ग्रामीण छत्तीसगढ़ में कायिक जोत का वितरण
(Distribution of Operational Landholdings in Rural Chhattisgarh)
डॉ. (श्रीमती) अनुसुइया बघेल
प्रोफेसर, भूगोल अध्ययनषाला, पं. रविषंकर शुक्ल विष्वविद्यालय, रायपुर.
*Corresponding Author E-mail:
ABSTRACT:
प्रस्तुत अध्ययन के उद्देष्य ग्रामीण छत्तीसगढ़ में कायिक जोत के आकार और उसको प्रभावित करने वाले जनांकिकीय, आर्थिक एवं सामाजिक कारकों की व्याख्या है। यह अध्ययन कृषि संगणना 2010-2011 पर आधारित है। अध्ययन की इकाई प्रदेष के 27 जिले हैं। 2010-2011 में छत्तीसगढ़ में जोत का औसत आकार 1.36 हेक्टेयर है जबकि 2000-2001 में यह 1.06 हेक्टेयर था। छत्तीसगढ़ में कुल जोतों की संख्या 37,46,480 में से 58.3 प्रतिषत सीमांत जोत, 22.2 प्रतिषत लघु जोत, 13.4 प्रतिषत अर्द्धमध्यम, 5.4 प्रतिषत मध्यम एवं 0.7 प्रतिषत वृहद जोत के अंतर्गत है। जोतों के क्षेत्रफल के प्रतिषत में जोत के आकार में वृद्धि के साथ कमी हुई है। जोत का औसत आकार सर्वाधिक दंतेवाड़ा जिले में 4.06 हेक्टेयर तथा न्यूनतम् जांजगीर-चांपा जिले में 0.91 हेक्टेयर है। जोत का औसत आकार प्रदेष के छह जिलों - दंतेवाड़ा (6.07 हे.), सुकमा (3.60 हे.), बीजापुर (2.87 हे.), नारायणपुर (2.69 हे.), जषपुर (2.22 हे.) एवं बस्तर (2.01 हे.) में 2.0 हेक्टेयर से अधिक है। इसके विपरीत जांजगीर-चांपा (0.91 हे.) तथा बिलासपुर (0.97 हे.) जिलों में जोत का आकार एक हेक्टेयर से भी कम है। जोत का औसत आकार शेष जिलों में एक से दो हेक्टेयर है। जोत का औसत आकार अनुसूचित जातियों (0.88 हे.) से अनुसूचित जनजातियों (1.91 हे.) में अपेक्षाकृत अधिक है।
KEYWORDS: जोत, प्रतिरूप, कायिक, सीमांत।
प्रस्तावना -
कृषि के विकास की प्रभावषील एवं दक्ष नियोजन बनाने के लिए कृषि जोत की विस्तृत संरचना एवं विषेषताओं का ज्ञान आवष्यक होता है। भूमि स्वामित्व का अध्ययन संपत्ति के वितरण के जानकारी के लिए महत्वपूर्ण है किन्तु कायिक जोत कृषि विकास योजनाओं के लागू करने के लिए अधिक महत्वपूर्ण है। कृषक की जोत वह भूमि है जिस पर एक इकाई के रूप में किसी व्यक्ति अथवा परिवार द्वारा कृषि की जाती है। कृषक की जोत ;व्चमतंजपवदंस भ्वसकपदहेद्ध वह समस्त भूमि है जो पूर्ण अथवा आंषिक रूप से कृषि उत्पादन हेतु उपयोग में लाई जाती है तथा जो स्वत्व, कानूनी स्वरूप, आकार अथवा स्थिति को ध्यान में न देते हुए अकेले अथवा सम्मिलित रूप से एकतांत्रिक इकाई ;ज्मबीदपबंस न्दपजद्ध के रूप में जोती जाती है। जोत का आकार कृषि कार्य में निर्णय लेने में तथा कृषि विकास योजनाओं के लिए, व्यक्तिगत कृषक की स्थिति में सुधार एवं उत्थान के लिए आधारभूत इकाई है।
कृषि प्रणालियों एवं प्रक्रियाओं को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक एवं निर्धारक तत्व कृषि से जुड़े हुए हैं। किसी स्थान की कृषि पर उस स्थान विषेष की भौतिक, जैविक तथा सांस्कृतिक तत्वों का स्पष्ट प्रभाव पाया जाता है। इन तत्वों में जोत का आकार एक महत्वपूर्ण कारक है जो कृषि में नवाचारों के अंगीकरण तथा कृषि के उत्पादन को प्रभावित करता है। कृषि की सफलता के लिए जोत का आकार का पर्याप्त होना आवष्यक है, जिससे कृषक कृषि संबंधी कार्यों को दक्षता पूर्वक संपादित कर पाते हैं (विष्वकर्मा, 2003)।
2000-01 की कृषि संगणना मध्यप्रदेष राज्य से अलग होने के उपरांत छत्तीसगढ़ राज्य के लिए प्रथम संगणना है। कृषि संगणना का मुख्य उद्देष्य कृषकों की जोतों एवं उनके अंतर्गत क्षेत्रफल के आकार वर्गवार जानकारी संकलित करना है ताकि कृषकों के लिए कल्याणकारी योजनाएँ तैयार करने के साथ-साथ कृषि उत्पादन में वृद्धि करने हेतु आवष्यक कदम उठायी जा सके। कृषि पैदावार को बढ़ाना कृषकों के कार्यों एवं निर्णयों पर निर्भर करता है। कृषक अपनी जोत में उपलब्ध साधनों को देखते हुए कब, क्या और कैसे बोये, ताकि अधिक से अधिक पैदावार उपलब्ध हो सके, इस सफलता को प्राप्त करने के लिए कृषि संगणना का विषेष महत्व है (कृषि संगणना, 2000)।
विभिन्न प्रदेषों की भौगोलिक परिस्थितियों में भिन्नता होने के कारण जोत के आकार में भिन्नता पाई जाती है। जोत का आकार शस्य प्रतिरूप एवं उत्पादन को बहुत अधिक प्रभावित करता है। कृषि नवाचार का स्तर कृषकों द्वारा धारित जोत के आकार पर निर्भर करता है। अतः जोत के आकार का कृषकों के जीवन स्तर से घनिष्ठ धनात्मक सहसंबंध होता है।
अध्ययन क्षेत्र ;ैजनकल।तमं द्ध
नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य का गठन भारत के 26 वें राज्य के रूप में 1 नवम्बर 2000 को हुआ। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत में प्रदेष का स्थान 11 वां एवं जनसंख्या की दृष्टि से 17 वां है। छत्तीसगढ़ 17°.46श् से 20°.6श् उत्तरी अक्षांष एवं 80°.15श् से 84°.24श् पूर्वी देषांष के मध्य 1,35,194 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में विस्तृत है। 2011 की जनसंख्या के अनुसार छत्तीसगढ़ की कुल जनसंख्या 1,21,01,93,422 है। प्रदेष में जनसंख्या का घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। 2001 से 2011 के दषक में राज्य की जनसंख्या में 17.64 प्रतिषत की वृद्धि हुई है। राज्य की 76.8 प्रतिषत जनसंख्या गांव में निवास करती है। राज्य की 12.8 प्रतिषत जनसंख्या अनुसूचित जाति एवं 30.6 प्रतिषत जनसंख्या अनुसूचित जनजातियों की है। राज्य की कुल जनसंख्या में से 74.04 प्रतिषत जनसंख्या साक्षर है।
अध्ययन के उद्देष्य ;व्इरमबजपअमद्ध
प्रस्तुत अध्ययन के उद्देष्य निम्नलिखित हैं -
1. छत्तीसगढ़ में जोत के आकार को ज्ञात करना।
2. प्रदेश में जोत के आकार में स्थानिक भिन्नता का आकलन करना
3. जोत के आकार को प्रभावित करने वाले जनांकिकीय, सामाजिक एवं आर्थिक कारकों का विष्लेषण करना।
4. विभिन्न सामाजिक समूहों में जोत के आकार में भिन्नता को ज्ञात करना।
5. जोत के आकार में पिछले 15 वर्षों में परिवर्तन को ज्ञात करना।
आंकड़ों के स्रोत एवं विधितंत्र ;ैवनतबमे व ि क्ंजं ंदक डमजीवकवसवहलद्ध
प्रस्तुत अध्ययन कृषि संगणना के प्रथम चरण ;।हतपबनसजनतंस ब्मदेनेए च्ींेम प्द्ध पर आधारित है। जिसमें जोतों की संख्या तथा क्षेत्रफल, अकेली, शामिल तथा संस्थागत जोतों की संख्या तथा क्षेत्रफल प्रदेष के 27 जिलों तथा 146 तहसीलों के लिए उपलब्ध है। जोतों के वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों के विश्लेषण के लिए सहसंबंध तथा जोतों के वितरण में समानता को ज्ञात करने के लिए लॉरेंज वक्र तथा गिनी सकेन्द्रण सूचकांक की गणना की गई है।
कृषक की कार्यकारी जोत ;व्चमतंजपवदंस स्ंदकीवसकपदहेद्ध
वास्तव में कृषि की सफलता कृषि के प्रमुख निर्धारक जोत के आकार पर निर्भर करता है। जोत का अपर्याप्त होना (छोटा होना) कृषकों के कृषि कार्य दक्षता में कमी लाता है (विष्वकर्मा, 2003)। कृषकों में जोखिम उठाने की क्षमता जोत के आकार पर निर्भर करता है। भूमि के आकार वर्ग के वितरण में बहुत अधिक असमानता पाई जाती है, जो रोजगार के अन्य साधनों की उपलब्धता, उच्च साक्षरता और यातायात के साधनों के द्वारा कम कर सकते हैं (बघेल एवं विष्वकर्मा, 2010)। कार्यकारी जोत के आकार में भूमि की श्रेणी के आधार पर भिन्नता पाई गई है। निम्न श्रेणी की भूमि में कृषकों की अधिक जमीन है। इसी के साथ कार्यकारी जोत का आकार भूमि वितरण, उत्तराधिकार नियम, वर्षा की मात्रा, सिंचाई की गहनता, कृषि योग्य बेकार भूमि पर कृषि के विस्तार पर निर्भर करता है। जोतों पर सीलिंग अधिनियम ;ब्मपसपदह ।बजद्ध और अतिरिक्त भूमि के पुर्नवितरण से सीमांत एवं लघु कृषकों की संख्या में वृद्धि हुई है। साथ ही यह भूमि टुकड़ों में बिखरी हुई है, जो जोत के पर्याप्त आकार के स्तर को प्राप्त करने में असफल है (षाह, 2002)।
कृषि संगणना में जोत के आकार के दस वर्ग दिए गए हैं। इन जोतों के श्रेणियों को पांच वर्ग में रखा गया है:-
1. 1.0 हे. से कम - सीमांत जोत
2. 1.0 हे. से 2.0 हे. - लघु जोत
3. 2.0 हे. से 4.0 हे. - अर्धमध्यम जोत
4. 4.0 हे. से 10.0 हे. - मध्यम जोत
5. 10 हे. से अधिक - वृहद जोत
सीमांत जोत के कृषक अधिकांषतः कृषि श्रमिक होते हैं। लघु जोत के कृषक अपने जोत पर स्वयं कृषि करने के साथ-साथ कृषि श्रमिक के रूप में अन्य की भूमि पर मजदूरी करते हैं। मध्यम जोत वाले कृषकों का स्तर अपेक्षाकृत ऊँचा होता है। वृहद जोत के कृषक कृषि श्रमिकों को उत्पादन के एक निष्चित अंष पर अपनी भूमि कृषि कार्य के लिए देते हैं। अतः वृहद आकार के कृषक उस भूमि की भू-स्वामी कहलाता है।
छत्तीसगढ़ राज्य में कृषि संगणना 2010-2011 के अनुसार कुल जोतों की संख्या 37,46,480 है जिसका 58.3 प्रतिषत सीमांत जोत (1 हे. से कम) तथा 22.2 प्रतिषत लघु जोत (1-2 हे.), 13.7 प्रतिषत अर्धमध्यम जोत (2-4 हे.), 5.4 प्रतिषत मध्यम जोत (4-10 हे.) एवं 0.7 प्रतिष्त वृहद जोत (10 हे. से अधिक) के अंतर्गत है। जोतों के क्षेत्रफल का प्रतिषत सीमांत जोत (18.7 प्रतिषत) में एक - तिहाई है। उल्लेखनीय है कि लघु जोत में जोतों का क्षेत्रफल (23.2 प्रतिषत) तथा जोतों की संख्या के प्रतिषत में अंतर कम है। यद्यपि क्षेत्रफल का प्रतिषत संख्या के प्रतिषत से अधिक है। अर्धमध्यम जोत में जोतों के क्षेत्रफल का प्रतिषत (26.5 प्रतिषत) जोतों की संख्या के प्रतिषत से दोगुना है। मध्यम जोत में क्षेत्रफल का प्रतिषत जोतों की संख्या के प्रतिषत से चार गुना अधिक है। वृहद जोत के अंतर्गत जोतों के क्षेत्रफल का प्रतिषत 8.88 है। (सिंह, 1976) ने बताया की जोत के नीचले स्तर में कृषकों के बड़ी संख्या एकत्र होने का कारण कुछ बड़े कृषक के पास भूमि का एकत्रीकरण है। इसका प्रमुख कारण ग्रामीण कार्यषील जनसंख्या में से बहुत से कृषि श्रमिक अन्य व्यसायों की कमी के कारण कृषि व्यवसाय को अपनाते हैं, जिससे उनका आर्थिक स्तर नीचे रहता है।
सारणी क्र. 1, छत्तीसगढ़: जोत का आकार (2010-11)
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1 ls de |
21]82]837 |
58-3 |
9]52]787 |
18-7 |
|
y?kq |
1 ls 2 |
8]31]118 |
22-1 |
11]79]403 |
23-2 |
|
v)Z e/;e |
2 ls 4 |
5]02]989 |
13-4 |
13]47]658 |
26-5 |
|
e/;e |
4 ls 10 |
2]01]841 |
5-4 |
11]52]856 |
22-7 |
|
o`gn~ |
10 ls vf/kd |
227]698 |
0-7 |
4]51]344 |
8-9 |
|
dqy |
37]46]480 |
100 |
50]84]047 |
100 |
|
स्रोत कृषि संगणना, 2010-11
विभिन्न आकार के जोतों के वितरण में असमानता पाई गई है। छत्तीसगढ़ में मध्यम तथा वृहद आकार के जोतों का प्रतिषत प्रदेष के मध्यवर्ती मैदानी भाग से उत्तरी एवं दक्षिणी विषम धरातल के क्षेत्रों में अधिक है। इन क्षेत्रों में मध्यम तथा वृहद जोतों का प्रतिषत 20 प्रतिषत से भी अधिक है। इसके विपरीत सीमांत जोतों का प्रतिषत मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्रों में 65 प्रतिषत से अधिक है। इन क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व अधिक होने के कारण सीमांत एवं लघु जोतों का प्रतिषत अधिक है। (गुप्त, 1986) ने स्पष्ट किया की लघु कृषक कृषि नवाचार के अंगीकरण में समर्थ नहीं होती। भूमि के वितरण में असमानता न केवल आर्थिक समस्या, सामाजिक समस्या, उत्पन्न करता है। बल्कि जोतों का बहुत बड़ा हिस्सा अनार्थिक जोत में बदलते जा रहा है।
जोत का औसत आकार ;।अमतंहम ेप्रम व िसंदकीवसकपदहेद्ध
प्रति कृषक कृषि भूमि का वितरण, मिट्टी की प्रकृति, वर्षा की मात्रा, सिंचाई की गहनता, नई बस्ती का बनना, भूस्वात्वाधिकार व्यवस्था तथा धार्मिक विष्वास पर निर्भर करता है। जोत का औसत आकार जनसंख्या के घनत्व, भूमि की उर्वरता तथा तकनीकी प्रविधियों के प्रयोग से नियंत्रित होता है। उत्तराधिकार के कानून भी इसे प्रभावित करते है। छत्तीसगढ़ में जोत का औसत आकार 1.36 हेक्टेयर है। जोत का औसत आकार अनुसूचित जातियों में 0.88 हेक्टेयर तथा अनुसूचित जनजातियों में 1.91 हेक्टेयर है। प्रदेष में जोत का आकार छोटा है किन्तु उत्तरी एवं दक्षिणी पहाड़ी विषम धरातल के क्षेत्रों में जोत का औसत आकार दो हेक्टेयर से अधिक है। इन क्षेत्रों में भूमि का उपजाऊपन कम है, अधिकांष जनसंख्या अनुसूचित जनजातियों की है। प्रदेष के मध्यवर्ती भागों में जोत का आकार 1.5 हेक्टेयर से कम है। इन क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि तथा सिंचाई सुविधा होने के कारण जनसंख्या का घनत्व अधिक है।
छत्तीसगढ़ राज्य को जोत के औसत आकार (मानचित्र क्रमांक 1) के आधार पर तीन वर्गों में रखा जा सकता है:-
1. अपेक्षाकृत वृहद जोत के क्षेत्र (2 हे. से अधिक)
2. अपेक्षाकृत मध्यम जोत के क्षेत्र (1.5 हे. से 2.0 हे.)
3. न्यून जोत के क्षेत्र (1.0 हे. से कम)
(1) अपेक्षाकृत वृहद जोत के क्षेत्र ;।तमंे व ि त्मसंजपअमसल भ्पही स्ंदकीवसकपदहेद्धरू
छत्तीसगढ़ प्रदेष में वृहद जोत के क्षेत्र में छह जिले शामिल हैं। इन जिलों में जोत का आकार 2 हेक्टेयर से अधिक है। इस वर्ग में प्रदेष के दक्षिण के दंतेवाड़ा (6.07 हे.), सुकमा (3.60 हे.), बीजापुर (2.37 हे.), नारायणपुर (2.69 हे.), बस्तर (2.01 हे.) एवं उत्तर के जषपुर (2.22 हे.) जिले शामिल हैं। ये क्षेत्र बस्तर उच्च प्रदेष तथा जषपुर उच्च प्रदेष के अंतर्गत हैं। उल्लेखनीय है कि दंतेवाड़ा और सुकमा जिले में जोत का औसत आकार तीन हेक्टेयर से अधिक है। इन जिलों में जोत का आकार बड़ा होने के कारण ये प्रदेष के दक्षिणी विषम धरातल के क्षेत्र हैं। यहाँ अनुपजाऊ भूमि, घने वन एवं अनुसूचित जनजाति जनंसख्या की अधिकता है। इन क्षेत्रों में प्रवास भी कम हुआ है। अतः यहाँ जनसंख्या का घनत्व बहुत कम है। अनुपजाऊ भूमि जनसंख्या उत्प्रवास के लिए जिम्मेदार हैं। छत्तीसगढ़ में जनसंख्या के घनत्व एवं जोत के आकार में ऋणात्मक सहसंबंध (-.50) पाया गया है।
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Ø- |
ftyk |
tksr dk vkSlr vkdkj ¼gs-½ |
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Ø- |
ftyk |
tksr dk vkSlr vkdkj ¼gs-½ |
fxuh ldsUnz.k lwpdkad |
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1 |
/kerjh |
1-01 |
0-4326 |
15 |
csesrjk |
1-24 |
0-5028 |
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2 |
tktaxhj&pkaik |
0-91 |
0-4579 |
16 |
eqaxsyh |
0-97 |
0-4831 |
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3 |
t'kiqj |
2-22 |
0-4966 |
17 |
fcykliqj |
0-95 |
0-4960 |
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4 |
dkadsj |
1-03 |
0-6119 |
18 |
lqdek |
3-60 |
0-5136 |
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5 |
dchj/kke |
1-84 |
0-4400 |
19 |
narsokM+k |
6-07 |
0-5830 |
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6 |
Dksjck |
1-15 |
0-5023 |
20 |
dks.Mkxkao |
1-89 |
0-4178 |
|
7 |
dksfj;k |
1-66 |
0-4760 |
21 |
cLrj |
2-01 |
0-5264 |
|
8 |
egkleqan |
1-39 |
0-4734 |
22 |
xfj;kcan |
1-40 |
0-4768 |
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9 |
jk;x<+ |
1-37 |
0-5282 |
23 |
cykSnkcktkj |
1-01 |
0-4552 |
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10 |
Jktukanxkao |
1-42 |
0-4714 |
24 |
jk;iqj |
1-09 |
0-4754 |
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11 |
ukjk;.kiqj |
2-69 |
0-4417 |
25 |
cyjkeiqj |
1-60 |
0-4862 |
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12 |
chtkiqj |
2-87 |
0-4469 |
26 |
lwjtiqj |
1-17 |
0-4871 |
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13 |
Ckyksn |
1-23 |
0-4591 |
27 |
ljxqtk |
1-62 |
0-6360 |
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14 |
nqxZ |
1-35 |
0-4969 |
NRrhlx<+ |
1-36 |
0-5090 |
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प्रदेश के इन विषम धरातल के जिलों में वृहद जोत का प्रतिषत सर्वाधिक दंतेवाड़ा जिले में 14.9 प्रतिषत है। इसके अंतर्गत कुल जोतों के क्षेत्र का 58.7 प्रतिषत क्षेत्र शामिल हैं। इसी तरह सुकमा जिले में वृहद जोत 6.5 प्रतिषत है। जिसके अंतर्गत 33.2 प्रतिषत जोतों का क्षेत्र है। शेष चार जिलों में भी वृहद जोत - बीजापुर (3.7 प्रतिषत), नारायणपुर (2.9 प्रतिषत), बस्तर (2.11 प्रतिषत) तथा जषपुर (2.0 प्रतिषत) जिलों में वृहद जोत 2.0 प्रतिषत से अधिक है। जोतों का क्षेत्रफल क्रमषः बीजापुर में 21.0 प्रतिषत, नारायणपुर जिले में 15.9 प्रतिषत, बस्तर जिले में 17.7 प्रतिषत तथा जषपुर जिले में 12.6 प्रतिषत है जो इन जिलों में अपेक्षाकृत वृहद जोत को स्पष्ट करता है।
निष्कर्ष में, इन जिलों में भूमि उपयोग दक्षता न्यून है। अतः इन क्षेत्रों में जनसंख्या का भरण पोषण क्षमता कम है। अतः यहाँ जनसंख्या विरली है, जिसके कारण इन क्षेत्रों में जनसंख्या के अनुपात में जोत का आकर बड़ा है।
(2) अपेक्षाकृत मध्यम जोत के क्षेत्र ;।तमंे व ि त्मसंजपअमसल डमकपनउ स्ंदकीवसकपदहेद्धरू
छत्तीसगढ़ राज्य में अपेक्षाकृत मध्यम जोत के आकार में मुख्य रूप से उत्तरी को दक्षिण में बस्तर प्रक्षेत्र तथा सरगुजा उच्च भूमि शामिल है। जहाँ जोत का औसत आकार 1.50 से 2.0 हेक्टेयर है। अपेक्षाकृत मध्यम जोत के क्षेत्र में राज्य के 27 जिलों में से पाँच जिले शामिल हैं। ये जिले कोरिया (1.66 हे.), कोण्डागांव (1.89 हे.), बलरामपुर (1.60 हे.), सरगुजा (1.62 हे.) एवं कबीरधाम (1.84 हे.) जिले शामिल हैं। इन क्षेत्रांे में अर्धमध्यम एवं मध्यम जोतों का प्रतिषत कोरिया जिले में 28.4 प्रतिषत, कोण्डागांव जिले में 32.3 प्रतिषत, बलरामपुर जिले में 26.5 प्रतिषत तथा सरगुजा जिले में 21.2 प्रतिषत तथा कबीरधाम जिले में 31.9 प्रतिषत है। इन जिलों में अर्धमध्यम एवं मध्यम जोतों का प्रतिषत 20 प्रतिषत से अधिक है। इनमें (बीजापुर और नारायणपुर जिलों को छोड़) शेष चार जिलों में गिनी संकेन्द्रण सूचकांक उच्च 0.55 प्रतिषत से अधिक है अर्थात् इन चारों जिलों में जोतों के वितरण में असमानता उच्च है। किन्तु बीजापुर एवं नारायणपुर जिले में गिनी संकेन्द्रण सूचकांक 0.45 प्रतिषत से कम है, जो जोतों के वितरण में कम असमानता को व्यक्त करता है।
(3) निम्न जोत के क्षेत्र ;।तमंे व िस्वू स्ंदकीवसकपदहेद्ध
छत्तीसगढ़ राज्य में 27 जिलों में से 16 जिलों में जोत का औसत आकार 1.50 हेक्टेयर से कम है इनमें से जांजगीर चांपा (0.91 हे.), बिलासपुर (0.95 हे.) एवं मुंगेली (0.97 हे.), जिलों में जोत का औसत आकार 1.0 या इससे कम है। शेष 13 जिलों में जोत का औसत आकार रायपुर, बलौदाबाजार एवं धमतरी (1.0 हे.), सुरजपुर जिले (1.17 हे.), कोरबा (1.15), रायगढ़ (1.37 हे.), महासमुंद (1.39 हे.), गरियाबंद (1.40 हे.), बेमेतरा (1.23 हे.), दुर्ग (1.35 हे.), बेमेतरा (1.24 हे.) एवं कांकेर (1.30 हे.) एवं राजनांदगांव (1.42 हे.) जिलों में जोत का आकार 1.00 से 1.50 हेक्टेयर है। निम्न जोत के ये क्षेत्र प्रदेष के मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्र हैं जहाँ महानदी एवं षिवनाथ नदियों का प्रवाह क्षेत्र है। यहाँ समतल एवं उपजाऊ मिट्टी, तथा सिंचाई की सुविधा के कारण जनसंख्या का घनत्व अधिक है, जिससे जनसंख्या की तुलना में जोत का आकार छोटा है। इसी तरह से इन क्षेत्रों में यातायात के साधनों से औद्योगिकरण को बढ़ावा मिला है जिससे इन क्षेत्रों में नगरीयकरण तथा जनसंख्या का प्रवास अधिक हुआ है। आर्थिक और सामाजिक कारक जिसमें जनसंख्या का वितरण एवं घनत्व, मानवीय आवश्यकताएँ, मानव कुषलता एवं कृषि तकनीक, सामाजिक विचारधारा, परम्परायें एवं रीति रिवाज शामिल हैं, जोत के आकार को प्रभावित करते हैं (मिश्रा एवं राजपूत, 2010)।
निम्न जोत के क्षेत्रों में सीमांत जोतों का प्रतिषत 65 प्रतिषत से अधिक है। बिलासपुर जिले में 69.6 प्रतिषत, जांजगीर चांपा जिले में 71.8 प्रतिषत एवं मुंगेली जिले में 71 प्रतिषत, बालोद जिले में 68.1 प्रतिषत, धमतरी जिले में 66.3 प्रतिषत एवं रायपुर जिले में 66.2 प्रतिषत जोत सीमांत जोत के अंतर्गत है। इन जोतों के अंतर्गत कुल जोतों के क्षेत्रफल 30 प्रतिषत से भी कम है। सीमांत जोतों का प्रतिषत बिलासपुर जिले में 29.2 प्रतिषत, जांजगीर चांपा जिले में 31.4 प्रतिषत, मुंगेली जिले में 29.2 प्रतिषत, बलौदाबाजार जिले में 28.2 प्रतिषत, धमतरी जिले में 28.9 प्रतिषत एवं रायपुर जिले में 26.5 प्रतिषत है। इनमें से छह जिलों में से पाँच जिलों (धमतरी जिले को छोड़कर) गिनी संकेन्द्रण सूचकांक 0.45 प्रतिषत से 0.50 प्रतिषत है। धमतरी जिले में यह सूचकांक 0.45 प्रतिषत से कम है
इस वर्ग में गिनी संकेन्द्रण सूचकांक 0.50 प्रतिषत से कम है जो जोतों के वितरण में अपेक्षाकृत कम असमानता को व्यक्त करता है किंतु कोरबा, बेमेतरा और बालोद जिले में गिनी संकेन्द्रण सूचकांक 0.50 प्रतिषत से अधिक है, जो जोतों के वितरण में उच्च असमानता को व्यक्त करता है।
जोत के आकार में परिवर्तन ;ब्ींदहमे पद ैप्रम व िस्ंदकीवसकपदहेद्ध
कुमार एवं मलिक (2007) के अनुसार देष में कार्यकारी जोत का वितरण, औद्योगिकरण एवं जनसंख्या के घनत्व में वृद्धि से परिवर्तन हो रहा है। सीलिंग अधिनियम और अतिरिक्त भूमि के पुनः वितरण से सीमांत एवं लघु जोतों की संख्या में वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप वृहद जोत टूटकर सीमांत एवं लघु जोत में शामिल हो रहे हैं। छत्तीसगढ़ में 1970-71 की कृषि संगणना के अनुसार जोत का औसत आकार 4.00 हे. थी जो 15 वर्ष बाद 1985-86 में क्रमषः घटकर 2.91 हे. हो गई। इस तरह 1970 से 1986 के 15 वर्षों में जोत के आकार में 1.09 हे. की कमी हुई। तत्पष्चात् पुनः 15 वर्षों में अर्थात् 2000-01 में जोत का आकार घटकर 1.60 हे. रह गया। 1986 से 2001 के 15 वर्षों में जोत के आकार में 1.31 हे. की कमी हुई। इस तरह छत्तीसगढ़ में जोत के आकार में क्रमषः कमी हो रही है। जिससे सीमांत एवं लघु जोतों की संख्या में क्रमषः वृद्धि और वृहत तथा मध्यम जोतों की संख्या में क्रमषः कमी होती जा रही है। जोत के आकार में 1976-77 की कृषि संगणना में 0.43 हे. तथा 1985-86 की कृषि संगणना में 0.51 हे. तथा 2000-01 की कृषि संगणना में 0.68 हे. की कमी हुई। इसका प्रमुख कारण जनसंख्या की बढ़ती हुई दर है। उल्लेखिनीय है कि 2005-06 की कृषि संगणना में जोत के आकार में 0.09 हे. तथा 2010-11 की कृषि संगणना में 0.15 हे. की कमी हुई है।
जोत का औसत आकार 1995-96 में 2.28 हे. तथा 2000-01 में 1.60 हेक्टेयर था जो 2005-06 में घटकर 1.51 हेक्टेयर तथा 2010-11 में 1.36 हेक्टेयर हो गया है। इस तरह से पिछले 10 वर्षों में जोत के आकार में 0.24 हेक्टेयर की कमी हुई है। यही कारण है कि 2000-01 में सीमांत जोत 53.5 प्रतिषत था जो 2010-11 में बढ़कर 58.3 प्रतिषत हो गया है, क्यांेकि वृहद एवं मध्यम जोत के कृषक टूटकर सीमांत एवं लघु जोत में शामिल हो रहे हैं। इसके फलस्वरूप वृहद कृषक 2000-01 में 1.7 प्रतिषत था जो 2005-06 में 1.0 प्रतिषत तथा 2010-11 में घटकर आधे से भी कम (0.7 प्रतिषत) रह गया है।
सारणी क्र. 2, छत्तीसगढ़: जोत के आकार में परिवर्तन (1970-71 से 2010-11)
|
o"kZ |
tksr dk vkSlr vkdkj ¼gs-½ |
fxuh ladsUnz.k lwpdkad |
|
1970&71 |
4-00 |
-6935 |
|
1976&77 |
3-57 |
-5592 |
|
1980&81 |
3-42 |
-5596 |
|
1985&86 |
2-91 |
-5562 |
|
1990&91 |
2-63 |
-5484 |
|
1995&96 |
2-28 |
-5350 |
|
2000&01 |
1-60 |
-5280 |
|
2005&06 |
1-51 |
-5240 |
|
2010&11 |
1-36 |
-5090 |
स्रोत: कृषि संगणना, 2010-11
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य समूहों में भी जोत के आकार में क्रमषः कमी हुई है। 2000-01 में जोत का औसत आकार अनुसूचित जातियों में 1.03 हेक्टेयर, अनुसूचित जनजातियों में 2.08 तथा अन्य जातियों में 1.45 हेक्टेयर थी जो 2010-11 में घटकर क्रमशः 0.88, 1.83 तथा 1.19 हेक्टेयर हो गई है।
सारणी क्र. 3, छत्तीसगढ़: जोतों की संख्या एवं क्षेत्रफल (2000-01 से 2010-11)
|
o"kZ |
tksrksa dh la[;k |
tksrksa dk {ks=Qy ¼gs-½ |
|
2000&01 |
32]55]062 |
52]23]022 |
|
2005&06 |
34]60]658 |
52]09]535 |
|
2010&11 |
37]46]480 |
50]84]047 |
स्रोत: कृषि संगणना, 2010-11
छत्तीसगढ़ राज्य में 2000-2001 की कृषि संगणना के अनुसार कृषि जोतों की संख्या 32,55,062 थी जो 2005-2006 में बढ़कर 34,60,658 हो गई। 2010-2011 में पुनः बढ़कर 37,46,480 हो गई है। इसके विपरीत जोतों के क्षेत्रफल में क्रमषः कमी हुई है। 2000-2001 में जोतों का क्षेत्रफल 52,23,022 हेक्टेयर थी जो 2005-2006 में घटकर 52,09,535 हेक्टेयर तथा 2010-2011 में पुनः घटकर 50,84,047 हेक्टेयर रह गई है। वास्तव में कृषि जोत औद्योगिकरण एवं नगरीयकरण के फलस्वरूप अकृषि भूमि में शामिल हो रहे हैं।
सारणी क्र. 4, छत्तीसगढ़: जोतों की संख्या का प्रतिषत
|
tksr dk vkdkj |
gs- |
1995&96 |
2000&01 |
2005&06 |
2010&11 |
|
Lhekar |
1 ls de |
40-4 |
53-5 |
55-4 |
58-3 |
|
y?kq |
1 ls 2 |
24-1 |
21-9 |
22-0 |
22-1 |
|
v)Z e/;e |
2 ls 4 |
20-0 |
15-5 |
14-9 |
13-4 |
|
e/;e |
4 ls 10 |
12-9 |
8-1 |
6-7 |
5-4 |
|
o`gn~ |
10 ls vf/kd |
2-6 |
1-7 |
1-0 |
0-7 |
|
dqy |
100 |
100 |
100 |
100 |
|
स्रोत: कृषि संगणना, 2010-11
सारणी क्र. 5, छत्तीसगढ़: जोतों का क्षेत्रफल का प्रतिषत
|
tksr dk vkdkj |
gs- |
1995&96 |
2000&01 |
2005&06 |
2010&11 |
|
lhekar |
1 ls de |
8-20 |
14-9 |
16-2 |
18-7 |
|
y?kq |
1 ls 2 |
15-24 |
19-5 |
20-7 |
23-2 |
|
v)Z e/;e |
2 ls 4 |
24-16 |
26-3 |
26-8 |
26-5 |
|
e/;e |
4 ls 10 |
33-64 |
26-9 |
25-4 |
22-7 |
|
o`gn~ |
10 ls vf/kd |
18-76 |
12-4 |
10-9 |
8-9 |
|
dqy |
100 |
100 |
100 |
100 |
|
स्रोत: कृषि संगणना, 2010-11
2000-2001 में सीमांत जोत 53.5 प्रतिषत तथा लघु जोत 21.9 प्रतिषत था। इसके अंतर्गत जोतों का क्षेत्रफल 14.9 प्रतिषत तथा 19.5 प्रतिषत था। 2005-2006 में जोतों की संख्या का प्रतिषत बढ़कर सीमांत जोत 55.4 प्रतिषत तथा लघु जोत 22.0 प्रतिषत हो गया है। इसी तरह से जोतों के क्षेत्रफल के प्रतिषत में भी (सीमांत जोत 16.2 प्रतिषत तथा लघु जोत 20.7 प्रतिषत) वृद्धि हुई है। 2000-2001 की कृषि संगणना में अर्धमध्यम, मध्यम तथा वृहद जोत क्रमषः 15.5 प्रतिषत, 8.1 प्रतिषत तथा 1.7 प्रतिषत था जो 2005-2006 में घटकर 14.9 प्रतिषत, 6.7 प्रतिषत तथा 1.0 प्रतिषत है। किन्तु जोतों के क्षेत्रफल का प्रतिषत अर्धमध्यम जोत में बढ़कर 26.8 प्रतिषत है किन्तु मध्यम (25.4 प्रतिषत) तथा वृहद जोत (10.9 प्रतिषत) के प्रतिषत में कमी हुई है। इसका कारण मध्यम तथा वृहद जोत टूटकर सीमांत एवं लघु तथा अर्धमध्यम जोत में शामिल हो रहे हैं।
2010-2011 की कृषि संगणना के अनुसार सीमांत (58.3 प्रतिषत) तथा लघु जोत (22.1 प्र्रतिषत) के प्रतिषत में वृद्धि हुई है। साथ ही जोतों के क्षेत्रफल के प्रतिषत (सीमांत जोत 18.7 प्रतिषत तथा लघु जोत 23.2 प्रतिषत) में भी वृद्धि हुई है। इसके विपरीत अर्धमध्यम, मध्यम तथा वृहद जोतों के प्रतिषत तथा क्षेत्रफल के प्रतिषत में कमी आई है। 2010-2011 की कृषि संगणना में जोतों की संख्या का प्रतिषत अर्धमध्यम जोत में 13.4 प्रतिषत, मध्यम जोत में 5.4 प्रतिषत तथा वृहद जोत में 0.7 प्रतिषत है तथा क्षेत्रफल का प्रतिषत अर्धमध्यम जोत में 26.5 प्रतिषत, मध्यम जोत में 22.7 प्रतिषत और वृहद जोत में 8.9 प्रतिषत है।
अन्य व्ययसायों की अल्पता के कारण लोग कृषि भूमि पर अधिक आश्रित है। जोत भूमि छोटे एवं बिखरे टुकड़ों में विभाजित हो रही है। पिता की निजी संपत्ति की तरह भूमि का समान विभाजन स्थिति तथा उर्वरता के अनुसार उनके बच्चों के मध्य (पुत्रों एवं पुत्रियों के बीच) होता है। ये प्रक्रिया समाप्त न होने से जोत टुकड़ों में बंटता जाता है। जोत का औसत आकार भूमि पर जनसंख्या के बढ़ते भार, कृषि पर निर्भरता तथा उत्तराधिकार के नियमों, सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों, भौतिक दषाओं तथा शस्य प्रतिरूप से प्रभावित होता है।
अग्रवाल एवं गुप्त (1976) ने छत्तीसगढ़ प्रदेष में लघु कृषकों के स्थानिक प्रतिरूप और उससे सहसंबंधित कतिपय सामाजिक-आर्थिक तत्व का अध्ययन किया है। उन्होंने बताया कि भूमि के असमान वितरण में अनार्थिक जोत की संख्या बहुत अधिक है। उनकी बहुसंख्यक जोत छोटे आकार के हैं तथा जोत निरंतर छोटा होता जा रहा है जिससे बहुत से कृषक सीमांत कृषक और उनमें से बहुत से कृषक कृषि श्रमिक की कोटि में पहुँचते जा रहे हैं। यह एक भयावह प्रवृत्ति है।
तहसीलवार जोत का आकार
छत्तीसगढ़ के 147 तहसीलों में से 24 तहसील में जोत का आकार एक हेक्टेयर से कम है एवं 29 तहसीलों में दो हेक्टेयर से अधिक है। एक हेक्टेयर से कम जोत का आकार बिलासपुर जिले में बिल्हा (0.93 हे.), मस्तूरी (0.80 हे.), तखतपुर (0.94 हे.), बिलासपुर (0.74 हे.) एवं जांजगीर चांपा जिले में देवरा को छोड़ शेष 9 तहसील, रायपुर जिले में आरंग तहसील (0.91 हे.), बलौदाबाजार जिले में पलारी (0.97 हे.) तथा बिलाईगढ़ तहसील (0.81 हे.), सुरजपुर जिले में प्रेमनगर (0.71 हे.), मुंगेली जिले में लोरमी (0.86 हे.), दुर्ग जिले में दुर्ग तहसील (0.74 हे.), गरियाबंद जिले में राजिम (0.98 हे.), धमतरी जिले में धमतरी तहसील (0.92 हे.), कुरूद (0.99 हे.), कोरबा जिले में पाली (0.94 हे.) एवं कटघोरा (0.84 हे.) तहसीलों में जोत का औसत आकार एक हेक्टेयर या इससे कम है। उल्लेखनीय है कि प्रेमनगर, दुर्ग तथा बिलासपुर तहसील में जोत का औसत आकार 0.75 हे. से भी कम है। ये सभी तहसील प्रदेष के मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्रों के अंतर्गत है, जहां समतल भूमि के कारण घनी जनसंख्या है। छत्तीसगढ़ में जोत के आकार और निरा फसली क्षेत्र में ऋणात्मक सहसंबंध (-.41) पाया गया है।
इसके विपरीत सुकमा जिले के तीनों तहसील सुकमा (3.81 हे.), कोटा (3.17 हे.) तथा छिन्दगढ़ (3.86 हे.), दंतेवाड़ा जिले के दंतेवाड़ा तहसील (5.68 हे.), गीदम (4.42 हे.), कटेकल्याण (7.51 हे.), कुंआकोवा(7.64 हे.), बलरामपुर जिले के सामरी तहसील (2.16), गरियाबंद जिले के मैनपुर (2.02 हे.), कोण्डागांव जिले के कोण्डागांव तहसील (2.04 हे.), राजनांदगांव जिले में मानपुर (2.00 हे.), मोहला (2.16 हे.), कोरिया जिले में भरतपुर (2.0 हे.), जषपुर जिले में कंासाबेल तथा फरसाबहार तहसील को छोड़ शेष तहसील, कांकेर जिले में अंतागढ़ (2.33 हे.), दुर्गकोण्डल (2.83 हे.), भानुप्रतापपुर (2.16 हे.), बीजापुर जिले के सभी चार तहसील तथा नारायणपुर जिले के ओरछा (2.65 हे.), बस्तर जिले के दरभा तहसील (2.83 हे.), बस्तानार (5.72 हे.), लुबण्डा (2.54 हे.) तहसीलों में जोत का औसत आकार 2 हेक्टेयर से अधिक है। सारांष में, दंतेवाड़ा, गीदम, कटेकल्याण एवं बस्तानार चार तहसीलों में जोत का औसत आकार चार हेक्टेयर से अधिक है। सुकमा, कोंटा एवं छिन्दगढ़ तीन तहसीलों में जो का औसत आकार तीन हेक्टेयर से अधिक है। ये सभी तहसील प्रदेष के उत्तरी सरगुजा प्रक्षेत्र तथा दक्षिण के बस्तर प्रक्षेत्र के अंतर्गत है, जहां विषम धरातल, घने वन एवं कृषि भूमि की कमी के कारण जनसंख्या विरली है। छत्तीसगढ़ में जोत के आकार और वनों के प्रतिषत में धनात्मक सहसंबंध ($.344) पाया गया है।
जोतों के वितरण में असमानता ;क्पेचंपतजल पद स्ंदकीवसकपदहद्धरू
छत्तीसगढ़ प्रदेष में जोतों के वितरण में असमानता पायी गई है। जोतों के वितरण में असमानता ज्ञात करने के लिए लारेंज वक्र का निर्माण किया गया है। लारेंज वक्र के आधार पर गिनी संकेन्द्रण सूचकांक ;ळपदप ब्वदेजतंजपवद प्दकमगद्ध की गणना की गई है। यह सूचकांक 0 से 1 के बीच होता है। 0 सूचकांक पूर्ण संकेन्द्रण तथा एक पूर्ण समवितरण को व्यक्त करता है। गिनी संकेन्द्रण सूचकांक सरगुजा जिले में 0.6360, कांकेर जिले में 0.6199 तथा दंतेवाड़ा जिले में 0.58 है जो इन जिलों में जोतों के वितरण में सर्वाधिक असमानता को व्यक्त करता है। रायगढ़ (0.53), कोरबा, बेमेतरा एवं बालोद (0.50), बस्तर (0.52) तथा सुकमा (0.51) इन छह जिलों में गिनी संकेन्द्रण सूचकांक 0.50 से अधिक है जो इन जिलों में भी जोतों के असमान वितरण को व्यक्त करता है। इसके विपरीत कोण्डागांव जिले में गिनी संकेन्द्रण सूचकांक (0.42 प्रतिषत) सबसे कम है जो इस जिले में जोतों के अपेक्षाकृत समवितरण को व्यक्त करता है। कवर्धा एवं नारायणपुर (0.44) एवं बीजापुर (0.45) एवं धमतरी (0.43) इन चारों जिलों में यह सूचकांक 0.45 से कम है जो इन जिलों में जोतों के वितरण में कम असमानता को स्पष्ट करता है। जोत के आकार में कमी के साथ सघन कृषि की मात्रा में क्रमषः वृद्धि होती है। क्योंकि छोटे किसानों के पास जमीन बहुत ही छोटी होती है। ये छोटे कृषक कृषि के लिए बैल का जोड़ा भी रखने में समर्थ नहीं होता (अग्रवाल एवं गुप्त, 1976)।
सामाजिक समूहों में जोत का आकार ;स्ंदकीवसकपदहे ठल ैवबपंस ळतवनचेद्धरू
(षर्मा, 2007) पिछले दो दषकों में भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण संरचनात्मक परिवर्तन हुए हैं। कृषि ग्रामीण जनसंख्या के दो-तिहाई से अधिक जनसंख्या के लिए जीवका यापन का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। विषेषकर समाज के पिछड़े वर्ग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों में कृषि का महत्व और भी अधिक है। अनुसूचिज जातियों की सबसे बड़ी समस्या इनका पिछड़ा तथा निरक्षर होना है, जिससे ये शासन द्वारा प्रदत्त सुविधाओं का पूरा लाभ नहीं ले पा रहे हैं। कृषि कार्य में इन जातियों की प्रधानता है, फिर भी इनकी कृषि बहुत पिछड़ी हुई है। अनुसूचित जनजातियों का आर्थिक जीवन उनकी भौगोलिक परिस्थितियों द्वारा निर्धारित होता है। अनुसूचित जातियों की तुलना में अनुसूचित जनजातियाँ सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से अधिक पिछड़ी हुई हैं। सामान्यतः अनुसूचित जातियाँ मैदानी क्षेत्रों में तथा अनुसूचितज जनजातियाँ पहाड़ी, पठारी तथा वनाच्छादित क्षेत्रों में निवास करती है। अधिकांष जातियाँ कृषि श्रमिक हैं जबकि अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या वनों से जीवकोपार्जन करती है।
सारणी क्र. 6, छत्तीसगढ़: सामाजिक समूहों में जोत का आकार
|
lkekftd lewg |
2000&01 |
2005&06 |
2010&11 |
|
vuqlwfpr tkfr |
1-03 |
0-96 |
0-88 |
|
vuqlwfpr tutkfr |
2-08 |
2-00 |
1-83 |
|
vU; tkfr |
1-45 |
1-34 |
1-19 |
|
dqy |
1-60 |
1-51 |
1-36 |
स्रोत: कृषि संगणना, 2010-11
छत्तीसगढ़ में विभिन्न सामाजिक समूहों में जोत का आकार भिन्न-भिन्न है। 2010-2011 के कृषि संगणना के अनुसार अनुसूचित जातियांे में जोत का आकार 0.88 हेक्टेयर है जबकि अनुसूचित जनजातियों में यह दोगुना से अधिक (1.83 हे.) है। सीमांत जोत का प्रतिषत अनुसूचित जातियों में (71.8 प्रतिषत) अनुसूचित जनजातियों (43.5 प्रतिषत) से अधिक है। क्षेत्रफल का प्रतिषत अनुसूचित जातियों में 33.9 प्रतिषत है, जबकि अनुसूचित जनजातियों में यह 11.7 प्रतिषत है। लघु जोतों का प्रतिषत अनुसूचित जातियों में 18.5 प्रतिषत है किन्तु जोतों के क्षेत्रफल का प्रतिषत अधिक (29.0 प्रतिषत) है किन्तु अनुसूचित जनजातियों में लघु जोत 25.2 प्रतिषत है जबकि क्षेत्रफल का प्रतिषत कम (19.6 प्रतिषत) है। मध्यम तथा वृहद जोतों का प्रतिशत अनुसूचित जातियों में क्रमषः 1.96 तथा 0.13 प्रतिषत है जबकि अनुसूचित जातियों में क्रमषः 8.82 तथा 1.37 प्रतिषत है।
अकेली शामिल एवं संस्थागत जोत ;प्दकपअपेनंस ंदक श्रवपदज ंदक प्देजपजनजपवदंस स्ंदकीवसकपदहद्धरू
कृषि संगणना में अकेली, शामिल एवं संस्थागत जोतों की संख्या तथा क्षेत्रफल के आंकड़े एकत्र की जाती है। यदि कृषक अपना स्वयं की एवं परिवार के किसी सदस्य अथवा अन्य व्यक्ति की भूमि जोतता है, आर्थिक एवं तांत्रिक उत्तरदायित्व वहन करता है तो ऐसी जोत को अकेली जोत माना गया है। जब अलग परिवारों के 2 अथवा 2 से अधिक व्यक्ति (हिस्सेदार के तौर पर) भूमि को जोतने में आर्थिक एवं तांत्रिक उत्तरदायित्व सम्मिलित रूप से वहन करते हैं तो ऐसी जोत को शामिल जोत माना गया है। संस्थानों की जोतो के अंतर्गत शासकीय फॉर्म, शक्कर की फैक्ट्री आदि को संस्थागत जोत में सम्मिलित की गई है। मंदिरों से सम्बद्ध भूमि यदि किसी व्यक्ति विषेष को जोतने के लिए दी जाती है तो ऐसी भूमि संस्थागत जोतों के अंतर्गत नहीं मानी गई है।
छत्तीसगढ़ में व्यक्तिगत जोतों की संख्या 37,34,253, शामिल जोत 11,710 और संस्थागत जोतों की संख्या 517 है। इसके अंतर्गत क्रमषः 49,79,158, 1,00,072 तथा 5818 हेक्टेयर क्षेत्र शामिल है। छत्तीसगढ़ में शामिल जोतों की संख्या कवर्धा जिले में सर्वाधिक 2893 है। इसके अंतर्गत जोतों का क्षेत्रफल 9154 हेक्टेयर है, दंतेवाड़ा एवं सुकमा जिले में शामिल जोतों की संख्या क्रमषः 795 और 674 है। इसके अंतर्गत क्षेत्रफल 82913 तथा 6912 हेक्टेयर है। बीजापुर(178), नारायणपुर(33), कोण्डागांव(13) तथा बिलासपुर(4) जिलों में शामिल जोतों की संख्या पायी गई है यद्यपि यह संख्या कम है। इसके अंतर्गत क्षेत्रफल क्रमषः 744, 285, 63 और 1 हेक्टेयर है।
सारणी क्र. 7, छत्तीसगढ़: अकेली शामिल एवं संस्थागत जोत (2010-11)
|
tksr |
tksr |
tksrksa dk {ks=Qy |
||
|
tksrksa dh la[;k |
izfr'kr |
gs- |
izfr'kr |
|
|
vdsyh |
37]34]253 |
99-67 |
49]79]158 |
97-94 |
|
“kkfey |
11]710 |
0-32 |
1]00]072 |
1-97 |
|
laLFkkxr |
517 |
0-01 |
4]818 |
0-09 |
|
dqy |
37]46]480 |
100 |
50]84]047 |
100 |
स्रोत: कृषि संगणना, 2010-11
संस्थागत जोतों की संख्या जांजगीर चांपा, नारायणपुर, कोण्डागांव, बस्तर, बलरामपुर तथा गरियाबंद छह जिलों को छोड़ शेष 21 जिलों में पाया गया है। संस्थागत जोतों की संख्या कबीरधाम जिले में ही सर्वाधिक 73 है। इसके अंतर्गत जोतों का क्षेत्रफल 381 हेक्टेयर क्षेत्र शामिल है। राजनांदगांव (48), जषपुर (35), मुंगेली (31), कांकेर एवं रायपुर (29) एवं बालोद (25) जिलों में संस्थागत जोतों की संख्या 25 से अधिक है। इसके अंतर्गत क्रमषः 328, 327, 392, 29, 644 एवं 126 हेक्टेयर क्षेत्र शामिल है। शेष 14 जिलों में संस्थागत जोत 15 से कम है।
निष्कर्ष ;ब्व्छब्स्न्ैप्व्छद्धरू
छत्तीसगढ़ में जोत का औसत आकार बहुत ही छोटा है और यह क्रमषः कम होता जा रहा है। पिता की निजी संपत्ति की तरह भूमि का समान विभाजन स्थिति एवं उर्वरता के अनुसार इनके बच्चों के मध्य (पुत्रों एवं पुत्रियों के बीच) होता है। ये प्रक्रिया समाप्त न होने से जोत टुकड़ों में बँटता जा रहा है। 2000-01 की कृषि संगणना के अनुसार छत्तीसगढ़ में जोत का औसत आकार 1.54 हेक्टेयर थी जो 2010-11 में घटकर 1.36 हेक्टेयर हो गई है। अन्य व्ययसायों की कमी के कारण लोग कृषि भूमि पर आश्रित है। जोत भूमि छोटे एवं बिखरे टुकड़ों में विभाजित हो रही है, जिससे बहुत से कृषक सीमांत जोत में और उनमें से बहुत से कृषक कृषि श्रमिक की कोटि में पहुँचते जा रहे हैं। यह एक भयावह प्रवृत्ति है। इसी तरह छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में जोतों के वितरण में असमानता पायी गई है। प्रदेष के दक्षिण में बस्तर प्रदेष में जोत का औसत आकार अपेक्षाकृत बड़ा (2 हेक्टेयर से अधिक) है इसके विपरीत मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्रों में जोत का आकार बहुत ही छोटा (1 हेक्टेयर से कम) है। जोत का आकार बच्चों के बीच भूमि का समान वितरण, जनसंख्या के बढ़ते भार, उत्तराधिकार नियम, कृषि भूमि पर निर्भरता, सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों, भौतिक दषाओं तथा शस्य प्रतिरूप से प्रभावित होता है।
REFERENCES:
1. Agarwal, P.C. & H.S. Gupta (1976) : “Spatial Pattern and Some Socio-Economic Correlates of
2. Small Farmers in the Chhattisgarh Region”, Journal of Indian Geography. Vol.4, pp. 1-7.
3. Agricultural Census Division (2008) : All Indian Report on Agricultural Census 2000-01, Department of Agriculture & Cooperation, Ministry of Agriculture, New Delhi.
4. Baghel, A. and P. Vishwakarma (2010): “Landholdings and Landuse Pattern in Korea District”, E-Proceedings of Inernational Geographical Union (IGU) Commission Seminar on Land use, Biodiversity and Climate Change, Organized by Deptt. Of Geography, Cotton College, Guwahati Assam, 11th – 13th December 2010, pp. 63-69.
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Received on 28.02.2022 Modified on 19.03.2022 Accepted on 14.04.2022 © A&V Publication all right reserved Int. J. Ad. Social Sciences. 2022; 10(1):39-51.
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