ABSTRACT:
‘काव्येषु नाटकं रम्यम् ’ अनुसार साहित्य की सबसे सुंदर एवं महत्वपूर्ण विधा ‘नाटक’ है। यह विधा लोक जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करती है। नाटक शब्द ‘नट्’ धातु में ‘ण्वुल’ प्रत्यय लगाकर बनाया गया शब्द है] जिसका आशय है, जिस विधा में लौकिक अर्था और भावों का अभिनय किया जाय।
नाटक एक ऐसी विधा है जो दृश्य भी होता है और श्रव्य भी। मानव सभ्यता के प्रारंभ काल से ही कहीं न कहीं नाटक का बीच निहित था। संगीत]नृत्य] संवाद एवं अभिनय ये सभी नाट्यकला के अभिन्न अंग है। जंगलों में निवास करता हुआ मनुष्य जब एकाकी जीवन व्यतीत करता था] तब भी संगीत एवं नृत्य उसके साथी थे। धीरे-धीरे मनुष्य ने जब अपना समाज बनाया तो वे कलायें संघटित होकर मनोरंजन का एकमात्र साधन बन गइ। इस मनोरंजन के साधन को ‘नाटक’ की संज्ञा मिली।
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उर्मिला शुक्ला, सूरज कुमार देवांगन. वर्तमान हिन्दी नाट्य-परिदृष्य एवं विभु कुमार खरे के नाटकों का आंकलन. Int. J. Ad. Social Sciences 2(2): April-June, 2014; Page 131-133.
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उर्मिला शुक्ला, सूरज कुमार देवांगन. वर्तमान हिन्दी नाट्य-परिदृष्य एवं विभु कुमार खरे के नाटकों का आंकलन. Int. J. Ad. Social Sciences 2(2): April-June, 2014; Page 131-133. Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2014-2-2-12