Author(s): महेन्द्र कुमार प्रेमी

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Address: महेन्द्र कुमार प्रेमी पी-एच.डी. शोध-छात्र, तुलनात्मक धर्म ,दर्शन एवं योग अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर, छŸाीसगढ़

Published In:   Volume - 2,      Issue - 3,     Year - 2014


ABSTRACT:
जीवन के आरंभिक काल से ही मोक्ष मानव जीवन के लिए एक जिज्ञासा का विषय रहा हे। मानव अपने जीवन के अंतिम लक्ष्य तथा उसके परिणाम को जानने की अनोखी जिज्ञासा रखते हैं। उन्होंने सर्वप्रथम यह विचार किया कि मानव जीवन में आत्मा नामक एक अति विशिश्ट अदृश्य व्यक्तित्व वाले शख्स निवास करता है, शरीर का जन्म होता है तथा मृत्यु भी निश्चय है लेकिन आत्मा का अंत नही होता बल्कि मानव के अपने जीवन काल, में शारीरिक कर्मो का फल उसे ही भोगना पड़ता है। इस प्रकार से जन्म एवं मृत्यु का चक्र लगातार चलता रहता है। आत्मा को अविनाशी माना गया है। क्योंकि आत्मा न तो मरता है और न ही जन्म लेता है जबकि मानव का जीवन जन्म से लेकर मृत्यु तक दुःखों से भरा रहता है उन्हें हर पल दुःखों का सामना करना पड़ता है। तो यहां पर एक महत्वपूर्ण प्रश्न उत्पन्न खडा होता है कि तो किसका उद्धार होता है। आत्मा का या शरीर का ? अर्थात दुःख से छुटकारा किसको मिलती है? सामान्य शब्दांे में मानव उसी प्रश्न के उत्तर के लिए अपना खोज आरंभ करता है यही से शुरू होती है मोक्ष हेतु अभियान।


Cite this article:
महेन्द्र कुमार प्रेमी . मानव जीवन में मोक्ष की जिज्ञासा, प्रासंगिकता एवं महत्व: एक दर्शनशास्त्र्ाीय्ा सामय्ािक विश्लेषण. Int. J. Ad. Social Sciences 2(3): July-Sept 2014; Page 183-187

Cite(Electronic):
महेन्द्र कुमार प्रेमी . मानव जीवन में मोक्ष की जिज्ञासा, प्रासंगिकता एवं महत्व: एक दर्शनशास्त्र्ाीय्ा सामय्ािक विश्लेषण. Int. J. Ad. Social Sciences 2(3): July-Sept 2014; Page 183-187   Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2014-2-3-10


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