Author(s): श्याम सुन्दर पाल

Email(s): shyamsunder.yoga@gmail.com

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Address: डा- श्याम सुन्दर पाल
सहायक प्राध्यापक] योग विभाग] इंदिरा गाॅधी राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति विश्वविद्यालय अमरकंटक (म-प्र½
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 5,      Issue - 1,     Year - 2017


ABSTRACT:
अनेक मनीषियो और अन्य उपासको की दृष्टि से जीव और परमात्मा का मिलन ही योग बताया गया है। अतः युजिम् योगे धातु से योग षब्द निष्पन्न माना जाता है परन्तु महर्षि पतंजलि ने समाधि अर्थ में योग षब्द का प्रयोग किया है। क्योकि] योग तो वैदिक परम्परा से लेकर आज तक चला आ रहा है। गीता में भगवान कृष्ण अनेक प्रकार के योगों का ज्ञान अर्जुन को प्रदान करते है और उनमें से सांख्य दर्षन तथा योग दर्षन को प्रमुख बताते हुए योग की महत्ता का प्रतिपादन करते है। योग के बिना तो संांख्य की साधना करना कठिन है। योग से युक्त होकर अर्थात् योग निष्णात होकर मुनि लोग शीघ्र ही ब्रह्म का साक्षात्कार करते है। योग के द्वारा ब्रह्म प्राप्ति का मार्ग सरल हो जाता है। योग षब्द संस्कृत के युज धातु]]से बना हुआ है जिस का सामान्य रूप से योग षब्द का अर्थ मिलना या जुड़ना होता है और यदि व्याकरण की दृष्टि से देखे तो पाण्निि के अनुसार युज् धातु तीन गुणों में पायी जाती है। युज् समाधौ दिवादिगणं] युजिर् योगे युधादिगणं और युज् संयमने चुरादिगण। क्रमषः इन तीनों धातुओं से बने योग षब्द के अर्थ भिन्न-भिन्न है। वेदान्तियों और अन्य उपासकों की दृष्टि से जीव और परमात्मा का मिलन होता है। अतः युजिर् योगे धातु षब्द निष्पन्न माना जाना चाहिए। परन्तु महर्षि पतंजलि ने समाधि अर्थ से योग षब्द प्रयोग किया है। संस्कृत वाडग्मय में इन तीनों अर्थो में योग षब्द का प्रयोग प्रायः होता रहा है। क्योंकि योग तो वैदिक परम्परा से लेकर आज तक चला आ रहा है। जैसा कि ऋग्वेद में दृष्टव्य है-’’इन्द्रः क्षेमे योग हव्य इन्द्रः’’2 और याज्ञवल्वयस्मृति में उल्लेख मिलता है कि- ’’हिरण्यगर्भो योगस्य वक्तामान्यः पुरातनः।3


Cite this article:
श्याम सुन्दर पाल. मानव जीवन में योग का महत्व. Int. J. Ad. Social Sciences. 2017; 5(1): 29-32.

Cite(Electronic):
श्याम सुन्दर पाल. मानव जीवन में योग का महत्व. Int. J. Ad. Social Sciences. 2017; 5(1): 29-32.   Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2017-5-1-7


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