कृषि विकास कार्यक्रमों में संलग्न बैंकों की वित्त व्यवस्था तथा कार्यप्रणाली का अध्ययन रीवा जिले के विशेष संदर्भ में
राखी सोंधिया
शोधार्थी (अर्थशास्त्र), शासकीय ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय रीवा (म.प्र.)
*Corresponding Author E-mail:
ABSTRACT:
कृषि विकास में कृषि साख और ग्रामीण ऋण प्रदान करने के लिए अपनाए जा रहे, बहुउद्देश्यीय दृष्टिकोण में वाणिज्य और सरकारी बैंकों सहित ग्रामीण बैंकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। स्थानीय स्तर की इकाइयों होने के कारण वित्तीय समावेशन के लक्ष्य प्राप्त करने हेतु भी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक आदर्श रूप में उपयुक्त है, कृषि ग्रामीण ऋण प्रदान करने तथा वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में और अहम भूमिका निभाने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को मजबूत बनाने हेतु समावेशन, पुनः पूँजीकरण, ब्याज पर में राहत आदि जैसे-उपाय किये गये है। क्षेत्रीय ग्रामीण विकास बैंकों को व्यवसाय परिचालनों के नए क्षेत्रों में विविधकरण हेतु कई नीतिगत कार्य किए गए है। नई पँूजी लगाने, प्रमुख नीतिगत परिवर्तन, क्षमता निर्माण और संस्थागत विकास के साथ एक दशक पहले क्षेत्रीय ग्रामीण विकास बैंकों की कार्य ग्रामीण विकास बैंकों की कार्य प्रणाली में महत्वपूर्ण सुधाए हुए है।
KEYWORDS: कृषि साख, ग्रामीण बैंक.
प्रस्तावना -
भारत एक कृषि प्रधान देश है, तथा देश की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या गाँव में निवास करती है। सामाजिक आर्थिक और जाति आधारित जनगणना 2011 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में ग्रामीण क्षेत्र की आधे से अधिक आबादी अब भी खेतीहार मजदूर है। भारतीय ग्रामीण व्यवस्था का प्रमुख पहलू साख का आभाव है। सन् 1954 में ग्रामीण साख सर्वेक्षण समिति ने स्पष्ट किया है कि ग्रामीण अर्थव्यस्था में साहूकारों द्वारा लगभग 70 प्रतिशत साखकी आवश्यकता पूरी की है। साहूकारों द्वारा निर्धनों से अत्याधिक ब्याज तथा बेगार लेकर शोषण किया जाता था। अतः ग्रामीण वित्त विस्तार के लिए समय-समय पर साख समितियों सहकारी बैंकों भूमि विकास बैंकों एवं अन्य वित्तीय संस्थाओं की स्थापना की किंतु ग्रामीण विकास हेतु वित्तीय व्यवस्था का समुचित विस्तार न हो पाया। बैंकिंग आयोग द्वारा 1972 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और यह सुझाव दिया गया कि सहकारी एवं व्यापारिक पद्धतियों के अच्छे लक्षणों को सम्मिलित करते हुए, ग्रामीण बैंकिग संरचना की स्थापना की जाए। 01 जुलाई 1975 को घोषित 20 सूत्रीय कार्यक्रम के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में आसान शर्तो पर भूमिहीन किसानों तथा श्रमिकों को ऋण दिये जाने की व्यवस्था की गई जिसके क्रियांवयन हेतु भारत की प्रधानमंत्री स्व0 इन्दिरा गाँधी ने सम्पूर्ण देश में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक स्थापित किये जाने का निर्णय लिया। चूँकि ग्रामीण विकास के लिए वित्त की विशेष आवश्यकता होती है। इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए बैंकों की स्थापना 2 अक्टूबर 1975 में आरंभ की गई।
बैकों की स्थापना हेतु 26 सितम्बर 1975 को देश के राष्ट्रपति द्वारा ग्रामीण बैंक अध्यादेश 1975 निर्मित किया गया। इसका स्थान 1 फरवरी 1976 को संसद के पारित क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम 1976 बनाया गया। जिसके द्वारा 1976 में 5 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक स्थापित किये गये। उ0प्र0 में मुसदाबाह व गोरखपुर, हरियाणा में शिवानी, रास्थान में जयपुर तथा पश्चिम बंगाल में माल्ड़ा स्थान पर यह बैंक खोले गये।
इस अध्यादेश में यह भी कहा गया कि ग्रामीण बैंक को कोई भी अधिसूचित बैंक प्रवर्तित करेगा। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक भारतीय रिजर्व बैंक एक्ट 1934 को द्वितीय अनुसूची में सम्मिलित है एवं बैंकिंग रेगुलेशन व्यवसाय करने के लिये अधिकृत होंगे। इसके लागू होते है। कृषि विकास में साख का प्रयोग होने लगा, और कृषि विकास के लिए कृषि साख ग्रामीण बैंकों से आसानी से और कम दर पर उपलब्ध होने लगी। कृषकों को साख व ऋण की प्राप्ति उचित समय में होने लगी। अर्थव्यवस्था के विकास में ग्रामीण बैंकों का विशेष महत्व बढ़ा। कृषिकों को अल्पकालीन मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋणों की प्राप्ति होने लगी।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के उद्देश्य:-
1ण् ग्रामीण बैंकों की स्थापना का मूल्य उद्देश्य छोटे किसानों, कृषि मजदूरों, ग्रामीण कारीगरो, लद्यु उद्यमियों एवं छोटे व्यापार में लगे व्यापारियों को बैंकिग सुविधा उनके घरों पर उपलब्ध कराना।
2ण् इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण जनता को उत्पादन के कार्यो में प्रोत्साहन करना तथा उनके जीवन स्तर को सुधारना तथा उनका रोजगार के साधन प्रदान करना।
3ण् इस बैंक का उद्देश्य कृषि कार्य में लगे, सभी श्रमिकों को तथा भूमिहीन श्रमिकों साख व ऋण प्रदान करना।
4ण् भूमि व्यवस्था के अंतर्गत भूमि सीमा कानून का क्रियांवयन भू-समतलीयकरण तथा भूमि रखरखाव में हुए परिवर्तन की प्रक्रिया का आंकलन करना।
5ण् सिंचाई की उपलब्ध सुविधाएं तथा इस परिपेक्ष्य में निर्धारित अवधि के बाद कृषि सिंचाई सुविधाओं में हुए संरचनात्मक परिवर्तन का अध्ययन करना।
6ण् कृषि में यंत्रीकरण का परम्परागत स्वरूप तथा इसमें परिवर्तन उर्वरकों के प्रयोग की स्थिति उन्नत बीजों के प्रयोग के क्षेत्र में निर्धारित तिथि के पश्चात् हुए, रूपांतरण की प्रक्रिया का अध्ययन करना।
7ण् कृषि वित्तीयकरण का परम्पराग स्वरूप तथा इस क्षेत्र में सरल साख योजना या नीति द्वारा इस क्षेत्र के रूपांतरण की प्रक्रिया का आंकलन करना।
8ण् विभिन्न फसलों के अंतर्गत प्रयुक्त भू-क्षेत्र तथा उत्पादन तथा उत्पादकता के स्तर में हुये परिवर्तन का अध्ययन करना।
9ण् कृषकों के मिल रही साख सुविधाएँ तथा योजनाओं का अध्ययन करना।
10ण् कृषि क्षेत्र में कितने कृषक साख सुविधाओं का लाभ प्राप्त किये है तथा प्राप्त साख के द्वारा उनको उत्पादन में कितनी वृद्धि हुई है इसका अध्ययन करना।
शोध प्रविधि:-
शोध या अन्वेषण किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिए किया जाता है। ज्ञान की किसी भी शाखा में ध्यानपूर्वक नये तथ्यों की खोज के लिए किये गये अन्वेषण या परीक्षण को अध्ययन कहते है। ज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य अपरिहार्य है।
शोध कार्य में रीवा जिले की कृषि अर्थव्यवस्था से संबंधित वास्तविक एवं विश्वसकीय आकड़ों को प्राप्त करने के लिए प्राथमिक तथा द्वितीयक दोनों प्रकार के आंकड़ों को एकत्र कर पूर्ण किया गया है। प्राथमिक आकड़े स्वयं द्वारा कार्य स्थल में जाकर मूल्य स्त्रोतों से एकत्र किये गये है। जबकि द्वितीयक आंकड़ों को महिला उद्यमिता तथा स्वरोजगार योजनाओं की समस्या से संबंधित विभिन्न प्रकाशित अप्रकाशित पुस्तकों शोध पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, शासकीय प्रतिवेदन आदि से एकत्र कर प्रयोग किये गये है। इसके अतिरिक्त लाइब्रेरी एवं इंटरनेट आदि का भी आंकड़े एवं विषय वस्तु से संबंधित स्टडी अध्ययन सामग्री एकत्र करने में प्रयोग किया गया है।
रबी एवं खरीफ के अंतर्गत क्षेत्रफल (कृषि एवं सिचांई हेक्टेयर में)
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||
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v[kk| Qlys |
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||
rglhy&gqtwj |
13450 |
8513 |
27941 |
623 |
50527 |
rglhy&jk;iqj |
5957 |
5300 |
11854 |
447 |
23558 |
rglhy&xq<+ |
7973 |
817 |
7738 |
226 |
16754 |
rglhy&fljekSj |
10803 |
1373 |
14772 |
948 |
27895 |
rglhy&R;ksaFkj |
23901 |
476 |
36215 |
1628 |
62220 |
rglhy&tok |
18165 |
238 |
21991 |
2328 |
42722 |
rglhy&eÅxat |
19484 |
1158 |
21799 |
1388 |
48829 |
rglhy&ubZx<+h |
18024 |
1296 |
21264 |
1030 |
41614 |
rglhy&guqeuk |
33793 |
1045 |
24000 |
4111 |
62949 |
rglhy&lsefj;k |
13984 |
5400 |
17513 |
697 |
37597 |
rglhy&euxaok |
12988 |
3481 |
26736 |
583 |
49768 |
रीवा जिले में नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र (हेक्टेयर में)
Øekad |
o"kZ |
ugjksa dh la[;k |
ugjksa }kjk flafpr {ks=Qy |
1. |
1991-1992 |
420 |
13060 |
2. |
1999-2000 |
142 |
41208 |
3. |
2003-2004 |
155 |
12071 |
4. |
2007-2008 |
155 |
13548 |
5. |
2010-2011 |
147 |
12667 |
6. |
2014-2015 |
160 |
12453 |
7. |
2016-2017 |
110 |
7771 |
8. |
2019-2020 |
114 |
8062 |
स्त्रोत-जिला सांख्यिकी पुस्तिका
उपुर्यक्त तालिका से स्पष्ट है कि वर्ष 1991-92 में जिले 420 नहरों द्वारा 13060 हेक्टेयर में सिंचाई की गई थी जो कि अगले दस वर्षो अर्थात् 2007-08 में इन नहरों की संख्या में कमी आई और कुल सिंचित क्षेत्रफल में वृद्धि होकर 13548 हेक्टेयर हो गया। जो कि यह दर्शाता है कि नहरों की संख्या कम होने पर भी सिंचित क्षेत्रफल में कमी नहीं आयी है। 2016-17 में जिले में विभाजन के पश्चात् नहरों की संख्या और कम होकर मात्र 110 ही रह गई जिसमें शुद्ध सिंचित क्षेत्रफल भी कम होकर 7771 हेक्टेयर हो गया। वर्ष 2019-20 में यह आंकड़ा नहरों की संख्या बढ़कर 114 हो गई और सिंचित क्षेत्रफल में भी वृद्धि हुई जो 8062 हेक्टेयर हो गया है।
रीवा जिले में कुओं द्वारा सिंचाइZ
Øekad |
o"kZ |
dqvka dh la[;k |
flafpr {ks= ¼gsDVs;j½ |
1. |
1991-92 |
8500 |
12225 |
2. |
1999-2000 |
9006 |
22382 |
3. |
2003-04 |
9447 |
26060 |
4. |
2007-08 |
9722 |
24292 |
6. |
2014-15 |
11541 |
26970 |
7. |
2016-17 |
6139 |
10856 |
8. |
2019-20 |
6339 |
51043 |
स्त्रोत-जिला सांख्यिकी पुस्तिका
उपुर्यक्त तालिका से स्पष्ट है कि नहरों, तलाबों की अपेक्षा कुओं की संख्या अधिक है एवं कुओं द्वारा सिंचित क्षेत्र भी अधिक है। इस परम्परागत तकनीक में सरकार ने भी अपना योगदान दिया है तथा इसके विकास के लिए विभिन्न योजनाएं बनाई जा रही है। 2007-08 में कुंओं की संख्या रीवा और सिंगरौली जिले के विभाजन पूर्व की है। विभाजन के पश्चात् इन कुआं की संख्या लगभग आधी रह गई परंतु विभिन्न सिंचाई योजनाओं के अंतर्गत इन कुओं की संख्या विभाजन के दो वर्ष के पश्चात अर्थात् 2019-20 में बढ़कर 6339 हो गई तथा इन कुओं द्वारा सिंचित क्षेत्र में वृद्धि हुई जो 51043 हेक्टेयर है, अर्थात् पहले से दो गुना।
कृषि साख में वित्तीयकरण परिवर्तित स्वरूप:-
सभी व्यवसायिक संस्थाओं के लिए वित्त की व्यवस्था परम आवश्यक और कृषि क्षेत्र इसका कोई अपवाद नहीं है। समयानुकूल पर्याप्त व सस्ती साख की व्यवस्था कृषि क्षेत्र की प्रगति में महत्वपूर्ण आगत है। जिस प्रकार व्यवसाय में व्यवसायियों को सभी व्यवसायिक क्रियाकलापों के संचालन एवं विस्तार के लिए वित्त की आश्यकता होती है। ठीक उसी प्रकार से कृषकों से संबंधित विभिन्न कार्यो के लिए वित्त की आवश्यकता पड़ती है। परंतु कृषि एवं कृषकों की अपनी कुछ ऐसी विशेषताएं होती है जो इसकी वित्त एवं साख संबंधी आवश्यकताओं से अलग करती हैं। प्रत्येक कृषक परिवार मध्यम वर्ग अर्थात् छोटे किसान अधिक निवेश के द्वारा नई तकनीक का लाभ उठाना चाहते है। अतः अधिक व सस्ती साख तथा पूँजी की उपलब्धता भारतीय कृषि के विकास में एक विशिष्ट स्थान पाती है। कृषिकों को कृषि कार्य के लिए अथवा भूमि पर स्थायी सुधार करने के लिए पर्याप्त एवं सस्ती साख सुलभ नहीं है। कृषि वित्त की विद्यमान व्यवस्था अपर्याप्त तथा महंगी है। जिसके परिणामस्वरूप कृषि का विकास अवरूद्ध हो गया है। सरकार द्वारा कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए बनाई गई कोई योजना तभी सफल हो सकती है। जब कृषकों को उचित समय पर पर्याप्त एवं साख सुविधा सस्ती उपलब्ध कराई जाये। आज कृषि के लिए साख एवं ऋण सरकार अनेक योजनाओं के द्वारा प्रदान कर रही है। छोटे से भी छोटा किसान, व्यक्ति, व्यापारी उद्योग आदि के लिए वित्त की व्यवस्था की गई है। जिसमें वह अपने कार्य को बहुत आसानी से पूर्ण कर सकते है। छोटे-छोटे उद्योग धन्धों के लिए कृषि ऋण उपलब्ध है, जिससे कृषक अपने परिवार तथा उत्पादन क्षमता को अच्छे से चला पाये। सरकार किसानों को उनकी फसल नष्ट होने पर मुआवजा भी प्रदान करती है ताकि किसाने प्रोत्सहित होकर कृषि उत्पादन और अच्छी तरह से कर सकें। इस मुआवजे का भुगतान वह एक साथ तथा छोटी-छोटी किस्तों में करती है। किसान के फसल बोने से लेकर उसको बाजार में क्रय-विक्रय तक सभी गतिविधियों को कृषि साख के माध्यम से पूरा किया जाता है।
रीवा जिले में यूनियन बैंक आॅफ इण्डिया द्वारा कृषि क्षेत्र में विभिन्न वर्षो में प्रदत्त वित्तीय सुविधाएँ।
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dqy vfxze jkf'k ¼yk[k esa½ |
miyC/kh izfr'kr |
|||
[kkrk |
jkf'k |
[kkrk |
jkf'k |
||
1991-92 |
2012 |
126.22 |
1258 |
87.94 |
70 |
1999-2000 |
2920 |
237-85 |
805 |
178-14 |
75 |
2003-04 |
1510 |
30550 |
1136 |
233.40 |
76 |
2007-08 |
2600 |
648-17 |
1310 |
960-10 |
148-14 |
2014-15 |
3055 |
1475-10 |
1188 |
869-71 |
58.96 |
2019-20 |
4671 |
2460.61 |
2383 |
2558.48 |
103.98 |
स्त्रोत:-
यूनियन बैंक आॅफ इण्डिया अग्रणी जिला कार्यालय रीवा वार्षिक साख योजना पत्रिका उपरोक्त तालिका द्वारा स्पष्ट है कि जिले में यू0बी0आई0 बैंक कृषि क्षेत्र के लिए प्रतिवर्ष लक्ष्य निर्धारित किये जाते है। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1991-92 में कृषि क्षेत्र के लिए 2012 खाता धारकों के लिए निर्धारित लक्ष्य 126.22 लाख वितरण का लक्ष्य रखा गया। इसके विरूद्ध 1258 खाता धारकों को 87.94 लाख की राशि वितरित की गई और इस उपलब्धि का प्रतिशत 70 प्रतिशत रहा। वही वर्ष 1999-2000 में लक्ष्य के अनुसार 2920 खाता धारकों को 237.85 लाख रूपये की राशि वितरित करने का लक्ष्य रखा गया।
निष्कर्ष:-
रीवा जिले में कृषि विकास कार्यक्रमों में संलग्न बैंकों की वित्त व्यवस्था तथा कार्य प्रणाली में से सिंचाई व्यवस्था में कई रूपांतरण हुए है। जिसमें यह स्पष्ट है कि पारम्परिक सिंचाई प्रणालियों से रूपांतरित होकर आधुनिक प्रणालियों को अपनाया जा रहा है। चूँकि पानी कृषि हेतु ऐसा आगत है जिसके बिना कृषि की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। रीवा जिला एवं यहां की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है और कृषि मुख्यतः नदियों एवं सिंचाई के साधनों पर निर्भर है। रीवा जिले में वित्त व्यवस्था के लिए साहकारों तथा महाजनों पर प्राचीन समय पर कृषि कार्य के लिए ऋण उपलब्ध कराते थे लेकिन अब वित्त व्यवस्था का रूपांतरण तथा परिवर्तन तेजी के साथ हुआ है। अब कृषक बैंकों द्वारा कृषि ऋण आसानी तथा सस्ती साख पर उपलबध करते है। किसानों का कृषि का कोई भी कार्य वित्त के बिना अधूरा है। सरकार साख हेतु योजनाओं के माध्यम से ऋण उपलब्ध कटाने का प्रयास कर रही है। ताकि उचित समय पर यह सुविधा कृषकों तक पहुंच सके। ऋण ग्रस्तता होने के कारण कृषक तथा छोटे किसान अपना कृषि से संबंधी जो भी कार्य वह सही तरह से नहीं कर पाते थे लेकिन साख सुविधा ने उनकी इस समस्या का समाधान प्रस्तुत कर दिया है। बैंकों के अनेक प्रकार होते है। जिससे किसानों को अल्पकालीन मध्यकालीन तथा दीर्घ कालीन ऋण उपलब्ध हो जाते है। बैंक ये सभी तरह के ऋण किसानों तक आसाीन से उपलब्ध कराते है। ताकि कृषि उत्पादकता को तेजी के साथ आगे बढ़ाया जाय और कृषि क्षेत्र का विकास हो ताकि लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान किये जा सके। उत्पादन क्षमता में तेजी लाई जा सकते और किसानों की आमदनी में वृद्धि हो सके। जिसमें अधिक आमदनी में किसान ज्यादा से ज्यादा प्रोत्सहित हो कर कार्य कर सके।
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Received on 27.12.2022 Modified on 02.01.2023 Accepted on 10.01.2023 © A&V Publication all right reserved Int. J. Ad. Social Sciences. 2022; 10(4):187-192.
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