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Vrinda Sengupta, Ambika Prasad Verma
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Dr. (Smt.) Vrinda Sengupta1, Dr. Ambika Prasad Verma2
1Assistant Professor (Sociology), Govt T.C.L..P.G. College, Janjgir
2Assistant Professor (Political Science), Govt T.C.L..P.G. College, Janjgir
Published In:
Volume - 3,
Issue - 1,
Year - 2015
ABSTRACT:
जनजाति क्षेत्रों में खासकर विकास की चुनौतियां प्रायः सर्वविदित है। वर्तमान सरकार के अथक प्रयासों से विकास की गति तीब्र हो रही है एवं नक्सल क्षेत्रों में रहने वाले जनजीवन की आर्थिक, शिक्षा की स्थितियों में सुधार नजर आ रहे हैं।
भारतीय कम्युनिस्ट आन्दोलन प्रारम्भ से ही पिछलग्गू रहा। वह अपना अस्तित्व कायम कर एक स्वतंत्र कम्युनिस्ट पार्टी को जन्म नहीं दे सका। जो भारत की तमाम वामपंथी शक्तियों को एक सूत्र में पिरोकर एक नई राजनैतिक प्रणाली और सामाजिक बदलाव के लिए जनता को गोल बंद करके दिशा दे सके। यह वह वक्त राष्ट्रीय परिदृश्य पर एक तरफ पं. जवाहरलाल नेहरु का व्यक्तित्व था। दूसरी तरफ डाॅ. राम मनोहर लोहिया का प्रबल कांग्रेस विरोध। आजादी की तरफ टकटकी लगाये लोगों का इस हकीकत से रुबरु होना पड़ रहा था कि देश से अंग्रेज जरुर चले मगर सŸाा की बागडोर काले अंगे्रजों को सौंप गये हैं। इसलिए तक तरफ कांग्रेस सरकार प्रयोग में बदली तो दूसरी ओर नक्सलवाद परिघटना में बंट गया था।
Cite this article:
Vrinda Sengupta, Ambika Prasad Verma. नक्सलवाद: मानवीय जीवन के लिए भयावह. Int. J. Ad. Social Sciences 3(1): Jan. –Mar., 2015; Page 04-05
Cite(Electronic):
Vrinda Sengupta, Ambika Prasad Verma. नक्सलवाद: मानवीय जीवन के लिए भयावह. Int. J. Ad. Social Sciences 3(1): Jan. –Mar., 2015; Page 04-05 Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2015-3-1-2