ABSTRACT:
व्यंग्य हिन्दी साहित्य की अमूल्य विधा है,व्यंग्य विधा के माध्यम से हम सामाजिक,आथर््िाक,एवं राजनैतिक जीवन में व्याप्त विसंगतियांे पर सीधा प्रहार करते हैं। व्यंग्य जहाॅं हंॅसी के पुट विद्यमान होते हैं,वही वह व्यवस्था मंे व्याप्त समस्याओं को उजागर कर शासन प्रशासन का ध्यान समस्याओं की ओर इंगित करता है। आधुनिक समय मंे हमारे जीवन के हर क्षेत्र मंे समस्याएॅ इतनी बढ़ चुकी है, कि उन्हे प्रत्यक्ष कहना अपने आप मंे संभव नही है,ऐसी स्थिति में व्यंग्य एक बहुत बडा अभिकरन है। व्यंग्य ववस्था पर कटाक्ष है, यह समस्याओं को तार-तार कर अर्थात बडी बारीकी से प्रस्तुत करता है। ताकि स्रोता, पाठक या दर्शक देखकर, पढ़कर या सुनकर मनोरंजनात्मक हॅसी से लोटपोट होकर व्यवस्था में व्याप्त समस्याओं से साक्षत्कार कर लेता है, तथा व्यंग्यकार व्यंग्य के माध्यम से समस्याओं का समाधान भी प्रस्तुत करता है, यही कारण है, कि आधुनिक हिन्दी जगत में व्यंग्य का महत्व दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। ।
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माग्रेट कुजूर. साहित्य में व्यंग्य विधा. Int. J. Ad. Social Sciences 2(4): Oct. - Dec., 2014; Page 233-234.
Cite(Electronic):
माग्रेट कुजूर. साहित्य में व्यंग्य विधा. Int. J. Ad. Social Sciences 2(4): Oct. - Dec., 2014; Page 233-234. Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2014-2-4-8
संदर्भ सूची:-
1 हरिशंकर परसाई, प्रेमचंच के फटे जूते पृष्ठ- 34,35
2 हरिशंकर परसाई, काग भगौड़ा-साहब महत्वकांक्षी पृष्ठ- 33
3 शरद जोशी, हम भ्रष्टन के भ्रष्ट,सरकार का जादू पृष्ठ- 37
4 हरिशंकर परसाई, शिकायत मुझे भी है, जीते हुए उम्मीद्वार के नाम पृष्ठ- 77
5 सं. गिरजाशरण, सामाजिक व्यवस्था पर व्यंग्य, दलाली पृष्ठ- 82
6 हरिशंकर परसाई, शिकायत मुझे भी है, चुनाव और सुशील लेखक पृष्ठ-73
7 शरद जोशी, यत्र तत्र सर्वत्र पृष्ठ-201
8 हरिशंकर परसाई, विकलांग श्रद्वा का दौर, एक अपील का जादू पृष्ठ-55
9 हरिशंकर परसाई, शिकायत मुझे भी है, शहादत जो टल गई पृष्ठ- 67