जनपद प्रयागराज के बारा तहसील में भूमि उपयोग प्रतिरूप का तुलनात्मक अध्ययन
शैलेन्द्र कुमार
भूगोल विभाग, राणा प्रताप पी.जी. कॉलेज सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश.
*Corresponding Author E-mail: shailendragic10@gmail.com
ABSTRACT:
किसी भी क्षेत्र के भूमि उपयोग प्रतिरूप के कालिक परिवर्तन का विश्लेषण वर्तमान और भूतकालीन विकास के स्तर को प्रदर्शित करता है, इसलिए इसके द्वारा भावी विकास की संभावनाओं का आंकलन किया किया जा सकता है। वर्तमान में बढ़ते जनदबाव के कारण भूमि का अनुकूलतम उपयोग करना अनिवार्य हो गया है अध्ययन क्षेत्र बारा तहसील में विभिन्न सामाजिक, आर्थिक एवंम् भौतिक कारकों के कारण भूमि उपयोग में स्थानिक विषमता देखने को मिलती है। बारा तहसील में चट्टानी संरचना में काफी विषमता पाई जाती है। इस शोधपत्र का मुख्य उद्देश्य तहसील मे भूमि उपयोग के स्थानिक प्रतिरूप में हो रहे परिवर्तनों का विश्लेषण करना है। प्रस्तुत शोधपत्र द्वितीयक आंकड़ों पर आधारित है, जोकि जनपद प्रयागराज की जनगणना हस्तपुस्तिका 2011, जनपद प्रयागराज की सांख्यिकीय पत्रिका वर्ष 2001 एवं 2021, जनपद प्रयागराज गजेटियर से प्राप्त किये गये हैं। तालिका, मानचित्र, ग्राफ एवं पाई डायग्राम कंप्यूटर की सहायता से निर्मित किया गया है। मानचित्र के निर्माण हेतु ।तब ळप्ै साफ्टवेयर का प्रयोग किया गया है। जनदबाव एवं आधारभूत सुविधाओं में वृद्धि के कारण भूमि उपयोग प्रतिरूप में तीव्र गति से परिवर्तन हो रहा है। बारा तहसील में कृषि योग्य व्यर्थ भूमि में भूमि सुधार कार्यक्रमों के कारण कमी आयी है। तहसील में ऊसर भूमि में वृद्धि देखी जा रही है, जिसके सुधार हेतु उचित प्रयास अति आवश्यक है। शुद्ध वापित भूमि में वृद्धि हुई है।
KEYWORDS: प्राकृतिक संसाधन, भूमि उपयोग, जनदबाव, स्थानिक.कालिक
प्रस्तावना:-
भूमि उपयोग अध्ययन, भौगोलिक अध्ययन का प्रमुख पहलू है जो किसी क्षेत्र में प्राकृतिक दशाओं एवं मानवीय परिस्थितियों के चरों के बीच तात्कालिक अंतर्कि्रया का प्रतिफल होता है। सर्वप्रथम यह प्राकृतिक दशाओं द्वारा निर्धारित होता है और उसके बाद मनुष्य की विदोहन क्षमता के कारण मानवीय परिस्थितियों से प्रभावित होता है। इस प्रकार किसी क्षेत्र में भूमि उपयोग प्रतिरूप को विभिन्न कारक प्रभावित करते हैं। किसी क्षेत्र का भूमि उपयोग प्रतिरूप वहां की सामाजिक आर्थिक विकास को भी प्रदर्शित करता है, क्योंकि किसी क्षेत्र के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं सर्वांगीण विकास में भूमि संसाधन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
भूमि उपयोग, मानव द्वारा पृथ्वी के किसी क्षेत्र का द्योतक है। सामान्यतः भूमि उपयोग को “ किसी विशिष्ट भू आवरण प्रकार की रचना, परिवर्तन अथवा संरक्षण हेतु मानव द्वारा उस पर किये जाने वाले क्रियाकलापों “के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। आर. एच बेस्ट के अनुसार, “भूमि उपयोग का अर्थ भूमि पर मानव गतिविधियों के स्थानिक पहलू से है और मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु भूमि को कैसे अनुकूलित किया गया है या कर सकते हैं के तरीकों से है। ”भूमि उपयोग कृषित क्षेत्र, परती, चारागाह, वन क्षेत्र, उद्यान एवं अकृषित भूमि का बोध कराता है (फ्रीमैन, 1968)। नगरीकरण के कारण भूमि का प्रयोग अकृषित कार्यों जैसे आवास, परिवहन, उद्योग, फुटकर व्यापार एवं सेवा कार्यों आदि की ओर तीव्र गति से बढ़ रहा है। भूगोलवेत्ताओं की भूमिका विभिन्न भूमि उपयोग एवं नियोजन के मध्य संबंधों को विश्लेषित करना भी है (फ्रीमैन, 1968)।
भूमि उपयोग के इतिहास का प्रारभ कार्ल ओ. सावर के 1919 में भूमि उपयोग मानचित्र के विचार से मान सकते हैं। 1925 में व्हिटलसी ने उल्लिखित किया की भूमि उपयोग सर्वेक्षण को सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक पर्यावरण के मध्य के अंतर्संबंध को प्रतिबिंबित करना चाहिए। सन 1930 में ब्रिटेन में सर लारेंस डडले स्टाम्प ने ब्रिटेन में भूमि उपयोग के सर्वेक्षण की योजना तैयार की और यह योजना 1931 में सम्पूर्ण ब्रिटेन में लागू हुई। डा. स्टाम्प की पुस्तक ‘द लैंड ऑफ ब्रिटेन इट्स यूज एंड मिसयूज ‘1962 में प्रकाशित हुई जिसमे उन्होंने इंग्लैंड और वेल्स के विगत भूमि उपयोग का तुलनात्मक अध्ययन किया। पोलैंड के प्रो. जिवेंसकी (1947) एवं प्रो. जे. कोस्त्रोविकी (1956) ने भी भूमि उपयोग के विश्लेषण पर बल दिया ।
भारत में भूमि उपयोग का वर्गीकरण पी. महलानोबिस के प्रयासों से प्रारंभ हुआ। एस. पी. चटर्जी (1941) और एॅम. शफी (1951) ने इस दिशा में पहल की। शफी (1956) ने उत्तर प्रदेश के 12 ग्रामों का सर्वे किया जो इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। 1959 में वी. एल. एस. प्रकाश राव ने भूमि उपयोग मानचित्र तैयार किया एवं विधितंत्र प्रस्तुत किया। किसी भी क्षेत्र के भूमि उपयोग प्रतिरूप के कालिक परिवर्तन का विश्लेषण वर्तमान और भूतकालीन विकास के स्तर को प्रदर्शित करता है, इसलिए इसके द्वारा भावी विकास की संभावनाओं का आंकलन किया किया जा सकता है। वर्तमान में बढ़ते जनदबाव के कारण भूमि का अनुकूलतम उपयोग करना अनिवार्य हो गया है। संपोषणीय कृषि विकास नियोजन हेतु भूमि उपयोग का मानचित्रण महत्वपूर्ण हो जाता है। अतः भूमि के विगत एवं वर्तमान उपयोग व् दुरूपयोग का विश्लेषण अनिवार्य हो जाता है ताकि भविष्य हेतु भूमि का अनुकूलतम एवं सम्यक नियोजन किया जा सके।
अध्ययन क्षेत्र
प्रयागराज को 7 तहसील (सोरांव, फूलपुर, हँड़िया, मेजा, करछना, कोरांव, बारा) और एक शहरी क्षेत्र सदर में बाँटा गया है। अध्ययन क्षेत्र बारा तहसील में दो विकासखंड हैं - जसरा एवं शंकरगढ़। तहसील के 36.4ः क्षेत्रफल पर जसरा ब्लाक और शेष क्षेत्रफल पर शंकरगढ़ ब्लाक विस्तृत है। बारा तहसील का कुल क्षेत्रफल 744 किमी 2. है जिसमें से 735.85 किमी 2. ग्रामीण क्षेत्र, शेष 8.36 किमी 2. शहरी क्षेत्र के अंतर्गत है। बारा तहसील में लगभग 325 गाँव हैं जिनमें से 114 गाँव जसरा ब्लाक में तथा 211 गाँव शंकरगढ़ ब्लाक में स्थित हैं। कुल 19 न्याय पंचायत हैं जिसमें से 9 जसरा में तथा 11 शंकरगढ़ ब्लाक में हैं। बारा तहसील यमुना एवं टोंस नदी के बीच स्थित संक्रमण क्षेत्र में प्रयागराज जनपद के दक्षिण पश्चिम में अवस्थित है। बारा तहसील का अक्षांशीय विस्तार 250 2’ 30” से 250 22’ 30” उत्तरी अक्षांश एवं देशान्तरीय विस्तार 810 31’ से 810 50’ पूर्वी अक्षांश के मध्य है और इसका क्षेत्रफल लगभग 744 किमी 2. है। अध्ययन क्षेत्र की लम्बाई पूर्व से पश्चिम 33.82 किमी. और चौड़ाई उत्तर से दक्षिण 33.77 किमी. है। बारा तहसील उत्तर में प्रयागराज शहर, पूर्व में करछना तहसील, दक्षिण पूर्व में मेजा और कोरांव तहसील से जुड़ा हुआ है। बारा तहसील के दक्षिण में मध्यप्रदेश राज्य का रींवा क्षेत्र, दक्षिण पश्चिम में चित्रकूट और पश्चिम में कौशाम्बी जिला स्थित है (चित्र 1)। जनगणना 2011 के अनुसार बारा तहसील में कुल जनसंख्या 365605 है जिसमे से 192517 जनसँख्या पुरुष एवं 173088 जनसँख्या स्त्रियों की है। बारा तहसील में चट्टानी संरचना में काफी विषमता पाई जाती है।
चित्र 1 रू अध्ययन क्षेत्र बारा तहसील का अवस्थितिक मानचित्र
साहित्यिक समीक्षा
भूमि उपयोग प्रतिरूप विश्लेषण, भौगोलिक अध्ययन का एक महत्वपूर्ण विषय है जो भावी पीढ़ियों के लिए स्थानिक विकास एवं नियोजन हेतु विधिवत दिशानिर्देश प्रदान करता है। इसी कारण भूमि उपयोग प्रतिरूप एवं इसमें होने वाले परिवर्तन का अध्ययन अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय शोधार्थियों एवं भूगोलविदों द्वारा किया गया है। भारत में सर्वप्रथम भूगोलवेत्ता एस. पी. चटर्जी ने 1940 में पश्चिम बंगाल के 24 परगना एवं हावड़ा जिले का भूमि उपयोग सर्वे किया। ई. अहमद (1954) ने भौतिक कारकों के सम्बन्ध में भूमि उपयोग प्रकार का अध्ययन किया। 1959 में वी. एल. एस. प्रकाश राव ने भूमि उपयोग नियोजन में भूगोलवेत्ताओं की भूमिका पर प्रकाश डाला। 1964 में एॅम. शफी ने सान्खियिकी एवं मात्रात्मक विधि के आधार पर गंगा . यमुना दोआब के भूमि उपयोग का विस्तृत अध्ययन किया । पी.एल. दास (1973) ने देहरादून जिले के भूमि उपयोग प्रतिरूप का अध्ययन किया। नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेन्सी (1989) ने सैटेलाइट इमेजरी द्वारा भारत के भूमि उपयोग प्रतिरूप का अध्ययन किया। रेमन्ने (2001) ने कर्नाटक के बेलगाँव जिले के भूमि उपयोग प्रतिरूप का स्थानिक विश्लेषण किया। एस. सिंह (2002) ने बिहार के रोहतास जिले में कृषि में भूमि संसाधन के प्रयोग का वर्णन किया। सिंह एवं द्विवेदी (2012) ने उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के चकिया ब्लाक में भूमि उपयोग प्रतिरुप पर जनदबाव के प्रभाव का अध्ययन किया। सिद्दीकी एवं अन्य (2013) ने पश्चिम बंगाल में जिलावार भूमि उपयोग प्रतिरूप और उसमें परिवर्तन का अध्ययन किया। कुमार एवं तिवारी (2017) ने उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के विकासखंडवार भूमि उपयोग प्रतिरूप का विश्लेषण किया। वर्तमान समय में भारत में भूमि उपयोग प्रतिरूप में परिवर्तन के अध्ययन हेतु रिमोट सेंसिंग एवं जीआईएस तकनीक का भी प्रयोग किया जा रहा है । इस तकनीक द्वारा भूमि उपयोग प्रतिरूप का अध्ययन करने वाले भारतीय विद्वानों में च्तंांेंउ ;2010द्धए ज्तपचंजीप ंदक ज्ञनउंत ;2012ए 2019द्धए त्ंूंज मजण् ंसण् ;2013द्धए श्रंपेूंस ंदक टमतउं ;2013द्ध आदि प्रमुख हैं ।
उद्देश्य
प्रस्तुत शोधपत्र के निम्नलिखित मुख्य उद्देश्य हैं -
1. तहसील में विभिन्न भूमि उपयोग श्रेणी के अंतर्गत क्षेत्रफल वितरण का अध्ययन करना ।
2. तहसील में भूमि उपयोग प्रतिरूप का तुलनात्मक विश्लेषण करना ।
3. विकासखंडवार भूमि उपयोग प्रतिरूप में विषमताओं का अध्ययन करना ।
आंकड़ों के स्रोत तथा शोध विधितंत्र
प्रस्तुत शोधपत्र द्वितीयक आंकड़ों पर आधारित है। इस शोधपत्र में प्रयुक्त द्वितीयक आंकड़े सांख्यिकीय पत्रिका वर्ष 2001, 2021 जनपद प्रयागराज, जनगणना हस्तपुस्तिका जनपद प्रयागराज वर्ष 2011 से प्राप्त किये गये हैं। तालिका, मानचित्र, ग्राफ एवं पाई डायग्राम कंप्यूटर की सहायता से निर्मित किया गया है। मानचित्र के निर्माण हेतु ।तब ळप्ै साफ्टवेयर का प्रयोग किया गया है। यह शोधपत्र व्याख्यात्मक एवं विश्लेष्णात्मक अनुसन्धान विधि पर आधारित है। वर्ष 2001 एवं 2021 के भूमि उपयोग प्रतिरूप आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन कर विभिन्न भूमि उपयोग श्रेणियों में हुए परिवर्तनों का विश्लेषण किया गया है ।
संगणना एवं विश्लेषण
भूमि उपयोग वर्गीकरण, कुछ निश्चित समान विशेषताओं मुख्यतः उनके उपयोग के आधार पर भूमि का एक सुव्यवस्थित, बौद्धिक क्रम है (कुमार एवं तिवारी, 2017) ।
तालिका 1रू बारा तहसील में भूमि उपयोग प्रतिरूपए 2001
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“kadjx<+ Cykd |
Ckkjk rglhy |
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dqy izfrosfnr {ks=Qy dk % |
|
|
ou |
0 |
0 |
4818 |
10-27 |
4818 |
6-52 |
|
d`f"k ;ksX; O;FkZ Hkwfe |
507 |
1-8 |
4137 |
8-81 |
4644 |
6-28 |
|
orZeku ijrh |
2181 |
8-09 |
3090 |
6-58 |
5271 |
7-13 |
|
iqjkuh ijrh |
988 |
3-66 |
4510 |
9-61 |
5498 |
7-44 |
|
Ĺlj Hkqfe |
1210 |
4-48 |
1329 |
2-83 |
2539 |
3-43 |
|
d`f"k ds vfrfjDr vU; mi;ksx esa Hkwfe |
3225 |
11-96 |
4057 |
8-64 |
7282 |
9-85 |
|
Pkkjkxkg Hkwfe |
5 |
0-01 |
12 |
0-02 |
17 |
0-02 |
|
m|ku] o`{k ,oa >kfM+;ksa dh Hkwfe |
99 |
0-36 |
176 |
0-37 |
275 |
0-37 |
|
okLrfod cks;k x;k {ks=Qy |
18743 |
69-52 |
24779 |
52-82 |
43522 |
58-92 |
|
dqy izfrosfnr {ks=Qy |
26958 |
100 |
46908 |
100 |
73866 |
100 |
स्रोत रू सांख्यिकीय पत्रिका, जनपद प्रयागराज (2001)
भूमि उपयोग प्रतिरूप में परिवर्तन
किसी क्षेत्र के भूमि उपयोग प्रतिरूप का अध्ययन, उस क्षेत्र के भूमि उपयोग नियोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सांख्यिकीय एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा भूमि उपयोग को मुख्यतः निम्नलिखित 9 श्रेणियों में विभाजित किया गया है . वन क्षेत्र, अकृषित कार्यों में प्रयुक्त भूमि, ऊसर भूमि, स्थायी चरागाह, अन्य वृक्षों एवं झाड़ियों की भूमि, कृषि योग्य व्यर्थ भूमि, अन्य
तालिका 2 रू बारा तहसील में भूमि उपयोग प्रतिरूप, 2021
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Hkwfe mi;ksx Js.kh |
Tkljk Cykd |
“kadjx<+ Cykd |
Ckkjk rglhy |
|||
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{ks= ĽgsDVs;j esa˝ |
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{ks= ĽgsDVs;j esa˝ |
dqy izfrosfnr {ks=Qy dk % |
{ks= ĽgsDVs;j esa˝ |
dqy izfrosfnr {ks=Qy dk % |
|
|
ou |
0 |
0 |
5218 |
13-51 |
5218 |
8-15 |
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d`f"k ;ksX; O;FkZ Hkwfe |
321 |
1-26 |
3508 |
9-08 |
3829 |
5-98 |
|
orZeku ijrh |
1677 |
6-62 |
3518 |
9-10 |
5195 |
8-11 |
|
iqjkuh ijrh |
563 |
2-21 |
1808 |
4-68 |
2371 |
3-70 |
|
Ĺlj Hkqfe |
1171 |
4-61 |
1332 |
3-44 |
2503 |
3-91 |
|
d`f"k ds vfrfjDr vU; mi;ksx esa Hkwfe |
4125 |
16-24 |
2067 |
5-35 |
6192 |
9-67 |
|
Pkkjkxkg Hkwfe |
10 |
0-03 |
12 |
0-03 |
22 |
0-03 |
|
m|ku] o`{k ,oa >kfM+;ksa dh Hkwfe |
73 |
0-28 |
394 |
1-02 |
467 |
0-72 |
|
okLrfod cks;k x;k {ks=Qy |
17445 |
68-72 |
20763 |
53-76 |
38208 |
59-69 |
|
dqy izfrosfnr {ks=Qy |
25385 |
100 |
38620 |
100 |
64005 |
100 |
स्रोत रू सांख्यिकीय पत्रिका, जनपद प्रयागराज (2021)
तालिका 3 रू बारा तहसील में भूमि उपयोग प्रतिरूप में प्रतिशत परिवर्तन
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dze la[;k |
Hkwfe mi;ksx Js.kh |
Hkwfe mi;ksx izfr:Ik esa izfr’kr ifjorZu Ľ2001 ls 2021˝ |
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Tkljk Cykd |
“kadjx<+ Cykd |
Ckkjk rglhy |
||
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1 |
ou |
0 |
+3. 24 |
+1-63 |
|
2 |
d`f"k ;ksX; O;FkZ Hkwfe |
-0-54 |
+0-27 |
-0-30 |
|
3 |
orZeku ijrh |
-1-47 |
+2-52 |
+0-98 |
|
4 |
iqjkuh ijrh |
-1-45 |
-4-93 |
-3-74 |
|
5 |
Ĺlj Hkqfe |
+0-13 |
+0-61 |
+0-48 |
|
6 |
d`f"k ds vfrfjDr vU; mi;ksx esa Hkwfe |
+4.28 |
-3.29 |
-0.18 |
|
7 |
Pkkjkxkg Hkwfe |
+0.02 |
+0.01 |
+0.01 |
|
8 |
m|ku] o`{k ,oa >kfM+;ksa dh Hkwfe |
-0.08 |
+0.65 |
+0.35 |
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9 |
okLrfod cks;k x;k {ks=Qy |
-0.80 |
+0.94 |
+0.77 |
परती, वर्तमान परती, वास्तविक बोया गया क्षेत्रफल (शुद्ध वापित भूमि)। वर्ष 2001 से 2021 के मध्य 20 वर्षों के अंतराल में तालिका 3 में भूमि उपयोग प्रतिरूप में हुए परिवर्तनों का आंकलन किया गया है जिसकी व्याख्या निम्नवत है .
वन
इसके अंतर्गत उन सभी वर्गीकृत भूमि को सम्मिलित करते हैं जिन्हें किसी कानूनी अधिनियम के तहत वन के अंतर्गत रखा गया है अथवा वन के रूप में प्रशासित किया जाता है, चाहे सरकार के अधीन हो या निजी और जंगली क्षेत्र हो अथवा संभावित वन भूमि के रूप में बनाये रखा गया हो। बारा तहसील में कुल प्रतिवेदित क्षेत्रफल का वर्ष 2001 में वन क्षेत्र 4818 हेक्टेयर (6.52ः) था जो वर्ष 2021 में बढ़कर 5218 हेक्टेयर (8.15ः) हो गया अर्थात बारा तहसील के वन क्षेत्र में 1.63 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्ष 2001 से 2021 के अंतराल में शंकरगढ़ ब्लाक में वन क्षेत्र में 3.24 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि जसरा ब्लाक में वन क्षेत्र नगण्य है ।
कृषि योग्य व्यर्थ भूमि
इसके अंतर्गत वह भूमि आती है जो कृषि के लिए उपलब्ध थी अथवा जिस पर कृषि की जाती थी, परन्तु पिछले 5 वर्षों से कृषि नहीं की जा रही है। ऐसी भूमि परती होती है अथवा झाड़ियों, जंगलों से ढकी होती है जिसका किसी कार्य हेतु प्रयोग नहीं करते द्य बारा तहसील में कुल प्रतिवेदित क्षेत्रफल का वर्ष 2001 में कृषि योग्य व्यर्थ भूमि 4644 हेक्टेयर (6.28ः) थी जो वर्ष 2021 में घटकर 3829 हेक्टेयर (5.98ः) हो गयी अर्थात तहसील में कृषि योग्य व्यर्थ भूमि में .3 प्रतिशत की कमी आई है। वर्ष 2001 से 2021 के अंतराल में शंकरगढ़ ब्लाक में कृषि योग्य व्यर्थ भूमि में.27 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि जसरा ब्लाक में .54 प्रतिशत की कमी आई है।
वर्तमान परती
इसके अंतर्गत वह कृषित क्षेत्र आता है जिस पर वर्तमान वर्ष में कृषि नहीं की गयी है। वर्तमान परती भूमि चक्रीय क्रम से कृषकों द्वारा छोड़ी जाती है ताकि वह पुनः अपनी उर्वरता को प्राप्त कर सके। वर्तमान परती वर्षा, सिंचाई सुविधा एवं फसल चक्रण द्वारा प्रभावित होती है। बारा तहसील में कुल प्रतिवेदित क्षेत्रफल का वर्ष 2001 में वर्तमान परती भूमि 7.13 प्रतिशत थी जो वर्ष 2021 में बढ़कर 8.11 प्रतिशत हो गयी अर्थात तहसील में वर्तमान परती में .98 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्ष 2001 से 2021 के अंतराल में शंकरगढ़ ब्लाक में 2.52 प्रतिशत परती भूमि में वृद्धि हुई है जबकि जसरा ब्लाक में 1.47 प्रतिशत की कमी आई है।
पुरानी परती
वह भूमि जिस पर पिछले 2 से 5 वर्ष या अधिक समय से कृषि कार्य नहीं किया गया है, पुरानी परती कहलाती है। यह कृषित भूमियाँ ही थी जो वर्षा की कमी या आर्थिक कारणों से परती के रूप में छोड़ दी गयी है, अर्थात वर्षा की मात्रा के अनुसार वर्ष दर वर्ष यह परिवर्तित होती रहती है। बारा तहसील में कुल प्रतिवेदित क्षेत्रफल का वर्ष 2001 में पुरानी परती भूमि 7.44 प्रतिशत थी जो वर्ष 2021 में घटकर 3.7 प्रतिशत हो गयी अर्थात तहसील में पुरानी परती भूमि में 3.74 प्रतिशत की कमी आई है। वर्ष 2001 से 2021 के अंतराल में जसरा ब्लाक में पुरानी परती भूमि में 1.45 प्रतिशत की कमी आई है जबकि शंकरगढ़ ब्लाक में 4.93 प्रतिशत की कमी आई है।
ऊसर भूमि
इसके अंतर्गत ऊसर एवं कृषि के अयोग्य भूमियाँ जैसे पर्वत, मरुस्थलीय क्षेत्र, लवणीय मृदा आदि आती है। ऐसी भूमि को कृषित भूमि में परिवर्तित करने में अत्यधिक लागत आती है। तहसील में वर्ष 2021 में कुल ऊसर भूमि का 46.78 प्रतिशत (1171 हेक्टेयर) जसरा ब्लाक में तथा 53.22 प्रतिशत (1332 हेक्टेयर) शंकरगढ़ ब्लाक में पाई जाती है अर्थात ऊसर भूमि का ज्यादा विस्तार शंकरगढ़ ब्लाक में है। बारा तहसील में कुल प्रतिवेदित क्षेत्रफल का वर्ष 2001 में ऊसर भूमि 3.43 प्रतिशत थी जो वर्ष 2021 में बढ़कर 3.91 प्रतिशत हो गयी अर्थात तहसील में ऊसर भूमि में .48 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्ष 2001 से 2021 के अंतराल में शंकरगढ़ ब्लाक में .61 प्रतिशत ऊसर भूमि में वृद्धि हुई है जबकि जसरा ब्लाक में .13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग में भूमि
इसके अंतर्गत वह भूमि आती है जिसका प्रयोग अकृषित उद्देश्यों जैसे दृ आवास, सड़क, रेलवे, नहर, तालाब, उद्योग, बाँध आदि हेतु प्रयोग किया जाता है। बारा तहसील में कुल प्रतिवेदित क्षेत्रफल का वर्ष 2001 में अकृषित कार्यों में प्रयुक्त भूमि 9.85 प्रतिशत थी जो वर्ष 2021 में घटकर 9.67 प्रतिशत हो गयी अर्थात तहसील में अकृषित कार्यों में प्रयुक्त भूमि में .18 प्रतिशत की कमी आई है। वर्ष 2001 से 2021 के अंतराल में शंकरगढ़ ब्लाक में अकृषित कार्यों में प्रयुक्त भूमि में 3.29 प्रतिशत की कमी आई है जबकि जसरा ब्लाक में 4.28 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
चारागाह भूमि
भूमि जो पशुओं को चराई के लिए प्रयुक्त होती है, चारागाह कहलाती है। इस प्रकार की भूमि पर ग्राम पंचायतों ध् सरकार का स्वामित्व होता है द्य ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजानिक भूमि को चराई के लिए प्रयोग करते हैं द्य बारा तहसील में कुल प्रतिवेदित क्षेत्रफल का वर्ष 2001 में चारागाह भूमि .02 प्रतिशत थी जो वर्ष 2021 में बढ़कर .03 प्रतिशत हो गयी अर्थात तहसील में चारागाह के अंतर्गत भूमि में .01 प्रतिशत की वृद्धि हुई है द्य वर्ष 2001 से 2021 के अंतराल में शंकरगढ़ ब्लाक में चारागाह के अंतर्गत भूमि में .01 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि जसरा ब्लाक में .02 प्रतिशत की वृद्धि हुई है ।
उद्यान, वृक्ष एवं झाड़ियों की भूमि
इस प्रकार के क्षेत्र को न तो शुद्ध बोये गये क्षेत्र में शामिल करते हैं और न ही वन क्षेत्र में द्य इसके अंतर्गत वह भूमि आती है जो उद्यान फलदार वृक्ष उगने में काम आती है। ऐसी भूमि अधिकांशतः निजी स्वामित्व के अंतर्गत आती है। इस प्रकार की भूमि के अनुप्रयोग से क्षेत्र के लोगों को कृषि के अतिरिक्त आय के स्रोत में सहायक होती है। बारा तहसील में कुल प्रतिवेदित क्षेत्रफल का वर्ष 2001 में उद्यान, वृक्ष एवं झाड़ियों की भूमि .37 प्रतिशत थी जो वर्ष 2021 में बढ़कर .72 प्रतिशत हो गयी अर्थात तहसील में उद्यान, वृक्ष एवं झाड़ियों के अंतर्गत भूमि में .35 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्ष 2001 से 2021 के अंतराल में शंकरगढ़ ब्लाक में उद्यान, वृक्ष एवं झाड़ियों के अंतर्गत भूमि में .65 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि जसरा ब्लाक में .08 प्रतिशत की कमी आई है।
वास्तविक बोया गया क्षेत्रफल शुद्ध वापित भूमि
इसके अंतर्गत वह कृषित क्षेत्रफल आता है, जहाँ पर वर्ष भर में केवल एक फसल का उत्पादन किया जाता है। कुल प्रतिवेदित भूमि में से कृषि कार्य हेतु प्रयोग में लायी जाने वाली भूमि को वास्तविक बोया गया क्षेत्रफल (शुद्ध वापित भूमि) कहते हैं (स्टाम्प, 1948)। इसके उपयोग की विभिन्न अवस्थाएं मानव के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास के स्तर का द्योतक होती है (मेयर, 1992)। बारा तहसील में कुल प्रतिवेदित क्षेत्रफल का वर्ष 2001 में शुद्ध वापित भूमि 58.92 प्रतिशत थी जो वर्ष 2021 में बढ़कर 59.69 प्रतिशत हो गयी अर्थात शुद्ध कृषित भूमि में .77 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्ष 2001 से 2021 के अंतराल में शंकरगढ़ ब्लाक में शुद्ध कृषित भूमि में .94 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि जसरा ब्लाक में शुद्ध कृषित भूमि में .80 प्रतिशत की कमी आई है।
fp= 2 : ckjk rglhy esa Hkwfe mi;ksx çfr:i ikbZ Mk;xzke (2001, 2021)
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निष्कर्ष
प्रस्तुत शोधपत्र जनपद प्रयागराज की बारा तहसील में भूमि उपयोग प्रतिरूप में हुए स्थानिक.सामयिक परिवर्तन के विश्लेषण का प्रयास किया गया है। किसी क्षेत्र में भूमि उपयोग प्रतिरूप को विभिन्न सामाजिक, आर्थिक एवं भौतिक कारक प्रभावित करते हैं। समय के साथ जैसे . जैसे क्षेत्र की जनसँख्या की सामाजिक आर्थिक स्थिति परिवर्तित होती है भूमि उपयोग प्रतिरूप में भी परिवर्तन होता है। अध्ययन क्षेत्र बारा तहसील में पौधारोपण कार्यक्रमों के कारण वन क्षेत्र में वृद्धि हुई है। वन क्षेत्र में वृद्धि तहसील में पर्यावरण के लिए काफी अच्छा है। बारा तहसील में कृषि योग्य व्यर्थ भूमि में भूमि सुधार कार्यक्रमों के कारण कमी आयी है । तहसील में ऊसर भूमि में वृद्धि देखी जा रही है जिन क्षेत्रों में ऊसर भूमि अधिक है, सर्वप्रथम उन क्षेत्रों में ऊसर भूमि सुधार हेतु कार्यक्रमों, तकनीकों को लागू किया जाय जैसे .जिप्सम का प्रयोग, उपयुक्त फसल चक्र का चुनाव, जैविक खाद का प्रयोग, ढैंचे की हरी खाद का प्रयोग, सिंचाई तथा जल निकास की उचित व्यवस्था आदि। शुद्ध वापित भूमि में वृद्धि हुई है। अकृषित कार्यों में प्रयुक्त भूमि में वृद्धि का प्रमुख कारण है. जनदबाव, औद्योगीकरण, नगरीकरण एवं अवसंरचनात्मक विकास जैसे सड़क, रेलवे, तालाब, बाँध, आवास आदि हेतु भूमि का प्रयोग। निसंदेह विभिन्न विकास कार्यों ने लोगों को रोजगार दिया, उनके जीवन स्तर को सुधारा है लेकिन साथ ही कई समस्याएं जैसे पर्यावरण अवनयन, प्राकृतिक संसाधनों का अति दोहन, जलाशयों पर अतिक्रमण, प्रदूषण आदि भी उत्पन्न हुई हैं। अतः यह अति आवश्यक है की भूमि का योजनाबद्ध तरीके से अनुकूलतम उपयोग किया जाये जिससे वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकता पूरी हो ही साथ ही भावी पीढ़ियों के लिए भी संसाधन सुरक्षित रहें ।
आभारोक्ति
मै शोध छात्र शैलेन्द्र कुमार, शोध पर्यवेक्षक प्रो.(डा.) डी. के. त्रिपाठी, ;प्राचार्य राणा प्रताप पी .जी. कॉलेज सुलतानपुर, उत्तर प्रदेशद्ध का सहृदय आभार ज्ञापित करता हूँ। आपने शोधपत्र लेखन कार्य में अमूल्य सहयोग प्रदान किया एवं महत्वपूर्ण दिशा निर्देश प्रदान किये ।
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Received on 29.07.2024 Modified on 25.08.2024 Accepted on 30.09.2024 © A&V Publication all right reserved Int. J. Ad. Social Sciences. 2024; 12(3):159-168. DOI: 10.52711/2454-2679.2024.00026 |