Author(s): डाॅ- रमेश अनुपम, आकांक्षा दुबे

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Address: डाॅ- रमेश अनुपम1] आकांक्षा दुबे2
1सहायक प्राध्यापक] शासकीय दू-ब- महिला स्नाताकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय] रायपुर (छ-ग-)
2शा- दू- ब- महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय] रायपुर (छ-ग-)
*Corresponding Author

Published In:   Volume - 5,      Issue - 1,     Year - 2017


ABSTRACT:
‘‘चलचित्र कहानी प्रस्तुत करने का एक जरिया है] इसलिए फिल्म एक जुबान है] भाषा है। कहानी कई तरीकों से प्रस्तुत की जा सकती है। बोले हुए शब्दों में] नृत्य में] कविता में] गीत में] हावभाव में] तस्वीर में। सिनेमा में ये सब समा जाते हैं। सिनेमा सिर्फ कला नहीं कलाओं में महान कला है।’’ -चेतन आनंद साहित्य समाज का दर्पण है तो सिनेमा समाज का अक्स। साहित्य की अपेक्षा सेल्युलाइड अधिक प्रभावशाली माध्यम सिद्ध हुआ । साहित्य का आस्वाद चखने के लिए शिक्षा की अनिवार्यता पाठकों को होती है] पर सेल्युलाइड साहित्य में शिक्षा की अनिवार्यता का बंधन नहीं है। सिनेमा की भाषा] दृश्य भाषा हैं। भारतीय जनजीवन में लोकभाषा] लोकतन्त्र शहरे से अपनी बैठ बनाए हुए है। लोकभाषा] लोकसंस्कृतियों का अनूठा प्रयोग हम सेल्युलाइड साहित्य में भी पाते है। छत्तीसगढ़ के माटी पुत्र कथाकार निर्देशक किशोर साहू ने हिन्दी सिनेमा से छत्तीसगढ़ी लोकसभा और लोकतत्वों को समाहित कर हिन्दी सिनेमा संसार को समृद्ध किया । सिनेमा में लोकभाषा के मिश्रण का प्रथम प्रयास किया और सफल हुए। चित्रपट ‘नदिया के पार’ हिन्दी सिनेमा के इतिहास में कई अर्थो में अविस्मरणीय है। इस चित्रपट में रोचक पटकथा] मनमोहक दृश्य संयोजन और आकर्षण संवाद योजना का अनूठा संगम दिखाई देता है। छत्तीसगढ़ किशोर साहू का संस्कारधानी रहा है] अपने इस चित्रपट के माध्यम से किशोर साहू ने अपनी मातृभूमि का ऋण-चुकाया है। छत्तीसगढ़ी संवादों के साथ-साथ छत्तीसगढ़ी आभूषण] छत्तीसगढ़ की वेश-भूषा] छत्तीसगढ़ के रीति-रिवाजों को भी मनोरम ढंग से प्रस्तुत किया है। विलक्षण संवाद संयोजन से समृद्ध सिनेमा ‘नदिया के पार’ छत्तीसगढ़ी भाषा के सेल्युलाइड पर्दे पर प्रस्तुत होने वाली अनमोल वृति है। इस लिहाज़ से भी किशोर साहू को भारतीय फिल्मों में छत्तीसगढ़ी का फणीश्वरनाथ रेणु कहा जा सकता है।


Cite this article:
डाॅ- रमेश अनुपम, आकांक्षा दुबे. लोक संस्कृतियों और लोकभाषा से समृद्ध हिन्दी सिनेमा किशोर साहू की फिल्म ‘नदिया के पार’ के संदर्भ में. Int. J. Ad. Social Sciences. 2017; 5(1): 33-36.

Cite(Electronic):
डाॅ- रमेश अनुपम, आकांक्षा दुबे. लोक संस्कृतियों और लोकभाषा से समृद्ध हिन्दी सिनेमा किशोर साहू की फिल्म ‘नदिया के पार’ के संदर्भ में. Int. J. Ad. Social Sciences. 2017; 5(1): 33-36.   Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2017-5-1-8


संदर्भ-
1-     अश़्क इब्राहिम] ‘‘सम-सामयिक सृजन’’ हिन्दी फिल्मों की भाषा। प्रकाशन- रूचिका प्रिन्टर्स] बी-25] नई दिल्ली] वर्ष - अक्टूबर - मार्च] 2012-13] पृष्ठ संख्या - 42
2-     रिज़वी इकबाल] सिनेमा के प्रयोगधर्मीः साहित्यिक किशोर साहू] ‘‘हंस: हिन्दी सिनेमा के सौ साल’’]  पृष्ठ संख्या -74
3-     डाॅ- (श्रीमती) विमल] ‘‘हिन्दी चित्रपट एवं संगीत का इतिहास - संगीता का उद्भव व विकास’’] प्रकाशक: संजय प्रकाशन] दरियागंज] नई दिल्ली] पृष्ठ संख्या - 99।
4-     खरे] विष्णु] ‘‘स्मारिका - स्मरण किशोर साहू’’] छत्तीसगढ़] मध्यप्रदेश] महाराष्ट्र और भारत का गौरव। पृष्ठ संख्या-11
5-     नदिया के पार- सिनेमा के संवाद।

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