ABSTRACT:
वनों एवं उनमें निवास करने वाली जनजातियों का एक दूसरे से निकटतम संबन्ध होता है। वनों के बिना जनजातियों के जीवन पद्धति की कल्पना नहीं की जा सकती है। यह काफी समय से वनों मे रहते आ रहें हैं तथा यहीं इनका घर होता है। वनों से इन्हें केवल भोजन, दवाईयाँ, ईधन आदि ही नहीं मिलता, बल्कि यह भावनात्मक रूप से जंगलों एवं पौधों से जुड़े होते हैं। इनके संस्कृति, गीत, संस्कार तथा जीवन पद्धति वनों के आस-पास होती है। जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी क्रियाकलापों में यह वनों से जुड़े होते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि वनों एवं जनजातियों का सहजीवी जीवन होता है। यदि जनजातियों के घरों के आस-पास वनों का अभाव होता है तो वह जंगलों में समय-समय पर जाकर अपने जरूरत के वस्तुओं को इकटठा करते हैं।प्रस्तुत शोध में बघेलखण्ड के वनों एवं उनमें रहने वाली विभिन्न जनजातियों (गोड़, बैगा, कोल, पनिका, खैरवार आदि) द्वारा विभिन्न प्रकार के उपयोग में लाये जाने वाले पौधों एवं उनके अंगों का वर्णन किया गया है। यह पौधे भोजन, दवाइयाँ, ईधन, कृषि उपकरण, मकान, सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक रीति-रिवाजों में उपयोग किये जाते हैं। इस प्रकार जनजातियाँ सामाजिक आर्थिक तथा जीवन के प्रत्येक पक्ष में वनों एवं उनके उत्पादों पर निर्भर हैं। अतः वनों को विकसित एवं संरक्षित करके ही हम जनजातियों को सामाजिक एवं आर्थिक रूप से उन्नत कर सकते हैं तथा उनके संस्कृति को जीवित रख सकते हैं।
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स्कंद मिश्रा.बघेलखण्ड के जनजातियों द्वारा उपयोग में लाये जाने वाले पौधे: एक अध्ययन. Int. J. Ad. Social Sciences. 2017; 5(1):16-18.
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स्कंद मिश्रा.बघेलखण्ड के जनजातियों द्वारा उपयोग में लाये जाने वाले पौधे: एक अध्ययन. Int. J. Ad. Social Sciences. 2017; 5(1):16-18. Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2017-5-1-4