Author(s): जयदेवसिंह बी. रायजादा

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DOI: 10.52711/2454-2679.2023.00026   

Address: जयदेवसिंह बी. रायजादा
असिस्टेंट प्रोफेसर, समाजशास्त्र विभाग, क्रांतिगुरु श्यामजी कृष्णवर्मा कच्छ यूनिवर्सिटी, भुज-कच्छ, गुजरात.
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 11,      Issue - 3,     Year - 2023


ABSTRACT:
गुजरात में अनेक बंजारा समूह राजस्थान में से स्थानांतरण करके आए थे। उनमें से हर एक समूह ने अलग-अलग व्यापार को अपनाया उसके आधार पर उनको पहचान मिली। जिसके आधार पर से बंजारे में से गौण जातियां अस्तित्व में आई। मूल बंजारे लोग ऊंटवाल कर उसके ऊपर माल और सामान का वाहन और ऊंट की लेनदेन करके अपना गुजारा करते थे। गधे पर मिट्टी और सामान का वाहन और खुदाई करके गुजारा करते बंजारे ओढ़ के रूप में पहचाने जाते थे। अंकित खेल द्वारा पैसे कमा कर गुजारा करने वाले लोग गोरिया कहलाए। लोहे के बर्तन ठीक करने वाले लोग लोहारिया कहलाए। मजदूरी करते कंधे बैठ के रूप में पहचाने जाते जबकि कंदी बनाकर बेचने वाले लोग कंधेर के नाम से पहचाने जाते। यह कंधील लोग रायण और शीशम जैसे पेड़ की लकड़ी में से और पशुओं की सिंग में से एक कंधी बनाकर गांव और शहरों में बेचने वाले के रूप में कैरी करके उसका व्यापार करते थे। साथ ही संख सीप कोरिया जैसे और बास में से बनाई हुई कहीं हस्तनिर्मित चीजों का व्यापार करते थे


Cite this article:
जयदेवसिंह बी. रायजादा. कंधेरो की पहचान के विरुद्ध चुनौतियां (भावनगर क्षेत्र के विषय में). International Journal of Advances in Social Sciences. 2023; 11(3):176-0. doi: 10.52711/2454-2679.2023.00026

Cite(Electronic):
जयदेवसिंह बी. रायजादा. कंधेरो की पहचान के विरुद्ध चुनौतियां (भावनगर क्षेत्र के विषय में). International Journal of Advances in Social Sciences. 2023; 11(3):176-0. doi: 10.52711/2454-2679.2023.00026   Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2023-11-3-7


अध्ययन निष्कर्ष: -
1-    कंधेरो की मूल पहचान क्षत्रिय के रूप में थी उसके बाद राजस्थानमें राजपूत और उसके बाद स्थानांतर और ऊंट का व्यवसाय करते बंजारे और फिर कंधेरा के रूप में पहचान वह लोगों ने पाई थी। आबादी के बड़ी उम्र के लोगों के पास से मिली गई माहिती पर से कंधेरों की मूल पहचान और बदलती पहचान के बारे में माहिती मिली थी।
2-    कांधेरोका मूल वतन राजस्थान था। वहीकी राजपूत क्षत्रिय के रूप में मूल पहचान अब तक कंधेरोंने  निभाए रखी है। तत्कालीन समय में सामाजिक बदलाव के प्रभाव तले उनकी मूल पहचान बदल रही है। साथ ही भविष्य में उनकी मूल पहचान संपूर्ण लुप्त होगी ऐसा माहिती जांचने जानने को मिला है।
3-    भारत में क्षत्रिय उच्च ज्ञाति गिनी जाती है जबकि कंधेरोको निम्न ज्ञाति में गिना जाने से उनका मूल गौरव गंवाते थे ऐसी अभिव्यक्ति अंधेरों के परिवार करते हैं अवलोकन पर से इस बारे में जानने को मिला है।
4-    कंधेरों की ऐतिहासिक समयावधि दौरान अविरत बदलती पहचान के परिणाम से सरकारी दस्तावेजमें प्रारंभ के नाम पंजीकरण के समय उनको कौनसी ज्ञाती के रूप में पहचाने यह प्रश्न खड़ा था साथ ही उनको उच्च ज्ञाती गिने की निम्न ज्ञाती वह प्रश्न सर्जन हुआ था। यह सभी सवालों कंधेरो के लिए चुनौती के रूप में थे ऐसी माहिती जांचते समय जानने को मिला है।
5-    कंधेरों का व्यवसाय और विशेष संस्कृति उनकी पहचान के रूप में थे तत्कालीन समय में सामाजिक बदलाव होने से भविष्य में कंधेर के रूपकी तत्कालीन समय की ज्ञांति की पहचान पर भी बदलाव का प्रभाव पड़ेगा ऐसा मुलाकात तालिका द्वारा एकीकरण की गई माहिती की जांच से जानने को मिला है।
6-    कंधेरो की तत्कालीन पहचान के विरुद्ध तत्कालीन समय में कोई विशेष चुनौतियां की जानकारी नहीं मिली है। अवलोकन और मुलाकात से एकीकरण की गई माहिती पर से इसके बारे में जानकारी मिली है।
7-    कंधेरों को मिलते निम्न ज्ञांती के रूप में सरकारी लाभ अब तक एक भी कंधेर परिवार को मिल सका नहीं क्योंकि वह लोग शैक्षणिक रूप से और आर्थिक रूप से भी पिछड़े है। उनका यह पिछड़ापन आरक्षण के लाभ पाने के लिए चुनौती बन पड़ा है। ऐसी माहिती जांचने से जानकारी मिली है।
8-     अभ्यास की अवधारणा ए संपूर्ण सच्ची हो नहीं पाई उनकी परंपरागत पहचान लुप्त हो रही है जबकि तत्कालीन पहचान लंबे समय तक टिकी रहेगी। ऐसी माहिती पर से निष्कर्ष देखने को मिला है। वार के उत्तर दाता का अभिप्राय रहा है।

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