पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों के समाजिक- आर्थिक स्थिति का उनके बच्चों की षिक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन (जाॅंजगीर-चापां जिले के विषेष संदर्भ में
डाॅ. देवेन्द्र कुमार1, डाॅ. अब्दुल सत्तार2, श्रीमती भारती कुलदीप3
1प्राध्यापक, कलिंगा विष्वविद्यालय, नया रायपुर
2विभागाध्यक्ष, कमला नेहरू, महाविद्यालय, कोरबा
3सहायक प्राध्यपिका, कमला नेहरू, महाविद्यालय, कोरबा
*Corresponding Author E-mail:
ABSTRACT:
पलायन या प्रवास एक सार्वभौमिक तथ्य है। दुनिया के प्रत्येक समाज में किन्हीं न किन्हीं कारणों से प्रवास की प्रवृत्ति आवश्यक रूप से देखा जा सकता है। प्रवास के कारण भी अनेक हो सकते हैं, कभी प्रवास का कारण धार्मिक यात्रा या तीर्थांटन होता है तो कभी उच्च षिक्षा, रोजगार युद्ध, अकाल व महामारी जनसंख्या के बड़े पलायन का कारण बनती है। कारण के अनुरूप ही हमें इसका प्रभाव भी समाज में सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों ही रूपों में देखने को मिलता रहा है। जहाँ सकारात्मक प्रवास के प्रभाव भी सकारात्मक होते है, वहीं विपत्ति एवं आपदा में किये जाने वाले प्रवास का नकारात्मक प्रभाव भी समाज पर पड़ता है। भारत में प्रवास की प्रकृति को अभी तक मूल रूप से प्राकृतिक आपदा, गरीबी और भूखमरी से जोड़कर देखा जाता रहा है। इसका कारण भी वाजिब है, क्योंकि भारत की जनगणना 2001 के अनुसार देष की कुल आबादी का 26 प्रतिषत भाग गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करता है और प्रवास का संबंध इस बड़े भाग से रहा है। भारत में जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार देष की कुल जनसंख्या 121.02 करोड़ आंकलित की गयी है जिसमें 68.84 प्रतिषत जनसंख्या गांवों में निवास करती है, जबकि 31.16 प्रतिषत की आबादी षहरों में निवास करती है। स्वतंत्र भारत के प्रथम जनगणना 1951 में गांवों और षहरों की आबादी का अनुपात 83 प्रतिषत एवं 17 प्रतिषत था। आजाद भारत के छः दषक बाद 2011 की जनगणना में गांवों और षहरों की जनसंख्या का प्रतिषत 70 एवं 30 प्रतिषत थी। इन आंकडों से स्पष्ट होता है,कि भारत में गांव के व्यक्तियों का षहरों की ओर पलायन बढ़ रहा है।
KEYWORDS:
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भारत में प्रवास का जो स्वरूप देखने को मिलता है,वह ग्राम में नगर उत्प्रवास मुख्य है, अर्थात् लोग विभिन्न कारणों से गाँव से षहर की ओर प्रवास करते हैं। ऐसी स्थिति में इसका सर्वाधिक प्रभाव भी ग्रामीण समुदाय में ही देखा जा सकता है,यदि हम इसके प्रभाव की व्यापकता पर विचार करते हैं तो इससे बच्चे और वृद्ध ही सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। एक ओर जहाॅं पूरा विष्व भारत को 21वीं सदी के महाषक्ति के रूप में देख रहा है, जिसका कारण भारत में कार्यषील जनसंख्या का प्रतिषत दुनिया में सर्वाधिक होना है।
प्रस्तुत अध्ययन ग्रामीण क्षेत्रों से लघु व सीमांत कृषकों तथा भूमिहीन मजदूरों के पलायन से संबंधित है, जिसमें परिवार के कार्यषील सदस्यों (युवा सदस्यों) के पलायन के फलस्वरूप परिवार में रह गये वृद्धजनों या महिला और बच्चों सहित परिवार पर प्रभाव को ज्ञात किया गया है। अध्ययन मुख्य रूप से श्रमिक परिवारों पर केन्द्रित है। अध्ययन में कार्यषील श्रमिक परिवार के सदस्यों पलायन से उनके सामाजिक-आर्थिक स्थिति का बच्चों की षिक्षा पर पड़ने वाले प्रभावों को शोधपरक ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।
अतः स्पष्ट है, कि छत्तीसगढ़वासियों का सम्पूर्ण जीवन आधार कृषि है, कृषि का स्वरूप भी अनुपजाऊंॅ एवं एक फसलीय है, वही ग्रामीण क्षेत्रों की बढ़ती जनसंख्या एवं आवष्यकताओं की वृद्धि ने ग्रामीण क्षेत्रों से श्रम पलायन की प्रवृत्ति में निरंतर वृद्धि की है, जिसके परिणामस्वरूप स्थानीय श्रम की अनुपलब्धता ने स्थानीय विकास को प्रभावित किया है इसी बात को दृष्टिगत रखते हुए इस विषय पर शोध कार्य प्रस्तुत किया गया है, ताकि छत्तीसगढ़ से श्रम पलायन का यहाॅ की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जा सके। प्रस्तुत षाोध प्रबंध “पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों के समाजिक-आर्थिक स्थिति का उनके बच्चों की षिक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन ”(जांजगीर-चांपा जिले के विषेष संदर्भ में) षोधकर्ता द्वारा इस समस्या के समाधान के लिए अध्ययन किया गया,जिसके द्वारा पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों के समाजिक-आर्थिक स्थिति का उनके बच्चों की षिक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन की वास्तविक स्थिति की प्राप्ति हुई है।
पलायन का अर्थ:-
पलायन षब्द का प्रयोग प्रवास के संदर्भ में ही किया जाता है,क्योंकि पलायन षब्द की कोई पृथक व्याख्या उल्लेखित नहीं मिलती है। छत्तीसगढ़ राज्य के श्रमिकों के प्रवास को पलायन की प्रवृत्ति से जोड़कर देखा जाता रहा है। वास्तव में पलायन भागने की प्रवृत्ति की ओर इषारा करता है। जब कोई व्यक्ति अपने कत्र्तव्यों से विमुख होता है तो इसे ही पलायनवादी प्रवृत्ति कहा जाता है। छत्तीसगढ़ राज्य के श्रमिकों के प्रवास को पलायन की प्रवृत्ति से जोड़कर देखा जाता रहा है क्योंकि यहां के लघु व सीमांत कृषक तथा भूमिहीन मजदूर मूलनिवास के आस-पास रोजगार की संभावनाओं को तलाषने के स्थान पर सीधे ही देष व राज्य के बड़े नगरों की ओर रोजगार की तलाष में पलायन करते है। विगत कई वर्षों से पलायन की प्रवृत्ति इन्हें आदतन पलायनकर्ता बना चुकी है। परिणामतः चाहे परिस्थितियां सामान्य हो, अच्छी बारिष हो, रोजगार उपलब्ध हो तो भी ये राज्य या राज्य के बाहर प्रवास करते है और इसी प्रवृत्ति को पलायन कहा जाता है। प्रस्तुत अध्ययन में पलायन से संबंधित सभी अवधारणाओं की व्याख्या प्रवास की सैद्धातिक व्याख्या एवं अवधारणाओं को ध्यान में रखकर किया गया हैं।
अध्ययन की आवष्यकता:-
स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण होता है। षिक्षा स्वस्थ्य समाज का निर्माण करती है एवं स्वस्थ समाज में खुषहाली व सम्पन्नता होती है। समाज की इकाई व्यक्ति है। यह सर्वविदित है कि इस इकाई की दृढ़ता पर समाज निर्भर रहता है। समाज सही दिषा में विकास करें। इसके लिए आवष्यक है,कि समाज में रहने वाले षिक्षित हो। सभी लोगों को षिक्षित करने के लिए सिर्फ सरकारी नीतियाँ ही सहायक नहीं होती हैं। वरन् व्यवहार के रुप में सकारात्मक कदम उठाने से है। श्रम पलायन करने वाले परिवारों के समक्ष न केवल आर्थिक समस्या है,वरन् सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक स्थिति से संबधित समस्याएं भी आती हैं। इन समस्याओं का उचित समाधान नहीं हो पाता तो वे कुंठा के षिकार हो जाते हैं। इस स्थिति में बालक - बालिका के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस समय उनको सही मार्गदर्षन की आवष्यकता होती है,पर पालक उनको पूरा-पूरा समय नही दे पाते, जिसका कारण यह है, कि वे अपने प्राथमिक आवष्यकता (रोटी, कपड़ा व मकान) की पूर्ति में दिन रात लगे रहते हैं। तो वे अपने बच्चों के विकास पर कैसे ध्यान दे पायेगे।
बच्चों के विकास में सबसे महत्वपूर्ण योगदान षिक्षा का है, षिक्षा प्रकाष का वह स्रोत है, जो बालक के विकास के प्रत्येक पक्ष में सच्चा पथ प्रदर्षन करती है और यदि बालक के परिवार आर्थिक समस्या से ग्रसित है,तो उनके लिये षिक्षा कैसे विकास का कारण बन सकता है। इस तरह आज षोषित, दलित व मजदूर वर्ग के लोगों के बच्चे के समक्ष अनेक समस्याएं होने के कारण वे षिक्षा से वंचित रह जाते हंै।पलायन करने वाले श्रमिक परिवार जो समाज में षोषक मेहनती व कमजोर हैं तथा रात दिन मजदूरी करने में लगे रहते हंै, वहां के बच्चांे का षैक्षिक स्तर बहुत अच्छा नहीं होता है और ये श्रम पलायन करने वाले परिवारों के जीवन में षिक्षा के महत्व को भली-भांति समझते हंै। लेकिन अपने आर्थिक समस्या के कारण बच्चों के षिक्षा-अर्जन में उत्पन्न समस्या को दूर नहीं कर पाते। श्रम पलायन करने वाले परिवारों के बच्चों की षैक्षिक समस्या एक ज्वलंत समस्या के रुप में विद्यमान हंै। षासन द्वारा षिक्षा से संबंधित चलाये जा रहे, विभिन्न अभियानों के फलस्वरुप भी वांछित परिणामों की प्राप्ति नहीं हो पा रही हैं। अतः श्रम पलायन करने वाले परिवारों के बच्चों की षैक्षिक समस्या का अध्ययन आवष्यक है,जिसके द्वारा इन बच्चों की षैक्षिक समस्याओं का सूक्ष्म अध्ययन कर उन कारणों का पता लगाया जा सकें,जो इन बच्चों की षिक्षा के प्राप्ति में अवरोध उत्पन्न करते हैं, जिससे इन अवरोधों को दूर कर बच्चों को षिक्षा के मुख्य धारा से जोड़ा जा सके। अतः उक्त बातें अध्ययन की आवष्यकता को स्पष्ट करता हंै।
अध्ययन के उद्देष्य:-
षोधकत्र्ता द्वारा ली गई षोध समस्या के अध्ययन हेतु निम्नलिखित उद्देष्यों का निर्माण किया गया है
1. पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों की पलायन करने की प्रवृत्ति का अध्ययन करना।
2. पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों की षैक्षिक स्थिति का अध्ययन करना।
3. पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों में उनके सामाजिक - आथर््िाक स्थिति का बच्चों की शिक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करना।
अध्ययन की परिकल्पना:-
प्रस्तुत शोध प्रबंध में षोधकत्र्ता अपने उद्देष्यों की पूर्ति करने के लिए निम्नलिखित परिकल्पनाओं का निर्माण किया है -
1. परिकल्पना एच 1 - पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों में पलायन करने की प्रवृत्ति हो सकती है।
2. परिकल्पना एच 2 - पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों की षैक्षिक स्थिति निम्न हो सकती है।
3. परिकल्पना एच 3 - पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों में उनके सामाजिक - आथर््िाक स्थिति का बच्चों की शिक्षा पर प्रभाव पड़ता है।
अध्ययन की परिसीमा:-
प्रस्तुत षोध समस्या के अध्ययन हेतु षोधकर्ता ने निम्नलिखित परिसीमाएं निर्मित की हैं -
1. प्रस्तुत षोध समस्या के अध्ययन हेतु जांजगीर-चांपा जिले का चयन किया गया है।
2. अध्ययन हेतु जांजगीर-चांपा जिले के अंर्तगत चांपा तहसील का चयन किया गया है।
3. अध्ययन हेतु चांपा तहसील के दस गाॅवों का चयन किया गया है।
4. अध्ययन हेतु चांपा तहसील के दस गाॅव में से प्रत्येक गांव से 40 पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों का चयन किया गया है,जिसमें कुल 400 पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों का चयन किया गया है।
संबंधित षोध अध्ययन:-
पलायन के संबंध मंे विभिन्न षोधार्थियों ने देष के विभिन्न क्षेत्रों में अपने कार्य को विभिन्न आयामों से एक साकार स्वरूप प्रदान किया है। षोधार्थी द्वारा जिन षोध साहित्यों की सहायता ली गई है,उनका विवरण निम्नानुसार है -
भारत में किए गए षोध अध्ययन:-
नेगी (1983) का टेहरी गढ़वाल में जनसंख्या उत्प्रवास की प्रकृति तथा कारण एवं देहरादून के परिप्रेक्ष्य में अध्ययन अधिक महत्वपूर्ण रहे। नागिया तथा सेमुअल (1983) का तमिलनाडु के सेलमनगर के औद्योगिक क्षेत्र के संदर्भ में अप्रवासित महिला के शैक्षणिक स्तर एवं प्रवास की अवधि का सूक्ष्म अध्ययन विषेष महत्व के रहे। सरला शर्मा (1983) ने मध्यप्रदेष में अंतरजिला उत्प्रवास की प्रत्याषा पर लेख प्रस्तुत किया है।
षर्मा (1989) ने श्रमिकों के पलायन संबंधी अपने अध्ययनों मंे अविभाजित मध्यप्रदेष में पलायन की समस्या एवं इसके कारण तथा पलायनकर्ता श्रमिकों द्वारा अपनाए जाने वाले परिवहन के साधनों तथा श्रमिकों द्वारा पलायन पष्चात् किए जाने वाले कार्यों का विष्लेषण किया है।
वर्मा ;1993द्ध का अध्ययन बच्चों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर प्रवास के प्रभाव पर आधारित रहा है। अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है कि निर्धन मजदूरों का प्रवास शिक्षा के मार्ग की प्रमुख चुनौती है जो पालक स्वयं के जीवकोपार्जन, मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए संघर्ष कर रहे होते हैं। वे ऐसी स्थिति में नहीं होते हैं कि अपने बच्चों को स्कूल भेज सके। वे प्रवास स्थल में अपने बच्चों को स्कूल भेजने में पूरी तरह नाकाम रहते हैं। परिणामतः बच्चों की पढ़ाई छूट जाती है। वहीं दूसरी ओर परिवार की निर्धनता की स्थिति का प्रभाव बच्चों के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। पोषण आहार के आभाव में बच्चे कुपोषित और रक्त अल्पता जैसे बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। अध्ययन यह भी दर्षाता है कि निर्धन प्रवासी परिवार अपने बच्चों से परिवार की आय में वृद्धि की अपेक्षा रखते हैं ऐसे में उनकी शिक्षा पर स्वयं की आय से खर्च करना उन्हें व्यर्थ लगता है।
बोहरा (1996) का अध्ययन उत्तरप्रदेश राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से होने वाले श्रम प्रवास पर आधारित रहा है। अध्ययन इस उद्देश्य पर आधारित था, कि पहाड़ी क्षेत्रों से लोग किन कारणों से प्रवास करते है? और प्रवास के फलस्वरूप प्रवास स्थल के दशाओं का उनके आर्थिक स्थिति व स्वास्थ्य पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ता है? अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है, कि प्रवास स्थल की दयनीय आवासीय दशा का प्रभाव प्रवासी श्रमिकों के साथ-साथ बच्चों पर भी पड़ता हैं। प्रवास स्थल पर बच्चों की शिक्षा निरंतर जारी रख पाना प्रवासी श्रमिकों के लिए बेहद कठिन होता है।
षर्मा एवं गुप्ता (1997) ने छत्तीसगढ़ में श्रमिक प्रव्रजन से संबंधित अध्ययन में यह पाया कि अन्तर जिला एवं राज्य के बाहर होने वाले प्रवास के पीछे आर्थिक समस्याओं को तथा राज्य सरकार द्वारा पर्याप्त एवं गंभीर प्रयासों के अभाव को प्रव्रजन का एक प्रमुख उत्तरदायी तत्व माना है।
सुन्दरी एंव रूखमणी (1998) का अध्ययन महिला प्रवासी श्रमिकों से संबधित रहा है, जिसमें प्रवास का प्रवासी महिलाओं के बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव की विस्तृृत चर्चा की गई है। अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है कि प्रवास स्थल पर शैक्षणिक सुविधाओं के अभाव होने के स्थिति में बच्चें षिक्षा से वंचिंत हो जाते है। कुछ प्रवासी मजदूर अपने बच्चों को प्रवास स्थल के विद्यालयों में पढ़ाना चाहते हैं, तो स्थानीय विद्यालयों में उन्हें आसानी से प्रवेष नहीं मिल पाता है, चूकिं श्रमिक मूल रूप से अर्थोपार्जन के लिए प्रवास करते है, ऐसी स्थिति में वे बच्चों की षिक्षा को लेकर न तो गंभीर हो पाते है ना ही उस स्तर का प्रयास करते हैं। परिणामतः प्रवासी परिवारों में निरक्षर बच्चों की तादात बढ़ती चली जाती है।
सेन (2001) ने श्रमिकों के पलायन संबंधी षोध अध्ययन में इस तथ्य को स्पष्ट किया है,कि छत्तीसगढ़ के मजदूरों का सामूहिक रूप से पलायन करने का इतिहास काफी पुराना है, लगभग एक सदी पुराना जो 19वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में आए अकालों तथा बंगाल नागपुर रेल्वे के बिलासपुर आसन लेन के 1891 में स्थापित रेल लाइन से प्रारंभ होती हैं।
स्मिता ;2008द्ध का अध्ययन ग्रामीण क्षेत्रों से होने वाले मानसूनी प्रवास पर आधारित रहा है। अध्ययन मुख्य रूप से इस उदद्ेष्य पर आधारित था। कि माता-पिता के प्रवास का मूल निवास में बच्चों की दर्ज संख्या, स्कूल छोड़ने की प्रवृत्ति तथा षैक्षिक उपलब्धता पर क्या प्रभाव पड़ता है। अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है कि प्रवास के फलस्वरूप बच्चे विद्यालय छोड़ देते हैं और धीरे-धीरे निरक्षर या कम षिक्षित पाढ़ी में अपना नाम दर्ज करा लेते हैं।
यादव ;2008द्ध के अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है,कि प्रवास का बच्चों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव सकारात्मक कम बल्कि नकारात्मक अधिक होते हैं। अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि अधिकांश उत्तरदाताओं ने प्रवास का बच्चों पर विपरीत प्रभाव पड़ने के संदर्भ में सहमति व्यक्त किया है। बच्चों पर पड़ने वाले प्रभावों के अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है,कि प्रवास से बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिकरण की प्रकिया से प्रभावित होने के साथ-साथ बाल श्रम की समस्या तथा कुछ वर्षों पश्चात् बच्चों के भी प्रवासी बन जाने की संभावना बनी रहती है। प्रवास स्थल में बच्चों को अच्छा वातावरण नहीं मिलता है तथा उन्हें प्रवास स्थल में गंदी बस्ती के अस्वस्थ कर परिवेश में प्रवासी श्रमिक परिवारों के बीच में ही रहना पड़ता है। जिससे उनमें अनेक बुरी आदतों का भी समावेश हो जाता है। प्रवास से प्रवासी श्रमिकों के सामाजिक-आर्थिक स्थिति में होने वाले परितर्वन संबंधी विश्लेषण से यह भी स्पष्ट हुआ है कि अधिकांश पलायनकर्ताओं की सामाजिक प्रतिष्ठा, पारिवारिक प्रतिष्ठा तथा जातिगत प्रतिष्ठा में कोेेेेेेेई वृद्धि नहीं होती है। जिसका कारण प्रवासीयों का इसके प्रति उदासीन रहना है। प्रवासी श्रमिकों को अपनी सामाजिक, पारिवारिक, जातिगत प्रतिष्ठा में परिवर्तन के बजाए अपने जीविकोपार्जन की चिंता अधिक होती है।
यादव,(2012) ने श्रम पलायन करने वाले परिवारों में बच्चों की षैक्षिक समस्या पर एक अध्ययन (कसडोल विकासखण्ड के विषेष संदर्भ में) ने अपने अध्ययन में कृषि श्रमिकों द्वारा किए जाने वाले पलायन के कारण परिवारों में बच्चों की षैक्षिक समस्या को स्पष्ट किया है। श्रम पलायन करने वाले परिवारों की सामाजिक - आर्थिक स्थिति संतोषजनक नहीं कहा जा सकता हंै। इस प्रकार श्रम पलायन करने वाले परिवारों की सामाजिक - आर्थिक स्थिति का प्रभाव बच्चों की षिक्षा पर पड़ता है। 81ः उत्तरदाता सपरिवार प्रवास करते है। परिवारों में पलायन करने की प्रवृत्ति पाई जाती है। परिवारों में बच्चों की षैक्षिक स्थिति संतोषजनक नहीं कहीं जा सकती है,इस प्रकार परिवारों के बच्चों में षिक्षा की समस्या है। 49: अभिभावक ने यह भी बतलाया है,कि उनके परिवार के लोंगांे की रूचि षिक्षा के प्रति नहीं है,श्रम पलायन करने वाले परिवारों की षैक्षिक स्थिति संतोषजनक नहीं कहीं जा सकती है।
विदेषों में किए गए षोध अध्ययन:-
बुलसरा (1965) ने कलकत्ता में पलायनकर्ता श्रमिकों के अध्ययन में यह पाया कि 82 प्रतिषत पलायनकर्ता अकुषल श्रमिक थे।
टोडारो (1967) ने अपने माॅडल में (प्रवास संबंधी) चार प्रमुख बातों का उल्लेख किया है कि ग्रामीण क्षेत्रों से षहरों की ओर पलायन प्रमुखतः आर्थिक विषमताओं के कारण होता है।पलायन इस अनुमान पर आधारित होता है, कि ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में षहरी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर एवं मजदूरी अधिक होगी, पंरतु यह आवष्यकता नहीं है,कि यह वास्तविकता भी हो। षहरी क्षेत्रों में रोजगार की उपलब्धता षहरी क्षेत्रों के बेरोजगारी दर से संबंधित होता है। षहरी क्षेत्रों मंे बेरोजगारी की उच्च दर ग्रामीण एवं षहरी क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों में व्याप्त बहुत बड़े अंतर का परिणाम है।
बेल्हम (1971) एवं लक्समेह (1974) ने पलायन एवं आयु संबंधी अपने महत्वपूर्ण अध्ययनों में इन्हांेने यह मत प्रस्तुत किया है कि पलायनकर्Ÿााओं की आयु 15-34 वर्ष के मध्य होती है।
प्रवास के सिद्धांत पर सर्वप्रथम अध्ययन रेवेन्सटीन (1889) के द्वारा किया गया है, जिसे उन्होंने प्रवास का नियम कहा है। इसी क्र्रम में पेंटरसन (1955), ट्रेवर (1961), सहोता (1968), जोब्स पेट्रिक एटआल.(1992), वेन्क एवं हारडेस्टी (1993) आदि ने अपने अध्ययन में गैर आर्थिक कारकों को ग्रामों से षहरों की ओर पलायन में एक प्रेरक कारक माना है।
हबरफील्ड (1999) ने श्रमिकों के पलायन संबंधी अपने अध्ययनों मंे कृषि से होने वाली कम आय और विषम भौगोलिक संरचना को पलायन का मुख्य कारण माना है।
तियानहोंग, मारूयामा और किकुची ;2000द्ध श्रम बाजारों की अपनी मांग के माध्यम से चीन में ग्रामीण -षहरी प्रवास में षामिल है। टोडारो के माॅडल के रूप में एक समान्य घटना नहीे है। दूसरी ओर ग्रामीण - षहरी प्रवासी होने के विभिन्न प्रमाण मिले है। षहरी क्षे़त्रों में औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्र के नौकरियों के बीच आय में अंतर होना महत्वपूर्ण नहीं था।
षोध प्रक्रिया:-
जनसंख्या: - प्रस्तुत षोध प्रबंध में जनसंख्या के अतंर्गत चांपा तहसील के अतंर्गत कुल चयनित 10 ग्राम पंचायत में पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों की कुल संख्या 3,550 है।
न्यादर्श:-
प्राथमिक समंकों के लिये सोद्देष्य न्यादर्ष पद्धति के माध्यम से चांपा तहसील के 85 ग्राम पंचायतों के 88 गाॅवों में से दस गाॅवों में पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों की संख्या अधिक है,जिनका प्रतिदर्ष के रूप मंे चयन किया गया है और इन दस गाॅवों में पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों की संख्या 400 है,जिनका चयन प्रस्तुत षोध प्रबंध में प्रतिदर्ष के रूप मंे किया गया है।
षोध उपकरण:-
प्रस्तुत षोध प्रबंध में प्रदत्तों के संकलन के लिये स्वनिर्मित साक्षात्कार अनुसूची का प्रयोग किया गया है।
सांख्यिकीय विष्लेषण:-
प्रस्तुत षोध प्रबंध के अध्ययन में प्रतिषत विधि का प्रयोग समीक्षात्मक अध्ययन के लिए किया गया। पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों के समाजिक-आर्थिक स्थिति का उनके बच्चों की शिक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन (जांजगीर-चांपा जिले के विशेष संदर्भ में) करने के लिए स्वनिर्मित साक्षात्कार अनुसूची का निर्माण किया जाएगा, जिसमें अधिकतर (हां/नहीं) वस्तुनिष्ठ प्रष्न हैं। इसके लिए संकलित प्रदत्तों को सारणीकृत किया गया और प्रदत्तों द्वारा प्राप्त आंकड़ों का योग कर प्रतिषत निकाला गया है। इसके लिए संकलित प्रदत्तों को सारणीकृत किया गया। प्रदत्तों द्वारा प्राप्त आंकड़ों का योग कर प्रतिषत निकाला गया है।
निष्कर्ष:-
अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष निम्नानुसार हैं
1. प्रथम परिकल्पना के अनुसार पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों की पलायन करने की प्रवृत्ति हो सकती है। अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष परिकल्पना की पुष्टि करता हैकि अध्ययनगत समूह के कुल 400 परिवारों में से 56.25 प्रतिषत परिवार से एकल पलायन होता है,जबकि 43.75 प्रतिषत परिवार सपरिवार पलायन करते है। बच्चों के पलायन संबंधी विवरण से यह ज्ञात होता है, कि 43.25 प्रतिषत बच्चें परिवार के साथ पलायन करते हैं।
गाँव में प्रतिदिन मजदूरी संबंधी अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है, कि 18.75 प्रतिषत उत्तरदाता 120 रू. प्रतिदिन मजदूरी प्राप्त करते हैं। 26.25 प्रतिषत उत्तरदाता 150 रू. जबकि 55 प्रतिषत उत्तरदाता 200 रू. मजदूरी प्राप्त करते हैं। 55 प्रतिषत उत्तरदाता मिलने वाली मजदूरी से संतुष्ट हैं। षतप्रतिषत उत्तरदाता यह मानते हैं कि वर्षभर मजदूरी नहीं मिलती है और वर्ष में षतप्रतिषत उत्तरदाता ने 3 माह मजदूरी नहीं मिलना बताया है, 90.25 प्रतिषत ने 6 माह और 9.75 प्रतिषत ने 8 माह, षतप्रतिषत उत्तरदाता ने 10 माह मजदूरी गाँव में नहीं मिलना बताया है। वर्षभर मजदूरी नहीं मिलने के कारण संबंधी अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है कि 36.5 प्रतिषत उत्तरदाताओं ने कम वर्षा का होना तथा 63.5 प्रतिषत उत्तरदाताओं ने राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना का सुचारू रूप से संचालन नहीं होना बताया है।
वर्ष भर मजदूरी के अभाव में षतप्रतिषत प्रतिषत उत्तरदाताओं ने पलायन करने की जानकारी दिया है। अधिकांष 56 प्रतिषत पलायन स्थल पर कुषल मजदूर के रूप में कार्य करते हंै। 31 प्रतिषत प्रवासी श्रमिक मुख्य रूप से भवन निर्माण और 44 प्रतिषत ईंट भट्ठे में काम करते हंै। 60.54 प्रतिषत उत्तरदाता प्रवास स्थल पर आवास व्यवस्था को दयनीय मानते हंै, लेकिन 74.24 प्रतिषत उत्तरदाता यह अवष्य मानते हंै,कि प्रवास स्थल में स्वास्थ्य सेवाएँ खराब होती हंै। कार्य की दषा के विषय में 86.5 प्रतिषत उत्तरदाताओं ने अच्छी कार्य दषा की जानकारी दिया है,जबकि 13.5 प्रतिषत ने खराब दषा की जानकारी दिया है। 75 प्रतिषत श्रमिक यह मानते हंै,कि दुर्घटना मुआवजा प्रवास स्थल पर नहीं मिलता है। प्रवास करने के फलस्वरूप केवल षतप्रतिषत प्रतिषत श्रमिकों ने आर्थिक स्तर में परिवर्तन, षतप्रतिषत प्रतिषत ने जीवन स्तर में परिवर्तन होने की जानकारी दिया। इसी प्रकार 41.25 प्रतिषत श्रमिकों ने प्रवास के कारण बच्चों की षिक्षा प्रभावित होती हैं एवं 21.75 प्रतिषत उत्तरदाताओं ने प्रवास के बाद मूल स्थान पर बचत की प्रवृत्ति में वृद्धि होने की जानकारी दिया है।
इस प्रकार उपरोक्त विवरण से यह ज्ञात होता है, कि प्रवासी श्रमिकों में प्रवास की प्रवृति का प्रभाव उनके आय व स्थिति में बहुत कम पड़ता है,जिसका कारण प्रवास स्थल पर मूलभूत सुविधाओं की कमी होना है। म्ूाल निवास की तुलना में प्रवास स्थल पर षैक्षिक सुविधाओं की स्थिति संबंधी विवरण से यह ज्ञात होता है, कि 38.35 प्रतिषत उत्तरदाता सपरिवार प्रवास करते हंै,ऐसी स्थिति में बच्चे भी साथ होते हैं। प्रवास स्थल पर श्रमिक झुग्गी में या फिर तंबू डालकर कार्य स्थल के आस-पास रहते है। अध्ययन से प्राप्त तथ्य यह स्पष्ट करता है कि तमाम प्रकार के सरकारी प्रयत्नों के बाद भी मूल निवास में कृषि श्रमिकों को रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। परिणामतः पलायन उनकी मजबूरी होती है। इस प्रकार पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों में पलायन की प्रवृत्ति पायी जाती है। अतः परिकल्पना की पुष्टि होती है।
2. द्वितीय परिकल्पना के अनुसार श्रम पलायन करने वाले परिवारों की षैक्षिक स्थिति निम्न हो सकती है। अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष परिकल्पना की पुष्टि करता है,क्योंकि 69.25 प्रतिषत उत्तरदाता साक्षर हैं। 30.75 प्रतिषत उत्तरदाता निरक्षर हैं। वहीं 67.87 प्रतिषत पांचवी व 32.12 प्रतिषत आठवीं पास हैं। षिक्षा प्राप्त नहीं करने के संबंध में उत्तरदाताओं ने बताया कि 5.5 प्रतिषत के अनुसार पिताजी ने नहीं पढ़ाया, 9.25 प्रतिषत के अनुसार खुद नहीं पढ़े,10.25 प्रतिषत को स्कूल जाने का अवसर नहीं मिला एवं 5.75 प्रतिषत उत्तरदाताओं ने आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण नहीं पढ़ पाना बताया है। उत्तरदाताओं की 72 प्रतिषत पत्नी साक्षर हैं। वहीं 29.25 प्रतिषत 5वीं पास एवं 42.25 प्रतिषत आठवीं पास हैं।
उत्तरदाताओं के 66.75 प्रतिषत पिता पढ़े-लिखे थे,जिसमें 52.5 प्रतिषत पांचवी एवं 14.25 प्रतिषत आठवी पास हैं। 39.25 प्रतिषत उत्तरदाताओं के अनुसार घर के आस-पास के लोग निरक्षर हैं। षतप्रतिषत उत्तरदाताओं के परिवार में सभी लोग निरक्षर नहीं है। षतप्रतिषत उत्तरदाताओं के परिवार के लोग पढ़ाई में रूचि रखते हैं। 69.25 प्रतिषत उत्तरदाताओं के परिवार के सभी लोग सरकार द्वारा चलाए गए साक्षरता अभियान में भाग लिए हैं। इससे स्पष्ट है कि उत्तरदाओं में षिक्षा के प्रति रूचि है और षिक्षा की स्थिति अच्छी है। इस प्रकार कह सकते हैं कि पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों में षिक्षा के प्रति जागरूकता है। अतः परिकल्पना की आंषिक पुष्टि होती है।
3. तृतीय परिकल्पना के अनुसार पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों में बच्चों की षैक्षिक समस्या हो सकती है। अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष परिकल्पना की पुष्टि करता है,क्योंकि तालिका से स्पष्ट है,कि 81.25 प्रतिषत उत्तरदाताओं के बच्चे अध्ययनरत् हैं। जिसमें 44.92 प्रतिषत 5वीं,32.30 प्रतिषत आठवीं एवं 16 प्रतिषत बच्चे 8वीं एवं 6.77 प्रतिषत बच्चें अन्य कक्षा में पढ़ रहे हंै। 23.08 प्रतिषत बच्चें निजी स्कूल एवं 76.92 प्रतिषत बच्चे षासकीय स्कूल में पढ़ रहें हंै। षतप्रतिषत बच्चे नियमित विद्यालय पढ़ने जाते हैं। उत्तरदाताओं द्वारा बच्चों के लिए 18.75 प्रतिषत स्कूल ड्रेस,18.75 प्रतिषत पुस्तकें 81.75 प्रतिषत बैग, 81.25 प्रतिषत पानी बाटल,18.75 प्रतिषत टिफिन बाॅक्स एवं षतप्रतिषत अन्य आवष्यक सामग्री स्वयं के द्वारा ली जाती है। वही उत्तरदाताओं ने बताया कि 62.5 प्रतिषत बच्चें पैदल,4.62 प्रतिषत बस द्वारा एवं 18.75 प्रतिषत बच्चें अन्य साधन द्वारा स्कूल जाते हंै। 18.75 प्रतिषत पालक बच्चों के फीस देने में अक्षम हैं। 39.08 प्रतिषत पालक अपने बच्चों के प्रगति रिपोर्ट जानने के लिए विद्यालय जाते हैं। 93.75 प्रतिषत पालक बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वही 81.25 प्रतिषत बच्चे पढ़ाई में रूचि रखते हैं। 21.75 प्रतिषत आस-पास के बच्चे नहीं पढ़ते हैं। 71.25 प्रतिषत टी.वी. देखने में, 19.25 प्रतिषत बच्चे खेलकूद में एवं 9 प्रतिषत बच्चे घूमने में अपना समय व्यतीत करते हैं। इसी प्रकार 34 प्रतिषत स्कूल वातावरण अच्छा नहीं रहता है,31.25 प्रतिषत आस-पास का वातावरण प्रदुषित रहता है, 34.75 प्रतिषत बच्चों को पढ़ने के लिए पर्याप्त वातावरण नहीं मिलता है, 81.25 प्रतिषत बच्चों की पढ़ाई के लिए कम खर्च करना, 81.25 प्रतिषत बच्चों की विद्यालय की फीस समय पर नहीं दिया जमा करना, 81.25 प्रतिषत बच्चों के लिए पढ़ने की पर्याप्त सामग्री की व्यवस्था नहीं कर पाना। क्योकिं अधिकांष बच्चें षासकीय विद्यालयों में पढ़ते है,जिसके कारण बच्चों के लिए अन्य सामग्री सहित पेन,कापी ली जाती है और बच्चों को पुस्तकें,ड्रेस विद्यालय में दी जाती हैं। इस प्रकार पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों में उनके सामाजिक - आथर््िाक स्थिति का बच्चों की शिक्षा पर प्रभाव सामान्य हंै। अतः परिकल्पना की आंषिक पुष्टि होती है।
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Received on 19.11.2020 Modified on 25.11.2020
Accepted on 19.12.2020 © A&V Publication all right reserved
Int. J. Ad. Social Sciences. 2020; 8(4):207-214.