Author(s):
Vrinda Sengupta, S.K.Agrawal
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Not Available
Address:
Dr. Vrinda Sengupta1, Dr. S.K.Agrawal2
1Assistant Professor, Sociology, T.C.L. G. Post Graduate College Janjgir [C.G]
2Principal, T.C.L. G. Post Graduate College Janjgir [C.G]
Published In:
Volume - 4,
Issue - 4,
Year - 2016
ABSTRACT:
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश मंे आजादी के 67 साल के बाद भी बाल मजदूरो की संख्या घटने की बजाय निरंतर बढ़ रहा है। 14 नवम्बर को प्रत्येक वर्ष बाल दिवस मनाया जाता है किन्तु शिक्षा स्वास्थ्य बचपन का स्वाभिमान और भविष्य की गारंटी जैसे मुद्दे आज भी पूर्ववत् बने हुए हैा भारत मे 05 वर्ष से कम आयु के 47 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैा यानी भरपेट खाना उनको नसीब नही है हाल ही में यूनीसेफ ने ऐलान किया है कि दुनिया भर मे 5 वर्ष से कम उम्र मे मौत के मुँह मे समा जाने वाले लगभग 97 लाख बच्चे मंे से 21 लाख भारत के है पाँच छरू करोड़ बच्चे बाल मजदूरी के शिकार हैा लाखो बच्चे जानवरो से भी कम कीमत में एक से दूसरी जगह खरीदे और बेचे जाते हैा चालीस पच्चास हजार बच्चे मोबाइल फोन्, बटुए, खिलौने या किसी सामान की तरह प्रत्येक वर्ष गायब कर दिए जाते है अकेले देश की राजधानी दिल्ली मे औसतन 6 बच्चे गायब कर दिए जाते है ।
Cite this article:
Vrinda Sengupta, S. K. Agrawal. बालमजदूरी: वर्तमान समाज की उपज एक समाजशास्त्रीय अध्ययन- जिला-जाॅजगीर चाॅपा के शांतिनगर एवं खड़फड़ी पारा के विशेष संदर्भ मंे. Int. J. Ad. Social Sciences. 2016; 4(4):208-211.
Cite(Electronic):
Vrinda Sengupta, S. K. Agrawal. बालमजदूरी: वर्तमान समाज की उपज एक समाजशास्त्रीय अध्ययन- जिला-जाॅजगीर चाॅपा के शांतिनगर एवं खड़फड़ी पारा के विशेष संदर्भ मंे. Int. J. Ad. Social Sciences. 2016; 4(4):208-211. Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2016-4-4-8