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कुमुदिनी घृतलहरे, मधुलता बारा
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श्रीमती कुमुदिनी घृतलहरे] मधुलता बारा2’
1शोध-छात्रा, साहित्य एवं भाषा अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (छŸाीसगढ़)
2वरि. सहा. प्राध्यापक, साहित्य एवं भाषा अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (छŸाीसगढ़)
Published In:
Volume - 2,
Issue - 3,
Year - 2014
ABSTRACT:
उपेक्षित जीवन, जर्जर हालात और बढ़ती मंहगाई ने आम आदमी का जीवन दुश्वार कर दिया है। वह जीवन की मूलभूत आवश्यकता रोटी, कपड़ा और मकान के लिए ताउम्र संघर्शरत है। परिणामस्वरूप निराशा, हताशा, कुण्ठा का शिकार हो वह मूल्यहीनता की स्थिति में आ गया है और समाज में अपराधों की संख्या में लगातार इज़ाफा हो रहा है। किंतु इन्हीं के बीच छोटी-छोटी अभिलाशाओं एवं स्वप्नों को संजोए हुए आम आदमी थोड़े में ही खुश और संतुश्ट भी हो जाता है। समकालीन कविता के माध्यम से आम आदमी के वर्तमान परिस्थितियों का यथार्थ स्वरूप ज्ञात होता है।
Cite this article:
कुमुदिनी घृतलहरे, मधुलता बारा. समकालीन कविता में आम आदमी. Int. J. Ad. Social Sciences 2(3): July-Sept 2014; Page 180-182.
Cite(Electronic):
कुमुदिनी घृतलहरे, मधुलता बारा. समकालीन कविता में आम आदमी. Int. J. Ad. Social Sciences 2(3): July-Sept 2014; Page 180-182. Available on: https://ijassonline.in/AbstractView.aspx?PID=2014-2-3-9