मुजफ्फरनगर काण्ड का हल्द्वानी में प्रभाव

 

दीप जोशी

शोध छात्र (जे0आर0एफ0), इतिहास विभाग, डी0एस0बी0 परिसर नैनीताल, कुमाऊं विष्वविद्यालय

*Corresponding Author E-mail:

 

ABSTRACT:

अपनी विशिष्ट भौगोलिक आर्थिक एवं सांस्कृतिक स्थिति के आधार पर पर्वतीय क्षेत्र के लिए एक पृथक इकाई की मांग स्वतंत्रता पूर्व से ही शुरू हो गई थी यद्यपि प्रारंभ में यह मांग उदारवादी तरीके से की गई जिसमें यहां निवास करने वाले बुद्धिजीवियों वर्गों द्वारा पत्र-पत्रिकाओं की सहायता से ब्रिटिश सरकार की तरफ अपना ध्यान आकर्षित किया। स्वतंत्रता के पश्चात् गठित फजल अली आयोग जो कि देश में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के लिए बनाया गया था ने भी 1955 0 में इस क्षेत्र को पृथक राज्य के रूप में गठित करने की संस्तुति की परंतु राजनीतिक इच्छा की कमी के कारण यह क्षेत्र पृथक राज्य का रूप ले सका। इसके पश्चात् गठित विभिन्न राजनैतिक सामाजिक संगठन द्वारा पृथक राज्य की मांग को तीव्र तरीके से उठाया गया तथा सरकार की ओर अपना ध्यान आकर्षित करने के लिए जुलूस, धरना-प्रदर्शन, विधानसभा संसद का सहारा लिया। 1994 का वर्ष उत्तराखंड आंदोलन के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ क्योंकि इस वर्ष सरकार द्वारा मंडल कमीशन की संस्तुति के आधार पर पिछड़े वर्ग के लिए निर्धारित 27 प्रतिशत का आरक्षण उत्तराखण्ड राज्य पर लागू किया गया जबकि यहां पिछड़े वर्गों की जातियों का अनुपात बहुत कम था। जिसका विरोध संपूर्ण उत्तराखण्ड में होना शुरू हो गया। आरक्षण विरोधी आंदोलन को पृथक राज्य आंदोलन में आत्मसात होने में अधिक समय नहीं लगा। आन्दोलन के दौरान सरकार प्रशासन द्वारा किए गए कृत्यो ने आग में घी का कार्य किया। प्रस्तुत शोध पत्र में इसी आरक्षण विरोधी आन्दोलन के दौरान 2 अक्टूबर 1954 को घटित मुजफ्फरनगर काण्ड के पश्चात् हल्द्वानी में इसके प्रभाव का क्रमबद्ध तरीके से अध्ययन किया गया है। इसके साथ ही नगर के विभिन्न सामाजिक वर्गों मुख्य रूप से महिलाओं छात्राओं की प्रतिक्रिया को ही दिखाया गया है। मुजफ्फरनगर कांड के पश्चात् पुलिस-प्रशासन की भूमिका पर भी प्रकाश डाला गया है।

 

KEYWORDS: उत्तराखण्ड आन्दोलन, मुजफ्फरनगर काण्ड का हल्द्वानी में प्रभाव, छात्र महिलाएं इत्यादि।


 


 

प्रस्तावना -

9 नवंबर सन् 2000 को उत्तराखण्ड राज्य का गठन हुआ पृथक राज्य उत्तराखण्डवासियों की दीर्घकालीन आंदोलन का प्रयास रहा उत्तराखण्ड क्षेत्र के वासियों ने पृथक राज्य को प्राप्त करने के लिए जो त्रासदा पीड़ा, अन्याय, अनाचार और कदाचार झेला है। वह अन्य कहीं भी देखने को नहीं मिलता है। मानवता को शर्मसार करने के लिए सभी तरह के हथकड़े पुलिस प्रशासन की तरफ से अपने गए। परंतु इसके बावजूद उत्तराखंड आंदोलन ही दुनिया का ऐसा दीर्घकालीन अहिंसक जन आंदोलन रहा जिसमें सही मायने में गांधीवादी सिद्धांतों को वैचारिक रूप से ही नहीं बल्कि भावनात्मक रूप से भी आत्मसात किया गया। गरीबी, विषमता, अभाव शोषण से दबे उत्तराखंड क्षेत्र के साधारण जन मानस ने जिस अभूतपूर्व धैर्य, आत्म संयम, अनुशासन हौसले से उत्तराखण्ड आंदोलन को अहिंसक रूप में चलाया उसका उदाहरण इतिहास में दूसरा कहीं नही मिलता। पृथक राज्य की मांग के दौरान खटीमा, मसूरी, मुजफ्फरनगर, श्रीयंत्र टापू जैसे काण्डो का प्रभाव उत्तराखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों में देखा गया।

 

अध्ययन का क्षेत्र -

हल्द्वानी नगर समुद्र तट से 437 मीटर ऊंचाई तथा 29˚.12ʹ.41ʺ उत्तरी अक्षांश तथा 79˚.34ʹ.17ʺ पूर्वी देशांतर पर गौला नदी के दाहिने तट पर स्थित है। भौगोलिक तथा प्राकृतिक संरचना के आधार पर हल्द्वानी नगर ब्राह्य हिमालय श्रृंखलाओं के निम्न छोर के पश्चात् आने वाले तराई भाबर के क्षेत्र में स्थित है। समतल होने नदियों की उपलब्धता के कारण यह क्षेत्र अत्यधिक उपजाऊ भूमि के रूप में स्थानांतरित है।

 

अनुसंधान प्रविधि -

प्रस्तुत शोध पत्र में वर्णनात्मक ऐतिहासिक शोध प्रविधि का उपयोग किया गया तथा प्राथमिक स्त्रोत के रूप में साक्षात्कार, पत्र, पत्रिकाएं, अखबारों के प्रयोग के साथ ही कुछ पुस्तकों का उपयोग द्वितीयक स्त्रोत के रूप में किया गया है।

 

उद्देष्य -

प्रस्तुत शोध पत्र का मुख्य उद्देष्य मुजफ्फरनगर काण्ड के उपरान्त नगर में घटित विभिन्न घटनाओं का क्रमबद्ध तरीके से अध्ययन के साथ-साथ इसका घटना का अवलोकन हल्द्वानी के संदर्भ में किया गया है।

 

उत्तराखण्ड आन्दोलन -

उपेक्षा समस्याओं से त्रस्त पहाड़ के लोगों ने अपनी अलगराजनीतिक सांस्कृतिक पहचानको मान्यता दिलाने के लिए पहाड़ के लोगों में संघर्ष की सुगबुगाहट स्वतंत्रता पूर्व से ही शुरू हो गई थी। इसी संदर्भ में एक प्रयास कुमाऊं के अभिजात वर्ग ने इंग्लैंड भारत की महारानी को जून सन् 1897 में लिखे एक बधाई पत्र में अपनी राजनीतिक सांस्कृतिक पृथक पहचान को मान्यता दिलाने की अभिव्यक्ति के रूप में किया था1 यद्यपि इसके पश्चात् भी विभिन्न मंचों द्वारा पर्वतीय क्षेत्र के लिए अलग प्रशासनिक इकाई बनाने की मांग उठती रही। स्वतंत्रता के पश्चात् पृथक राज्य का स्वप्न संजोकर यहां के जन प्रतिनिधियों ने राज्य प्राप्ति के लिए प्रयासों को और भी तीव्र कर दिया। सन् 1950 में साम्यवादी नेता पी0सी0 जोशी ने कुमाऊं का दौरा कर पहाड़ की दुर्दशा देख कांगड़ा से लेकर अल्मोड़ा तक एक वृहद हिमालय राज्य की स्थापना के लिए पर्वतीय जन विकास समिति का गठन किया।2

 

उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर सर्वप्रथम गिरफ्तारियां दिल्ली के प्रवासी संगठनों ने सन् 1968 में दी। जिसका नेतृत्व ऋषि वल्लभ सुन्द्रियाल द्वारा किया गया। सन् 1969 में पी0 सी0 जोशी द्वारा पर्वतीय लोगों को एक साथ लाने के उद्देश्य से 1970 में एक ड्राफ्ट मेनिफेस्टो तैयार किया गया जिसमें कुमाऊं के हर वर्गों ने हस्ताक्षर किए 10 अक्टूबर 1970 को इसका सम्मेलन रैमजे इण्टर कॉलेज में आयोजित किया गया जहां पर गढ़वाल के प्रतिनिधियों ने भी इसमें भाग लिया। तत्पश्चात् इसका नाम बदलकरपर्वतीय संकल्पकर दिया गया3 इसके पश्चात् सन् 1979 में 24 25 जुलाई को मसूरी में पर्वतीय जन विकास सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमें यह राय बनी कि जब तक उत्तराखंड के लोग राजनीतिक संगठन के रूप में एकजुट नहीं होते तब तक उनका शोषण जारी रहेगा। जिसके परिणामस्वरुप पर्वतीय क्षेत्र के पहले राजनीतिक संगठन के रूप में उत्तराखण्ड क्रांति दल नामक क्षेत्रीय संगठन उभर कर आया जिसने उत्तराखण्ड राज्य के अस्तित्व में आने तक  एक सूत्री नारे को लेकर संघर्ष जारी रखा4 सन् 1993 की विधान सभा के चुनावो में मुलायम सिंह और काशीराम की बहुजन समाज पार्टी ने सफलता पाई और कांग्रेस की सहायता से मुलायम सिंह ने अपनी सरकार बनाई। सत्ता में आते ही मुलायम सिंह यादव ने उत्तराखण्ड राज्य मुद्दे हेतु रमा शंकर कौशिक की अध्यक्षता में एक कैबिनेट कमेटी नियुक्त की जिसका कार्य उत्तराखण्ड राज्य की संरचना और मुख्य रूप से राजधानी तय करना था। परंतु केंद्र द्वारा इस दिशा में कोई सार्थक प्रयास नहीं किया गया।

 

यद्यपि उत्तराखण्ड आंदोलन का रूप मुलायम सिंह सरकार के एक आदेश के बाद धारण कर लिया जिसमें सरकारी नौकरियों और शिक्षा समस्याओं में अन्य पिछड़ी जातियों (0बी0सी0) के लिए 27 आरक्षण की व्यवस्था लागू कर दी। अतः पहाड़ के लोगों ने जब अपने अधिकारों का हनन होते हुए पाया। तो उन्होंने लामबंद होकर पृथक राज्य मांग को लेकर संघर्ष आरंभ कर दिया। इस प्रकार सन् 1994 में उत्तराखंड राज्य मांग ने अपना तीव्र जोर पकड़ा जो उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन के इतिहास में अगस्त क्रांति आश्रित हुई।5

 

मुजफ्फरनगर काण्ड -

2 अक्टूबर सन् 1994 की रैली के लिए उत्तराखण्ड आंदोलन संचालन समिति उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति को इसकी स्वीकृति मिल गई इसके बावजूद आंदोलनकारियों पर पुलिस द्वारा जबरदस्त लाठी चार्ज वह फायरिंग की गई जिससे कई लोग मारे गये। इस घटना से पूर्व 2 अक्टूबर को दिल्ली रैली में भाग लेने जा रहे धीरे-धीरे गुटों में रवाना कुछ आंदोलनकारी दिल्ली पहुंचने लगे थे। इन्हें रोकने के लिए पुलिस ने पूर्ण रूप से घेराबंदी कर दी। जिस कारण काफी लोगों को वापस आने पर पुलिस ने मजबूर कर दिया। इसी बीच कुछ पुलिसकर्मियों ने महिलाओं से भरी एक बस को अपने कब्जे में कर कुछ महिलाओं को उतार कर उनकी लाठी, डण्डो से पिटाई की तथा बस को किसी अज्ञात स्थान पर ले जाने का प्रयास करने लगे परंतु वो ऐसा कर पाये6 रात्रि लगभग 11 बजे रामपुर तिराहे पहुंची लगभग 4000 लोगों की बसों को रोका गया तथा इसके पश्चात् हिंसा वह बर्बरता का जो तांडव पुलिस ने किया उससे पुलिस प्रशासन के इतिहास में एक काला धब्बा लग गया। इस गोली कांड में सबसे ज्यादा प्रभावित महिलाये हुई वे मानसिक तथा शारीरिक रूप से टूट गयी। यह पूरा गोलीकाण्ड 1 अक्टूबर रात्रि के 11 बजे शुरू हुआ तथा जो प्रातः तीन-चार बजे तक 2 अक्टूबर तक चला जिस दिन अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी का जन्म दिवस था उसी दिन जो लोग गांधी जी के पद चिन्हों पर चल कर अपनी जायज मांग के लिए जा रहे थे। उन पर पुलिस प्रशासन ने हिंसा का तांडव किया7

 

हल्द्वानी में प्रभाव -

1 अक्टूबर को हल्द्वानी शहर की मातृशक्ति, छात्रशक्ति विभिन्न कर्मचारी संगठनों ने दिल्ली जाने के लिए बसों के अस्थाई परमिट देने की मांग को लेकर प्रातः 7 बजे से ही मुख्य मार्ग पर जगह-जगह जाम लगा दिया। तथा थाने से नगरपालिका तक के क्षेत्र में कर्फ्यू घोषित कर दिया। इस दौरान प्रातः करीब 11 बजे रामसिंह कैड़ा, तरुण पंत, सुरेंद्र सिंह नेगी दिनेश कैड़ा, प्रकाश, तारा जोशी, नवल किशोर, दिनेश भट्ट सहित कुछ छात्र नेता कालाढूंगी चौराहे पर स्थित श्री कालू सिद्ध बाबा के मंदिर परिसर पर स्थित पीपल के वृक्ष पर चढ़ गये और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करने लगे एवं बसो के परमिट देने पर पेड़ से छलांग लगाकर आत्महत्या की धमकी देने लगे छात्रों को प्रशासन द्वारा बहुत समझाने की कोशिश के बावजूद छात्र नेता अपनी मांग पर अडिग रहे। इसी बीच तारा जोशी नाम के एक छात्र नेता ने पीपल के पेड़ से नीचे छलांग लगा दी उधर करीब 3 बजे बी00 तृतीय वर्ष के छात्र भरत दीक्षित ने एस0डी0एम0 कार्यालय के आगे अपने ऊपर पेट्रोल छिड़कर आग लगाने का प्रयास किया8 2 अक्टूबर को प्रदेश सरकार की नीति के खिलाफ सैकड़ो की संख्या में मातृशक्ति ने सांकेतिक उपवास रखा। धरना स्थल पर प्रातः काल से ही महिलाएं ढोलक मंजीरो के साथ ही एकत्रित होना शुरू हो गई थी इस दौरान संपूर्ण क्षेत्र ʺरघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीतारामʺ से गूंजता रहा शाम को उपवास स्थल पर एक सभा आयोजित की गई। जिसमें आंदोलन को और उग्र बनाने की रणनीति तय की गई। इसके साथ ही नगर के कई स्थानों पर छात्रों ने प्रदर्शन कर प्रदेश सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और बरेली, रोड नैनीताल रोड तथा रामपुर रोड पर चक्का जाम का प्रयास किया9 2 अक्टूबर को हुए मुजफ्फरनगर काण्ड की खबर फैलते ही सम्पूर्ण उत्तराखण्ड आक्रोषित हो गया। जिसके फलस्वरुप 3 अक्टूबर सन्् 1994 से सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में पुलिस तथा आन्दोलनकारियों के मध्य तीखी झड़पे शुरू हो गयी तथा कई क्षेत्रों में कर्फ्यू लगा दिया गया। जिसका प्रभाव हल्द्वानी में भी देखने को मिला। शहर में उत्तराखण्ड बंद के दौरान नगर ग्रामीण क्षेत्रो के सम्पूर्ण बाजार बंद रहे तथा यातायात के नाम पर नगर एवं क्षेत्र में दो पहिया वाहन भी नहीं चल सके क्षेत्र में जगह-जगह आगजनी प्रदर्शन, जुलूस चक्का जाम किया गया10 इस दौरान प्रशासन द्वारा कड़ी सुरक्षा के बीच मुखानी पुलिस चौकी को खाली कराने के कुछ समय पश्चात् ही भीड़ ने चौकी में आग लगा दी जिससे चौकी के दरवाजे तथा लकड़ी का कुछ सामान जलकर नष्ट हो गया इससे पूर्व करीब 1 बजे जब छात्रों का एक समूह मुखानी पुलिस चौकी के सम्मुख शांतिपूर्वक अपना विरोध प्रकट कर रहा था तभी चौकी में तैनात एक सिपाही ने छात्रों पर फायरिंग कर दी जिसमें अतुल गुप्ता जंाघ में गोली लगने से वहीं गिर पड़ा जबकि एक अन्य छात्र अजय कनियाल दाएं हाथ में गोली लगने से घायल हो गया इस घटना को लेकर पूरे नगर में आक्रोश की लहर दौड़ गई और लोगों ने पुलिस प्रशासनिक अधिकारियों के समक्ष अपना रोष प्रकट किया। परंतु पुलिस द्वारा इस घटना के पश्चात् आन्दोलनकारियो पर बेरहमी से लाठी चार्ज किया गया तथा जिलाधिकारी शिविर का कार्यालय के बाहर शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रही महिलाओं पर महिला पुलिस अन्य पुलिस कर्मियों द्वारा बेरहमी से लाठीचार्ज किया गया। जिसमें लगभग तीन दर्जन महिलाएं घायल हो गई इनमें श्रीमती इन्दु पांडे, सविता कुंवर, शांति कुंवर, गोविंन्दी भट्ट, कमला उप्रेती, हेमा जोशी, पार्वती देवी, इन्दु देवी थी11 इस घटना के विरोध में नगरवासियों द्वारा एचएमटी कारखाने से एक जुलूस निकाला गया जो शीशमहल आते-आते एक विशाल जन सैलाब में परिवर्तित हो गया। जिसमें मुख्य रूप से कर्मचारी, व्यापारी छात्र शामिल थे। जुलूस संपूर्ण नगर में घूमता हुआ रामलीला मैदान में एक शोकसभा में परिवर्तित हो गया। जहां मुजफ्फरनगर में मारे गए दर्जनों उत्तराखंडियों की मौत पर 2 मिनट का मौन रख उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। इस बीच शहर की मातृशक्ति द्वारा भी एक विशाल जुलूस निकाला गया तथा थाने का घेराव प्रदर्शन किया गया इस दौरान पुलिस, आरएएफ पीएसी के जवानों ने महिलाओं पर लाठी चार्ज किया जिसमें लगभग तीन दर्जन महिलाएं घायल हो गयी आक्रोशित आन्दोलनकारियों ने रेल सेवा भी ठप्प कर दी। हल्द्वानी से काठगोदाम जा रही हावड़ा एक्सप्रेस रेलगाड़ी को आन्दोलनकारियों ने शीशमहल के समीप लाल झण्डी दिखाकर रोक दिया12 4 अक्टूबर को नगर की महिलाओं ने कर्फ्यू का उल्लंघन कर जुलूस निकाला धरना दिया तथा सड़कों पर कई जगह अवरोध लगाकर मार्ग अवरुद्ध कर दिया13 6 अक्टूबर को दोपहर लगभग 12 बजे मातृशक्ति संगठन के तत्वावधान में पॉलिषीट, शीशमहल, आवास विकास जगदम्बा नगर की सैकड़ो महिलाओं ने हाथों में पूजा की थाली लेकर जुलूस निकाला14 समूचे उत्तराखण्ड में चल रहे जन आन्दोलन को गति प्रदान करने के लिए नगर के छात्रों युवाओं द्वारा पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच में एक बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में 32 संसदीय संयोजक मंडल का गठन किया गया। बैठक में मनोज तिवारी को वरिष्ठ संयोजक दिनेश जायसवाल, गजराज बिष्ट, मनोज कुमार, सुधीर कुमार, नरेन्द्र कार्की, गोविन्द सिंह बोरा, गगन पाण्डे, दिनेश थुवाल, नीरज पाण्डे, दीपक पाण्डे, धमेन्द्र बिष्ट को कार्यकारिणी सदस्य चुना गया15 मोहन पाठक जी के अनुसार 15 अक्टूबर को छात्र अभिभावक संघर्ष समिति के तत्वावधान में एक ऐतिहासिक रैली का आयोजन किया गया जिसमें विभिन्न वर्गों के लगभग 50 हजार से अधिक लोग उपस्थित थे। रैली की शुरुआत नगर के पर्वतीय उत्थान मंच से हुई। जिसमें सबसे आगे छात्र, अभिभावक संघर्ष समिति का बैनर था। उसके पीछे बार एसोसियेषन तथा मातृशक्ति संगठन के कई बैनर थे। रैली में सर्वाधिक भूमिका मातृशक्ति की रही। रैली मुख्य रूप से कालाढूंगी चौराहे से होते हुए रेलवे बाजार तिकोनिया रोड डिग्री कॉलेज से नवाबी रोड पुनः कालाढूंगी रोड होते हुए उत्थान मंच में वापस गयी। रैली में एक 8 वर्षीय बालक जीतू दुर्गापाल आकर्षण का केंद्र बना रहा। जिसने पूरे शरीर सिर पर पृथक राज्य की मांग हमारा उत्तराखण्ड के नोट लिखकर बांधे थे। रैली में मातृशक्ति का नेतृत्व मुख्य रूप से नीमा अग्रवाल, खीमा बिष्ट, भगवती बिष्ट, बिना चौहान, मोहनी रावत, पूनम भट्ट रेनु जोशी ने किया। बार एसोसियेषन का नेतृत्व डा0 महेंद्र सिंह पाल, दीवान सिंह, राम सिंह बसेड़ा, ममता पलडिया तथा पूर्व सैनिकों में कर्नल कार्की, कर्नल भगवान सिंह मेहरा, सूबेदार आन सिंह ने किया जबकि कर्मचारी शिक्षक संघर्ष समिति का नेतृत्व डी0एस0खनी, मनोहर मिश्रा, एन0 के0 कपिल, चिन्तामणी सती तथा उत्तराखण्ड जन चेतना मंच का नेतृत्व बलवंत बोरा, सुरेंद्र बर्गली, ललित पंत, विजय सिजवाली, जगदीश महरा हरेंद्र बोरा ने किया। छात्र अभिभावक संघर्ष समिति का नेतृत्व एन0 सी0 तिवारी, राजेंद्र सिंह बिष्ट, हरीश चन्द्र पंत, कैलाश चंन्द्र पंत, हुकुम सिंह कुंवर, महेश शर्मा, ललित जोशी, जगमोहन बगड़वाल, मोहन पाठक ने किया16

 

18 अक्टूबर को मातृशक्ति संगठन के नेतृत्व में एक विशाल जुलूस निकाल कर प्रदर्शन किया गया। जुलूस में दर्जनों क्षेत्रो की महिलाये हाथों में अलग-अलग बैनर लिए हुई थी जिसमें मुख्य रूप से शीशमहल, नवाबी रोड, हीरानगर, गौलापार, 0ेके0 पुरम, आनन्द बाग, आदर्श नगर बड़ी मुखानी, तल्ली हल्द्वानी क्षेत्र की महिलाये सम्मिलित थी। जुलूस के दौरान महिलाओं ने मुलायम तेरे राज में, नारी लग गयी दांव में। नारे लगाये सभा को संबोधित करते हुये नीमा अग्रवाल ने कहा कि मुजफ्फरनगर में महिलाओं के अपमान को मातृशक्ति कभी भुला नहीं सकती है। तथा आवश्यक पड़ने पर महिलाओं से हथियार उठाकर आंदोलन में कूदने का आह्वान करते हुए महिषासुर रूपी नेताओं का वध कर देने को कहा। इसके पश्चात् कवियत्री पूनम भट्ट ने मुलायम एवं राव सरकार पर प्रहार करते हुए कविता पढ़ी -

वे कत्ल भी करते है।

तो चर्चे नहीं होते।।

हम आह भी भरते है।

तो हो जाते है बदनाम।।

तुमन दिये खून के आंसू।

और दिये सिसकी के सागर।।

दर्दनाक हत्यारे कराकें।

तुम हसते हम रोये तड़पकर17

 

25 अक्टूबर को पृथक राज्य के समर्थन में संयुक्त संघर्ष समिति ग्रामीण क्षेत्र द्वारा एक विशाल जुलूस निकाला गया। जिसमें आनन्दपुर, देवलचौड़, पंचायतघर आदि गांवो के लोग शामिल थे। जुलूस एच0 एन0 विद्यालय हल्द्वानी से प्रारम्भ होते हुए मीरामार्ग, नया बाजार, रेलवे बाजार स्टेशन रोड प्रेम टाकिज से होते हुए जिलाधिकारी कार्यालय के सामने पहुंचा जहां पर नगर मजिस्ट्रेट के माध्यम से राष्ट्रपति ज्ञापन प्रेषित किया गया जिसमें प्रदेश सरकार को शीघ्र ही बर्खास्त करने की मांग की गयी जुलूस के दौरान लोग जनजन ने ललकारा है उत्तराखण्ड हमारा है। गांधी तेरे देश में गुण्डे नेताओं के भेष में। तथा लाठी गोली नारी का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान आदि अनेक नारे लगा रहे थे। उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति द्वारा मुजफ्फरनगर काण्ड के दोषियों को सजा पृथक राज्य की मांग को लेकर जेल भरो आन्दोलन किया गया जिसमें लगभग 112 आन्दोलनकारियों ने गिरफ्तारिया दी। इनमें मुख्य रूप से डा0 महेंन्द्र सिंह पाल, दीवान सिंह बिष्ट, नित्यानन्द भट्ट, सुरेश परिहार, मान सिंह पाल, दौलत सिंह कार्की, भूपाल सिंह बिष्ट, राम सिंह कैड़ा तथा महिला आलम आन्दोलनकारियों में मुख्य रूप से श्रीमती सुमन दुर्गापाल, मोहनी रावत, हंसी देवी, बसंती देवी, विमा लोहनी, चम्पा पंत अदि थी18 मुजफ्फरनगर काण्ड में महिलाओं के साथ हुए दुराचार अत्याचार के विरोध में छात्र अभिभावक संघर्ष समिति के आवाहन पर नगर की मात्रृशक्ति द्वारा एक दिवसीय धरना देकर नारी सम्मान दिवस मनाया गया19 11 दिसंबर को महिला संघर्ष मोर्चा काठगोदाम द्वारा आहूत बैठक में उत्तराखण्ड राज्य की प्राप्ति तक सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में छात्र संघ के चुनाव समेत किसी भी तरह के चुनाव होने का निर्णय लिया गया। संयुक्त बैठक की अध्यक्षता डा0 उमा भट्ट संचालन विभा लोहनी ने किया। बैठक में मुख्य रूप से खटीमा से आयी कु0 दीपा पाठक, भगवती देवी, नैनीताल की डा0 उमा भट्ट, मुन्नी तिवारी, सुसीला सिंह, रामनगर की धनेष्वरी घिल्डियाल, रामगढ़ की दुर्गा देवी, काठगोदाम की विभा लोहनी, सावित्री सुयाल, हल्द्वानी की किरन पाण्डे, नीमा अग्रवाल, कमलेश भट्ट, मीना जाग्गी, सुमन बोरा ने अपने विचार व्यक्त किये20

 

निष्कर्ष-

उपरोक्त साक्ष्यो के आधार पर यह परिलक्षित होता है कि 2 अक्टूबर 1994 की घटना के पश्चात आरक्षण विरोधी आंदोलन ने विकराल रूप धारण कर लिया जिसकी लपेट में संपूर्ण हल्द्वानी नगर गया तथा यह आंदोलन पृथक राज्य में परिवर्तित हो गया रामपुर तिराह में महिलाओं के साथ हुए अनाचार अमानवीय घटना के बाद संपूर्ण नगर आक्रोषित हो उठा जगह-जगह धरना प्रदर्शन रैलिया विभिन्न दलों संगठनों के माध्यम से ज्ञापन, पत्र, केंद्र सरकार को भेजे जाते रहे। जिसमें इस काण्ड को निष्पक्ष जांच के साथ-साथ आरोपियों को दंडित करने की मांग करी गयी। अतः यह कहा जा सकता है कि इस घटना के उपरान्त समाज का हर एक वर्ग इस आन्दोलन में सम्मिलित हो गया तथा उत्तराखण्ड आन्दोलन ने एक वृहद जनान्दोलन का रूप धारण कर लिया जिससे समाज का कोई भी वर्ग अछूता नहीं रहा।

 

सन्दर्भ ग्रन्थ

1   भट्ट त्रिलोक चन्द्र, पृथक राज्य आन्दोलन का ऐतिहासिक दस्तावेज तक्षशिला प्रकाशन नई दिल्ली 2000 पृष्ठ संख्या 22

2   डिमरी अर्चना, उत्तराखण्ड आन्दोलन अहिंसात्मक जनान्दोलन, समय साक्ष्य प्रकाशन, देहरादूनः2020 पृष्ठ संख्या 128-129

3   उक्त पृष्ठ संख्या 131

4   उक्त पृष्ठ संख्या 132

5   उक्त पृष्ठ संख्या 135

6   उक्त पृष्ठ संख्या 155

7   साक्षात्कार: कुंवर हुकुम सिंह

8   उत्तर उजाला 2 अक्टूबर 1994 मुख्य पृष्ठ

9   उत्तर उजाला 3 अक्टूबर 1994 पृष्ठ संख्या 7

10  डिमरी अर्चना, उत्तराखण्ड आन्दोलन अहिंसात्मक जनान्दोलन, समय साक्ष्य प्रकाशन, देहरादून: 2020 पृष्ठ संख्या 161

11  अमर उजाला 4 अक्टूबर 1994 मुख्य पृष्ठ

12  उत्तर उजाला 4 अक्टूबर 1994 पृष्ठ संख्या 8

13  उत्तर उजाला 5 अक्टूबर 1994 पृष्ठ संख्या 8

14  उत्तर उजाला 7 अक्टूबर 1994 पृष्ठ संख्या 8

15  साक्षात्कार: बग्डवाल खड्क सिंह

16  साक्षात्कार: पाठक मोहन

17  उत्तर उजाला 19 अक्टूबर 1994 पृष्ठ संख्या 8

18  उत्तर उजाला 26 अक्टूबर 1994 पृष्ठ संख्या 8

19  उत्तर उजाला 09 नवम्बर 1994 पृष्ठ संख्या 8

20  उत्तर उजाला 12 दिसम्बर 1994 पृष्ठ संख्या 8

 

 

 

Received on 27.03.2024         Modified on 17.04.2024

Accepted on 02.05.2024         © A&V Publication all right reserved

Int. J. Ad. Social Sciences. 2024; 12(2):107-113.

DOI: 10.52711/2454-2679.2024.00019