भारतीय अर्थव्यवस्था में मोबाइल उद्योग का योगदान
(Contribution of Mobile Industry in Indian Economy)
यतीश चन्द्र समरवार
सहायक आचार्य-अर्थशास्त्र] Government Girls College, Mandawari, Dausa-Rajasthan, India.
*Corresponding Author E-mail: y.c.samarwar0408@gmail.com
ABSTRACT:
भारत में मोबाइल उद्योग वर्तमान में देश के सकल घरेलू उत्पाद में 6.5 प्रतिशत का योगदान देता है तथा 4 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार देता है। एक सरकारी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद में मोबाइल उद्योग का योगदान 2020 तक बढ़कर 8.2 प्रतिशत हो जाएगा।
KEYWORDS: विकास दर, रोजगार, निवेश, आयात-निर्यात, विपणन, उद्यमिता, प्रौधोगिकी, सरकारी नीतियां
प्रस्तावना
भारतीय अर्थव्यवस्था में मोबाइल उद्योग का योगदान महत्वपूर्ण और बढ़ता हुआ है। यहाँ कुछ मुख्य बिंदु हैं जो इस योगदान को स्पष्ट करते हैंः भारत 2014 से 2024 के बीच अभूतपूर्व वृद्धि के साथ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन उत्पादक बन गया है। इस अवधि में, मोबाइल फोन का उत्पादन 20 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच गया है, और भारत ने 2.45 बिलियन यूनिट मोबाइल फोन का उत्पादन किया है। भारत का मोबाइल उत्पादन पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है। यहाँ कुछ प्रमुख आँकड़े हैं:-
ऽ 2014 से 2024 के बीच, भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन उत्पादक बन गया है।
ऽ इस अवधि में, मोबाइल फोन का उत्पादन 20 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच गया है।
ऽ भारत ने 2.45 बिलियन यूनिट मोबाइल फोन का उत्पादन किया है।
ऽ ’मेक इन इंडिया’ पहल के तहत, भारत में मोबाइल फोन का उत्पादन 2 बिलियन यूनिट से अधिक हो गया है।
ऽ हालाँकि, भारतीय ब्रांडों को अभी अंतरराष्ट्रीय पहचान हासिल करनी है जैसे एप्पल और सैमसंग को है।
इन आँकड़ों से स्पष्ट है कि भारत ने मोबाइल उत्पादन में उल्लेखनीय प्रगति की है और अब दुनिया में शीर्ष स्थान पर है। लेकिन, भारतीय ब्रांडों को अभी अपनी पहचान बनानी है।
आत्मनिर्भरता:- मोबाइल फोन क्षेत्र में भारत की आयात निर्भरता 78ः से घटकर 3ः तक आ गई है, जिससे यह क्षेत्र आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। निर्यात में वृद्धिः भारत ने स्मार्टफोन को निर्यात करने में भी उल्लेखनीय प्रगति की है, जो अब देश का चौथा सबसे बड़ा निर्यात उत्पाद बन गया है।
1. उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना:- भारत ने मोबाइल फोन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए च्स्प् योजना लागू की है। इस योजना के तहत विभिन्न कंपनियों को वित्तीय प्रोत्साहन दिया जा रहा है, जिससे स्थानीय स्तर पर उत्पादन बढ़ाने और विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिए प्रेरित किया जा सके.
2. स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा:- भारत में स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई नीतियाँ बनाई हैं। इसके अंतर्गत भारतीय कंपनियों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है, जिससे वे अपने उत्पादों की गुणवत्ता और मात्रा को बढ़ा सकें.
3. सेमीकंडक्टर और तकनीकी विकास:- भारत को सेमीकंडक्टर निर्माण में आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में कदम उठाने चाहिए। सेमीकंडक्टर उद्योग मोबाइल फोन उत्पादन के लिए एक महत्वपूर्ण घटक है। इसके विकास से भारत की तकनीकी क्षमता में वृद्धि होगी और यह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन सकता है.
4. अनुसंधान एवं विकास:- मोबाइल उद्योग में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना आवश्यक है। भारत को अपने अनुसंधान संस्थानों और उद्योगों के बीच सहयोग को बढ़ाना चाहिए ताकि नई तकनीकों और उत्पादों का विकास किया जा सके.
5. वैश्विक साझेदारी:- भारत को वैश्विक कंपनियों के साथ साझेदारी करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इससे न केवल तकनीकी ज्ञान का आदान-प्रदान होगा, बल्कि निवेश और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
6. कौशल विकास:- कौशल विकास कार्यक्रमों को लागू करना आवश्यक है ताकि स्थानीय श्रमिकों को मोबाइल उत्पादन में आवश्यक कौशल सिखाया जा सके। इससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और उद्योग को कुशल श्रमिक मिलेंगे। इन कदमों के माध्यम से भारत मोबाइल उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल कर सकता है, जो अंततः देश की आर्थिक वृद्धि और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सुधार लाएगा।
आर्थिक योगदान:- सकल घरेलू उत्पाद में योगदानः मोबाइल टेलीफोनी का प्रत्यक्ष योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था में अनुमानतः 2520 अरब रुपये है। यह योगदान डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भविष्य की संभावनाएँः मोबाइल और संबंधित तकनीकी क्षेत्रों (जैसे सेमीकंडक्टर और सैटेलाइट कम्युनिकेशन) से अगले पांच वर्षों में लगभग 240 बिलियन डॉलर का योगदान मिलने की उम्मीद है, जो ळक्च् में 1.6ः का अतिरिक्त योगदान दे।
भारत के मोबाइल बाजार में पिछले 10 वर्षों में तेजी से वृद्धि देखी गई है, 2012 से मोबाइल इंटरनेट ग्राहकों की संख्या में चार गुना वृद्धि हुई है। पिछले एक साल में भारतीय अर्थव्यवस्था पर मोबाइल का प्रभाव बढ़ा है, 2021 में देश के सकल घरेलू उत्पाद में मोबाइल पारिस्थितिकी तंत्र का योगदान 4.7ः रहा। मोबाइल उद्योग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बड़ी संख्या में कुशल श्रमिकों का भी समर्थन करता है, जिससे 2021 में लगभग 3.4 मिलियन नौकरियों का सृजन होगा। इस बीच, मोबाइल पारिस्थितिकी तंत्र भारत के सार्वजनिक वित्त पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना हुआ है, जिसमें 2021 में कराधान के माध्यम से लगभग 17 बिलियन डॉलर जुटाए गए हैं। भारत को 5ळ के विकास से भी बहुत लाभ होने की उम्मीद हैः 2040 तक, 5ळ भारतीय अर्थव्यवस्था को 455 बिलियन डॉलर का लाभ पहुंचा सकता है, जिसका सभी आर्थिक क्षेत्रों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। जीएसएमए इंटेलिजेंस आर्थिक मॉडलिंग पर आधारित यह रिपोर्ट भारत में मोबाइल उद्योग के आर्थिक प्रभाव का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करती है, जो हमारे वैश्विक और क्षेत्रीय विश्लेषण का पूरक है।
डिजिटल अर्थव्यवस्था में भूमिका:- डिजिटलीकरण का प्रभावः मोबाइल उद्योग ने भारत में डिजिटलीकरण को बढ़ावा दिया है, जिससे लोगों की संख्या जो मोबाइल फोन का उपयोग करती है, तेजी से बढ़ रही है। 2024 तक, मोबाइल फोन उपयोगकर्ताओं की संख्या अरब के पार जाने की संभावना है, जो अर्थव्यवस्था को नई ऊँचाइयों पर ले जा सकता है। डिजिटल बुनियादी ढाँचाः मोबाइल उद्योग ने डिजिटल बुनियादी ढाँचे के विकास में भी योगदान दिया है, जिससे भारत एक वैश्विक डिजिटल नेता बनने की दिशा में अग्रसर है। इन सभी पहलुओं से स्पष्ट है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में मोबाइल उद्योग का योगदान न केवल वर्तमान में महत्वपूर्ण है, बल्कि भविष्य में भी इसकी भूमिका और बढ़ने की संभावना है।
वर्तमान में डिजिटल अर्थव्यवस्था प्रमुखता प्राप्त करने के साथ वैश्विक स्तर पर आर्थिक गतिविधियों के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित कर रही है। इससे संकेत मिलता है कि डिजिटल अर्थव्यवस्था अब किसी विशिष्ट क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है बल्कि अर्थव्यवस्था के हर पहलू तक विस्तारित हो रही है। डिजिटल अर्थव्यवस्था के बढ़ते महत्त्व के बारे में भारत की जागरूकता, इसकी ळ20 अध्यक्षता और इससे जुड़े अवसरों और चुनौतियों के क्रम में आयोजित की जाने वाली बैठकों से प्रदर्शित होती है। ऐसा कहा जाता है कि पारंपरिक विनिर्माण क्षेत्र भी डिजिटल अर्थव्यवस्था से प्रभावित और परिवर्तित हो रहे हैं। इसका तात्पर्य यह है कि डिजिटल प्रौद्योगिकियों और प्रक्रियाओं के एकीकरण से विनिर्माण गतिविधियों को बढ़ावा मिलने के साथ इनमें सुधार हो रहा है।
ऽ मजबूत डिजिटल बुनियादी ढाँचे के विकास के महत्त्व को समझना।
ऽ डिजिटल प्रणाली और डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये साइबर सुरक्षा उपायों को महत्त्व देना।
ऽ कुशल कार्यबल के विकास के क्रम में प्रशिक्षण पर बल देना जिससे डिजिटल अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में भारत की स्थिति मजबूत हो सके।
डिजिटल क्षेत्र में भारत सरकार की पहल:- प्रमुख डिजिटल पहलः भारत सरकार ने डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कई कदम उठाए हैं। जैसेः
भारतनेट परियोजना:- इसका लक्ष्य वर्ष 2023 तक भारत के सभी गाँवों को हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड से जोड़ना है।
स्टार्टअप इंडिया कार्यक्रम:- इसका उद्देश्य उद्यमिता को बढ़ावा देना और स्टार्टअप के लिये अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है।
डिजिटल साक्षरता अभियान कार्यक्रम:- इसे वर्ष 2016 में शुरू किया गया था और इसका लक्ष्य प्रत्येक घर के कम से कम एक सदस्य को डिजिटल रूप से साक्षर बनाना है।
ई-रुपया और सशर्त हस्तांतरण:- ई-रुपया और सशर्त हस्तांतरण की हालिया प्रवृत्ति, व्यवसाय और शासन दोनों के लिये निर्णायक हो सकती है।
डैडम्े (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) और व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र के अन्य क्षेत्रों में सशर्त हस्तांतरण के लिये डिजिटल वाउचर या ई-रुपया के उपयोग से अर्थव्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
वित्तीय समावेशन:- विश्व भर में लगभग 75ः वयस्कों के पास औपचारिक बैंकिंग सेवाओं तक पहुँच है। डिजिटल रूप से बचत करने, खर्च करने और उधार लेने की क्षमता का भारत जैसे संसाधन संपन्न देश के संदर्भ में व्यापक आर्थिक प्रभाव है, क्योंकि इससे निगमों और सरकारों के घाटे को पूरा करने के लिये घरेलू वित्तीय बचत और विदेशी बचत को प्रोत्साहन मिलेगा।
मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया:- इन कार्यक्रमों ने डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मेक इन इंडिया कार्यक्रम का उद्देश्य भारत में विनिर्माण को बढ़ावा देना है जबकि डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का उद्देश्य डिजिटल प्रौद्योगिकियों के अपनाने को बढ़ावा देना है। ये दोनों कार्यक्रम एक-दूसरे के पूरक हैं। मेक इन इंडिया के तहत डिजिटल उपकरणों के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाता है जबकि डिजिटल इंडिया, डिजिटल सेवाओं को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
डिजिटल अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण प्रभाव:- जनसांख्यिकीय लाभः डिजिटल अर्थव्यवस्था की क्षमता के दोहन में जनसांख्यिकीय लाभांश भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है। उदाहरण के लिये भारत में अंग्रेजी में दक्ष और प्रौद्योगिकी को पसंद करने वाली एक बड़ी आबादी ने न्च्प् (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस) और क्ठज् (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) जैसी डिजिटल प्रणालियों को अपनाने में रूचि दिखाई है जिससे अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। स्थानीय भाषाओं में डिजिटल सेवाएँ प्रदान करने से इनकी पहुँच और समावेशिता बढ़ सकती है, जिससे काफी अधिक लोग डिजिटल अर्थव्यवस्था से लाभान्वित हो सकेंगे। विभिन्न सेवाओं का विस्तारः डिजिटल अर्थव्यवस्था से स्थानीय और वैश्विक स्तर पर सेवा क्षेत्र का पुनर्मूल्यांकन करने तथा उसे विस्तारित करने के अवसर प्राप्त होते हैं। ळ20 सदस्यों सहित कई विकसित देश सेवा क्षेत्र को उदार बनाने के क्रम में उन्मुख रहे हैं। डिजिटल अर्थव्यवस्था से चिकित्सा सेवाओं और शैक्षिक सेवाओं जैसी सेवाओं के विस्तार को सक्षम किया जा सकता है। उदाहरण के लिये न्ड।छळ मोबाइल ऐप भारत सरकार का एक एकीकृत, सुरक्षित, मल्टी-चैनल, बहुभाषी, बहु-सेवा मोबाइल ऐप है। सेवाओं का सीमा पारीय विस्तारः डिजिटल अर्थव्यवस्था में सीमा पार सेवाओं के विस्तार की क्षमता है। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाकर, योग्य पेशेवर भौगोलिक बाधाओं को पार करते हुए विश्व स्तर पर अपनी सेवाएँ दे सकते हैं। इसमें सेवा क्षेत्र को नया आकार देने तथा सेवा प्रदाताओं और प्राप्तकर्ताओं दोनों के लिये महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करने की क्षमता शामिल है। सेवा क्षेत्र में डिजिटल अर्थव्यवस्था की परिवर्तनकारी क्षमता को सार्थक करने में जी 20 महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। पारदर्शिता को प्रोत्साहित करने और इससे संबंधित बाधाओं को दूर करने से कुशल वैश्विक बाज़ार का निर्माण होगा। अन्य महत्त्वपूर्ण प्रभावः डिजिटल अर्थव्यवस्था का अर्थव्यवस्था और समाज पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। इससे स्थानीय स्तर पर नौकरियाँ सृजित होने एवं उत्पादकता और व्यवसाय को बढ़ावा मिलने के साथ अधिक लोगों की सेवाओं और अवसरों तक पहुँच सक्षम हुई है। डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास से नए बिजनेस मॉडल और उद्योगों का भी उदय हुआ है जैसे ई-कॉमर्स, डिजिटल भुगतान आदि।
चुनौतियाँ:- डिजिटल अर्थव्यवस्था से संबंधित चुनौतियों को हल करनाः डिजिटल अर्थव्यवस्था के संदर्भ में तीन प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता हैः
ऽ डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर
ऽ डिजिटल कौशल
ऽ साइबर सुरक्षा।
इन क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल हुई हैं। भारत ने एक मजबूत डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित किया है और डिजिटल कौशल पहल में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है। इसके साथ ही साइबर सुरक्षा पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है लेकिन इससे संबंधित चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना को एक ऐसे कंप्यूटर संसाधन के रूप में परिभाषित किया गया है जिसके अक्षम होने या नष्ट होने से राष्ट्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं लोक सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
सुरक्षा:- वर्तमान में डिजिटल लेनदेन की सुरक्षा सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं (खासकर वित्तीय क्षेत्र में)। ऐसे में डिजिटल क्षेत्र में लेनदेन की तीव्र गति चिंताजनक हो सकती है जिससे होने वाली त्रुटियों को सुधारना या धोखाधड़ी वाली गतिविधियों का समाधान करना बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
कुशल जनशक्ति का महत्त्व:- डिजिटल क्षेत्र में कुशल कार्यबल के विकास की उपेक्षा, डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे की पूरी क्षमता में बाधा बन सकती है। डिजिटल बुनियादी ढाँचे का लाभ उठाने के लिये डिजिटल रूप से साक्षर लोगों को तैयार करने के क्रम में शैक्षणिक संस्थानों को मजबूत करना महत्त्वपूर्ण है।
तकनीकी पिछड़ापन:- इससे संबंधित प्रमुख चुनौतियों में से एक लोगों के बीच डिजिटल अंतराल का होना है। ग्रामीण क्षेत्रों में कई लोगों के पास अभी भी डिजिटल सेवाओं तक पहुँच नहीं है। डिजिटल अर्थव्यवस्था से असमानता को बढ़ावा मिलने के साथ कुछ लोगों को दूसरों की तुलना में अधिक लाभ हुआ है।
लेन - देन संबंधी सुरक्षा को मज़बूत करनाः इन चुनौतियों को कम करने के लिये इस दिशा में प्रभावी जाँच और संतुलन करना महत्त्वपूर्ण है। इसका एक सकारात्मक उदाहरण भारत में वन-टाइम पासवर्ड (व्ज्च्े) का उपयोग होना है जिससे उपयोगकर्ताओं को अपने लेनदेन को सत्यापित करने की सुविधा मिलती है। ऐसे उपाय सुरक्षा बढ़ाने में मदद करते हैं और उपयोगकर्ताओं को अपने कार्यों पर पुनर्विचार करने का अवसर प्रदान करते हैं।
डिजिटल युग में वित्तीय समावेशन और सुरक्षाः श्र।ड ट्रिनिटी (जन धन योजना, आधार, मोबाइल) जैसी पहलों द्वारा होने वाली कनेक्टिविटी प्रगति से वित्तीय समावेशन में सुधार हुआ है, जिससे लोगों को डिजिटल सेवाओं तक पहुँच प्राप्त हुई है। इंटरनेट बैंकिंग और एटीएम लेनदेन ने भी बैंकिंग को और अधिक सुविधाजनक बना दिया है। हालाँकि इनमें से प्रत्येक प्रगति से संबंधित जोखिम विद्यमान हैं, जिससे यह सुनिश्चित करना आवश्यक हो जाता है कि लेनदेन सुरक्षित और सतर्क तरीके से हों। लेनदेन संबंधी सुरक्षा को बढ़ावा देने के दृष्टिकोणः इन चुनौतियों का समाधान करने के लिये विभिन्न योजनाएँ लागू की गई हैं। ओटीपी के अलावा, कुछ अनुप्रयोगों में कीबोर्ड के पैटर्न में संख्यात्मक कीपैड लेआउट परिवर्तन तथा उपयोगकर्ताओं के लिये अलर्ट प्रणाली स्थापित करना शामिल है। इसके अतिरिक्त जब लेनदेन एक निश्चित सीमा से अधिक हो जाता है या सामान्य पैटर्न से विचलित होता है तो कॉल सेंटर के माध्यम से सत्यापन किया जा सकता है।
साइबर सुरक्षा बढ़ानाः कुल मिलाकर मुख्य बल इस बात पर होना चाहिये कि डिजिटल अर्थव्यवस्था से अंतिम उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा होने के साथ उच्च स्तर की सुरक्षा प्रदान की जाए। सतर्कता, सक्रिय उपाय और धन के लेन-देन से संबंधित चुनौतियों का निरंतर मूल्यांकन करना, विश्व भर में एक सुरक्षित डिजिटल लेनदेन वातावरण स्थापित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल कौशलः डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल कौशल आपस में संबंधित हैं। इन्हें एक ही सिक्के के दो पहलू के रूप में देखा जाता है जिसके तहत सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे के निर्माण के साथ-साथ इसका उपयोग करने और इससे लाभ उठाने में सक्षम कुशल कार्यबल के विकास पर बल दिया जाता है।
निष्कर्ष
मोबाइल उद्योग ने भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण निवेश को आकर्षित किया है, जो आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करता है। विदेशी और घरेलू कंपनियाँ इस क्षेत्र में भारी निवेश कर रही हैं, जिससे आर्थिक विकास को बल मिल रहा है। इस उद्योग ने लाखों नौकरियाँ पैदा की हैं, जिनमें निर्माण, विक्रय, सेवा, और अनुसंधान व विकास क्षेत्र शामिल हैं। यह रोजगार सृजन विशेष रूप से युवाओं और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है। मोबाइल उद्योग की वृद्धि ने अन्य संबंधित क्षेत्रों को भी लाभ पहुँचाया है, जैसे कि ई-कॉमर्स, डिजिटल भुगतान, और तकनीकी सेवाएँ। इससे समग्र अर्थव्यवस्था में विविधता और स्थिरता आई है। भारत ने मोबाइल प्रौद्योगिकी में नवाचार को प्रोत्साहित किया है, जिससे नई तकनीक और सेवाओं का विकास हुआ है। यह प्रौद्योगिकी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और वैश्विक मानकों को बनाए रखने में मदद करता है। भारतीय सरकार ने मोबाइल उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न नीतियाँ और योजनाएँ लागू की हैं, जैसे कि डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया। ये नीतियाँ निवेश को बढ़ावा देती हैं और स्थानीय निर्माण को प्रोत्साहित करती हैं। मोबाइल उद्योग ने भारत में डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ाया है, जिससे लाखों भारतीय नागरिकों को इंटरनेट और डिजिटल सेवाओं तक पहुँच प्राप्त हुई है। यह डिजिटल साक्षरता और समावेशन में सहायक साबित हुआ है।
REFERENCES:
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Received on 02.09.2024 Modified on 24.09.2024 Accepted on 17.10.2024 © A&V Publication all right reserved Int. J. Ad. Social Sciences. 2024; 12(3):169-174. DOI: 10.52711/2454-2679.2024.00027 |