ABSTRACT:
जीवन की बिखरी अनुभूतियों को समेट कर जब कवि उन्हें शब्द और अर्थ के माध्यम से एक कलापूर्ण रूप देता है तभी काव्य का जन्म होता है । ऐसा तभी होता है जब कवि अभिव्यक्ति के लिये व्यग्र हो उठता है । अनुभूत तथ्य का आनंद उसके हृदय में अटाएॅ नहीं अॅटता, वह कहने के लिये व्याकुल हो उठता है। उसकी इस व्यग्रता मंे अपनी अनुभूतियों को केवल व्यक्त भर कर देने की आकांक्षा नहीं होती, प्रत्युत पाठक तक पहुॅचा देने की, उन्हें एक सार्वभौम रूप देने की भावना भी उसके पीछे छिपी रहती है ।
प्रसाद जी भी मूलतः भावुक कवि हैं । अपने गीतों में उन्होंने अपनी भावनाओं को, अनुभूतियों को सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है । कवि की अनुभूति अपनी अभिव्यक्ति का मार्ग स्वयं ढूंढ लेती है । उसके अन्तः स्थल में इन अनुभूतियों के फलस्वरूप जैसा स्वर गूंज उठता है, उसके अनुरूप ही उसकी अभिव्यक्ति होती है । अब हम यह देखेंगे कि प्रसाद जी ने अपने गीतों में विभिन्न गीत तत्वों का समावेश किस प्रकार किया है ।
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बृजेन्द्र पाण्डेय. गीत तत्वों की दृष्टि से प्रसाद के गीतों का मूल्यांकन. Int. J. Ad. Social Sciences 3(3): July- Sept., 2015; Page 103-106
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बृजेन्द्र पाण्डेय. गीत तत्वों की दृष्टि से प्रसाद के गीतों का मूल्यांकन. Int. J. Ad. Social Sciences 3(3): July- Sept., 2015; Page 103-106 Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2015-3-3-1