कमार जनजाति के विविध संस्कार

 

डॉ. गजेन्द्र कुमार

सहायक प्राध्यापक, इतिहास विभाग, शासकीय महाविद्यालय, बाजार अतरिया,

जिला खैरागढ़-छुईखदान-गंडई (छत्तीसगढ़)

*Corresponding Author E-mail: gajendrasahu1991@gmail.com

 

ABSTRACT:

कमार जनजाति भारत की अनुसूचित जनजातियों मे से एक हैं। कम होती जनसंख्या] न्यून साक्षरता दर] कृषि की आदिम तकनीक एवं आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर कमार जनजाति को विशेष पिछड़ी जनजाति घोषित किया गया है। कमार जनजाति के लोग अपनी उत्पति देवडोंगर से मानते है। उनका सबसे बड़ा देवता आज भी देवडोंग के ’’वामन डोंगरी’’ मे स्थापित है। कमार जनजाति आत्मावादी हैं। कमार जनजाति आपसी संवाद हेतु कमारी बोली तथा स्थानीय रूप से छत्तीसगढ़ी भाषा का उपयोग करते हैं। कमार जनजाति बुन्दरजीवा एवं पहाड़िया दो उपजाति मेें विभक्त है। कमार जनजाति एक बहिविर्वाही समुदाय है। इनमें एक ही गोत्र में विवाह संबंध निषेध है। कमार जनजाति का मुख्य व्यवसाय बांस से सुपा] टोकरी] झांपी एवं पर्रा आदि बनाना है। पक्षियों का शिकार करना और छोटे जानवरों का शिकार करना इनके जिविकोपार्जन का साधन है। कमार जनजाति पितृसत्तात्मक समुदाय है। आर्थिक क्षेत्र में निर्णय लेने में महिलाएं स्वतंत्र है। इनके सामाजिक संगठन में समाज या जाति का स्थान महत्वपूर्ण होता है। सामजिक नियमों का पालन निर्धारित करने उन पर निर्णय लेने हेतु कमार लोंगो की विशिष्ट निर्भरता होती है। कमार जनजाति में विवाह योग्य व्यस्क होने के बाद माना जाता है। इसमे विवाह प्रस्ताव लड़के पक्ष द्वारा रखा जाता है। विवाह तय होने पर ’’सुकधन’’ (वधुमूल्य) दिया जाता है। इनमे विवाह समान्यतः तीन दिन का होता है। विधवा पुनर्विवाह मान्य है। कमार जनजाति द्वारा मृतक को दफनाया जाता है। पांचवे या तेरहवें दिन मृत्यु भोज दिया जाता है। कमार जाति के लोंग आपसी विवाद का निपटारा पंचायत के माध्यम से करते है। कमार जनजाति की महिलाएं विवाह पूर्व या छोटी उम्र में गोदना गुदवाती है। स्त्रियां इसे अपना स्थायी आभूषण मानती है। गोदना गोदने का कार्य देवार जाति द्वारा किया जाता है।

 

KEYWORDS: देवी-देवता] बोमला] नार फूल] धरम पानी] नवा खाई] डूमा माटी

 


 


प्रस्तावना -

भारत सरकार द्वारा 5 अनुसूचित जनजातियों जैसे बैगा] पहाड़ी कोरवा] कमार] अबूझमाड़िया और बिरहोर को राज्य के लिए विशेष पिछड़ी जनजाति के रूप में चिन्हित किया गया है।1 इन विशेष पिछड़ी जनजातियों के सर्वांगीण विकास के लिए राज्य सरकार द्वारा पृथक क्षेत्रवार विशेष पिछड़ी जनजाति विकास एजेंसियों एवं प्रकोष्ठों का गठन किया गया है। कमार जनजाति भारत की अनुसूचित जनजातियों मे से एक हैं। कम होती जनसंख्या] न्यून साक्षरता दर] कृषि की आदिम तकनीक एवं आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर कमार जनजाति को विशेष पिछड़ी जनजाति घोषित किया गया है। कमार जनजाति के लोग अपनी उत्पति देवडोंगर से मानते है। उनका सबसे बड़ा देवता आज भी देवडोंग के ’’वामन डोंगरी’’ मे स्थापित है। कमार जनजाति आत्मावादी हैं। कमार जनजाति आपसी संवाद हेतु कमारी बोली तथा स्थानीय रूप से छत्तीसगढ़ी भाषा का उपयोग करते हैं। कमार जनजाति बुन्दरजीवा एवं पहाड़िया दो उपजाति मेें विभक्त है। कमार जनजाति एक बहिविर्वाही समुदाय है। इनमें एक ही गोत्र में विवाह संबंध निषेध है। कमार जनजाति का मुख्य व्यवसाय बांस से सुपा] टोकरी] झांपी एवं पर्रा आदि बनाना है। पक्षियों का शिकार करना और छोटे जानवरों का शिकार करना इनके जिविकोपार्जन का साधन है। कमार जनजाति पितृसत्तात्मक समुदाय है। आर्थिक क्षेत्र में निर्णय लेने में महिलाएं स्वतंत्र है। इनके सामाजिक संगठन में समाज या जाति का स्थान महत्वपूर्ण होता है। सामजिक नियमों का पालन निर्धारित करने उन पर निर्णय लेने हेतु कमार लोंगो की विशिष्ट निर्भरता होती है।2

 

कमार जनजाति का जीवन जन्म से मृत्यु तक विभिन्न सामाजिक संस्कारों से बंधा होता है। जो जन्म] विवाह और मृत्यु से जुड़ा होता है। प्रत्येक समाजों में इन संस्कारों को पूर्ण करने के लिए विभिन्न अनुष्ठानों एवं रीति-रिवाजों को मानते हैं। विभिन्न समाजों में इन अनुष्ठानों को पूर्ण करने के लिए कुछ निश्चित एवं मूलभूत नियमों को माना जाता है] जिसे जीवन संस्कार कहते हैं। कमार जनजाति में प्रचलित जीवन संस्कार का विवरण निम्नानुसार है।

 

कमार जनजाति में लड़ियों में मासिक धर्म प्रारंभ (मुण्डेपानी पड़ियो) होने पर उसे विवाह योग्य माना जाता है। मासिक धर्म में 5 दिनों तक लड़कियों को अपवित्र माना जाता है। मासिक धर्म के दौरान फल-फूल वाले पेड़] आस-पास के देवालय] घर के चूल्हा-चौका] कोठा आदि में जाना वर्जित रहता है। इस दौरान पीने के पानी के स्थान पर जाना पानी लाना वर्जित है। 5 दिन के पश्चात् तालाब में सिर के बाल को मिट्टी अथवा साबुन से धोकर कपड़े इत्यादि को साफ करते हैं। तत्पश्चात उसे पवित्र माना जाता है फिर उस दिन से वह घर के समस्त कार्यों में सहभागी होती है।3

 

लड़कों में शारीरिक बनावट] दाढ़ी-मूंछों के आधार पर तथा परिवारिक जिम्मेदारी एवं अर्थोपार्जन में सहयोग के आधार पर उसे विवाह योग्य माना जाता है।

जन्म संस्कार

कमार जनजाति में विवाह पश्चात महिला का मासिक धर्म रूक जाने पर उसे गर्भवती माना जाता है। प्रसव का कार्य स्थान की उपलब्धता के आधार पर मुख्य आवास के बाहर किया जाता है। प्रसव के लिए सुईन या अपने ही जाति की बुजुर्ग एवं जानकार महिला द्वारा प्रसव कराया जाता है। नाल बोमला काटने का कार्य नानी या विपरीत गोत्र की महिला द्वारा किया जाता है। बच्चे की नाल] चाकू अथवा छुरी से] कहीं-कहीं पर बांस की पतली पत्ती से काटा जाता है। इस जनजाति में लड़के और लड़कियों में कोई भेद नहीं किया जाता। नार फूल नाल को जल्दी सूखने अथवा जल्दी झड़ने के लिए घर के पिछवाड़े में गड्ढा खोदकर दबा देते हैं। नार बेल वाले स्थान पर एक बड़ा सा पत्थर रख देते हैं। उसी पत्थर पर बैठ कर प्रसूता छठी एवं बरही तक नहाती है। छठी कार्यक्रम छठे दिन या नाल गिरने के बाद मनाते है। मुख्य रूप से नाल को छुआ मानते हैं] अर्थात छठी तक छुआ रहता है] छठी के बाद ही पिता अपने बच्चे को गोद लेता है।4

 

छठी के दिन सोनवान (समधी पक्ष) द्वारा बच्चे के सांवर बली (बच्चे के प्रथम बाल) को साफ कर बच्चे के संपूर्ण शरीर में हल्दी का लेप लगाया जाता है। यह कार्य महिलाओं के द्वारा कराया जाता है। बच्चे के मुण्डन के पश्चात बच्चे को नहलाते हैं। छठी के दिन बच्चे को उसके मामा पक्ष द्वारा लाया गया नया कपड़ा पहनाते हैं] फिर डूमा के नाम से नारियल फोड़ा जाता है और महुआ की शराब की तर्पनी दी जाती है। इसी समय बदले में सोनवानी (समधी पक्ष) को 1 नारियल और 1 बोतल शराब देते हैं।5

बच्चे का नामकरण संस्कार सांवर बलि के समय उसी दिन करते हैं। बच्चे के आता बुआ द्वारा बच्चे का नामकरण संस्कार किया जाता है। कमार जनजाति के लोग पुर्नजन्म को मानते हैं। उनकी मान्यता है कि पूर्वज पुनः जन्म लेकर जिससे वह अधिक स्नेह/प्रेम करता है। उसके गर्भ में जन्म लेते हैं। इस समय डुम्बा हेराई (डुम्बो बांछना) किया जाता है। इसमें एक मुट्ठी में धान लिया जाता है और उस धान को जोड़ी बनाकर अपने पूर्वजों का नाम लेकर पूछते हैं] जिसके नाम में जोड़ी नहीं बनता उस पूर्वज का पुर्नजन्म माना जाता है। जिसके आधार पर अथवा पूर्व में दिन और महिना के आधार पर बच्चे का नामकरण किया जाता था। वर्तमान समय में देवी-देवताओं] स्थानों] प्राकृतिक वस्तुओं या अन्य आधुनिक नाम रखने लगे हैं।6

 

हांडी छियानी

छठी के बाद सगा-संबंधी एवं गांव के अन्य लोगों को बुलाकर यह कार्यक्रम किया जाता है। इस दिन प्रसुता खुद खाना बनाकर खिलाती है या इसके नाम से खाना बनाकर कम से कम 5 लोगों को परोसकर खाना खिलाती हैं।7

 

विवाह संस्कार

कमार जनजाति में लड़कों के (शारीरिक विकास] दाढ़ी मूंछ उग आने पर तथा उसके परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा पाने की स्थिति में) एवं लड़कियों के (मासिक धर्म प्रारंभ होने पर) विवाह योग्य हो जाने पर विवाह किया जाता है। सामान्यतः लड़की की उम्र 16-18 वर्ष एवं लड़कों की उम्र 18-20 वर्ष में विवाह योग्य माना जाता है। कमार जनजाति में खेती लेन-देन अथवा दूध लौटाने की प्रथा है। सामान्यतः शादी विवाह हेतु पहल लड़का पक्ष द्वारा किया जाता है] सर्वप्रथम विवाह हेतु बुआ (आता) की लड़की के लिए प्रस्ताव लेकर जाते हैं] यदि वह मैं दई-बाप के घर अपनी बेटी नहीं दूंगी करके मना करती है तो वह मामा की लड़की को पूछते हैं] यदि वह भी मना कर देते हैं तो ही वह दूसरी लड़की के यहां विवाह प्रस्ताव लेकर जाते हैं। इनमें मामा-फूफू विवाह को प्राथमिकता दी जाती है] यदि लड़की या लड़का आपस में पसंद नहीं कर रहे हों तो उसे बताना पड़ता है कि रिश्ता नहीं जम पा रहा है दूसरा सगा आये तो लड़की दे देना अथवा लड़की ले लेना।

 

फूफू पक्ष को प्रथम प्राथमिकता दी जाती है] उनके द्वारा विवाह प्रस्ताव के लिए रास्ता देखा जाता है] क्योंकि उनको दूध लौटाना या खेती वापस करना होता है। मामा पक्ष में विवाह कर सकते हैं] किन्तु आवश्यक नहीं होता।

 

पूछनी

कमार जनजाति में दीवान (समधान) को लेकर लड़का पक्ष के लोग फूफू के घर पूछने जाते हैं कि सगा देखने आये हैं] उनके द्वारा पसंद आने पर एक बोतल मंद (शराब) और एक नारियल छोड़कर आते हैं] यदि उनके द्वारा यह स्वीकार कर लेते हैं तो लड़के वाले महला आने के लिए पूछते हैं कि महला कब आना है] महिना] छः महिना अथवा साल में महला तय किया जाता है।

 

महला (पहिली पूछनी )

महला में निर्धारित चांवल ( 5 काठा)] 1 नारियल] 1 बोतल मंद (शराब)] 1 - 2 किग्रा. दाल] 5दृ10 किग्रा. गुड़] 5 कट्टा (पैकेट) बिड़ी और चिवड़ा लेकर जाते हैं। डूमा माटी धरती माता के लिए एक नारियल और ष्काड़ष् तीर] महला लेकर जाते हैं। साथ में लडकी के लिए नया कपड़ा] फलदान के दिन का पुछनी के लिए नारियल लेकर लड़के के तरफ से महालिया समधान अथवा कहीं-कहीं पर लड़का का भाई महला लेकर जाता है। महला के साथ में लड़के को जाना अनिवार्य है। महला के घर में पहुंचने पर दोनों पक्ष आपस में चर्चा कर दोनों पक्ष के लोग समाज बस्ती के लोगों को बुलाते हैं] गांव समाज के लोग दोनों पक्ष को पूछते हैं कि गांव डिवहार ला काबर बलाय हसष् समाज के लोग दोनों पक्षों से चर्चा कर लड़की से पूछते हैं कि तुम्हारी क्या मरजी है] लड़की से कई बार उसकी मर्जी पूछते हैं] उसकी स्वीकृति के उपरांत ही सामने में लड़के को बुलाकर लड़के की मर्जी पूछी जाती है। लड़के की स्वीकृति के उपरांत ष्नेगष् का सारा सामान लेकर आते हैं। स्वीकृति उपरांत दोनों पक्षों के समाज द्वारा लड़का लड़की दोनों को एक साथ खड़ा करके नारियल सुपारी फोड़ा जाता है। तत्पश्चात दोनों पक्ष के समाज द्वारा पूछा जाता है कि सुखियो नेता कि ओदलो नेता अर्थात शादी करके ले जाओगे कि ऐसे ही ले जाओगे। महला द्वारा लड़की ले जाने पर दुल्हा-दुल्हन को तेल - हल्दी नहीं लगाते] केवल चूड़ी पहना कर ले जाते हैं।8

 

महला के साथ लड़की को 8-10 दिनों के लिए घर दिखाई के लिए लड़के के साथ लेकर आते हैं। महला में केवल लड़की को साथ लेकर आते हैं। इस बीच दोनों में आपस में संबंध अच्छा बन जाता है। इस बीच दोनों में शारीरिक संबंध बनने पर समाज द्वारा मान्यता दी जाती है] उसके बाद लड़की मना नहीं कर सकती। दोनों को अपस में सहमति होने पर खुशी के साथ मां-बांप जल्दी से दोनों की शादी की बात करते हैं।

 

यदि 8-10 दिन पश्चात लड़की शादी करने से मना करती है तो लड़की पक्ष को सामाजिक दण्ड देना पड़ता है तथा महला में होने वाले खर्च को लौटाना पड़ता है] यदि लड़का मना करता है तो समाज द्वारा लड़के को समझाया जाता है।

 

लड़का लड़की द्वारा विवाह की स्वीकृति उपरांत डिवहार/महलिया के साथ लड़का के पिता लड़की के घर विवाह की तिथि तय करने के लिए जाते हैं। वहां पर चंदा/तिथि के आधार पर विवाह की तिथि तय की जाती है। विवाह की तिथि तय होने के पश्चात तिथि अनुसार स्वजातीय एवं समधान द्वारा सरई] बीजा] महुआ लकड़ी की (खाम) मोटी तना को माण्डों में गड़ाते हैं। माण्डो चौरकटिया (चौकोर) बनाया जाता है जिसे जाम डारा (जामुन के पत्ते ) खदर से ढंकते हैं। मंडवा गड़ाने माटी पूजा करने वाले को 1 बोतल शराब] 1 नारियल एक कट्टा बिड़ी देते हैं।9 पहले दिन लड़का पक्ष के यहां मड़वा गड़ाते हैं तथा दूसरे दिन लड़की पक्ष के यहां मंड़वा गड़ाया जाता है। लड़की के यहां महलिया द्वारा मंड़वा गड़ाया जाता है जो लड़के के घर मड़वा गड़ाकर लड़की के यहां जाता है इसी दिन लड़की पक्ष वाले को सामाजिक रूप से शादी की तिथि बताते हैं। इसी दिन से विवाह कार्यक्रम शुरू होता है।

 

महलिया को उसके साथी के साथ विवाह के शुरू के दिन मौर] सूखा दिया] करसा] तेल] नारियल] सुपारी आदि विवाह के सामान को लेकर वधु के घर भेजते हैं। जहां गांव का झाखर] पुजारी को खोजकर खाम] खोदने के लिए तथा पूजा कर महुआ डारा काटकर लाते हैं] गांव का झाखर] गायता द्वारा ष्देवतलाष् (ग्राम में भ्रमण कर ) द्वारा गांव की देवी-देवताओं की पूजा का कार्य किया जाता है।

कमार जनजाति में विवाह का कार्यक्रम 2-3 दिनों में सम्पन्न होता है।

 

प्रथम दिन (हरियर माण्डो)

विवाह के प्रथम दिन महलिया अन्य रिश्तेदार ष्माण्डो डालष् (मड़वा) काटकर लाते हैं फिर माता गुड़ी दृ देवतला (पूजा करने) जाते हैं। देवतला से वापस आकर गांव की शीतला माता में हल्दी-तेल चढ़ाते हैं उसके पश्चात घर की महिलाएं मंड़वा डाल जो काटकर लाये रहते हैं उसे परघाने जाते हैं उसी के साथ में सुवासिन या भाभी खेरखाडांड़ (गोठान) से या अन्य जगह से मिट्टी खोदकर लाते हैं] मिट्टी को सुवासिन (भाभी) पर्रा में रखकर लाती हैं। मिट्टी को लाकर मंड़वा के नीचे रखते हैं जिसके उपर कलशा (मिट्टी का पात्र) को रखते हैं और उसके चारों ओर दिया जलाते हैं।

 

भीतर पूजा

इसे भीतर तेल कहा जाता है इसमें घर के अंदर लड़के/लड़की को आम पत्त के मौर पहनाते हैं और उसे हल्दी तेल आम पत्र से चढ़ाते हैं। इस समय सात व्यक्तियों (मां] बांप] डीहवार] झाखर] बहन] फूफू आदि) द्वारा सात बार भीतर तेल चढ़ाते हैं।

फिर आम पत्र के मौर को उतार कर उसे छिन्द पत्र का मौर पहनाते हैं। तत्पश्चात उसे उठाकर मड़वा में चारो ओर सात बार घूमाते हैं। ढेढ़ा एवं ढेड़हिन (सुवासाध्सुवासिन) उपस्थित सभी बड़ों का प्रणाम करती हैं। दुल्हा एवं दुल्हिन को इस दौरान देव तुल्य माना जाता है] अतः इन्हें किसी का पैर छुने नहीं दिया जाता। तत्पश्चात मंड़वा में आटे से चौक पुरकर (बनाकर) दुल्हा/दुल्हन को सात बार घुमाते हैं फिर दुल्हा /दुल्हन को तेल चढ़ाते हैं। इस समय जितना अधिक से अधिक लोगों द्वारा तेल हल्दी चढ़ाया जाता है। फिर सभी लोग मड़वा के चारो ओर नाचते हैं] इसी समय लड़के को पाकर मंडवा में सभी लोग खूब नाचते हैं।10

 

दूसरा दिन

विवाह के दूसरे दिन दोपहर को मड़वा मौर (छिन्द पत्र का मौर) को उतार कर तेल मौर बांधते हैं। यहां पर भी प्रथम बार वाले सात व्यक्ति] सात-सात बार तेल चढ़ाते हैं। एक मौर को मंडप में बांधते हैं फिर मंडवा के चारो ओर सात बार घुमाते हैं] उसके बाद बारात जाने की तैयारी करते हैं। बारात पहुंचने पर मड़वा मे दुल्हा से भेंट कराते है। उसे रूपया पैसा या कपड़ा से भेट करते है।

 

तेल उतारना

मण्डप में वर वधु को एक साथ बैठकर सात बार तेल उतारते है। वर द्वारा लाया गया श्रृंगार का सामान देकर तथा उसे पहनाकर वधु को लगन के लिए तैयार करते है। तेल उतारने के लिए कांड़ तीर का उपयोग करते है। तेल उतारने के लिए तिल का तेल लेते है इनमे सिर के ऊपर हांथ को उल्टा रखते है। हथेली के मुख्य रेखा के बीच ष्कांडष् को रखते है। फिर तिल के तेल से तेल उतारते है। महलिया दुल्हा  दुल्हन को उठाकर लगन के लिए निकालते है। दोनों को एक ही समय मे विपरीत दिशा में सात बार घुमाते है। वधु पूर्व दिशा की ओर पिछे करके वर पश्चिम दिशा की ओर पिछे करके खड़ा हो जाता है। मंहलिया गज नापता है। वर के लिए चार पांव और वधु के लिए चार पांव फिर लगन के लिए वर वधु का लगन गांठ बांधते है। बूढ़ा देव की जय कारा लगाते है। सात भांवर (फेरे) पड़ता है। पहले 3 भांवर में लड़की आगे रहती है। लड़की के घर तीन भांवर पड़ता है। फिर मड़वा मे वर वधु को खड़ा करके लड़की पक्ष के बुजुर्ग समाज द्वारा धरम पानी करते है।11

 

धरम पानी में के भाई को मड़वा के ऊपर चढ़कर धरम गढ़ मड़वा के ऊपर से दुल्हा/दुल्हन के ऊपर हल्दी पानी डालते है। इसके बाद वर वधु को नदी या तालाब में नहलाने ले जाते है। पूर्व में नहाकर लौटते समय मृग मारने की प्रथा प्रचलित थी। इसमें एक हिरण बनाया जाता था और फिर वर द्वारा तीर से उस मृग को मारने को कहा जाता था। कई बार इसी दौरान तीर लगने से कई लोगों की मृत्यु हो गयी थी अतः अब यह प्रथा प्रतिबंधित कर दिया गया है।

 

घर वापस आकर टिकावन की रश्म होती हैं जिसमे पीला चांवल से दुल्हा एवं दुल्हन की मांथे पर टिका लगाया जाता है। सर्वप्रथम झाखर द्वारा टीका लगाते है उसके पश्चात् समस्त नाते रिस्तेदार एवं उपस्थित व्यक्तियो द्वारा टिका लगाया जाता है।

 

विदाई

परिवार एवं गांव के सभी लोग वर एवं वधु का पैर धोकर लड़के के परिवार को हांथ पकड़कर वधु को सौंप देते है] भेट उपरांत बारात वापस लौट आता है। वापसी मे बारात को गांव की सीमा के बाहर रोकते है तथा झाखर को बारात वापसी की खबर देते है। झाखर द्वारा रास्ते मे हांडी रखकर चांवल आटा से रेखा बनाकर उस पर निम्बू काटता है। फिर बारात को रेखा से पार कराता है। बारात को घर के पास अन्य घर मे रूकवाया जाता है] वहां से बारात को परघाकर मड़वा में लाते है जहां बचा हुआ ष्भांवरष् (फेरें) पूरा किया जाता हैं यहां फेरे मे लड़का आगे रहता है। यहां पर भी धरम पानी की प्रक्रिया की जाती है फिर टिकावन होता है अंत मे खाना खाकर सभी अपने अपने घर चले जाते है।12

 

चौथिया

दूसरे दिन लड़की पक्ष के लोग अपने रिस्तेदारों के साथ लड़के के घर चौथिया के लिए आते है। इस दिन वर वधु का झाखर द्वारा मौर उतारा जाता है। चौथिया का परघाकर आवश्यक मान सम्मान खिलाने पिलाने के बाद शाम को चौथिया वापस चली जाती है।

 

विवाह का प्रकार

लमसेना विवाह

कमार जनजाति में लड़का पक्ष की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने पर] लड़की-लड़का देखकर बातचीत किया जाता है] जिसमें लड़का अपने होने वाले सास-ससुर के घर में एक वर्ष तक रहकर उनके आर्थिक क्रियाकलापों में अपना सहयोग देता है] इस बीच वह अपने आदत-व्यवहार से परिवार को खुश संतुष्ट करने की कोशिश करता है] लड़की पक्ष वाले उसके कार्य व्यवहार से संतुष्ट होने दोनों पक्षों को पसंद आने पर विवाह की मंजूरी दे दी जाती है। अंत में दोनों का विधि-विधान से विवाह संपन्न करायी जाती है] इस प्रकार की विवाह की पद्धति को लमसेना विवाह कहा जाता है। लमसेना विवाह में एक वर्ष की परीवीक्षा अवधि होता है] जिसमें लड़के को अपनी योग्यता एक वर्ष के अंदर सिद्ध करना होता है। इस अवधि में लड़के-लड़की के बीच किसी प्रकार का कोई पति-पत्नी का संबंध नहीं रहता] यहां तक की दोनों के बीच ठीक से बातचीत भी नहीं होती। इस अवधि में लड़का-लड़की के घर एक अलग से कमरे में रहता है। जब तक उनकी विवाह नहीं हो जाती।13

 

कमार जनजाति में रिश्ता तय हो जाने पर (मंगनी हो जाने पर) विवाह के पूर्व नवा खाई में अपनी होने वाली बहु को घर में लिवाकर लाना अनिवार्य होता है। इस रीति-रिवाज को घर देखाई कहते हैं। इस अवसर पर होने वाली नई बहु को लिवाकर लाते हैं तथा नई बहु के हाथों से खाने-पीने का पकवान बनवाते है] इस समय नई बहु का परिवार के सदस्यों से परिचय हो जाता है। इस समय लड़की लड़के के घर 1 से माह तक रहती है जिससे घर परिवार के बारे में अच्छे से समझ जान लेते हैं। इस अवसर पर लड़के लड़की अलग-अलग रहते हैं। लड़के का पिता और उसके जीजा जी ही लड़की को लिवाने जाते हैं और वही लोग उसे पहुंचाने भी जाते हैं।

 

पैठू विवाह

विवाह की यह रीति भी कमार जनजाति में प्रचलित है। विवाह की इस रीति में लड़के लड़की के बीच पहले से ही संबंध रहता है। इसमें लड़की लड़के के घर में जबरदस्ती घुस जाती है। लड़का पक्ष द्वारा एक हद तक उसे घर से निकालने की कोशिश की जाती है। किन्तु लड़की द्वारा हठ किया जाता है कि मैं इस घर से नहीं जाऊंगी] चूंकि लड़के का भी मन रहता है। अतः परिवार की सहमति से दोनों की विवाह कर दी जाती है।14

 

जयमाला विवाह

विवाह की इस रीति में भी लड़के लड़की दोनों की रजामंदी होती है। किन्तु दोनों पक्षों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रहती। अतः समाज के लोगों से मिलकर वर माला विवाह कर लेते हैं

 

मृत्यु संस्कार

मृत्यु संस्कार कमार जनजाति के जीवन काल की अंतिम संस्कार होता है। कमार जनजाति में किसी की मृत्यु होने पर उसे परिवार के लोग अपने रिस्तेदारों गोत्र कें लोगों को खबर भेजते है। इसके पश्चात् घर में समधान (सोनवानी) की आवश्यकता पड़ती है। सोनवानी द्वारा शव की परिक्षण] देव पूजन एवं संस्कार के माध्यम से करता है कि उसकी औघट मृत्युं] (आकस्मिक मृत्यु)] वास्तविक मृत्यु मार काट] बिमार या कीड़ा मकोड़ा काटने से मृत्यु हुई है। शव का परीक्षण कर बताता है। फिर शव को चाप मे लिटाकर दो लम्बी बांस मे बांध दिया जाता है। मृत शरीर को नहलाते धुलाते नही है उसके शरीर मे हल्दी लगाते है। सिर के पास अनेको जगह हल्दी लगाते है फिर शव को उठाते है शव को दो लोग उठाते है कई जगह चार लोग भी उठाते है। सबसे आगे बड़ा बेटा अथवा भतीजा शव को कंधा देता है। पिछे की तरफ सोनवानी या समधान] संबंधी या भांजा कंधा देता है। महिलाएं शमशान नही जाती है। गांव के लोग मिलजुल कर शव का अंतिम संस्कार करते है।

 

कमार जनजाति मे शव को दफनाते है। शव को दफनाने के लिए सोनवानी एवं गांव के लोग मिलकर गड्ढ़ा खोदते है। शव को दफनाते समय चित्त लिटा कर सिर को पूर्व दिशा की ओर रखते है। शरीर के सभी वस्तुओं आभूषणों को निकाल देते है। केवल एक ओढ़ाने वाले सफेद कपड़े के साथ दफनाते है। मृत व्यक्ति के उपयोग की सभी वस्तुओ को घर से श्मशान मे लाकर गड़ा देते है। अथवा जला देते है।

 

मिट्टी देते समय परिवार के सभी सदस्य सिर की ओर से बाकी अन्य लोग पैर की ओर से मिट्टी देते है। मिट्टी सभी लोग एक साथ डालते है। दफनाने के बाद कुछ मिट्टी डालकर उसके ऊपर दो लकड़ी आड़ा डालते है क्योकी पूर्वजो का मानना है कि शव को लकड़बगघा आदि जानवर खोदकर खा जाते है। अतः इनसे शव की रक्षा की जा सके। शव को दफनाने के बाद उसे पवित्र करने के लिए उसके ऊपर गोबर से छीटा देते है और चारो ओर पत्थर रख देते है। अर्थी उठाने के बाद घर को भी गोबर से लीपकर पवित्र करते है।15

 

तीन दिन मे काम पूरा कर लेते है तिसरे दिन तालाब में अंवरा पानी एवं बिसर पानी कर लेते है घर वापस आने के बाद सोनवानी/समधान दूध पानी छिड़कर पवित्र करते है। दूब घास की जगह धनबाहर के पत्ते का अपयोग दूध पानी को छिड़कने के लिए करते है। इसमे विपरित गोत्र वाले एक दूसरे के ऊपर दूध पानी छिड़कर पवित्र करते है। अकाल मृत्यु या अन्य कारणो से मृत्यु होने पर गांव के झाखर को बुलाने है जो शीतला मंदिर मे जा कर दूध-दही चढ़ाता है इसी दिन मुण्डन संस्कार करते है जिसमे गोत्र के समस्त लोगो का मुण्डन किया जाता है। जिसे सांवर मुड़ाग कहते है। इनमें मुण्डन का कार्य नाई द्वारा नही किया जाता बल्कि सोनवानी के द्वारा किया जाता है। अंत मे खात खवई (खाने पीने) का कार्यक्रम होता है जिसमे परिवार के लोगों रिस्तेदारों] गोत्र के लोगो तथा गांव के लोगो को खाना खिलाते है।16

 

अंत मे सभी कार्य पूर्ण होने के उपरांत उत्तराधिकारी (चंदन पान) तय करते हैं। सोनवानी चोटी उतारता है तथा सिर पर पगड़ी बांधकर भेंट करते है। फिर सबको प्रणाम करके घर आता है। उसके बाद डुमा लाते है। आधे रास्ते मे जा कर जाम डारे का भड़वा बनाकर आटे से मनुष्य की आकृति बनाते है फिर पितृ पुरुष को सिर के रूप में बुलाते है और मनुष्य की आकृति मे जीव पानी डालकर बोलते हैं कि छोटे जीव डालकर डुमा के रूप मे रहा है। वहां पर जीव पानी के कलश के पास एक दीपक जलाते है। फिर उसे पुछते है कि किसके पास जायेगा। वो कहता है कि बड़ी बहु के साथ जांऊगा वो कलश को लेकर उसके साथ जाता है। अंदर आकर पूजापाठ कराता है नारियल सुपारी होम धूप देकर नारियल को प्रसाद के लिए समधान को देता है। अंत मे सांत्वना स्वरूप दो शब्दों में शोक प्रकट करते हैं। पहले घर मे किसी की मृत्यु होने पर घर को जला देते थे और अन्यत्र चले जाते थे। इसके पिछे भूत-प्रेत और जादू-टोने पर अत्यधिक विश्वास प्रमुख कारण था। कमार जनजाति के लोग पुर्नजन्म पर विश्वास करते है तथा व्यक्ति के मृत्यु होने पर जिससे वह अधिक प्रेम करता था उसके पास पुनः जन्म लेकर वापस आते है।

 

संदर्भ सूची

1.       Dube] S. C.] The Kamar] 3rd] Oxford University Press] New Delhi] 2012] p. 14 'kekZ] fouksn dqekj] dekj tkfr dk lkekftd ekuo'kkL=h; vè;;u] ia- jfo'kadj 'kqDy fo”ofo|ky;] 1993] 15

2.       Dubey Kuldeep and C.D Agashe. Health Related Fitness of Ethnic Tribal Students of Chhattisgarh Health Related Fitness in Children of Gond Halba Kamar Oraon Tribes. 1. Auflage 1. Auflage ed. LAP LAMBERT Academic Publishing 2017] p.27

3.     èkzqo dhrZu yky] vkfne tkfr dekj ds fodkl esa 'kkldh; fodkl ;kstuk dh Hkwfedk dk ]d lekt'kkL=h; vè;;u xfj;kcan ftys ds Nqjk vkSj xfj;kcan fodkl[kaM ds fo'ks"k lanHkZ esa] ia- jfo'kadj 'kqDy foÜofo|ky;] 2019] 17

4.     èkzqo rks'kuh dekj tkfr ds fodkl esa dekj fodkl çdks"B ds ;ksxnku dk fo’o'ku NÙkhlx<+ ds èkerjh ftys ds fo'ks"k lanHkZ esa] ia- jfo'kadj 'kqDy fo”ofo|ky;] 2018] 44

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6.       Goel D. D. Kamāra Vanya Jāti : Kamar Tribe] Kailāśa Pustaka Sadana] 1973] p18

7.       Burton Richard Francis. The Arabian Nights: Tales from a Thousand and One Nights. Modern Library 2009] p.36

8.       xtsUæ dqekj1] vkSj fd'kksj dqekj vxzoky- cSxk tutkfr ds mRifÙk dh vo/kkj.kk dk ]sfrgkfld fo'ys"k.k International Journal of Advances in Social Sciences 6-1] 2018 25-29.

9.     èkzqo rks'kuh dekj tkfr ds fodkl esa dekj fodkl çdks"B ds ;ksxnku dk fo’o'ku NÙkhlx<+ ds èkerjh ftys ds fo'ks"k lanHkZ esa] ia- jfo'kadj 'kqDy fo”ofo|ky;] 2018] 21

10.    Burton Richard Francis et al. The Book of the Thousand Nights and a Night : A Plain and Literal Translation of the Arabian Nights Entertainments. Heritage Press 1962] p.38

11.    èkzqo dhrZu yky] vkfne tkfr dekj ds fodkl esa 'kkldh; fodkl ;kstuk dh Hkwfedk dk ]d lekt'kkL=h; vè;;u xfj;kcan ftys ds Nqjk vkSj xfj;kcan fodkl[kaM ds fo'ks"k lanHkZ esa] ia- jfo'kadj 'kqDy foÜofo|ky;] 2019] 35

12.    Burton Richard Francis et al. The Book of the Thousand Nights and a Night : A Plain and Literal Translation of the Arabian Nights Entertainments. Heritage Press 1962] p.20

13.    Goel D. D. Kamāra Vanya Jāti : Kamar Tribe] Kailāśa Pustaka Sadana] 1973] p20

14.   'kekZ] fouksn dqekj] dekj tkfr dk lkekftd ekuo'kkL=h; vè;;u] ia- jfo'kadj 'kqDy fo’ofo|ky;] 1993] 12

15.   'kkldh; çfrosnu] dekj tutkfr xzke esa gkV&cktkj ]d eksuksxzkQ v/;;u] lapkyuky;] vkfnetkfr vuqla/kku ]oa çf'k{k.k laLFkku] NÙkhlx<+ 'kklu

 

 

 

Received on 07.03.2024         Modified on 01.04.2024

Accepted on 17.04.2024         © A&V Publication all right reserved

Int. J. Ad. Social Sciences. 2024; 12(2):85-92.

DOI: 10.52711/2454-2679.2024.00015