर गरीबी के विरूद्ध निर्णायक लड़ाई लड़ी जा सकतीे है। आजादी के बाद भारत के सामने जो चुनौतियां थी उनमें सबसे बड़ी चुनौती थी ग्रामीणों के आधारभूत जीवन स्तर में सुधार के लिए उन्हंे आवश्यक पूंजी उपलब्ध कराना। पिछले कुछ समय से ग्रामीण भारत में लघु ऋण कार्यक्रम के रूप में स्वयं सहायता समूह प्रचलित हुए हैं। इन स्वयं सहायता समूहों की खासियत यह है कि इनमें से लगभग 92 प्रतिशत समूहों का संचालन महिलाओं द्वारा किया जा रहा है। स्वयं सहायता समूहों द्वारा ग्रामीण विकास की सहायता से गरीबी उन्मूलन के साथ महिला सशक्तिकरण का भी कार्य कर रहे हैं। इन स्वयं सहायता समूहों की अवधारणा गरीब परिवारों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने और उन्हें किसी लघु उद्यम से जोड़ने की है। आज जरूरत इस बात की है कि इन स्वयं सहायता समूहों को पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाए जिससे वे अपनी गतिविधियां व्यवस्थित तरीके से चला सकंे और लघु ऋण व्यवस्था सहीं मायने में उनका जीवन स्तर ऊपर उठाने में सहायक बन सके।
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सुनील कुमार कुमेटी, भारती सिंह. छत्तीसगढ में स्वयं सहायता समूह- बैंक लिंकेज कार्यक्रम के अंतर्गत सूक्ष्म वित्त की प्रवृत्ति एवं ग्रामीण विकास. Int. J. Ad. Social Sciences. 2018; 6(1):01-08.
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सुनील कुमार कुमेटी, भारती सिंह. छत्तीसगढ में स्वयं सहायता समूह- बैंक लिंकेज कार्यक्रम के अंतर्गत सूक्ष्म वित्त की प्रवृत्ति एवं ग्रामीण विकास. Int. J. Ad. Social Sciences. 2018; 6(1):01-08. Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2018-6-1-1