कार्यकारी महिलाओं में व्यवसायिक तनाव का अध्ययन

(रीवा शहर के विशेष संदर्भ में)

 

डॉ. शाहेदा सिद्दीक़ी1, सीमा पटेल2

1प्राध्यापक (समाजसाास्त्र), शास. ठाकुर रणमत सिंह (स्वशासी), रीवा, .प्र.

2शोधाथी (समाजशास्त्र), शास. ठाकुर रणमत सिंह (स्वशासी), रीवा, .प्र.

*Corresponding Author E-mail:

 

ABSTRACT:

किसी भी उन्नत राष्ट्र की प्रगति के लिये आवष्यक हैं कि उस राष्ट्र के लोग पुरूष एवं स्त्री दोनों ही षिक्षित हों। प्रायः हमारे देष में यह धारणा है कि षिक्षा का अधिकार एवं उपयोग केवल पुरूषों तक ही सीमित हैं स्त्रियों को केवल कामकाजी महिला एवं बच्चों को जन्म देने वाली मषीन से ज्यादा कुछ नहीं आंका जाता था। परन्तु अब आधुनिक भारत मंे धारणा बदल गयी हैं अब प्रत्येक परिवार की महिला को षिक्षा ग्रहण करने के लिये भी विभिन्न षिक्षालयों में भेजा जाने लगा हैं आधुनिक समय मंे जहाँ शिक्षा के विकास मंे नारी ने कदम रखा वहीं अन्य प्रक्रियाऐं जैसे-औद्योगीकरण, नगरीकरण, पश्चिमीकरण, आधुनिकीकरण, लौकिकीकरण, भौतिकवादी विचारधारा एवं आर्थिक स्वतंत्रता आदि ने नारी को परम्पराबद्ध बंधनों से मुक्त करके व्यावसायिक क्षेत्र में ला दिया है, परिणामस्वरूप महिलाओं के लिए विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसर खुले हैं तथा महिलायें परम्परागत धारणाओं, मूल्यों एवं मान्यताओं को तोड कर श्रम बाजार में अपनी क्षमता एवं योग्यता के आधार पर अपना स्थान निर्धारित कर रही है।

 

व्यवसायिक तनाव चिंता महिलाओं में आज एक विषेष समस्या बनकर उभर रही है। राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार महिलाओं में पुरूषों कि तुलना में उच्च व्यवसायिक तनाव चिंता का स्तर पाया गया है। 60 प्रतिषत बिमारियों का कारण नौकरी से संबंधित तनाव चिंता है। अतः यदि कामकाजी महिलाओं को उनके व्यवसायिक तनाव एवं चिंता का ज्ञान हो तो कुछ हद तक उन्हें इससे उत्पन्न प्रभावों से बचाया जा सकता है। अतः प्रस्तुत शोध का मुख्य उद्देष्य कामकाजी महिलाओं में व्यावसायिक तनाव चिंता को उत्पन्न करने वाले कारकों पर प्रकाश डालना है। जिससे वह अपने तनाव चिंता को कम कर या दूर कर स्वास्थ्यप्रद वातावरण में अपनी कार्यक्षमता को बढ़ाकर कार्य कर सकने में सक्षम हो सकती हैं। अतः प्रस्तुत शोध प्रबंध ‘‘सतना शहर कार्यकारी महिलाओं में व्यावसायिक तनाव का अध्ययन’’ को करने हेतु सतना शहर के विभिन्न संस्थानों में कार्यरत 100 महिलाओं का चयन उद्देष्य परक विधि द्वारा किया गया। निजी संस्थानों में कार्यरत महिला कर्मचारियों में व्यावसायिक तनाव, शासकीय संस्थानों में कार्यरत महिला कर्मचारियों में व्यावसायिक तनाव की अपेक्षा तुलनात्मक रूप से अधिक होता हैं। निजी संस्थनों में कार्यरत महिला कर्मचारियों में कार्य चिंता, शासकीय संस्थानों में कार्यरत महिला कर्मचारियों में कार्य चिंता की अपेक्षा तुलनात्मक रूप से अधिक होती हैं।

 

KEYWORDS: कार्यकारी महिलाएं, व्यवसायिक तनाव, पारिवारिक एवं सामाजिक स्थिति।


 


 

प्रस्तावना -

आज की आर्थिक कठिनाईयों की वजह से विवाहित महिलाओं द्वारा नौकरी करने से सामाजिक दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आया है अब अधिकांश पति चाहते हैं कि उनकी पत्नियां भी नौकरी करें। वर्तमान की कमरतोड़ मँहगाई और आधुनिकता की दौड़ में कार्यकारी महिलाओं की स्थिति दो नांव में एक साथ पैर रखने के समान है जिसका संतुलन बनाए रखने के लिए महिलायें निरंतर प्रयत्नशील हैं। अतः शिक्षिकाओं के लिए परिवार ओर नौकरी का सही संतुलन जोखिम भरी चुनौती है जिसे उसने हसकर स्वीकारा ओर सफलता के साथ निभा रही हैं ‘‘ऊषा मल्होत्रा के अनुसार ‘‘घर और बाहर का संतुलन आवश्यक है’’ इसमें दो राय नहीं हैं कि वर्तमान भौतिकवादी एवं सामाजिक परिवर्तन के परिणामस्वरूप महिलाओं की स्थिति में काफी परिवर्तन आया हैं इस परिवर्तन में संतुलन बनाए रखने के लिए महिलाओं ने दोहरी भूमिका स्वीकारी हैं चाहे इस दोहरी भूमिका के कारण महिलाओं को किन्हीं भी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता हो, किन्तु फिर भी वह कार्यकारी होना ही पसंद करती हैं, क्योंकि आज सामाजिक जीवन में जो क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं उससे लोगों का जीवन स्त़र बढ़ा है खान-पान, रहन-सहन, पहनावा जीवन शैली बदली है, ओर मानसिक सोच में भी परिवर्तन आया है, आवश्यकताऐं भी बढ़ी हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पुरूष के साथ महिलाओं का कार्यकारी होना अत्यंत आवश्यक हो जाता है।

 

हमारा समाज मूल रूप से पुरूष प्रधान रहा है। पहले महिलाओं के पास किसी भी प्रकार की स्वतंत्रता होने के कारण उसकी सामाजिक पारिवारिक स्थिति एक पराश्रित से अधिक नहीं थी। जिसे हर कदम पर एक पुरूष के सहारे की जरूरत होती थी। वैसे तो आजादी के बाद से ही महिला उत्थान के उद्देश्य से विभिन्न प्रयास किये जाते रहें है। लेकिन पिछले कुछ वर्षो में महिला सशक्तिकरण की कार्य में तेजी आयी है। इन्हीं प्रयासों के परिणाम स्वरूप महिलाओं के आत्म विश्वास में बढ़ोत्तरी हुयी है। वे किसी भी चुनौती को स्वीकार करने के लिए खुद को तैयार करने लगी है। एक ओर जहॉ केन्द्र राज्यों की सरकारें महिला उत्थान की नई-नई योजनायें बनाने लगीं है। वहीं कई गैर सरकारी संगठन भी उनके अधिकारों के लिये उनकी आवाज बुलन्द करने लगें है। महिला में ऐसी प्रबल भावना को उजागर करने का प्रयास भी किया जा रहा है, कि वह अपने अन्दर छिपी की ताकत को सामने लाकर बिना किसी सहारे के आने वाली हर चुनौती का सामना कर सकें।

 

सृष्टि की उत्पत्ति एवं सभ्यता के विकास में महिलाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। पुराणों के अनुसार चाहे धर्म की रक्षा हो या उसकी पुर्नस्थापना इन सभी कार्यो को आदि शक्ति मॉ जगदम्बा ने ही पूर्ण किया है। सीता, सावित्री के धर्मपालन को आज भी आदर्श के रूप में समाज में माना जाता है। रानी लक्ष्मीबाई, मदरटेरेसा के वीरता बलिदान तथा सेवा की मिशालें आज भी हमारे जीवन को एक दिशा प्रदान करती है।महिला सशक्तीकरण से तात्पर्य एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया से हैं जिसमें महिलाओं के लिए सर्वसम्पन्न और विकसित होने हेतु संभावनाओं के द्वारा खुले नए विकल्प तैयार हों। महिलाएँ समाज के लगभग आधे भाग का प्रतिनिधित्व करती हैं।

 

महिलाए कई रूपों में जीवन व्यतीत करते हुए एक सभ्य एवम् सुसंस्कृत समाज की निर्माण प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वह कभी बेटी के रूप में कभी बहन के रूप में तो कभी पत्नी एवम् प्रेमिका के रूप में कभी मॉ के रूप में समाज को विकसित एवं परिमार्जित करने का अथक प्रयास करती रहती है।

 

शासकीय और अशासकीय संस्थानों में सेवारत विवाहित तथा अविवाहित महिलाएं सम्मिलित हैं। अध्ययन के दौरान इन महिलाओं में शोधार्थी को गहरे कर्तव्य बोध और मातृत्व के दर्शन हुए हैं, अध्ययन में पाया कि कार्यकारी महिलाएं अन्य गृहस्थ महिलाओं से कहीं अधिक अपने शिशुओं के पालन पोषण में सफल एवं समर्थ हैं। इसके साथ ही अपने दायित्वों के निर्वाह में सजग एवं जागरूक दिखाई दीं, जैसे कार्यालय में समय पर उपस्थिति, अपने कार्य को जिम्मेदारीपूर्वक उचितढ़ंग से निपटाना तथा समय पर घर लौटना आदि। महिल़ाओं का घर से बाहर पुरूषों के समान कार्य करने से उनके पारिवारिक दायित्वों में हुये परिवर्तन एवं शिक्षक तथा गृहिणी की भूमिका के उत्तरदायित्वों के सफलतापूर्वक निर्वाह में महिलाओं को़़़़़़़़़़ होने वाली समस्याओं से अवगत होने के लिए वर्तमान सामाजिक एवं राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में महिलाओं का समाजशास्त्रीय अध्ययन महत्वपूर्ण है। महिलाएं घर-परिवार और नौकरी पेशा की दोहरी भूमिका निभाते हुए दोहरी माँगों तनावों के कारण परस्पर पारिवारिक विसंगतियों का सामना कर रही हैं, जिसका प्रभाव उनकी नौकरी से सम्बद्ध दायित्वों कर्तव्यों पर भी पड़ता है।

 

समाज की प्रत्येक आवश्यकताओं को पूरा करने में महिलाएॅ पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर साथ चलती है। समाज में विकास में सहभागिता का जो सम्मान उन्हें प्राप्त होना चाहिए था वह नही मिल पाया है। क्योंकि इस सभ्य समाज में पुरूषवर्ग का वर्चस्व विद्यमान है। पुरूष वर्ग हर क्षेत्र में महिलाओं के सहयोग से अपने उद्देश्यों को प्राप्त करते है लेकिन जब सम्मान एवं अधिकार की बात आती है तो महिलाएॅ पुरूषों से कहीं पीछे छूट जाती है। महिलाओं को अपने अस्तित्व की बार-बार लड़ाई लड़नी पड़ती है लेकिन यह प्रकृति गवाह है कि जब भी समाज में कोई परिवर्तन या क्रांति हुई है महिलाओं ने उस पर अपना सर्वस्व अर्पण किया है।

 

भारतीय संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्य तथा दिशा-निर्देशक सिद्धांतों में लैंगिक समानता के सिद्धांत का उल्लेख किया गया है। संविधान केवल महिलाओं की समानता को सुनिश्चित करता है, बल्कि राज्यों को महिलाओं के पक्ष में सकारात्मक भेदभाव का निर्देश देता है।

 

पूर्व में किये गये कार्यो की संक्षिप्त समीक्षा:

नगीना परवीन (2009) ने अपने लेख में लिखा कि हैदराबाद शहर की विवाहित और अविवाहित कामकाजी महिलाओं में व्यवसायिक तनाव के शोध अध्ययन में ज्ञात किया कि महिलाओं के उत्तरदायित्वों/कर्तव्यों का स्तर भी तनाव को प्रभावित करता हें इस अध्ययन में नमूने के लिये 180 महिलाओं को लिया जिसमें से 90 विवाहित तथा 90 अविवाहित थी। इस अध्ययन में पाया गया कि विवाहित महिलाओं में अविवाहित महिलाओं की अपेक्षा व्यवसायिक तनाव अधिक पाया गया। विवाहित महिलाओं में अधिक तनाव पाये जाने का कारण माँ, पत्नी, गृहणी के रूप में अनेक भूमिकाओं का निर्वाह किया जाना था।

 

बहल, ज्योति (2001) ने-‘‘कामकाजी महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य में पारिवारिक तनाव की भूमिका का अध्ययन’’ कर निष्कर्ष स्थापित किया कि कामकाजी महिलाओं में पारिवारिक समायोजन में असफलता के कारण तनाव उत्पन्न होना पाया गया। कामकाजी महिलाओं में कार्य स्थल की दूरी तथा कार्यस्थल पर उनका उत्पीड़न का दाम्पत्य जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पाया गया।

 

लिल्हारे डॉरेखा एवं बोरकर डॉसुनीता (2009), ने लिपिकीय और परिवर्तनषील कार्य अवधि में कार्यरत महिलाओं के कार्य निष्पादन के मध्य तनाव एवं चिंता का तुलनात्मक अध्ययन किया। अध्ययन का मुख्य उद्ेदष्य लिपिकीय और परिवर्तनषील कार्य अवधि में कार्यरत महिलाओं के कार्य निष्पादन के मध्य तनाव एवं चिंता का तुलनात्मक अध्ययन करना था। न्यादर्ष के रूप में 200 कार्यरत महिलाओं का चयन किया गया था, जिनमें 100 लिपिकीय वर्ग की महिलाएं 100 परिवर्तनषील कार्य अवधि में कार्यरत महिलाएं थी। प्रदत्त संकलन हेतु तनाव मापनी चिंता मापनी का उपयोग किया गया था। षोध का निष्कर्ष था कि लिपिकीय और परिवर्तनीय कार्य अवधि में कार्यरत महिलाओं के कार्य निष्पादन में तनाव एवं चिंता के माध्यों में सार्थक अंतर पाया गया।

एप्टर, एम. एप्टर, एम.जे. (2009) ने श्डवजपअंजपवदंस ैजलसमे पद म्अमतलकंल सपमिष् पुस्तक में तनाव उत्पति के कारणों को उजागर करने के साथ-साथ तनाव को कम करने के तरीकों की व्याख्या भी की है। प्रतिदिन की जिन्दगी में व्यक्ति को प्रोत्साहित करने के तरीके यदि आषा से पूरित, भावनाओं के तथा स्वभाव के अनुरूप हो तो वे निश्चय ही अवसाद को कम करता है।

 

उद्देश्य %&

प्रस्तुत शोध पत्र मेंमहिलाओं के शिक्षा के निम्न उद्देश्य है:-

             विभिन्न शासकीय एवं अशासकीय संस्थानों में कार्यरत महिलाओं के व्यवसायिक तनाव का अध्ययन करना।

             अध्ययन में सम्मिलित महिलाओं के जीवन की स्थितियों तथा समस्याओं के बारे में पता लगाना।

             विवाहित और अविवाहित कार्यकारी महिलाओं के व्यवसायिक तनाव का अध्ययन करना।

             विभिन्न संस्थानो में कार्यरत महिलाओं को पारिवारिक कठिनाइयों का अध्ययन करना।

             ज्ञान का प्रसार कर महिलाओं को व्यवसायिक सेवा क्षेत्र में सशक्त बनाना।

             मानवीय मूल्यों का निर्माण और विकास-अंधविश्वास, कुरीतियों को समाप्त कर नई परंपरा विकसित करना।

             कार्यकारी महिलाओं के व्यवसायिक तनाव पर आयु के प्रभाव का अध्ययन करना।

 

शोध परिकल्पनाएँ:-

परिकल्पना सामाजिक अनुसंधान की प्रथम सीढी़ है। उपकल्पना से तात्पर्य अनुसन्धानकर्ता द्वारा अध्ययन कार्य के पूर्व बारे में जो काल्पनिक, पूर्वानुमान, विचार किया जाता है, उसे ही उपकल्पना कहते हैं। ये उपकल्पना तथ्यों को एकत्रित करने में सहायक होती है। अर्थात अनुसंधान कार्य प्रारंभ करने के पूर्व अनुसंधान के कारणों समस्याआंे के समाधान एवं परिणाम के बारे में हम जो एक निष्चित आवधारणा बना लेते हैं उसे परिकल्पना या उपकल्पना कहते है।

1-   कार्यकारी महिलाओं में व्यवसायिक तनाव पाया जाता है।

2-   विवाहित और अविवाहित कार्यकारी महिलाओं के व्यवसायिक तनाव पाया जाता है।

3-   विभिन्न शासकीय एवं अशासकीय संस्थानों में कार्यरत महिलाओं में व्यवसायिक तनाव पाया जाता है।

4-   अधिक आयु समूह और कम आयु समूह की कार्यकारी महिलाओं के व्यवसायिक तनाव स्तर में कोई सार्थक अन्तर नहीं है।

5-   व्यवसायिक क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं को पारिवारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

6-   आयु वृद्धि के साथ-साथ व्यवसायिक तनाव कम होता है।

 

शोध प्रविधि:-

मानव एक जिज्ञासु प्राणी है वह अज्ञात तत्वों का पता लगाने की दिशा में निरन्तर आगे बढ़ता जा रहा है। सामाजिक घटनायें भी अपने आप में काफी जटिल है एक ही घटना के पीछे अनेक कारण हो सकते है उन सभी कारणों को खोज निकालना कोई सरल कार्य नहीं है। जब सामाजिक क्षेत्र की समस्याओं के हल खोजने का व्यवस्थित प्रयास किया जाता है उसे ही सामाजिक अनुसंधान, शोध अन्वेषण या खोज का नाम दिया जाता है।

 

शोध कार्य में कार्यकारी महिलाओं में व्यवसायिक तनाव की समस्याओं से सम्बन्धित वास्तविक एवं विश्वसनीय आकड़ो को प्राप्त करने के लिये प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों प्रकार के आकड़ों को एकत्र कर पूर्ण किया गया है। प्राथमिक आकड़े स्वयं कार्य स्थल पर जाकर मूल स्त्रोतो एवं साक्षात्कार अनुसूची द्वारा एकत्र किये गये हैं। जबकि द्वितीयक आंकड़े बालश्रम से संबंधित विभिन्न प्रकाशित- अप्रकाशित पुस्तकों, शोध पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, शासकीय प्रतिवेदनों आदि से एकत्र कर प्रयोग किये गये हैं।

 

तथ्यों का सारणीयन विश्लेषण एवं व्याख्या:

शोधार्थी द्वारा किया गया कोई भी शोघ कार्य सही अर्थो में तभी प्रभावी होते है, जब शोधार्थी द्वारा उस समस्या की वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन किया जाये। इसके लिये यह आवश्यक है कि शेाधार्थी द्वारा शेाध अध्ययन मेें उपयोग किये गये समस्त शेाध उपकरण द्वारा प्राप्त जानकारियों को व्यवस्थित क्रम में सारणीबद्ध किया जाये।

तथ्य संकलन के लिए उद्देश्यपूर्ण निदर्शन पद्धति का चयन कर समस्त में से 50 उत्तरदातों/इकाइयों का चयन किया गया है। तथा उनसे प्राप्त उत्तरों को सांख्यिकी द्वारा विश्लेशण किया गया है। महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण कई क्षेत्र प्रभावित हुए है प्रभावित क्षेत्रों का विवरण निम्नानुसार है-

 

तालिका क्र0 1

निजी एवं शासकीय संस्थानों में कार्यरत महिला कर्मचारियों में व्यावसायिक तनाव

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उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि अशासकीय संस्थानों में कार्यरत महिला कर्मचारियों में व्यावसायिक तनाव, शासकीय संस्थानों में कार्यरत महिला कर्मचारियों में व्यावसायिक तनाव की अपेक्षा तुलनात्मक रूप से अधिक होता हैं।

 

तालिका क्र0 2

महिलाओं का व्यवसाय में प्रवेश के कारण प्रभावित क्षेत्र

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तलिका क्र0 2 में स्पष्ट किया गया है कि समाज में महिलाओं का व्यवसाय में प्रवेश के कारण का प्रभाव मुख्यतः सभी क्षेत्रों में पड़ा है। चिकित्सा के क्षेत्र में 20 प्रतिशत आधुनिकीकरण का प्रभाव पड़ा है। प्राचीन समय में स्वास्थ्य केन्द्रों में हस्तलिखित पंजीयन पर्ची मिलती थी, दवाओं तथा डॉ डाक्टरों से सीधा संवाद और बीमारियों का इलाज होता था, लेकिन महिलाओं के के कारण ऑनलाइन पंजीयन पर्ची, तथा एक्सरे-मशीन, सोनोग्राफी द्वारा बीमारियों का पता लगा लिया जाता है। महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण स्वास्थ्य केन्द्रों में पारदर्शिता गई है। शिक्षा के क्षेत्र में भी 20 प्रतिशत प्रभाव पड़ा है।

 

महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण से समाज में कई परिवर्तन हुए हैं जिनका विश्लेषण निम्नानुसार है-

तालिका क्र0 3

महिलाओं का व्यवसाय में प्रवेश के कारण से समाज में होने वाले परिवर्तन

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उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि महिलाओं का व्यवसाय में प्रवेश के कारण से समाज में कई परिवर्तन हुए हैं। परम्परागत सामाजिक संरचना में 10 प्रतिशत परिवर्तन हुए हैं परम्परागत सामाजिक संरचना के स्थान पर नवीन सामाजिक संरचना का निर्माण महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण के कारण ही संभव हुआ है।

 

महिलाओं का व्यवसाय क्षेत्र में प्रवेश के कारण से सामाजिक संगठन में 10 प्रतिशत परिवर्तन हुए हैं। भौतिक जगत में महिलाओं का व्यवसाय में प्रवेश के कारण से ही परिवर्तन संभव हुआ है। समाज के भौतिक जगत में जो परिवर्तन हुए है, वे महिलाओं का व्यवसाय क्षेत्र में प्रवेश के कारण से हुआ है। महिलाओं का व्यवसाय में प्रवेश के कारण से समाज भी नगरीय समाज की तरह ही धीरे-धीरे विकसित हो रहा है।

 

महिलाओं का व्यवसाय में प्रवेश के कारण से परिवार में भी परिवर्तन हुआ है। समाज में मुखतः संयुक्त परिवार होते है। लेकिन महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण से ग्रामीण परिवार का आकार लघु हो गया है।

 

समाज में सामाजिक संबंध प्राथमिकता आमने-सामने के होते है। इनमें हम की भावना पायी जाती है, लेकिन महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण से सामाजिक संबंधों में परिवर्तन गया है। प्राथमिक संबंधों के स्थान पर द्वितीयक तथा अप्रत्यक्ष संबंध बनते जा रहे है इसके कारण हम के स्थान पर व्यक्तिवादिता की भावना का जन्म हुआ है।

 

महिलाओं का व्यवसायिक क्ष्ेात्र में प्रवेश के कारण परिणाम

समाज का अध्ययन करने से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि सामाजिक परिवर्तन की गति निरन्तर है, जिसके कारण महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण क्या परिणाम होते हैं। समाज की किन-किन परिस्थितियां विभिन्न सामाजिक परिणामों को प्रोत्साहित करती है। फिर भी महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण कुछ सामान्य परिणाम होते हैं जो सभी समाजो में पाये जाते हैं जिनका अध्ययन सारणीयन और विश्लेषण निम्नानुसार है-

 

महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण प्रमुख सामाजिक परिणाम निम्न है-

 

तालिका क्र0 4 सामाजिक परिणाम

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महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण समाज से परम्परागत आधार टूट चुके है। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से 20 प्रतिशत वृहद समाजों का जन्म हुआ है।

 

महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण जहां एक ओर परम्परागत प्रदत्त पदो ंके महत्व में कमी होती है वहीं दूसरी ओर अर्जित पदों की संख्या 30 प्रतिशत बढ़ी है। आधुनिकीकरण प्राथमिक समूहों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। उसके कारण उनका संगठन शिथिल हो जाता है। प्राथमिक सम्बन्ध छूटते जाते है जिसकें फलस्वरूप द्वितीय संगठनों 20 प्रतिशत का निर्माण हुआ है।

 

महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण आर्थिक क्षेत्रों को भी प्रभावित किया है। इस प्रकार आर्थिक परिणाम निम्नलिखित हैं-

 

 

तालिका क्र0 5 महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण आर्थिक परिणाम

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महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण समाज में भी औद्योगिक इकाइयों का महत्व बढ़ता जा रहा है। परम्परागत उद्योगों के प्रति उपेक्षात्मक दृष्टिकोण विकसित हो गया है। गृह-उद्योग समाप्त होते जा रहें है और उनके स्थान पर नवीन औद्योगिक संरचना का विकास हो गया है।

 

नगरीकरण ही आधुनिकीकरण का दूसरा परिणाम है। शिक्षा, उद्योग आवागमन और सन्देशवाहन के साधनों में वृद्धि के कारण नगरीकरण का विकास होता जा रहा है। विशेषीकरण आधुनिक औद्योगिक जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। औद्योगिक श्रमिकों को विशेष प्रकार का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। और इस प्रशिक्षण के अनुसार उन्हें कार्य दिये जाते है। जो जिस कार्य का विशेषज्ञ होता था उसे वही कार्य सौपा जाता है ताकि उस कार्य को सफलता पूर्वक अंजाम दे सकें।

 

समाज में महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण राजनीतिक क्षेत्र में भी प्रभाव पड़ा है। महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण राजनीतिक परिणामों को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया गया है-

 

तालिका क्र0 6 महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण राजनीतिक परिणाम

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महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण समाज का परम्परागत राजनीतिक ढाँचा ही बदल गया हो। जमीदारी समाप्त हो गयी है अब समाज में भी पूर्णतः प्रजातांत्रिक/लोकतांत्रिक व्यवस्था संचालित है।

 

पहले समाज में कानून व्यवस्था गॉव के मुखिया और पंचो के हाथ में थी लेकिन महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण यह व्यवस्था समाप्त हो गयी है। अब कानून व्यवस्था पुलिस और न्यायालय के हाथों में गई है।

 

प्राचीन समय में समाज परम्परागत समाज था परम्पराओं का विशेष महत्व है प्रथा थी, लेकिन महिलाओं का व्यवसायिक क्षेत्र में प्रवेश के कारण इस स्वरूप व्यवस्था के रूप में बदलाव गया है।

 

सुझाव %&

भारत के संदर्भ में यदि देखें तो महिलाओं की स्थिति अत्यन्त सोचनीय है उनकी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए निम्न सुझाव दिये जा सकते हैं:-

                सर्वप्रथम महिलाओं के राजनीतिक स्थिति में सुधार के लिए प्रयास करने होगे। महिला संगठनों, स्वयं सेवी संस्थाओं को इस दिशा में प्रयास करने होगे।

                महिलाओं को इनके कानूनी अधिकारी की जानकारी, महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये निर्देशों का सख्ती से पालन, शोषण, उत्पीड़न सम्बन्धी मामलों का जल्दी निराकरण, महिला मामलों में पुलिस की पूरी सजगता एवं सक्रियता महिलाओं के लिए पृथक महिला थानों की स्थापना आदि महिलाओं का शोषण रोकने के लिए आवश्यक है।

                वर्तमान समय में लागू महिला सम्बन्धी कानूनों में व्याप्त विसंगतियों को दूर करना जिससे महिलाओं को राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक सांस्कृतिक आदि सभी क्षेत्रों में पुरूषों के समान कानूनी और व्यावहारिक रूप मंे सभी मानवाधिकार हासिल हों।

                महिलाओं को अपनी मानसिक प्रवृत्ति में परिवर्तन लाना होगा जिससे उनमें आत्म विश्वास में वृद्धि होगी।

 

उपसंहार

महिला समाज की धुरी है अगर धुरी टूट गई तो समाज भी टूट जायेगा। इतिहास गवाह है कि जिन समाजों ने महिलाओ को गुलाम बनाया वे खुद गुलाम बन गये, जिन समाजों ने महिलाओं को प्रगति का मौका दिया उन्हें सभ्यता के शिखर पर पहुंचने से कोई नही रोक सका। यद्यपि महिलाएँ तेजी से व्यवसाय के क्षेत्र में रही है, तथापि उन्हें व्यवसाय के क्षेत्र में बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अशिक्षा, भ्रष्टाचार, शोषण, आर्थिकपराधीनता, राजनीतिक सोच का आभाव आदि ऐसी प्रमुख बाधाएं है जो व्यवसायिक क्षेत्र में आगे बढ़ने में रूकावट लाती है।निजी संस्थानों में कार्यरत महिला कर्मचारियों में व्यवसायिक तनाव, शासकीय संस्थानों में कार्यरत महिला कर्मचारियों में व्यवसायिक तनाव की अपेक्षा तुलनात्मक रूप से अधिक होता है।

 

महिलाओं को व्यवसायी/कामकाजी बनाने के लिये उन्हें आर्थिक दृष्टि से स्वावलम्बी बनाना होगा। अध्ययन क्षेत्र की महिलाओं में व्याप्त अशिक्षा  और अंधविश्वास को दूर कर उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने का दायित्व है। भ्रष्टाचार और शोषण से महिलाओं को मुक्त करके उन्हें व्यवसायिक क्षेत्र में आगे बढ़ाया जा सकता है।निष्कर्षतः महिलाएं समाज का अनिवार्य अंग है। सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक क्षेत्र के साथ-साथ व्यवसायिक क्षेत्र में उनकी अहम भूमिका है। जैसे-जैसे शहरों के साथ ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं में जागरूकता रही है। शिक्षा के प्रचार-प्रसार और बदलते सामाजिक परिवेश में व्यवसायिक क्षेत्र में महिलाएँ आगे रही है और केन्द्रीय, प्रान्तीय, स्थानीय शासन में अपनी भागीदारी निभा रही है। इसलिये महिलाअंो को सशक्त और सुदृढ़ बनाने पर ही समाज सुदृढ़ होगा। महिलाओं को सुदृढ़ करने के लिये उनका शिक्षित होना आवश्यक है ताकि अपने अधिकारों को समझ कर समाज एवं राष्ट्र का विकास कर सके।

 

संदर्भ ग्रन्थ सूची &

1-       सक्सेना, एस.सी. (1992), ‘श्रम समसयें एवं सामाजिक सुरक्षा’, रस्तोगी पब्लिकेशन शिवाजी रोड, मेरठ।

2-       शर्मा, डॉ. एम.के. (2010), ‘भारतीय समाज में नारी’, पब्लिशिंग हाउस दिल्ली।

3-       आहुजा राम (2000), ‘सामाजिक समस्यायें, रावत पब्लिकेशन, जयपुर एवं नई दिल्ली।

4-       आर.सी. मजुमदार, हिस्ट्र एण्ड कल्चर आफ इण्डियन पीपुल, प्रकाशित टवस ग् 2दक मकपजपवद 1981ण् च्.31

5-       ओम प्रकाश, हिंदू विवाह, चतुर्थ संस्करण, विश्वविद्यालय प्रकाशन, नई दिल्ली, 1997, पृष्ठ 182-2001

6-       प्रेम सहाय, हिंदू विवाह संस्कार, प्रभात प्रकाशन, प्रथम संस्करण 1995

7-       राजेन्द्र प्रसाद गुप्त, स्वामी विवेकानंद, व्यक्ति और विचार, प्रकाशक, दिल्ली 1971.

8-       स्वामी विवेकानंद, विवेकानंद साहित्य।

9-       एम.के. गॉंधी, मेरे सपनो का भारत।

10-     डॉं. रानी, आशु (1999) महिला विकास कार्यक्रम, ईनाश्री पब्लिशर्स, जयपुर, पृष्ठ सं. 19

11-     डॉं. कुलश्रेष्ठ, लक्ष्मी रानी, कुरूक्षेत्र, अक्टूबर-नवम्बर 1997, पृष्ठ सं. 82

12-     के.डी. ग्रोगेड, सेक्स डिस्क्रिमिनेशन इन इण्डिया क्रिटिक (प्रोस्टीट्यूशन इन इण्डिया), 1995, पृ. सं. 185

13-     वार्षिक संदर्भ ग्रन्थ भारत-2005, प्रकाशन विभाग, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, पृ.सं. 53

14-     Agrawal (DS) Leactures of Universe of Knowledge, Delhi, Academic Publication, 1985, P.72 

15-     Best (JW) Research in Education, Delhi Pritice Hall & Co, 1963, P. 86

16-     सिंह (सोनल) ज्ञान जगत स्वरूप संरचना एवं विकास, भोपाल .प्र. ग्रंथ अकादमी 1998, पृष्ठ 4

17-     सक्सेना (एल.एस.) पुस्तकालय एवं समाज, भोपाल, हिन्दी ग्रंथ अकादमी, 2004, पृष्ठ 4-5

 

 

Received on 16.03.2023         Modified on 01.04.2023

Accepted on 16.04.2023         © A&V Publication all right reserved

Int. J. Ad. Social Sciences. 2023; 11(1):48-55.

DOI: 10.52711/2454-2679.2023.00008