खजनी विकासखण्ड जनपद गोरखपुर में व्यावसायिक संरचना का वर्तमान प्रतिरूप

 

अनूप यादव, प्रमोद कुमार तिवारी

जे0आर0एफ0, शोध छात्र, (भूगोल विभाग) नागरिक पी0जी0 कॉलेज, जंघई, जौनपुर, 0प्र0

विभागाध्यक्ष, भूगोल विभाग, नागरिक पी0जी0 कॉलेज, जंघई, जौनपुर, 0प्र0

*Corresponding Author E-mail: anoopyadav9190@gmail.com

 

ABSTRACT:

किसी प्रदेश या क्षेत्र की आर्थिक स्थिति का आंकलन वहाँ की व्यावसायिक संरचना के अध्ययन से लगाया जाता है। सामान्यतया यह अनुमान लगाया जाता है, कि सेवा क्षेत्र या तृतीयक क्षेत्र में किसी क्षेत्र की जनसंख्या का अधिक अनुपात है तो वह देश अधिक समृद्धशाली समझा जाता है। परन्तु कुछ विकसित देश जैसे-आस्ट्रेलिया जैसे देशों में प्राथमिक क्षेत्र का योगदान वहाँ के विकास स्तर में काफी अधिक है। प्रस्तुत शोध प्रपत्र में खजनी विकासखण्ड की व्यावसायिक संरचना का अध्ययन किया गया है तथा विकासखण्ड के विकास स्तर का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। विकासखण्ड में कुल जनसंख्या में कार्यशील एवं अकार्यशील जनसंख्या का अनुपात की गणना है, तथा इसके अलावा विभिन्न क्षेत्रों जैसे, कृषि, व्यवसाय, उद्योग एवं तृतीयक क्षेत्र में कार्य करने वाली जनसंख्या का भी तुलना की गयी है। कृषि क्षेत्र को दो खण्डों में विभाजित किया गया है। इसके अलावा पारिवारिक उद्योग, नौकरी, व्यवसाय आदि का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। इस शोध प्रपत्र में व्यावसायिक संरचना के अर्थ एवं महत्व को भी बताया गया है। निष्कर्ष रूप में यह बताया गया है कि मानव के सर्वांगीण विकास के लिए किस कार्य क्षेत्र का अधिक विकास करने की आवश्यकता है, का अध्ययन किया गया है।

KEYWORDS: कृषक, कृषक मजदूर, निर्माण उद्योग, व्यावसायिक, कर्मकार, अर्थव्यवस्था, विनिर्माण।

 


 


प्रस्तावना:-

किसी प्रदेश या क्षेत्र की कुल जनसंख्या का वह भाग जो आवश्यकतानुसार आर्थिक कार्यों में संज्ञान होने मंे सक्षम तथा तत्पर होता है उसे सामान्यतया मानव शक्ति (डंद च्वूमत) की संज्ञा दी जाती है। अतः किसी देश की मानव शक्ति का निर्माण उन व्यक्तियों से होता है जो विभिन्न आर्थिक कार्यों एवं सेवाओं में कार्यरत होने के योग्य होते हैं और साथ ही उनमें भाग लेने के इच्छुक होते हैं। ‘‘आर्थिक विकास एक यान्त्रिक प्रक्रिया है। साथ-साथ मानवीय उपक्रय भी है। जिसका प्रतिफल अन्ततः क्रियान्वित करने वाले लोगों की कुशलता, गुण एवं प्रवृत्तियों पर निर्भर है। (प्रो0 रिचर्ड गिल) किसी भी राष्ट्र की उन्नत्ति मानवीय संसाधन संगठित करने की क्षमता पर निर्भर होती है। निःसंदेह किली भी देश में जनशक्ति संसाधन राष्ट्र की महत्वपूर्ण पूँजी मानी जाती है। परन्तु इन संसाधनों का समुचित उपयोग किया जाये, नये रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये गये तो वे संसाधन राष्ट्र के लिए शर बन जाते हैं। इस प्रकार इस विवेचना से स्पष्ट है कि मानव संसाधन एवं साध्य दोनों ही है।

 

अध्ययन के उद्देष्य:-

प्रस्तुत शोध में खजनी विकासखण्ड की व्यावसायिक संरचना का अध्ययन किया गया है, जिसका मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

1. अध्ययन क्षेत्र में जीवनयापन के साधनों का अध्ययन करना तथा विभिन्न जीवनयापन क्षेत्रों पर निर्भर जनसंख्या का अध्ययन करना।

2. खजनी विकासखण्ड की वर्तमान व्यवसाय का अध्ययन एवं भावी विकास की दिशा निर्देश का अध्ययन करना।

 

आँकड़ों के स्रोत एवं विधितंत्र:- प्रस्तुत शोध प्रपत्र में विकासखण्ड से प्राप्त विभिन्न प्रकार के द्वितीयक आँकड़ों का प्रयोग किया गया है। जैसे- सांख्यिकी पत्रिका, सामाजिक, आर्थिक समीक्षा आदि इसके अलावा इण्टरनेट स्रोत का प्रयोग किया गया है। जिसके माध्यम से (ब्मदेने िप्दकपं) एवं जिला हस्त पुस्तिका का भी प्रयोग किया गया। विभिन्न आँकड़ों को व्यवस्थित करने के लिए विश्लेषणात्मक विधि का प्रयोग किया गया है। 

 

जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना:-

किसी भी क्षेत्र के विकास एवं जीवनयापन के साधनों का पता वहाँ कि व्यावसायिक प्रवृत्ति से पता चलता है। व्यावसायिक संरचना का तात्पर्य किसी क्षेत्र विशेष की कुल जनसंख्या अनुपात से है जो जीवनयापन हेतु विभिन्न क्रियाकलापों में संलग्न है। व्यावसायिक संरचना के माध्यम से क्षेत्र विशेष की आर्थिक स्थिति एवं उसमें होने वाले परिवर्तनों का पता चलता है। व्यावसायिक संरचना उस क्षेत्र विशेष की जनसंख्या के संरचनात्मक संगठन को प्रतिबिम्बित करती है। किसी भी समाज या प्रदेश की व्यावसायिक संरचना अनेकों अन्तर्सम्बन्धित कारको का परिणाम होती है, इसमें प्रदेश की भौतिक संसाधन आधार सबसे महत्वपूर्ण होता है। भौतिक संसाधनों की विभिन्नता एवं प्रकृति मानव के विभिन्न व्यवसायों को जन्म देती है। मनुष्य जिस किसी भी प्रकार के कार्य में लगा रहता है। उसे उसका व्यवसाय कहते हैं। मानव द्वारा जीविकोपार्जन तथा जीवनयापन के लिए प्रयोग की गयी समस्त आर्थिक क्रियाओं को व्यवसाय की संज्ञा दी जाती है। जनसांख्यिकी अध्ययन में व्यावसायिक संरचना का अध्ययन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। क्योंकि इसके द्वारा किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के स्वरूप, आर्थिक विकास के स्तर तथा सभ्यता विकास के सोपान का आभास मिलता है। व्यावसायिक संरचना के अन्तर्गत जनसंख्या में कार्यरत जनसंख्या के विभिन्न व्यवसाय अथवा कार्यों में संलग्नता का अध्ययन किया जाता है। (लाल 1997) व्यावसायिक संरचना द्वारा अध्यासित जनसंख्या या किसी व्यक्ति विशेष की व्यावसायिक स्थिति उसके भाव, विचार, सामाजिक दृष्टिकोण, व्यक्तित्व तथा उसके द्वारा स्थापित राजनैतिक सम्बद्धता एवं परिवर्तन की झलक मिलती है। किसी भीा प्रदेश की व्यावसायिक संरचना के अध्ययन से क्षेत्र विशेष के निवासियों एवं जीवनयापन के स्तर का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है। (अग्रवाल, 1977)

 

व्यावसायिक संरचना द्वारा ही समाज में श्रम विभाजन और आर्थिक विकास के स्तर तथा संसाधनों को विविधता में सू-स्पष्ट सम्बन्ध है। आर्थिक विकास के प्रथम सोपान में सीमित व्यवसाय के साथ संसाधनों के दोहन अधिकतम रूप से होता है। संसाधनों के संसोधन एवं परिष्कृत प्रयोग के बाद व्यवसाय बैभिन्य निश्चित होता है। फलस्वरूप आर्थिक विकास का स्तर उन्नत होने लगता है। विभिन्न आर्थिक विकास के स्तर द्वारा व्यावसायिक संरचना का प्रतिरुपण एवं रूपान्तरण दोनों होता है। किसी देश अथवा प्रदेश के विभिन्न व्यवसायों में कार्यरत जनसंख्या के स्वरूप को व्यावसायिक संरचना की विभिन्न व्यवसायों में कार्यरत जनसंख्या के स्वरूप को व्यावसायिक संरचना की संज्ञा दी जाती है। (रिचईस, 1979) व्यावसायिक संरचना किसी क्षेत्र विशेष को जनसंख्या के रचनात्मक संगठन का द्योतक होती है (चान्दना एवं सिन्दू (1980) गार्नीयर 1978 ने स्वीकार किया है कि कार्यरत जनसंख्या का व्यवसायरत जनसंख्या अपने आर्थिक क्रियाकलापों द्वारा स्वयं तथा अपने आश्रितों को भरण-पोषण करती है। जनसंख्या का आर्थिक पक्ष का प्रतिरूपण उपलब्ध जनसंख्या की व्यावसायिक, स्थिति, कार्य कुशलता, आय एवं आर्थिक स्थानान्तरण जैसी क्रियाओं के आधार पर किया जा सकता है। (प्रसाद, 1995) भौगोलिक परिभाषिक शब्दकोष में (2004) में व्यवसाय की व्याख्या इस प्रकार है- व्यवसाय जीविका की प्राप्ति तथा एक निश्चित सामाजिक स्तर को बनाये रखने के उद्देश्य से व्यक्ति द्वारा अपनायी गयी सतत (अविराम) क्रिया होती है। यह विशिष्ट आर्थिक क्रिया है जिससे कोई व्यक्ति अपनी जीविका अर्जित करता है। अतः सभी आर्थिक क्रियाएं व्यवसाय का अंग होती है। आखेट, पशुचारण, मत्स्यपालन, बनोद्योग, कृषि, खनन, उद्योग परिवहन, सेवाएं आदि प्रमुख मानव व्यवसाय है। इस प्रकार व्यवसाय व्यक्ति के आर्थिक आय का सामान्यतः स्थायी स्रोत होता है और उसके द्वारा व्यक्ति की सामाजिक स्थिति का निर्धारण होता है।‘‘

 

जनसंख्या की व्यावसायिक (ॅवतापदह च्वचनसंजपवद) का विभिन्न व्यवसायों का व्यावसायिक वर्गों में वितरण से है। यहाँ व्यवसाय का अर्थ उन आर्थिक क्रियाओं से है जिनसे व्यक्ति की आय प्राप्त होती है। सम्पूर्ण व्यावसायों (आर्थिक क्रियाओं) को प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक व्यवसायों को जो प्रकृति से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित होते हैं। प्राथमिक व्यवसाय (च्तपउंतल व्बबनचंजपवद) माना जाता है। जैसे- आखेट, मत्स्यपालन, पशुचारण एवं पशुपालन, लकड़ी काटना, जंगली वस्तुओं को एकत्रित करना, खनन कृषि आदि। प्राथमिक उत्पादनों पर आधारित क्रियाओं या व्यवसायों को द्वितीयक व्यवसाय (ैमबवदकंतल व्बबनचंजपवद) कहते हैं। विनिर्माण उद्योग, गृह निर्माण, सड़क निर्माण आदि इसके उदाहरण है। तृतीयक व्यवसाय (ज्मतपजपंतल व्बबनचंजपवद) के अन्तर्गत उन क्रियाओं को सम्मिलित नहीं किया जाता है। जिनके द्वारा प्रत्यक्ष रूप से कोई उत्पादन नहीं होता किन्तु वे परोक्ष रूप से उत्पादन में सहायक होती है। इसके अन्तर्गत परिवहन संचार, व्यापार वाणिज्य तथा अन्यान्य सेवाओं जैसे- शिक्षा, प्रशासन, चिकित्सा, मनोरंजन, प्रतिरक्षा आदि को सम्मिलित किया जाता है। आधुनिक काल में कला साहित्य, विज्ञान, तकनीक, शोध आदि से सम्बद्ध क्रियाओं को व्यवसाय के चतुर्थ वर्ग में रखा जाने लगा है। जिसे चतुर्थक व्यवसाय (फनंजमदतंतल व्बबनचंजपवद) की संज्ञा दी जाती है।

 

तालिका संख्या 01 खजनी विकासखण्ड, जनपद गोरखपुर (0प्र0) में कर्मकारों का विवरण

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49-28

स्रोत: जिला सांख्यिकी पत्रिका (गोरखपुर)

 

खजनी विकास खण्ड की व्यावसायिक संरचना का अध्ययन तालिका को देखने से पता चलता है कि खजनी विकास खण्ड की व्यावसायिक संरचना का अनुपात कई वर्गों के आधार पर विभाजित किया गया है। व्यावसायिक अनुपात से किसी राष्ट्र की सक्रिय तथा निष्क्रिय जनसंख्या का पता चलता है। खजनी विकासखण्ड में कुल कर्मकारों की संख्या 31824 है जो कुल जनसंख्या का मात्र 16.2 प्रतिशत ही है। इसमें भी लगभग दो तिहाई जनसंख्या 60.68 प्रतिशत कृषि कार्य में लगी हुई हैं। इसके अतिरिक्त विकासखण्ड में पारिवारिक उद्योग में लगे लोगों का प्रतिशत कुल मुख्य कर्मकर से 7.8 प्रतिशत ही है। अन्य कर्मकर 10044 है जो कुल मुख्य कर्मकारों का 31.4 प्रतिशत है।

 

व्यावसायिक संरचना के अन्तर्गत खजनी विकासखण्ड की विभिन्न व्यवसायों में रत जनसंख्या का वर्णन निम्नलिखित वर्गों में बाँट कर किया गया है, जो तालिका से स्पष्ट है।

1.  कृषक: कृषक के अन्तर्गत इन लोगों को रखा जाता है, जिनके पास कुछ कुछ खेत है तथा वे कृषि कार्य करके अपनी आजीविका का पालन करते हैं। खजनी विकास खण्ड में स्वयं की जमीन पर खेती कर जीवनयापन करने वाले लोगों की संख्या 9981 है, जो कुल मुख्यकर्मकारों का 31.26 प्रतिशत है, तथा कुल कर्मकारों का 15.25 प्रतिशत है।

 

2.  कृषक मजदूर: कृषक मजदूर या खेतिहर मजदूर के अन्तर्गत ऐसे लोगों को शामिल किया जाता है। जो दूसरों की जमीन पर कार्य करके नियत मजदूरी प्राप्त करते हैं तथा अपना जीवनयापन करते हैं। कुछ खेतिहर मजदूर स्थानीय शषा में हुण्डे पर लेकर दूसरों की जमीन पर खेती करके साल में नियम निर्धारित किया गया अनाज खेत के मालिक को देते हैं। इसके अलावा कुछ कृषक किसान की जमीन पर निर्धारित पैसा देकर रेहन लेते हैं और उस पर खेती करते हैं तथा जब खेत का मालिक पैसा लेता देता है तो उसकी जमीन उसे वापस दे देते हैं। कुछ किसान जमीन को अधिया या बताये पर लेकर उसमें खेती करते हैं तथा पैदा हुए अनाज का आधा भाग खेत के मालिक को दो देते हैं। खजनी विकासखण्ड में देखा जाये तो 9324 कृषक मजदूर है जो कुल मुख्य कर्मकर का 31.42 प्रतिशत है। इन मजदूरों की आर्थिक स्थिति अपेक्षाकृत ठीक नहीं रहती है। कुछ कृषक मजदूरों की काफी दयनीय स्थिति है, जिनके पास रहने के लिए अच्छे मकान नहीं है। कपड़ो, भोजन दवा आदि की कमी है तथा जिनके बच्चे काफी कुपोषित रहते हैं। इन्हें उचित शिक्षा भी नहीं प्राप्त होती है।

 

3.  पारिवारिक उद्योग: किसी भी क्षेत्र के परिवारिक उद्योग में संलग्न जनसंख्या उस क्षेत्र के आर्थिक एवं औद्योगिक विकास का आधार है। इसके अन्तर्गत उस उद्योग को शामिल करते हैं, जो परिवार के मुखिया तथा अन्य सदस्यों द्वारा किया जाता है पारिवारिक उद्योग के अन्तर्गत हथकरघा उद्योग, बुनाई, रंगाई, बढ़ई, लोहार, बीड़ी बनाना, मिट्टी के बर्तन एवं खिलौने बनाना, तेल की पेराई, आटा चक्की, धान कुटना, सिलाई आदि कार्यों को शामिल किया जाता है। कुछ परिवार सिर्फ परिवारिक काम करके ही अपने परिवार का जीवनयापन करते हैं तथा कुछ परिवार में पारिवारिक उद्योग के अलावा आय के अन्य स्रोत भी उपलब्ध हैं।

 

4.  अन्य कर्मकर: अन्य व्यवसाय में संलग्न जनसंख्या के अन्तर्गत उस जनसंख्या को रखते हैं जो कम से कम एक वर्ष से किसी ऐसे आर्थिक व्यवसाय में लगे हैं, जो कृषि या पारिवारिक उद्योग से सम्बन्धित नहीं हैं। इस प्रकार इस वर्ग की विस्तृत सीमा है, जिसके अन्तर्गत सेवा क्षेत्र-जैसे टीचर, डॉक्टर, न्यूज रिपोर्टर, सूचना एवं संचार में कार्यरत कर्मचारी आदि इनके अलावा वाणिज्य एवं व्यापार निर्माण कार्य, खनन कार्य, औद्योगिक कार्य में संलग्न जनसंख्या को रखा जाता है। इस क्षेत्र से प्राप्त आय अपेक्षाकृत अधिक होता है तथा अधिकतर परिवार का जीवनयापन उच्च कोटि का रहता है। खजनी विकासखण्ड में इस वर्ग के अन्तर्गत 10044 जनसंख्या है, जो कुल मुख्य कर्मकर का 31.46 प्रतिशत है, जबकि कुल कर्मकर का 15.95 प्रतिशत ही है।

 

खजनी विकास खण्ड की व्यावसायिक संरचना के क्षेत्रीय स्वरूप को स्पष्ट करने हेतु आर्थिक क्रियाओं के अनुसार पुनः तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है-

1.      प्राथमिक क्षेत्र

2.      द्वितीयक क्षेत्र

3.      तृतीयक क्षेत्र

 

तालिका संख्या 02 विकासखण्ड खजनी की व्यावसायिक संरचना

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31-46

स्रोत: जिला सांख्यिकी पत्रिका एवं स्वयं द्वारा परिगणित

चक्रारेख                       

प्राथमिक क्षेत्र                           218.44

द्वितीय क्षेत्र                                   28.08

तृतीय क्षेत्र                              113.25

 

प्राथमिक क्षेत्र: प्राथमिक व्यवसाय के अन्तर्गत वे सभी लोग आते हैं जो प्रकृति में सीधे कार्य करते हैं। अर्थात् वस्तु को प्रकृति से सीधे प्राप्त करते हैं। उसका कोई रूप परिवर्तन नहीं करते हैं। इसके अन्तर्गत कृषक, कृषक मजदूर, पशुपालक, मत्स्य पालक, खनन कार्य में लगे लोगों को सम्मिलित किया जाता है। खजनी विकास खण्ड में कुल मुख्य कर्मकारों का 60.68 प्रतिशत लोग प्राथमिक क्षेत्र में कार्य करते हैं। अतः यह क्षेत्र एक कृषि प्रधान ग्रामीण क्षेत्र है।

 

द्वितीयक क्षेत्र: द्वितीय व्यवसाय क्षेत्र के अन्तर्गत वे कार्य आते हैं जो प्रकृति से प्राप्त कच्चे माल का परिभाषीकरण करके तैयार माल निकालते हैं इसके अन्तर्गत निम्नलिखित औद्योगिक क्षेत्र है। वस्तु निर्माण, गृह उद्योग, आटो मोबाइल उद्योग, इलेक्ट्रॉनिक उद्योग, इलेक्ट्रिकल उद्योगों आदि। नगरीय क्षेत्र में द्वितीय क्षेत्र के अन्तर्गत अधिक लोग कार्य करते हैं। जबकि ग्रामीण क्षेत्र में क्रय लोग कार्य करते हैं। खजनी विकासखण्ड की तालिका का अध्ययन करने से पता चलता है कि यहाँ बहुत कम लोग द्वितीयक क्षेत्र में कार्य करते हैं, जो कुछ मुख्य कर्मकर का मात्र 7.8 प्रतिशत ही है।

 

तृतीयक क्षेत्र: वे आर्थिक क्रियायें जो प्रत्यक्ष रूप से किसी वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त नहीं होती है, लेकिन विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में परोक्ष रूप से सहायता प्रदान करती है। तृतीयक व्यवसाय में सम्मिलित की जाती है। इनमें प्राथमिक एवं द्वितीयक क्रियाकलाप में लगी सामान्य जनता एवं व्यक्तियों को दी जाने वाली सेवाएं सम्मिलित की जाती है। इनका उत्पादन से प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता है। परिवहन, संचार, वाणिज्य, व्यापार, विभिन्न सेवाएं जैसे- शिक्षा, पशासन, चिकित्सा, मनोरंजन, प्रतिरक्षा आदि क्रियाएं तृतीय व्यवसाय के अन्तर्गत आती हैं। ये उत्पादन एवं उपभोक्ता के मध्य महत्वपूर्ण कणी का कार्य करती हैं। तृतीयक क्रियाओं में संलग्न लोगों को व्हाइट कॉलर श्रमिक कहा जाता है। इसके अन्तर्गत अन्य कर्मकर को रखा जाता है। खजनी विकास खण्ड में अन्य कर्मकर 10044 है, जो कुल मुख्य कर्मकर का 31.46 प्रतिशत है।

 

निष्कर्ष:

खजनी विकासखण्ड में व्यावसायिक संरचना का अध्ययन करने से पता चलता है कि यहाँ आर्थिक विकास को बढ़ाने के लिए विभिन्न व्यवसाय या रोजगार के क्षेत्र को व्यवस्थित ढंग से योजनाबद्ध तरीके से क्रियान्वित करने की आवश्यकता है। यह क्षेत्र एक कृषि प्रधान क्षेत्र है तथा जनसंख्या का बड़ा भाग कृषि पर निर्भर करता है। अतः यहाँ व्यावसायिक कृषि को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। यहाँ कुल मुख्य कर्मकर लगभग 61 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर जीवनयापन करती हैं। अतः सरकार को कृषि पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके अलावा जनसंख्या वृद्धि पर शीघ्र नियंत्रण की आवश्यकता है। जनसंख्या वृद्धि पर यदि नियंत्रण नहीं हुआ तो सभी व्यवस्थायें चाहे वह भौतिक, प्राकृतिक या सामाजिक हो ध्वस्त हो जायेंगी। इसके अलावा यहाँ पर परिवारिक उद्योग में कुल मुख्य कर्मकर का मात्र 7.8 प्रतिशत लोग तथा कुल कर्मकर का मात्र 3.97 प्रतिशत ही जनसंख्या कार्य कर रही है। अतः इस क्षेत्र को विशेष बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इस क्षेत्र में हाथ करघा, उद्योग, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, रंगाई, मिट्टी के खिलौने, वर्तन एवं साज-सज्जा के सामान के प्रयोग को हमें बढ़ावा देना चाहिए तथा विदेशों वस्तुओं की जगह भारती वस्तुओं का प्रयोग करने की आवश्यकता है।

 

सन्दर्भ ग्रन्थ सूचीः

1.       बंसल एस0सी0: भारत का भूगोल, मीनाक्षी प्रकाशन मेरठ।

2.       मौर्य एस0डी0: जनसंख्या भूगोल, शारदा पुस्तक भवन, इलाहाबाद जव चवचनसंजपवद ळमवहतंचीलए ज्ञंसलंदप च्नइसपेीमतेए छमू क्मसीपण् 

3.       राव वी0पी0 एवं त्यागी नूतन (2014): भारत की भौगोलिक समीक्षा, बसुंधरा प्रकाशन गोरखपुर।

4.       जिला जनगणना हस्त पुस्तिका, गोरखपुर (0प्र0)

5.       सांख्यिकी पत्रिका, गोरखपुर (2020)Census of India (2011)

 

 

Received on 12.02.2024         Modified on 19.03.2024

Accepted on 16.04.2024         © A&V Publication all right reserved

Int. J. Ad. Social Sciences. 2024; 12(2):114-119.

DOI: 10.52711/2454-2679.2024.00020