Author(s):
Vrinda Sengupta, S.K. Agrawal
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Dr. Vrinda Sengupta, Dr. S.K. Agrawal
Assistant Professor (Sociology), T.C.L.G. Post Graduate College Janjgir [C.G]
Principal, T.C.L. G.Post Graduate College Janjgir [C.G]
*Corresponding Author
Published In:
Volume - 5,
Issue - 2,
Year - 2017
ABSTRACT:
प्रस्तुत शोधपत्र बालश्रम एवं बाल अपराध के सामाजिक आर्थिक पृष्टभूमि एवं उन्मूलन के प्रयासो पर आधारित है। प्रत्येक बालक का यह मौलिक अधिकार है कि सामाजिक एवं मानसिक विकास हेतु उत्तम सुविधाए़ दे बच्चो की शिक्षा की उपेक्षा करके उनसे ऐसा काम करवाया जाये जो उनके लिए जोखिम बन जाये एवं उनके द्वारा जाने या अनजाने मे अपराधिक कृत्य किया जाना। उनके शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक स्वास्थ्य पर कुप्रभाव डाले, तो यह बालश्रम है। अंतराष्ट्रीय बाल श्रम संगठन 1988 के अनुसार खेल की अवस्था में बच्चो से वयस्कों जैसे कार्य करवाना कम मजदूरी के लिए लंबे समय तक ऐसे कार्य कराना जिनसे शारीरिक मानसिक क्षति पहुंचे एवं बाल अपराध के अंतर्गत वे अपराध आते है जो एक निश्ति आयु समूह के भीतर के बालको या किशोरो द्वारा किसी विधि कानून का उल्लंघन करने पर पारित होते है। यह अपराध गंभीर किस्म का भी हो सकता है। हमारे यहां बाल अपराधियो को बाल सुधार गृह भेजा जाता है न कि कारागार।
Cite this article:
Dr. Vrinda Sengupta, Dr. S.K. Agrawal. बालश्रमिको, बालअपराधियो का सामाजिक आर्थिक समस्याओ का समाजशास्त्रीय अध्ययन (जिला- बिलासपुर के रेलवे प्लेटफार्म के विशेष संदर्भ मे). Int. J. Ad. Social Sciences. 2017; 5(2):65-68.
Cite(Electronic):
Dr. Vrinda Sengupta, Dr. S.K. Agrawal. बालश्रमिको, बालअपराधियो का सामाजिक आर्थिक समस्याओ का समाजशास्त्रीय अध्ययन (जिला- बिलासपुर के रेलवे प्लेटफार्म के विशेष संदर्भ मे). Int. J. Ad. Social Sciences. 2017; 5(2):65-68. Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2017-5-2-3
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