पर्यावरण प्रदूषण एवं नैतिकता का भौगोलिक अध्ययन
डॉ. कुबेर सिंह गुरूपंच
प्राचार्य देव संस्कृति कॉलेज ऑफ एजुकेषन एण्ड टेक्नॉलॉजी, दुर्ग (छ.ग.)
*Corresponding Author E-mail: kubergurupanch@gmail.com
ABSTRACT:
पर्यावरण प्रदूषण मानव की असीमित आवश्यकताओं आर्थिक व तकनीकी विकास तथा जनसंख्या वृद्धि के कारण बढ़ गई है। मानव अपने जीवन को अधिक सुविधा जनक बनाने के लिए पर्यावरण को दुषित कर रहा है। प्रदूषण के कारण पृथ्वी के समस्त जीव धारियों का जीवन संकट में पड गया है। अतः तात्कालिक आवश्यकताओं के साथ भावी पीढ़ी के जरूरतों का आकलन करते हुए संसाधनो के दोहन की व्यूह रचना बनाना, पर्यावरण की गुणवत्ता का पुर्न स्थापन, आर्थिक विकास एवं पारिस्थितिक संतुलन आदि लक्ष्य दीर्घ कालीन योजना व कुशल प्रबंधन से ही पर्यावरण संतुलित रहेगा, नीति निर्माण, कियान्वयण, विभिन्न स्तरों का समन्वय, प्रशासनिक व्यवस्था एवं आर्थिक प्रबंधन जैसे पक्षों की पर्यावरण संरक्षण में महती भूमिका होती है।
KEYWORDS: तकनीकी, प्रबंधन कियान्वयण, नीति निर्माण.
प्रस्तावना -
पर्यावरण से अभिप्राय हमारे चारो ओर फैले हुए उस वातावरण एवं परिवेष से है जिससे हम घिरे रहते है। प्रकृति में विद्यमान समस्त जैविक एवं अजैविक घटक मिलकर पर्यावरण की रचना करते है, इसमें जल, वायु, भूमि, सूर्य प्रकाष, वनस्पति जंतु एवं मानव प्रमुख है। इन आधार तत्वों का एक निष्चित अनुपात तथा संतुलन बने रहना आवष्यक है आज पर्यावरणीय समस्याओं के कारण जीवो के अस्तित्व खतरे में है अतः पर्यावरण संरक्षण आवष्यक हो गया है।
अध्ययन के उद्देष्य -
1. प्रदूषण के तत्वों की पहचान कर उसका विश्लेषण करना।
2. ठोस द्रव एवं गैसीय प्रदूषको की मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव का आकलन करना।
3. मनुष्य को जागरूक कर संपोषित संसाधनों का विवेक पूर्ण उपयोग करते हुए पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य में सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका का अध्ययन करना।
आज वर्तमान परिस्थिति में पर्यावरण का संतुलन बनाये रखना आवश्यक हो गया है मानव की भौतिकवाद प्रवृतियों ने पर्यावरण को बिगाड़ दिया है जैसे जैसे शिकच का विकास हुआ वैसे वैसे पर्यावरण. मे नैतिकता की आवश्यकता महसूस हुई भारत भूमि की संस्कृति में प्राचीन युग से आधुनिक युग तक किसी न किसी रूप में हम प्रकृति पर निर्भर है पर्यावरण पृथ्वी परीस्थीति प्राकृतिक संसाधनों वन एवं वन्य जीव ऊर्जा पर्यावरण प्रदूषण पर्यावरण प्रबधक पर्यावरण संरक्षण अवम पर्यावरण शिखचह सभी में नैतिकता को ध्यान में रखना है पर्यावरण से मानव जीवन अवम अन्य प्राणी विभिन्न प्रकार के वृक्ष वन्य जीव आदि का भरन पोषण निर्भर है जिनके कारण प्रतिपालन तंत्र बन जाता है। अतः वर्तमान में पर्यावरण को समझने तथा उसकी बाधाओं को दूर कर उसे संतुलित अवम जन उपयोगी बनाने हेतु मनुष्य को अपने दृष्टिकोण को लक्ष्य केन्द्रित तथा परिणाम केन्द्रित करना होगा और अंतिम उपलब्धि पर्यावरण की गुणवत्ता रखना होगा इसी से जीवन की गुणवत्ता हो सकती हैं
पर्यावरण में नैतिकता को बनाये रखने के लिए निम्नलिखित उद्देश्यों का अध्ययन आवश्यक है। पर्यावरण के प्रति जागरुकता विकसित करना,पर्यावरण आचार संहिता का विकास करना,पर्यावरण सुधार, बढ़ती आबादी पर नियंत्रण स्वचख पर्यावरण की सुखद कल्पना को साकार करना पर्यावरण समस्याओं को प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धि और उचित उपयोग वायु जल भूमि और उनकी प्रदूषण निवारन करको,पर्यावरण कानूनी पर्यावरण साहित्य का निर्माण और उनका वितरण, पर्यावरण के छहतारा में शोध के माध्यम से कम व्यय वाली टखलीफ का विकास करके नैतिकता को बढाया जा सकता है जब से मानव पर विकास हुआ है तब से उसकी रहने की स्थिति उपलब्धि आवश्यक वस्तुए वांछित सुविधाए और उसके जीवन की इच्छा तथा आकाँचओ में बहुत असमानता है पिछले कुछ दशकों से जीवन की गुणवत्ता की चर्चा हो रही है और इसी चर्चा से पर्यावरण गुणवत्ता की चर्चा हो रही है वह वातावरण निर्मित हो पर्यावरण गुणवत्ता कहलाता है पर्यावरण अध्ययन का मुख्य उद्देश्य बच्चो को अधिक प्राकृतिक सूचना प्रदान करना जिससे परयवारनीय अवधारणा कौशल और मूल्यों के संतुलन को समझे मानव जीवन भौतिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति जिससे होती है व संसाधन कहलाती है प्राकृतिक संसाधनों प्रकृति से मिली वह संपदा हैं जिसे मनुष्य और जीव जंतुओं के कल्याण और सुखमय जीवन के लिए बनाया है प्रकृति में कमी की आवश्यकता की पूर्ति करने की कच तक है लेकिन किसी एक के भी लालच की नहीं जल का अत्यधिक उपयोग वन का उपयोग जमीन का उपयोग जैविक विविधता से आश्य उस परिवर्तन से है जो आबादी प्रजातियां समुदाय और परिस्थिति तंत्र से मिलता है भोजन पानी औषधि तथा उद्योग के लिए कचा माल जलीय छात्र की सुविधा पानी की सवछटा मिट्टी की पुनह संरचना तथा उसके उपजाऊ पान का नियंत्रण और रखाव अधिक ताप का नियंत्रण वायुमंडल का रखरखव आदि हमारे जीवन के लिए उपयोगी है लेकिन जैविक विविधता के कम होने नष्ट होने विलुप्त होने में मनुष्य की बड़ी भूमिका है तीरव अवनिकरन प्रजाति संकेतग्रत छहत्रो की अवहेलना जैविक आक्रमण जलवायु परिवर्तन तथा बढ़ती आबादी का प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उपयोग तथा सामान्य जन को सूचना और गायन का आभाव से नैतिकता प्रभवित हैं वास्तविक परिस्थिति में न केवल समझदारी वाले रवैया को अपनाने की उपयुक्त योग्यता का विकास कर भाषा है इसमें व्यक्तिगत अपेक्षा आत्म विधि ताओ अभिरुचियों आदि की पहचान हो सके वायु प्राकृतिक उचित अवम बूढीमत पूर्ण उपयोग कर जल को कल के लिए बचाये पानी का उचित संरचना करे पानी के दुरुपयोग को रोके नैतिकता नैतिकता किसी व्यक्ति या व्यक्तियों से सबधित वह सीधा और मूल्य है जिन्हे सामान्यत किसी समाज द्वारा स्वीकार किया जाता है नैतिकता तत्काल यह निर्णय करने अथवा देने में सक्षम होतीं हैं कि व्यक्ति अथवा समान द्वारा किये जा रहे हैं कार्य अच्छे हैं या बुरे हैं यही नहीं बल्कि उचित अअनुचित कार्य भी नैतिकता के दायरे में आ जाते हैं आज देश के सभी वर्ग और विभिन्न छेत्री में कार्यरत लोग यह महसूस करने है जिससे कार्य पूरा हो सके ।
पर्यावरण के क्षेत्र्ा मे मनुष्य की नैतिक भूमिका
मनष्य के अनैतिक आचरण से जहा र्प्यावरण सहित सभी क्षेत्र्ा में हास हुआ है वही अच्छे आचरण और सामाजिक स्वीकृति से किये जाने वाले व्यावहारिक क्रियाकलापों के उत्थान से प्रभावित होने वालो कार्यकलपों में मनुष्य की भूमिका की समेकित प्रयास किये जाने की आवश्यकता हैं।
1. मनुष्य को वैकल्पिक ईधन के उपयोग के लिए तैयार करना।
2. मनुष्य के शौंक को रोक लगाना।
3. प्रकृति में संतुलन के लिए वन सुरक्षा एवं वृक्षारोपण पर बल देना।
4. पर्यावरण को संतुलित बनाये रखने के लिए मनुष्य को उन्नत तकनीकांे का उपयोग करना चाहिए जो विनाष राहित विकास पर आधारित हो।
5. अधिक आबादी को रोकना आवष्यक है। वन्य जीवो का संख्या में कमी, जलवायु परिवर्तन, वर्षा की मात्र्ाा में कमी आदि हुआ है। अतरू मनुष्य को अपने मानस मे परिवर्तन करना होगा।
6. मनुष्य को निर्धूम चूल्हे उपल्बध कराने चाहिए तथा रसोई घर में खिडकी और रोषनदान की व्यवस्था हौनी चाहिए।
7. मनुष्य मे सेचने विचारने और कार्य करने की योग्यता और क्षमता है। अतः पर्यावरण को अनेक प्रकार से परिवर्तन कर सकता है। उपर्युकत प्रयास किया गया है जिसमे वह नैतिक रूप से सम्बध हे। यह मनुष्य के र्प्यावरण में नैतिकता के प्रकार करता है।
नैतिकता हास के संभावित कारण:
1ण् व्यक्तिगत स्वार्थपरता
2ण् ललच
3ण् आलस्य अजगर करे न चाकरीए पंछी करे न काम। दास मलूका कह गयेए सबके दाता राम।।
4ण् कठोर परिश्रम के प्रति उदासीनता।
5ण् राष्ट्रीय भावना में कमीं।
6ण् दूसरो से तुलना करने की होड।
7ण् बुरी संगत ।
8ण् भविष्य की अनदेखी ।
9ण् आत्मविष्वास और इच्छा शक्ति में कमी।
नैतिकता और पर्यावरण.:
पर्यावरण के क्षेत्र्ा में आज चिंतन करने की दिषा को 4 भागो में विभाजित की गई है। इन 4 विभाजनो के आधार पर अंताराष्टीªय संस्थाएं, राष्टीªय संस्थाए और केंद्र सरकार, राज्य स्तरीय सस्थाएं और सामाजिक नेता सभी उचित सुरक्षा, सुधार और प्रबंध के लिए कार्य कर रहे है इन सभी में व्यावहारिक क्रियान्वयन केवल मनुष्य द्धारा किया जाता है।
नैतिकता के विकास के लिए उपाय:
नैतिकता एक कठिन कार्य है यह सरकार प्रेरित है। अच्छी संगति से अच्छा नागरिक बन सकता है। इससे जीवन मूल्यो के प्रति आस्था होगी अच्छी आदतो का निर्माण होगा। आदर्ष पुरूषो की जीवनियां पठनीय साहित्य से आदर्ष व्यक्तित्व का चित्र्ाण प्रस्तुत होगा।
निष्कर्ष:
उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी का लाभ समाज को मिल रहा है। इसमें हो रही शोध व सूचनाओं का एकत्रीकरण सूचनाओं का आदान-प्रदान पर्यावरण में हो रहे परिवर्तन, वन विनाश, ओजोन क्षरण, प्राकृतिक प्रकोप आदि से संबंधित सूचना दूर संवेदी उपग्रहो द्वारा, इंटरनेट द्वारा घर बैठे मिल रहा है जिसके कारण टेली मेडिसिन का प्राकृतिक विपदाओं के दौरान महत्वपूर्ण उपयोग होता है। सी.टी. स्केन, एम.आर.आई. सोनोग्राफी आदि नवीनतम तकनीकी से चिकित्सा जगत में कान्ति कारी परिवर्तन आये है। इस प्रकार राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय स्तर पर प्रदूषण से मुक्त होने के लिए मानवीय जीवन को बचाने के लिए विभिन्न प्रयास किये जा रहे है यदि मानव स्वयं को प्रकृति का या पृथ्वी का पुत्र समझे तो उसके किसी भी घटक को प्रदूषित करने, वृक्ष काटने या जीव हिंसा करने की कल्पना भी नहीं करेगा तथा व सुधैव कुटुम्बकम का भाव बना रहेगा यही पर्यावरण प्रदूषण की समस्याओं का सहज समाधान हो सकता है।
संदर्भ पुस्तक सूची
1. पर्यावरण अध्ययन -डॉं दयाषंकर त्र्ािपाठी।
2. पर्यावरण अध्ययन -डॉं रतन जो साहित्य भवन पब्लिकेषन्स आगरा।
3. पर्यावरण प्रदूषण और हम एक संक्षिप्त परिचय - प्रतिभा सिंह।
4. पर्यावरण प्रदूषण एक अध्ययन -डॉ रविंद्र कुमार।
5. पर्यावरण भूगोल -डॉ एच एम सक्सेना पूजा सक्सेना रावत पब्लिकेषन्स जयपुर।
6. पर्यावरण प्रदूषण एवं प्रबंधन - श्री प्रधान।
7. पर्यावरण एवं मानव जीवन - डॉ सुमन गुप्ता लोकप्रिय विज्ञान सीरीज।
8. पर्यावरण भूगोल - प्रो सविन्द्र सिंह वसुन्धरा प्रकाषन गोरखपुर उत्तरप्रदेष
9. पर्यावरण षिक्षा - एम के गोयल अग्रवाल पब्लिकेषन्स आगरा।
Received on 17.12.2021 Modified on 01.02.2022 Accepted on 24.03.2022 © A&V Publication all right reserved Int. J. Ad. Social Sciences. 2022; 10(1):31-34.
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