एकल एवं सहशिक्षा विद्यालयों के शालेय वातावरण का विद्यार्थियों के आकांक्षा स्तर पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन

 

डाॅ. शर्मिला1, डाॅ. अब्दुल सत्तार2, श्रीमती सविता सालोमन3

1प्राध्यापिका, कलिंगा विश्वविद्यालय, नया रायपुर

2विभागाध्यक्ष, कमला नेहरू महाविद्यालय, कोरबा

3सहायक प्राध्यपिका, प्रगति महाविद्यालय, रायपुर

*Corresponding Author E-mail:

 

ABSTRACT:

प्रस्तुत अध्ययन में एकल शिक्षा एवं सह शिक्षा का शालेय वातावरण एवं आकांक्षा स्तर पर प्रभाव का अध्ययन किया गया है। इसमें तीन उद्देश्यों की पूति हेतु 3 परिकल्पनाओं का निर्माण किया गया। जिसमें यादृच्छिक न्यादर्श विधि का प्रयोग करते हुए कुल 800 विद्यार्थियों पर यह शोध कार्य किया गया। सहसंबंध ज्ञात कर के निष्कर्ष के रूप में पाया गया कि शालेय वातावरण का प्रभाव उनके आकांक्षा स्तर पर पूर्ण रूप से पाया गया।

 

KEYWORDS: मलिन बस्ति, आय, गरीबीण्

 


 

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कन्या शाला, बालिका शिक्षा का हमारे देश में अत्यन्त महत्व है। आज भी हमारे देश में लड़के और लडकियों में भेदभाव किया जाता हैं ग्रामीण क्षेत्रों में लडकियों की स्थिति सोचनीय हो जाती है। ग्रामीण परिवेश मे लोग शिक्षा के महत्व से परिचत नहीं हो पाते है। उनकी दृष्टि में पुरूषों को शिक्षा की जरूरत होती है क्योंकि वे नौकरी करने अथवा काम करने बाहर जाते है जबकि लड़कियाँ तो घर में रहती है और शादी के बाद घर के काम-काज में ही उनका ज्यादातर समय बीत जाता है। जिसके कारण लड़कियां शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ जाती है।

 

अतः शिक्षक को आज के दशक में हर सम्भवतः हर क्षेत्र में पहुंचाया जा रहा है जिसके चलते बालिका शिक्षा का विकास हुआ है।

 

सह शिक्षा से तात्पर्य ऐसी शिक्षा से है, जिसमें बालक और बालिकाएं एक साथ एक ही विद्यालय में पढ़ते हैं तथा एक साथ एक समान पाठयक्रम पूरा करते है। जहां छात्र-छात्राओं को एक ही शिक्षण व्यवस्था तथा प्रशासन में शिक्षा ग्रहण करनी होती है। यह शिक्षा-व्यवस्था आधुनिक भारत में नवीन नहीं है। वैदिक काल में गुरू आश्रम व्यवस्था के अन्तर्गत गुरू कन्या के साथ अन्य विद्यार्थी भी शिक्षा ग्रहण किया करते थे। परन्तु उस समय गुरू के प्रति श्रद्धा, ब्रहा्रचर्य पालन, व्रत और संयम उन्हें भाई बहन के पवित्र सम्बंधों में ही बांधकर रखता था। इस प्रकार एक ही समय में एक संस्था के अधीन और एक ही छत के नीचे लड़के और लड़कियों को एक साथ शिक्षा देना सह-शिक्षा कहलाता है।

 

शैक्षिक आकांक्षा के द्वारा ही निम्न शैक्षिक उपलब्धि वाला बालक भी उच्च शैक्षिक उपलब्धि पर प्रभाव डालता है। मनुष्य जिस वातावरण में रहता है उसी से प्रभावित होकर अपनी आकांक्षा को निर्मित करता है और आकांक्षा ही मानव के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। एक निम्न शैक्षिक उपलब्धि वाले बालक की शैक्षिक आकांक्षा बहुत उच्च होकर मध्यम ही हो सकती है। जब कि उच्च शैक्षिक उपलब्धि वाले बालक की होकर मध्यम ही हो सकती है। जब कि उच्च शैक्षिक उपलब्धि वाले बालक की शैक्षिक आकांक्षायें उच्च हो भी सकती हैं। शैक्षिक आकांक्षा स्तर व्यक्ति की व्यक्तिगत रूचि, अधिक्षमता तथा अन्य कारण पर भी निर्भर करती हैं। एक निम्न सामाजिक आर्थिक स्तर वाले बालक की शैक्षिक आकांक्षा भी उच्च हो सकती है।

 

समस्या का कथन:-

एकल एवं सहशिक्षा विद्यालयों के शालेय वातावरण का विद्यार्थियों के आकांक्षा स्तर पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन

 

अध्ययन के उद्देश्य:-

1. एकल शिक्षा विद्यालयों के शालेय वातावरण का विद्यार्थियों के आकांक्षा स्तर से सम्बन्ध का अध्ययन करना।

2. सहशिक्षा विद्यालयों के शालेय वातावरण का विद्यार्थियों के आकांक्षा स्तर से सम्बन्ध का  अध्ययन करना।

3. एकल एवं सहशिक्षा विद्यालयों के शालेय वातावरण का विद्यार्थियों के आकांक्षा स्तर से सम्बन्ध की तुलना करना।

 

शोध अध्ययन के परिकल्पनाएँ:-

1. एकल विद्यालयों के शालेय वातावरण का विद्यार्थियों के आकांक्षा स्तर में सार्थक अंतर पाया जाएगा।

2. सह शिक्षा विद्यालयों के शालेय वातावरण का विद्यार्थियों के आकांक्षा स्तर में सार्थक अंतर पाया जाएगा।

3. एकल एवं सहशिक्षा विद्यालयों के शालेय वातावरण का विद्यार्थियों के आकांक्षा स्तर में सार्थक अंतर पाया जाएगा।

 

संबंधित शोध साहित्य का अध्ययन:-

ढोलकिया (1985) ने कक्षा वातावरण एवं विद्यार्थियों की अभिवृत्ति का अध्ययन किया। इस अध्ययन के मुख्य उद्देश्य निम्न प्रकार थे - कक्षा वातावरण को मापने हेतु उपकरण तैयार करना। कक्षा वातावरण का सर्वेक्षण करना। कक्षा वातावरण संचयी वितरण तैयार करना। उपकरण की उपयोगिता और पहचान हेतु प्राचल तैयार करना। निष्कर्ष - चिन्ता और अभिप्रेरणा में समय के साथ परिवर्तन हो जाते हैं। विद्यार्थी समय के बहुत पाबन्द पाये गये लेकिन यह विषयों को बिना उद्देश्यों को समझे यंात्रिकी ढ़ग से सीखते हैंै। विद्यार्थियों ने कक्षा वातावरण में विश्वास दिखाया और उन्होंने विद्यालय जाने को आनन्ददायक बताया।

 

शाह (1981) ने विद्यालय वातावरण का विद्यार्थी और उनके अध्यापकों पर उसके प्रभाव का अध्ययन किया। अध्ययन के उद्देश्य - विभिन्न विद्यालयों के विभिन्न प्रकार के विद्यालय वातावरण का पता लगाना। विभिन्न प्रकार के वातावरण का शिक्षक के व्यक्तित्व और प्रदर्शन के प्रभाव का अध्ययन करना। विद्यालय वातावरण का विद्यार्थियांे के स्वप्रेरणा पर प्रभाव का अध्ययन विभिन्न प्रकार के विद्यालय वातावरण का विद्यार्थियों की संस्थागत उपलब्धि पर प्रभाव का अध्ययन। विभिन्न प्रकार के विद्यालय वातावरण का विद्यार्थियांे के संस्थागत उपलब्धि पर प्रभाव का अध्ययन। निष्कर्ष:-प्रत्येक प्रकार के विद्यालय का अपना विशेष वातावरण होता है,जिसका अध्यापकों के व्यक्तित्व पर भी प्रभाव पड़ता है। समायोजन का उपलब्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। विभिन्न प्रकार के विद्यालयी वातावरण का विभिन्न प्रकार के समायोजन पर सार्थक प्रभाव पड़ता है।विद्यालय वातावरण का विद्यार्थियों की स्वप्रेरणा पर सार्थक प्रभाव पड़ता है। विभिन्न प्रकार के विद्यालय वातावरण का विद्यार्थियों की संस्थागत उपलब्धि पर सार्थक प्रभाव पड़ता है।

 

सिमसन (2007) ने किशोरों के मध्य आकांक्षा-स्तर आत्म विश्वास का जोखिम लेने की प्रवृत्ति के निर्धारकों के रूप में अध्ययन कर पाया कि- 1. शैक्षिक आकांक्षा जोखिम लेने की प्रवृत्ति के मध्य सार्थक संबंध होता है। 2. व्यक्तिगत आकांक्षा जोखिम लेने की प्रवृत्ति के मध्य सार्थक संबंध नहीं पाया गया। 3. सामाजिक आकांक्षा एवं जोखिम लेने की प्रवृत्ति के मध्य सार्थक संबंध पाया गया। 4. आकांक्षा-स्तर जोखिम लेने की प्रवृत्ति से सार्थक रूप से संबंधित होता है लेकिन जोखिम लेने की प्रवृत्ति के लिए जिम्मेदार नहीं होता।

 

कुमार, हाकम (2009) ‘‘माध्यमिक स्तर पर अध्ययनरत एकल संतान बहुसंतान परिवार के विद्यार्थिया की आकांक्षा स्तर एवं समायोजन का तुलनात्मक अध्ययन’’ उद्देश्य:- एकल संतान एवं बहुसंतान परिवार के विद्यार्थियों की आकांक्षा का तुलनात्मक अध्ययन करना। एकल संतान एवं बहुसंतान परिवार के विद्यार्थियों के समायोजन का तुलनात्मक अध्ययन करना। एकल संतान एवं बहुसंतान परिवार के विद्यार्थियों की आकांक्षा एवं समायोजन में सम्बन्ध ज्ञात करना।

 

न्यादर्श:-

प्रस्तुत शोध अध्ययन में द्वितीयक समंकों के साथ-साथ प्राथमिक समंको का उपयोग मुख्य रूप से किया गया है। प्राथमिक समंकों के लिये साधारण यादृच्छिक न्यादर्श पद्धति ;ैपउचसम त्ंदकंउ ैंउचसपदहद्ध के माध्यम से रायपुर शहर के 16 विद्यालयों के कक्षा ग्यारहवीं में अध्ययनरत सहशिक्षा 400 छात्र-छात्राओं एकल शिक्षा 400 छात्राओं में से कुल 800 छात्र-छात्राओं चयन प्रस्तुत शोध प्रबंध में प्रतिदर्श के रूप मंे लिया गया है।

 

उपकरण:-

शालेय वातावरण ज्ञात करने हेतु डाॅ. एम.एल. शाह एवं डाॅ. अमिता शाह द्वारा निर्मित एवं प्रमापीकृत एकेडमिक क्लाइमेट डेसक्रिप्सन क्वेश्चनरी ;।ब्क्फद्ध का प्रयोग किया गया है। आकांक्षा स्तर ज्ञात करने हेतु डाॅ. महेश भार्गव एवं डाॅ. एम. . शाह द्वारा निर्मित एवं प्रमापीकृत आकांक्षा स्तर का मापनी का प्रयोग किया गया है।

 

संख्यिकीय विश्लेषण:-

सांख्यिकीय विश्लेषण अनुसंधान का मूल आधार है। उपकरण से प्राप्त प्राप्तांकों अथवा आँकड़ों को विभिन्न तालिकाओं में व्यवस्थित कर उनका विश्लेषण सहसम्बन्ध ;त्द्ध की गणना कर किया गया है।

 

निष्कर्ष:-

निष्कर्ष क्रमांक 1:-

प्रतिपादित परिकल्पना-1 को स्वीकार किया जाता है, प्राप्त ष्तष् का मान इंगित करता है कि एकल एवं सहशिक्षा विद्यालयों केे विद्यार्थियों के शालेय वातावरण एवं आकांक्षा स्तर के मध्य सार्थक धनात्मक सहसम्बन्ध है, अर्थात् एकल एवं सहशिक्षा विद्यालयों के विद्यार्थियों के शालेय वातावरण एवं आकांक्षा स्तर के मध्य में महत्वपूर्ण सम्बन्ध व्याप्त है।

 

निष्कर्ष क्रमांक 2:-

प्रतिपादित परिकल्पना-2 को स्वीकार किया जाता है, प्राप्त ष्तष् का मान इंगित करता है कि एकल एवं सहशिक्षा विद्यालयों केे छात्रों के शालेय वातावरण एवं आकांक्षा स्तर के मध्य सार्थक धनात्मक सहसम्बन्ध है, अर्थात एकल एवं सहशिक्षा विद्यालयों के छात्रों के शालेय वातावरण एवं आकांक्षा स्तर के मध्य में महत्वपूर्ण सम्बन्ध व्याप्त है।

 

निष्कर्ष क्रमांक 3:-

प्रतिपादित परिकल्पना-3 को स्वीकार किया जाता है, प्राप्त ष्तष् का मान इंगित करता है कि एकल एवं सहशिक्षा विद्यालयों केे छात्राओं के शालेय वातावरण एवं आकांक्षा स्तर के मध्य सार्थक धनात्मक सहसम्बन्ध है, अर्थात एकल एवं सहशिक्षा विद्यालयों के छात्राओं के शालेय वातावरण एवं आकांक्षा स्तर के मध्य में महत्वपूर्ण सम्बन्ध व्याप्त है।

 

शोध अध्ययन के शैक्षिक निहितार्थ:-

शिक्षाशास्त्र, समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान आदि विषयों से सम्बन्धित शोध प्रयास तब तक अर्थपूर्ण नहीं होते जब तक कि इनकी सम्बन्धित क्षेत्र में प्राप्त निष्कर्षों एवं परिणामों की उपादेयता हो नहीं तो शोधकर्ता द्वारा किया गया शोधकार्य व्यर्थ चला जाता है। शिक्षाशास्त्र, मनोविज्ञाान एवं समाज विज्ञानों में शोध का प्रमुख उद्देश्य सम्बन्धित क्षेत्र में व्याप्त कमियों को दूर कर शिक्षा व्यवस्था एवं शैक्षिक गुणवत्ता को अधिक सुदृढ़ एवं सशक्तीकरण करना है।

 

संदर्भ ग्रंथ सूची

1      कपिल, एच0 के0 (2010); ‘‘अनुसंधान विधियाँ व्यवहारपरक विज्ञानों में’’, एच0 पी0 भार्गव बुक हाउस, आगरा, पृष्ठ-441

2      कौल, लोकेश (1998); ‘‘मेथडलौजी आफ एजूकेशन रिसर्च’’, विकास पब्लिकेशन हाउस प्रा0 लि0, पृष्ठ-542

3      गुप्ता, एस0 पी0; गुप्ता, अलका (2009) ‘‘मनोवैज्ञानिक साँख्यिकी‘‘; शारदा पुस्तक भवन, इलाहाबाद, पृष्ठ 542

4      कुमार (2002) आकाॅक्षा स्तर, तथा सृजनात्मकता की आवश्यकता का अध्ययन पी0एच0डी0 शिक्षा शास्त्र, आगरा विश्वविद्यालय आगरा।

5      कुमार, रत्नेश (2002) निजी एंव परिषदीय ग्रामीण प्राथमिक विद्यालयों के कक्षा वातावरण का तुलनात्मक अध्ययन एम. एड. लघु शोध प्रबन्ध, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, आगरा।

 

 

 

Received on 04.11.2020         Modified on 27.11.2020

Accepted on 14.12.2020         © A&V Publication all right reserved

Int. J. Ad. Social Sciences. 2020; 8(4):135-138.