वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बैगा जनजातिः सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति छत्तीसगढ़ के सन्दर्भ में
अजय कुमार बघेल
सहायक प्राध्यापक, समाजशास्त्र विभाग, नवीन शासकीय महाविद्यालय,
अकलतरी बिलासपुर, छत्तीसगढ़, भारत
*Corresponding Author E-mail:
ABSTRACT:
बैगा जनजाति मध्यप्रांत के जनजातियों में विशेष स्थान रखता है। इस जनजाति के विकास स्तर को देखते हुए छत्तीसगढ़ शासन ने इसे विशेष पिछड़ी जनजाति समूह में रखा है। विशेष पिछड़ी जनजाति होने के कारण बैगा जनजाति को सरकार का सरक्षण प्राप्त है जिसके फलस्वरूप इस जनजाति के लिए अनेक शासकीय योजनाये चलाये जा रहें है। बैगा जनजाति जितनी प्राचीन जनजाति है उतनी ही प्राचीन बैगाओं की संस्कृति भी है। विकास की दृष्टि से बैगा छत्तीसगढ़ की सबसे पिछड़ी जनजातियों में से एक हैं। साथ ही ये अपनी आदिमता के अंतिम चरण में हैं। बैगा पारंपरिक रूप से सामूहिक जीवन जीने के आदी हैं। बैगाओं की सामाजिक संरचना आंतरिक रूप से काफी सुव्यवस्थित और संगठित है। बैगा समाज पुरुष प्रधान है, लेकिन आदिम बैगा समाज आंतरिक रूप से अन्य विकसित समाजों की तुलना में महिलाओं को अधिक स्वायत्तता, स्वतंत्रता और आजादी प्रदान करता किसी भी समाज की आर्थिक व्यवस्था समाज का महत्वपूर्ण अंग होती है। द्वितीयक तथ्यों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर यह स्पष्ट है कि बैगा जनजाति की सामाजिक-आर्थिक स्थिति आधुनिकता के इस युग से कोसों दूर है तथा सरकार के प्रयासों के बावजूद भी यह आज भी काफी पिछड़ी हुई है तथा इसके क्षेत्रों में आज भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है ।
KEYWORDS: बैगा, जनजाति, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, आदिवासी, संस्कृति
प्रस्तावना
भारत सरकार ने छत्तीसगढ़ के कुल 43 आदिवासी समुदायों को अनुसूचित जनजाति माना है तथा उनमें से 5 जनजातियों कहार, पहाड़ी कोरहा, बरहोर, अबूझमाड़ एवं बैगा को विशिष्ट लक्षण आधारित मापदंड, स्थिर या कम जनसंख्या, कम साक्षरता दर, कृषि तकनीक आदि तथा आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर विशेष पिछड़ी जनजाति समूह घोषित किया है। बैगा जनजाति भारत एवं इसके विभिन्न राज्यों मध्यप्रदेश, बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल एवं छत्तीसगढ़ में निवास करती है, जो अत्यंत पिछड़ी एवं संकटग्रस्त जनजाति है।
बैगा छोटा नागपुर की एक आदिम जनजाति भुइया की मध्य प्रदेश शाखा है। बाद में इन्हें भूमिया बैगा के नाम से जाना जाने लगा। सबसे पहले बैगाओं ने छोटा नागपुर के रास्ते छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया। इसके बाद वे मध्यप्रदेश के मंडला, डिंडा, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया, बालाघाट जिलों में रहने लगे। बैगा सांवले, हट्टे-कट्टे और स्वस्थ होते हैं। इनकी नाक चपटी और माथा चौड़ा होता है। बैगा औसत कद के होते हैं। लेकिन इस मामले में बैगा बहुत पिछड़े हुए हैं। बैगा समाज में कृषि, घरेलू व्यवसाय, पशुपालन, मजदूरी आदि उनकी आर्थिक गतिविधियों का मुख्य आधार है। बैगा पारंपरिक खेती करने में विश्वास रखते हैं।
बैगा जनजाति द्रविड़ समूह की एक आदिम जनजाति है। यह जनजाति भारत की अत्यंत ही प्राचीन जनजातियों में से एक है। बैगा भारत के आठ राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, बिहार, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में निवास करते है।बैगा जनजाति अपनी अनूठी सामजिक व्यवस्था एवं संस्कृति के लिए जानी जाती है। मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के आदिम जनजाति समूहों में से एक जनजाति बैगा है। बैगा जनजाति जितनी प्राचीन जनजाति है उतनी ही प्राचीन बैगाओं की संस्कृति भी है। बैगा जनजाति अपने संस्कृति को संजोये हुए है। बैगा जनजाति के लोग वृक्ष की पूजा करते है तथा बूढ़ा देव एवं दूल्हा देव को अपना देवता मानते है। बैगा झाड़फूक एवं जादू-टोना में विश्वास करते है।
इनकी वेशभूषा अत्यंत अल्प होती है। बैगा पुरुष मुख्य रूप से एक लंगोट तथा सर पे गमछा बांधते है, वहीं बैगा महिलाएं एक साड़ी तथा पोलखा का प्रयोग करते है। किन्तु वर्तमान समय में मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले नौजवान युवक शर्टपैंट का भी प्रयोग करने लगे है। बैगा जनजाति की महिलाएं आभूषण प्रिय होती हैं।
बैगा महिलाएं आभूषण के साथसाथ गोदना भी गुदवाती है। इनकी संस्कृति में गोदना का अत्यधिक महत्व है। बैगा महिलाएं शरीर के विभिन्न हिस्से में गोदना गुदवाती हैं। बैगा जनजाति का मुख्या व्यवसाय वनोपज संग्रह, पशुपालन, खेती तथा ओझा का कार्य करना है। आधुनिकता के दौर में बैगा जनजाति की संस्कृति में भी आधुनिकता का समावेश हो रहा है। बैगा अब सघन वन, कंदराओं तथा शिकार को छोड़ कर मैदानी क्षेत्रों में रहना तथा कृषि कार्य करना प्रारंभ कर रहे है। किन्तु बैगा अपने आप को जंगल का राजा और प्रथम मानव मानते है, इनका मानना है कि इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा जी के द्वारा हुई है।
वर्तमान समय जनसंचार माध्यमों का है और जनजातियां विकास की मुख्यधारा से जुड़ने के लिए आतुर हैं। यह सही है कि आदिवासी क्षेत्र जंगलों और पहाड़ों के बीच बसे हैं। वहां जाकर संपर्क स्थापित करना काफी कठिन है। ऐसे में जनसंचार माध्यमों की पहुंच आदिवासी समाज में काफी कम है, लेकिन वर्तमान में जनसंचार माध्यमों की पहुंच का विस्तार हुआ है।
बैगा पुरुष मुख्य रूप से एक लंगोट तथा सर पे गमछा बांधते है, वहीं बैगा महिलाएं एक साड़ी तथा पोलखा का प्रयोग करते है। किन्तु वर्तमान समय में मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले नौजवान युवक शर्टपैंट का भी प्रयोग करने लगे है। बैगा जनजाति की महिलाएं आभूषण प्रिय होती हैं। बैगा महिलाएं आभूषण के साथसाथ गोदना भी गुदवाती है। इनकी संस्कृति में गोदना का अत्यधिक महत्व है। बैगा महिलाएं शरीर के विभिन्न हिस्से में गोदना गुदवाती हैं। बैगा जनजाति का मुख्या व्यवसाय वनोपज संग्रह, पशुपालन, खेती तथा ओझा का कार्य करना है। आधुनिकता के दौर में बैगा जनजाति की संस्कृति में भी आधुनिकता का समावेश हो रहा है। बैगा अब सघन वन, कंदराओं तथा शिकार को छोड़ कर मैदानी क्षेत्रों में रहना तथा कृषि कार्य करना प्रारंभ कर रहे है। किन्तु बैगा अपने आप को जंगल का राजा और प्रथम मानव मानते है, इनका मानना है कि इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा जी के द्वारा हुई है। बैगाओं के उत्पत्ति के संबंद में अनेक किवदंतियाँ भी विद्मान है, इन किवदंतियों के माध्यम से ये अपने उत्पत्ति संबंधी अवधारणाओं को संजो कर रखे हुवे है। बैगा अपने आप को आदिम पुरुष कहते है, उनका मानना है की वही पृथ्वी का प्रथम मानव है। बैगाओं का ही जन्म सर्वप्रथम हुआ है, वे ही पृथ्वी मे मानव जाति को लाने वाले है उनका सम्बन्ध प्रथम मानव से है।
बैगा जनजाति सर्वप्रथम छोटा नागपुर के रास्ते छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया था। जो वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य के 6 अलग-अलग जिलों कबीरधाम, बिलासपुर, राजनांदगांव, कोरिया, उंगेली, और गौरेला पेंड्रा नदी के 10 ब्लॉक बोड़ला, पंडरिया, कोटा, तखतपुर, गौरेला, छुईखदान, लोरी, नेहगढ़, खंडिगा और भरतपुर क्षेत्रों में निवास करते हैं। बैगा जनजाति आधुनिकता से दूर सुदूर स्थानों, जंगलों में रहती है।इनका रहन-सहन, खान-पान अत्यंत सादा होता है। बैगा जनजाति के लोग वृक्ष की पूजा करते है तथा बूढ़ा देव एवं दूल्हा देव को अपना देवता मानते है।
बैगा जनजाति की सामाजिक-आर्थिक स्थिति
बैगा का अर्थ होता है ओझा या जादूगर, बैगा जनजाति के लोग भूत-प्रेत और अंधविश्वास जैसी परंपराओं में ज्यादा विश्वास करते हैं। बैगा जनजाति प्रकृति के करीब सुदूर इलाकों, पहाड़ों और जंगलों में रहती है, वे आमतौर पर गोरे रंग, मध्यम कद और मजबूत शरीर के होते हैं। बैगा जनजाति के लोग संयुक्त परिवार में रहना पसंद करते हैं, एक परिवार में लगभग 8-10 सदस्य होते हैं, जिनमें से एक परिवार में औसतन 3-4 बच्चे होते हैं। बैगा जनजाति एक गाँव में 10-20 झोपड़ियों में रहती है जिसे सेटोला कहा जाता है। इनके घर कच्चे स्वरूप के होते हैं जो आमतौर पर लकड़ी, बांस, घास और मिट्टी से बने होते हैं। वर्तमान में आधुनिकीकरण या सरकारी योजनाओं के कारण कुछ लोगों के पास पक्के मकान देखने को मिल जाते हैं, लेकिन उनके घरों में पर्याप्त किराया, बिस्तर, कुर्सी, बिजली और पानी की उचित व्यवस्था, टीवी, रेडियो, कूलर, पंखा, फ्रिज आदि की सुविधा होती है। अगर जीवनयापन के साधनों की बात करें तो कुछ परिवारों के पास पानी की टंकी भी नहीं है।
साइकिल और साइकिल तो देखी जा सकती है लेकिन अधिकांश परिवारों के पास परिवहन के पर्याप्त साधन नहीं हैं जिसके कारण उन्हें पैदल ही यात्रा करनी पड़ती है। बैगा जनजाति के घरों में आज भी पारंपरिक सामग्री जैसे चोवगी, खुदरी, धोती, ऊसर, जाता आदि देखी जा सकती है। बैगा जनजाति की आजीविका का मुख्य आधार कृषि मजदूरी के साथ-साथ झूम खेती, शिकार, खाद्यान्न संग्रहण, पशुपालन और शमशान कार्य है। बैगा जनजाति की सामाजिक-आर्थिक स्थिति आज भी काफी पिछड़ी हुई है। इनके आर्थिक पिछड़ेपन का मुख्य कारण कृषि भूमि की कमी, कृषि का पिछड़ापन, शिक्षा का अभाव, जानकारी का अभाव के साथ अविश्वास और अज्ञानता है। बैगा जनजाति की पारंपरिक आजीविका का मुख्य आधार अनाज है। बैगा जनजाति वर्ष भर जंगलों से कुछ अनाज इकट्ठा करती है लेकिन इन अनाजों को सहकारी समितियों या उचित दुकानों पर बेचने के बजाय स्थानीय व्यापारियों को बेच देती है अतः इन सभी कारणों से बैगा जनजाति की सामाजिक-आर्थिक स्थिति आज भी काफी पिछड़ी हुई है। जिसके कारण बैगा जनजाति आज भी मूलभूत सुविधाओं एवं विलासिता के बिना गरीबी की स्थिति में जीवन जीने को मजबूर है।
बैगा जनजाति पहाड़ों में निवास करते हैं और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध हैं। उनकी जीवन शैली, रीति-रिवाज, कला, परंपरा, रीति-रिवाज और त्यौहार आदि विशिष्ट हैं। इससे बैगा जनजाति को एक अलग पहचान मिलती है। बैगा जनजाति की संस्कृति पारंपरिक और प्राचीन है। चौरसिया, विजय कुमार (2009) बैगा जनजाति को प्रकृति का पुत्र कहा जाता है क्योंकि बैगा जनजाति प्रकृति के बहुत करीब है और धरती को अपनी माँ कहती है, और धरती को नहीं जोतती है, क्योंकि यह उनका कर्तव्य है कि वे अपने खेतों को न जोतें। इसके साथ ही बैगा जनजाति को प्राकृतिक औषधियों और जड़ी-बूटियों का भी बहुत ज्ञान है। बैगा जनजाति के लोग जड़ी-बूटियों और झाड़-फूंक से अपनी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का इलाज करते हैं और बैगा जनजाति ब्राह्मण आदिवासी परिवार का एक समूह है। रसेल और हीरा लाल (1916) ने अपने अध्ययन में बैगा जनजाति के कई उपसमूहों यथा भटोरिया, बांझड़, गोदाशनीय, खातीभाषणीय, कोंश, नरोष्ठीय, नाहर या रायभाषणीय और छह गोत्र समूहों यथा घुघरिया, लेश्पिया, रीका, बरही, नेता और टेका का उल्लेख किया है। दत्त हरिनारायण और बाजीराव जसप्रीत (2017) ने बैगा जनजाति को मध्य प्रदेश का मूल निवासी बताया है जिनमें झाड़-फूंक कर बीमारियों के इलाज की परंपरा है, इसलिए उन्हें ओझा या गुशनीय भी कहा जाता है। चूंकि बैगा जनजाति घने जंगलों में निवास करती है, इसलिए उनका रहन-सहन, खान-पान, दिनचर्या और आजीविका के साधन शहरों और आम गांवों जैसे नहीं बल्कि बहुत अलग हैं। परंपरागत रूप से बैगा जनजाति अर्ध-खानाबदोश जीवन व्यतीत करती थी और हाथ से खेती करती थी वर्तमान में बैगा जनजाति घने जंगलों, गुफाओं एवं शिकारगाहों से दूर मैदानी क्षेत्रों में निवास करती है तथा कृषि के साथ-साथ वनोपजों का संग्रहण करती है जो इनके आर्थिक जीवन का मुख्य आधार है।
बैगा जनजाति की संस्कृति, परंपरा, रीति-रिवाज बहुत पुराने हैं। महिलाओं में टैटू और पुरुषों में लंबे बाल इनकी खास पहचान हैं। बैगा जनजाति की संस्कृति अन्य आदिवासी संस्कृतियों की तरह पारंपरिक रूप से समृद्ध है। बैगा जनजाति अपने जीवन में विभिन्न त्योहार मनाती है जो पारंपरिक रूप से मनाए जाते हैं जिसमें वे अपने पारंपरिक देवी-देवताओं की पूजा करते हैं और पालतू पशुओं जैसे गाय, सुअर और बकरी की बलि भी देते हैं। बैगा जनजाति में याहुआ से बने कढ़रा का विशेष महत्व है। इनका कोई भी त्योहार या उत्सव कढ़रा के बिना पूरा नहीं होता और बैगा जनजाति घर पर ही कढ़रा बनाती है जिससे गलियों को सजाया जाता है। बैगा झाड़-फूक एवं जादूटोना में विश्वास करते है। इनकी वेश-भूषा अत्यंत अल्प होती है।
समीक्षा
रसेल हीरालाल (1936) ने सर्वप्रथम मध्य प्रदेश की जनजातियों का विस्तृत विवरण चार खंडों में ‘‘कैसल एण्ड ट्राइब्स इन सेन्ट्रल प्रोसेसिंग‘‘ पुस्तक में प्रकाशित किया। खाखा (1999) ने स्पष्ट किया है कि जनजातियों की अपनी क्षेत्रीय संस्कृति, सम्बन्ध, रीति-रिवाज, स्थानीय बाजार एवं उपज के साथ-साथ जीवन शैली भी होती है, जिसके कारण जनजातीय समुदायों की तुलना अन्य जातीय समुदायों से करना उचित नहीं है। रोहित, पी.के. (2004) ने भारत में प्राचीन जनजातियों के विश्वकोश में जनसंख्या के आधार पर बैगा जनजाति का विस्तृत विवरण दिया है, जिसमें उन्होंने बैगा जनजाति की संस्कृति के विभिन्न पहलुओं जैसे भाषा, धार्मिक विश्वास, परम्परागत व्यवसाय, खान-पान आदि के साथ-साथ उनके परिवार का भी अध्ययन किया है तथा अपने अध्ययन में उन्होंने बैगा जनजाति को कम साक्षरता दर वाली जनजाति बताया है। बाबूराव (2016) पिछड़ी जनजाति बैगा की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर आधारित है। प्रस्तुत अध्ययन से यह स्पष्ट है कि प्रत्येक आदिवासी समुदाय की अपनी संस्कृति होती है, उसी प्रकार बैगा जनजाति की संस्कृति एवं सभ्यता का अपना विशेष अस्तित्व होने के साथ-साथ उपचार का अपना तरीका भी है। बैगा जनजाति उपचार एवं स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए पारंपरिक जड़ी-बूटियों, अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों एवं अंधविश्वासों पर अधिक विश्वास करती है। कुमार गजेर (2020) बैगा जनजाति के सामाजिक-सांस्कृतिक एवं आर्थिक अध्ययन से बैगा जनजाति की परम्पराओं, सामाजिक व्यवस्था, शिक्षा के स्तर, औषधीय ज्ञान आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
संदर्भ
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3. जाक्सा, वी.(1999)। भारत के स्वदेशी लोगों के रूप में जनजातियाँ। आर्थिक और राजनीतिक साप्ताहिक।
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8. कुमार गजेन्द्र (2020) अप्रकादशी शोध प्रबन्धन बागा जनजादी का सामादजक सांस्कृतिक दिक् एइन आदथचक जिन एक आदि विज्ञापन अध्ययन,
9. अप्रकादशी शोध प्रबंध, डी स्त्रि विभाग, पं. राधाशंकर शुक्ल दिव्य विद्यालय रायपुर
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Received on 15.04.2025 Revised on 08.05.2025 Accepted on 28.05.2025 Published on 04.06.2025 Available online from June 07, 2025 Int. J. Ad. Social Sciences. 2025; 13(2):102-105. DOI: 10.52711/2454-2679.2025.00016 ©A and V Publications All right reserved
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