Author(s):
Vrinda Sengupta
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Address:
Dr. (Mrs.) Vrinda Sengupta
Asstt. Professor (Sociology), Govt T.C.L.P.G.College Janjgir
*Corresponding Author
Published In:
Volume - 3,
Issue - 4,
Year - 2015
ABSTRACT:
जननी को जन्मने दो, जननी को जीने दो।
हर बेटी की यही पुकार (दो हमे जीने का अधिकार)
ऽ लैंगिक असमानता (भारत के संदर्भ में)
ऽ प्राथ./द्वितीयक सामग्री का उपयोग,
ऽ आलोचनात्मक पद्धति,
ऽ भारतीय समाज में लैंगिक समानता की स्थापना करना हमारा लक्ष्य है।
प्रस्तुत षोध पत्र में भारत में बढ़ते कन्या, भ्रूण-हत्या, महिला हिंसा एवं अत्याचार के संदर्भ में लिखा गया है।
‘‘ममता की प्यास’’
मां मत, गर्भ लजा तू अपना,
हत्या करवा कर मेरी।
सोच जन्म तू लेती कैसे ?
मां यदि मरवा देती तेरी।।
नन्हें-नन्हें हाथ जोड़ मैं,
करती हूँ तुझसे विनती।
मत करवा मां तू भी अपनी,
हत्यारी मांओं में गिनती।।
जन्म मुझे दे, मान बढ़ेगा,
कर मां तू मुझ पर विष्वास।
मां मुझको कुछ नहीं चाहिए,
बस तेरी ममता की प्यास।।
Cite this article:
Vrinda Sengupta. कुचलते नवजात षिषुः समाजषास्त्रीय अध्ययन (छत्तीसगढ़ के संदर्भ में). Int. J. Ad. Social Sciences 3(4): Oct. - Dec., 2015; Page 179-182.