कोरोना संकट का ग्रामीण रोजगार पर प्रभावरू झारखंड राज्य के विशेष संदर्भ में
Prof. (Dr.) Sanjay Kumar
Assistant Professor, PG Department of Political Science, Kartik Oraon College,
Gumla (Ranchi University, Ranchi) Jharkhand
*Corresponding Author E-mail:
ABSTRACT:
दशकों के लंबे संघर्ष के पश्चात 15 नवंबर सन 2000 को भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर तत्कालीन बिहार प्रांत के आदिवासी बहुल 14 पठारी जिलों को मिलाकर झारखंड प्रांत का निर्माण किया गया। इस प्रांत के लिए संघर्ष करने वाले आदिवासी व अन्य समूहों का मानना था कि बंगाल से बिहार के अलग होने के समय से ही क्षेत्र में विकास तो बहुत हुआए बहुत सारे कल.कारखाने लगेए नए शहर बसाए गएए तकनीकी शिक्षण संस्थान खोले गए लेकिन इसका फायदा मुख्य रूप से बिहार के मैदानी इलाके के लोगों के साथ साथ उत्तर प्रदेशए पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के लोगों को मिला जबकि बदले में विस्थापनए वनों का विनाशए क्षेत्रीय स्तर पर पाए जाने वाले जीव जंतुओं का लुप्त प्राय होनाए पर्यावरण की क्षतिए जल स्रोतों का दूषित होना जैसे कारणों से स्थानीय जनता ही मुख्य रूप से प्रभावित हुई ।एक और कारण यह था कि झारखंड क्षेत्र से आने वाले आदिवासी और दलित समुदाय के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को पटना और दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में दोयम दर्जे के व्यवहार को सहन करना पड़ता था ।अलग राज्य का निर्माण करने वाले लोगों के लंबे संघर्ष के पश्चात 15 नवंबर 2000 को जब झारखंड राज्य का गठन हुआ तब लोगों के मन में बहुत सारी आकांक्षाएं थी। उनका मानना था कि अब यहां की सत्ता मुख्य रूप से आदिवासीए दलित एवं पिछड़े वर्गों के हाथ में रहेगी और वह न सिर्फ अपने जलएजंगलए जमीन की रक्षा करेंगे वरन साथ ही साथ उद्योग धंधों की स्थापना होगीए नए . नए शैक्षणिक संस्थान स्थापित होंगेए सड़कए बिजलीए पानीए अस्पतालए विद्यालय जैसे आधारभूत संरचना को मजबूत किया जाएगा जिससे विकास की रोशनी गांव गांव तक पहुंचेगी और स्थानीय तौर पर भी बड़ी संख्या में कुशल और अर्ध कुशल मजदूरों के लिए रोजगार का सृजन होगा जिससे झारखंड के युवाओं को रोजगार की कोई कमी नहीं रहेगी और झारखंड दूसरे प्रांतों के लोगों को भी बड़े पैमाने पर रोजगार प्रदान करने वाला राज्य बन जाएगा। परंतुए झारखंड निर्माण के दो दशक के पश्चात भी झारखंड वासियों की अधिकांश अपेक्षाएं सपना बनकर रह गई है। कोविड.19 या कोरोनावायरस से फैली महामारी के दौड़ में झारखंड में रोजगार की कमी और देश के विभिन्न प्रांतों में लगभग 9 से 10 लाख झारखंडी मजदूरों की दयनीय दशा इस काल में सबके सामने आ गई है। प्रस्तुत आलेख झारखंड के प्रवासी मजदूरों की स्थिति का बयान करती है और साथ ही साथ इस समस्या के कारण और इसके निदान के लिए सुझाव प्रस्तुत करती है।
KEYWORDS: कोरोना वायरसए ब्व्टप्क्.19ए रोजगारए प्रवासीए जनता कर्फ्यूए लॉक डाउनए आपदा प्रबंधन
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कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत एक नए किस्म के कोरोनावायरस के संक्रमण के रूप में मध्य चीन के वुहान शहर में 2019 के मध्य दिसंबर में हुई।1 बहुत से लोगों को बिना किसी कारण निमोनिया होने लगा और यह देखा गया कि पीड़ित लोगों में से अधिकतर लोग बुहान सी फूड मार्केट में मछलियां बेचते हैं तथा जीवित पशुओं का भी व्यापार करते हैं। पहले संदिग्ध मामले को 31 दिसंबर 2019 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ;ॅवतसक भ्मंसजी व्तहंदपेंजपवदध् ॅभ्व्द्ध को सूचित किया गया था। चीनी वैज्ञानिकों ने बाद में कोरोनावायरस की एक नई नस्ल की पहचान की जिसे 2019.ब्व्ट प्रारंभिक नाम दिया गया।2 जनवरी आते.आते बुहान शहर में इस वायरस ने बड़ी आबादी को अपनी चपेट में ले लिया और चीन की कम्युनिस्ट सरकार की लापरवाही के कारण फरवरी के महीने तक विश्व के विभिन्न हिस्सों में यह वायरस फैल गया। अगर चीन की सरकार दुनिया के अन्य हिस्सों के लोगों को बुहान आने जाने पर सख्त पाबंदी लगा देती और वहां के लोगों को विश्व स्वास्थ्य संगठन व अन्य सुरक्षा मापदंडों का पालन करते हुए धीरे.धीरे निकाल देती तो दुनिया के अन्य हिस्सों में इस खतरनाक वायरस का शायद उतना प्रसार नहीं होता।
आगे चलकर चीन से अंतरराष्ट्रीय यात्रियों द्वारा अन्य देशों में इस महामारी का प्रसार शुरू हो गया और थाईलैंड में 13 जनवरीए जापान में 15 जनवरीए दक्षिण कोरिया में 20 जनवरीए ताइवान और संयुक्त राज्य अमेरिका में 21 जनवरीए हांगकांग और मकाऊ में22 जनवरीए सिंगापुर में 23 जनवरीए फ्रांसए नेपाल और वियतनाम 24 जनवरीए ऑस्ट्रेलिया और मलेशिया में 25 जनवरीए कनाडा में 26 जनवरीए कंबोडिया में 27 जनवरीए जर्मनी में 28 जनवरीए फिनलैंडए श्रीलंका और संयुक्त अरब अमीरात में 29 जनवरी तथा भारत और फिलीपींस में 30 जनवरी यूनाइटेड किंग्डम तथा स्पेन में 31 जनवरी 2020 को के मरीजों की सूचना की पुष्टि की गई।3
भारत में कोरोना से बचाव के प्रयास
19 मार्च 2020 को भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देश के सभी नागरिकों को 22 मार्च को सुबह 7रू00 बजे से लेकर रात्रि के 9रू00 बजे तक जनता कर्फ्यू का पालन करने के लिए कहा। इस कर्फ्यू के दौरान उन्होंने सभी को घर में रहने के लिए कहा था ।4 उन्होंने एक कोविड.19 आर्थिक प्रतिक्रिया कार्यबल के गठन की घोषणा भी की ।5 प्रकोप के दौरान विभिन्न क्षेत्रों द्वारा किए जा रहे कार्यों की सराहना के लिए उन्होंने लोगों से शाम 5रू00 बजे अपने दरवाजेए खिड़कियों या बालकनी यों के सामने इकट्ठा होने और 5 मिनट के लिए उनकी सराहना करने का आग्रह किया।6 24 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री मोदी ने 21 दिनों की अवधि के लिए उस दिन की मध्यरात्रि से देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की। 11 मार्च 2020 को भारत के सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी कैबिनेट सचिव राजीव गौबा ने घोषणा की कि सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को महामारी रोग अधिनियमए1897 की धारा 2 के प्रावधानों को लागू करना चाहिए।7 14 मार्च को केंद्र सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत महामारी को अधिसूचित आपदा घोषित किया जिससे राज्यों को वायरस से लड़ने के लिए राज्य आपदा कोष से धन का एक बड़ा हिस्सा खर्च करने को मिला।8
22 मार्च 2020 को भारत सरकार ने देश के 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 82 जिलों को पूरी तरीके से बंद करने का निर्णय लिया ।शुरुआत में सरकार ने देश भर के 75 जिलों में लॉकडाउन जारी किया था जहां 31 मार्च तक कोविड.19 मामलों की पुष्टि की गई थी। झारखंड में भी सरकार ने 18 मार्च से अगले आदेश तक के लिए सभी शैक्षणिक संस्थानों को बंद करने का आदेश दिया था। 23 मार्च को दिल्ली में कम से कम 31 मार्च तक लॉक डाउन करने का निर्णय लिया गया।
24 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोनावायरस से निपटने के लिए पूरे भारत में 21 दिनों के लिए लॉक डाउन करने का आदेश दिया। मतलब 14 अप्रैल तक सभी लोगों को घर से ना निकलने को कहा हालांकि लॉक डाउन होने के बाद भी जरूरी चीजों के लिए दुकानें और मेडिकल स्टोर खुले रखने का आदेश दिया गया। 14 अप्रैल की सुबह 10रू00 बजे प्रधानमंत्री मोदी ने देश को संबोधित करते हुए लॉकडाउन की अवधि को बढ़ाकर 03 मई तक करने का फैसला किया और कहा कि अगले एक हफ्ते नियम और सख्त होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि जहां कोरोनावायरस के संक्रमण के मामले सामने नहीं आएंगे वहां कुछ छूट दी जाएगी।
जब ऐसा लग रहा था कि भारत कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने में सक्षम रहेगा तभी दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज मस्जिद में होने वाले तबलीगी जमात नामक मजहबी जनसमूह द्वारा जाने अनजाने कोरोनावायरस के प्रसार में शामिल होने की घटना की पुष्टि हुई। इस समूह में देश के विभिन्न भागों के 9 हजार से अधिक प्रचारकों ने भाग लिया था और 40 अन्य देशों से 960 लोग उपस्थित थे। अप्रैल आते.आते जमात के सदस्यों के कारण देश के विभिन्न राज्यों में कोरोना वायरस का बड़े पैमाने पर प्रसार हो गया। ऐसे राज्यों में झारखंड भी शामिल था।
फरवरी के महीने तक भारत में भी कोविड.19 या कहें कि इस चाइनीज वायरस को लेकर चिंताएं उभरनी शुरू हो गई थी लेकिन भारत सरकार भी फरवरी के आधे महीने तक इतनी सक्रिय नहीं हुई जितनी कि उसे होना चाहिए था। देश में अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का आवागमन बदस्तूर जारी रहा। भारत सरकार ने यह ध्यान नहीं दिया कि चीन के वुहान से लौटे नागरिक दुनिया के अपने.अपने देशों में संक्रमण फैला रहे हैं और चुकी भारत की एक बहुत बड़ी जनसंख्या विदेशों में रहती हैए वहां से लौटने वाले भारतीय इस वायरस के वाहक हो सकते हैं। भारत ने वास्तव में मार्च के महीने में सक्रिय कदम उठाना शुरू किया। 17 मार्च को पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार के दिन लोगों से सुबह 7रू00 बजे से लेकर रात्रि के 9रू00 बज तक अपने अपने घरों में रहने का आह्वान किया। उसी रात उन्होंने 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की । इस लॉकडाउन की खास बात यह थी कि सभी प्रकार के वैसे परिवहन को रोक दिया गया जिससे व्यक्तियों का आना जाना होता है हालांकि इसमें आवश्यक वस्तुओं के परिवहन कार्य में लगे लोगों को सुरक्षा मापदंडों के साथ छूट दी गई।9
लॉकडाउन में देश के कमजोर वर्ग के लोगों को असुविधा ना हो इसके लिए सरकार ने कई योजनाएं भी घोषित की। सरकार ने घोषणा की कि जो व्यक्ति जहां है अगले 21 दिनों तक वही रहेगा। सभी सरकारी और निजी संस्थाओं को आदेश दिया गया कि वह अपने कर्मचारियों को लॉकडाउन अवधि का पूरा वेतन बिना किसी कटौती के देंगे। जिन लोगों के घरों में आया व घरेलू काम करने वाले अन्य लोग होते हैं उनसे भी आग्रह किया गया कि ऐसी मुश्किल परिस्थिति में वे अपने कर्मचारियों का पूरा साथ दें। प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि अगले 03 महीने तक प्रवासी श्रमिकों को मकान मालिकों द्वारा घर का किराया देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। प्रधानमंत्री ने गरीब कल्याण योजना के अंतर्गत गरीबों और मजदूर वर्ग के लोगों को 5 किलो राशन के रूप में चावल या गेहूंए 1 किलो चना व 3 महीने तक उज्जवला योजना के तहत मुफ्त में रसोई गैस का सिलेंडर देने जैसी घोषणाएं भी की गई। प्रधानमंत्री ने महिला जनधन खाते में 3 माह तक 500 की राशि डालने की भी घोषणा की।
14 अप्रैल 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन को 03 मई 2020 तक बढ़ाने की घोषणा की और साथ ही साथ 20 अप्रैल के पश्चात जिन क्षेत्रों में कम संक्रमण के मामले थे वहां पर कुछ छूट देने की भी घोषणा की।10
लॉक डाउन की अवधि लगातार बढ़ाए जाने के पश्चात मजदूरों के साथ अनेक समस्याएं शुरू हो गई। सरकार के आदेश के बावजूद उनके नियोक्ताओं ने कारोबार बंद होने का हवाला देकर वेतन भुगतान से इनकार करना शुरू कर दिया था। ऐसे मजदूरों की संख्या भी बहुत ज्यादा थी जो असंगठित रूप से ठेकेदारों के माध्यम से विभिन्न प्रकार के उद्योगों में काम करते थे। बड़ी संख्या में ऐसे मजदूरों की भी थी जो रिक्शाए ऑटोरिक्शा चलाते थेए घरोंए मोहल्लों और सड़कों पर साफ.सफाई का काम करते थे। लाखों मजदूर ट्रकों और ट्रेनों से समान लादने.उतारने का काम करते थे। दैनिक मजदूर के रूप में काम करने वाले मजदूरों की संख्या भी कई लाख थी।मजदूरों को खाने.पीने और रहने में भी समस्या उत्पन्न होने लगी। इससे मजदूरों में घबराहट फैल गई और वह पैदल या साइकिल से अपने परिवार के साथ अपने.अपने घरों को वापस लौटने के लिए निकलने लगे। कई जगह उन्होंने रिक्शे के द्वारा अपने प्रांतों को लौटने का प्रयास किया। बहुत सारे मजदूरों ने परिवहन कार्य में लगे ट्रकों के ड्राइवरों को मोटी रकम देकर अपने मूल प्रांत वापस लौटने का प्रयास शुरू किया। इस क्रम में सड़क पर चलते हुए कई दर्दनाक घटनाएं हुई जिसमें कई मजदूर और उनके परिवार मारे गए।11 कई जगह ट्रक पलटने की घटना में भी काफी मजदूर मारे गए।12 एक अन्य दुखद घटना में रेलवे लाइन के सहारे जा रहे कई मजदूर कटकर मर गए।13 दूसरी ओर जो राज्य सरकारें अपने.अपने यहां प्रवासी मजदूरों को हर प्रकार की सहायता देने का दावा कर रही थी उनका भी धैर्य चूक गया और वह केंद्र सरकार पर दबाव डालने लगी कि वह मजदूरों को अपने.अपने राज्य लौटने की इजाजत दें। विभिन्न राज्य सरकारों के दबाव में केंद्र सरकार ने श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के शुरुआत की घोषणा की और 1 मई के पश्चात विभिन्न सुरक्षा उपायों को अपनाते हुए मजदूरों को क्रमबद्ध रूप से उनके प्रांतों में भेजने का काम शुरू किया गया।
झारखंड के प्रवासी मजदूरों की समस्या
कोरोना संकट के दौरान लॉकडाउन के शुरुआती दौर में जब देश के सभी महानगरों से मजदूरों की घर वापसी शुरू हुई ही थी तब झारखंड सरकार ने आश्वासन दिया था कि राज्य में लौटने वाले सभी श्रमिकों को यही रोजगार दिया जाएगा। अब प्रवासी मजदूरों वाले अन्य राज्यों की तरह झारखंड सरकार के पास भी मौका है कि वह अपने मजदूरों के लिए अपने राज्य में ही रोजगार की व्यवस्था करे। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 30 जून 2020 तक राज्य में 5ण्64 लाख से ज्यादा श्रमिकों की देश के विभिन्न हिस्सों से वापसी हो चुकी है।14 खुद झारखंड सरकार मानकर चल रही है कि अब एकमुश्त मजदूरों के लौटने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है।
समाचार पत्र दैनिक भास्करए रांची द्वारा झारखंड के सभी 24 जिलों में घर लौटे श्रमिकों पर एक सर्वे किया गया। समाचार पत्र के अनुसार सर्वे में 5000 से ज्यादा मजदूरों ने भाग लिया। सर्वे के नतीजों के अनुसार नौकरी के लिए फिर दूसरे राज्य जाने के सवाल पर 71ण्99ः मजदूरों ने कहा कि वह घर से दूर नहीं जाना चाहते। इनमें से 27ण्5ः ने तो कहा कि चाहे राज्य में नौकरी मिले या ना मिले वह घर छोड़कर नहीं जाएंगे जबकि 44ण्6ः ने कहा कि अगर भुखमरी की स्थिति बने तो ही वे राज्य छोड़ेंगे वरना कुछ कम मजदूरी में भी यही गुजारा कर लेंगे। इनके अलावा 14ण्5ः मजदूर ही ऐसे हैं जो तुरंत वापस जाने के लिए तैयार हैं। 13ण्20ः मजदूरों का कहना है कि वे कुछ समय के बाद ही घर छोड़ने के बारे में सोचेंगे।
प्रवासी मजदूरों में बाहर जाने को लेकर भय
यहां प्रश्न यह उठता है कि जो मजदूर तीन चार महीने पूर्व तक खुशी.खुशी दूसरे प्रांत में रह रहे थे अब वह बाहर क्यों नहीं जाना चाहतेघ् विभिन्न अखबारों में प्रकाशित सर्वेक्षणों के अनुसार 85ः से लेकर 88ः मजदूर दूसरे राज्य में अपने परिवार के बिना रह रहे थे। 12 से 13ः अपने परिवार को साथ लेकर रहते थे। मजदूरों के 25ः से 30ः हिस्सा अपने गृह जिले के अर्थात अपने ही सामाजिक वातावरण के लोगों के साथ रहता था।लगभग 36ण्42ः अपने सहकर्मियों के साथ एक ही आवास साझा करते थे या फिर अगल बगल में रहा करते थे। लगभग 27ण्86ः श्रमिक अकेले कमरे में रहते थे। श्रमिक वापस इसलिए भी नहीं जाना चाहते क्योंकि प्रधानमंत्री द्वारा की गई घोषणाओं के बावजूद 60ः से ज्यादा मजदूरों को उनके नियोक्ताओं ने पैसे ही नहीं दिए। दैनिक भास्कर में प्रकाशित सर्वेक्षण के अनुसार 33ण्36ः श्रमिकों को ही नियोक्ताओं से पैसे का भुगतान हो पाया जबकि 66ण्64ः को लाकडाउन के बाद उनके नियोक्ता ठेकेदार ने कोई पैसे नहीं दिए। केंद्र सरकार की घोषणा थी की कोई भी मकान मालिक 03 महीने तक किरायेदारों के ऊपर भुगतान के लिए दबाव नहीं डालेंगे। सर्वेक्षण के अनुसार 50ः से ज्यादा मजदूरों ने कहा कि उनके मकान मालिकों ने उन पर किराया चुकाने के लिए दबाव डाला।51ण्5ः श्रमिकों पर मकान मालिकों ने किराए के लिए दबाव डाला जबकि 48ण्9ः ने कहा कि मकान मालिक ने किराए के लिए दबाव नहीं डाला।15
झारखंड के श्रमिक फिर से बाहर इसलिए भी नहीं जाना चाहते क्योंकि कोरोनास अनकट काल में लॉकडाउन के दौरान उनके समक्ष खाने की भी समस्या उत्पन्न हो गई थी ।16 दैनिक भास्कर में प्रकाशित सर्वेक्षण के अनुसार 56ः श्रमिकों ने कहा कि ना तो स्थानीय सरकार और ना ही किसी संस्था ने उनके खाने के लिए इंतजाम किया हालांकि 44ः श्रमिकों का मानना था कि उनके लिए खाने.पीने का इंतजाम किया गया था लेकिन अधिकांश खाने पीने की व्यवस्था से संतुष्ट नहीं थे। कुल मिलाकर देखें तो झारखंड के मजदूरों में राज्य में वापस लौटने के निम्नलिखित प्रमुख कारण माने जा सकते हैं रू. 24ण्50ः मजदूरों ने अपने काम की जगह को इसलिए छोरा क्योंकि उनके सामने भुखमरी की नौबत आ गई थी । 24ण्22ः मजदूर ऐसे थे जिन्हें खाने के लिए तो कुछ मिल जा रहा था लेकिन उनके पास पैसे समाप्त हो गए थे। 25ण्40ः मजदूर ऐसे थे जिनके पास खाने और पैसे की दिक्कत नहीं थी लेकिन वह कितने दिनों तक खाली बैठे रहता इसलिए वह अपने प्रांत वापस लौट गया। 10ण्18ः मजदूरों का मानना था कि भविष्य में उन्हें कोई काम नहीं मिल पाएगा इसलिए वापस लौट जाना बेहतर है। 15ण्70ः मजदूरों का मानना था कि उन्हें घर से बाहर निकलने पर कोरोनावायरस से संक्रमित हो जाने का डर सता रहा था।
घर लौटे श्रमिकों के लिए रोजगार की व्यवस्था
श्रमिक घर लौट चुके हैं लेकिन जीवन चलाने के लिए उन्हें काम चाहिए। इतनी बड़ी संख्या में श्रमिकों को स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराना एक बहुत बड़ी चुनौती है। दूसरे राज्यों से लौटे श्रमिकों को प्रांत में ही रोजगार मुहैया कराने के लिए राज्य सरकार यूं तो अलग.अलग कार्य योजनाएं बना रही है मगर अन्य पिछड़े प्रदेशों की तरह झारखंड शासन का जोर भी महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना पर है जिसे संक्षेप में मनरेगा के नाम से जाना जाता है। सरकार का कहना है कि मनरेगा के तहत ज्यादा से ज्यादा कार्य दिवसों का सृजन कर इन मजदूरों को रोजगार दिया जाएगा।17 राज्य सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 30 जून तक 700000 से ज्यादा मजदूर मनरेगा से भी चुके हैं मगर एक बेहद कटु सत्य यह भी है कि इनमें से 98ः से ज्यादा राज्य में ही रह रहे श्रमिक है। मनरेगा में प्रवासी मजदूरों का जोड़ना अभी शुरू ही हुआ है। झारखंड में वर्तमान समय में 1ण्65 लाख से ज्यादा परियोजनाएं महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत चल रही है। इनके जरिए करीब 50 करोड़ मानव कार्य दिवसों के सृजन की योजना है मगर मनरेगा के तहत 1 परिवार को साल में 100 दिन का ही रोजगार मिलता है। 30 जून 2020 तक कुल 5477631 श्रमिक दूसरे राज्यों से लौटे हैं। हर मजदूर को एक परिवार की इकाई माना जा सकता है। यदि हम यह भी मान लें कि सभी प्रवासी श्रमिकों को पूरे 100 दिन का रोजगार मिल भी जाएगा तोर 194 रुपएप्रति कार्य दिवस की दर से उन्हें सालाना 19400 रुपए ही मिलेंगे। दैनिक भास्कर के सर्वे के मुताबिक लौटे श्रमिकों में 96ः की सालाना आय 60 हजार रुपए से ज्यादा थी। सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार जो श्रमिक दूसरे प्रांतों से वापस लौटे हैं उनमें से मात्र 65ः का ही अभी तक निबंधन हो पाया है । सरकार द्वारा निबंधित श्रमिकों की स्किल मैपिंग भी होनी है जो अभी तक कई जिलों में शुरू भी नहीं हो पाई है। प्रकाशित सर्वे के अनुसार 69ण्95ः श्रमिक अकुशल;नदेापससमकद्ध मजदूर की श्रेणी में आते हैं और 30ण्05ः श्रमिक कुशल;ेापससमकद्ध मजदूरों की श्रेणी में शामिल है।
यह स्पष्ट है कि महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना जैसी अकेली योजना से ही श्रमिकों को काम नहीं मिल सकता। उनके घर चलते रहे इसके लिए विभिन्न स्तरों पर प्रभावी योजनाएं बनानी होंगी। रांची विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के अतिथि प्राध्यापक ज्यां द्रेज का मानना है कि मनरेगा श्रमिकों को एक प्रकार की सामाजिक सुरक्षा ही दे सकती है खासकर वैसे लोग जिनके पास आजीविका का कोई साधन नहीं है मगर इसके जरिए मिलने वाला रोजगारएरोजगार की जरूरत का सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा है।18
बेरोजगारी दूर करने के लिए सबसे जरूरी कदम है कि सरकार ऐसी परिस्थिति बनाएं जिसमें अर्थव्यवस्था दोबारा गति पकड़ सके। इसके लिए जनस्वास्थ्य के मजबूत उपाय करने होंगेए टेस्टिंग बढ़ानी होगीए क्वारंटाइन को प्रभावी बनाना होगा। साथ ही समाज और अर्थव्यवस्था के हर हिस्से को बचाव के उपायों को आदत में शुमार करना होगा। जनसेवा व प्रशासन के कार्यालयों को उचित सुरक्षा उपायों के साथ दोबारा खोलना होगा।जहां तक सार्वजनिक कार्यों के जरिए रोजगार का प्रश्न है मनरेगा ही ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ उपाय है लेकिन झारखंड में इसका दायरा बड़े पैमाने पर बढ़ाने की जरूरत है। इसके लिए मनरेगा में खाली पदों पर नियुक्तिए स्वीकृत कार्यों का दायरा बढ़ानाए प्रक्रिया को सरल करना और वर्क एप्लीकेशन कैंपेन लॉन्च करने जैसे उपायों पर काम करना होगा।
भारतीय प्रबंधन संस्थानए रांची के निदेशक शैलेंद्र सिंह कहते हैं कि देश में केवल 10ः लोगों के पास सरकारी नौकरी है।19 सरकार सभी को नौकरी नहीं दे सकती और ना ही सब को रोजगार उपलब्ध करा सकती है। मनरेगा में अनस्किल्ड लोगों को कुछ काम दिए जा सकते हैं पर यह पर्याप्त नहीं। जरूरत है अपने हुनर के अनुसार लोगों को रोजगार करने की। ऐसा करने पर ही सभी हाथों को काम मिल सकता है। लोग अपनी क्षमता के अनुसार काम करेंए छोटा काम करने में भी शर्म महसूस नहीं करें तो काम की कमी नहीं।20
आज निजी व्यवसाय क्या संस्थानों में भी बड़ी संख्या में अच्छे अकाउंटेंटए ड्राइवरए मैनेजरए सेल्स मैनए डिलीवरी ब्वॉय आदि की जरूरत है। प्राइवेट ट्यूटर की डिमांड लॉकडाउन के बाद बहुत बढी है। इसी प्रकार रियल स्टेट में लेबरए सुपरवाइजरए कारपेंटर समेत दर्जनों तरह के काम के लिए लोगों की जरूरत होगी। लॉकडाउन समाप्त होने के बाद बाजार में तेजी आ रही है। सरकारी भवनों तथा प्राइवेट अपार्टमेंट का निर्माण शुरू हो गया है। उद्योग धंधों में लोग आने लगे हैं। बाहर से लाखों लोग आए हैं तो यहां से भी बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों के लोग वापस गए हैं। ऐसे में लोकल स्तर पर भी रोजगार के अवसर बने हैं। मिट्टी के काम में लगा कर बड़ी संख्या में रोजगार दिया जा सकता है। सरकारी तंत्र की पहुंच पंचायत स्तर तक होनी चाहिए ।किस तरह के लोग बेरोजगार हैं इसकी जानकारी मिलने के बाद उन्हें रोजगार उपलब्ध कराने में सुविधा होगी। अब तो इंटरनेट प्लेटफार्म हो सकता है जहां काम करने वाले अपनी जानकारी दे सकते हैं।इसके आधार पर जिन्हें कामगारोंकी जरूरत है उनसे संपर्क कर सकते हैं। सरकार इन दोनों के बीच फैसिलिटेटर की भूमिका में रहेगी। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत के लिए 20 लाख करोड़ के पैकेज के तहत कम ब्याज पर ऋण देने की घोषणा की है। छोटे दुकानदारए मोटर मैकेनिकए कारपेंटरए गेट ग्रिल बनाने वाले समेत कई ऐसे काम है जिसमें बैंक से छोटा लोन लेकर ही काम शुरू किया जा सकता है और इसे काफी बढ़ाया जा सकता है।
सेंटर फॉर फिसकल स्टडीज के निदेशक हरीश्वर दयाल के अनुसार मजदूरों का पलायन हमेशा मजदूरी का कारण ही नहीं होता बल्कि रोजगार के अच्छे अवसरों का फायदा उठाने के लिए भी होता है। झारखंड में एक फसली खेती एवं सीमित आर्थिक गतिविधियों के कारण रोजगार के अवसर सीमित रहे हैं। 19वीं सदी के उत्तरार्ध में बहुत सारे श्रमिक असम के चाय बागान चले गए थे और इन चाय बागानों के विकास में इनका अहम योगदान रहा है। आव्रजन के पीछे इनकी मजबूरी ही नहीं बल्कि पसंद भी रही है। जिस समय यहां के श्रमिक असम के चाय बागान में रोजगार करने के लिए जा रहे थे उसी समय पर यहां पर कोयले का खनन एवं गिरमिटिया मजदूरों का आगमन शुरू हुआ था लेकिन छोटानागपुर और संथाल परगना के मजदूरों ने उसके बदले चाय बागान ही जाना पसंद किया।लेकिन इस बार की स्थिति पहले की अपेक्षा अलग लग रही है। ऐसी परिस्थिति में राज्य के लिए इन मजदूरों का उपयोग कर नई आर्थिक गतिविधियों का सृजन करने का एक अच्छा सुअवसर है। अगर इन श्रमिकों का उचित सदुपयोग हुआ तो राज्य की अर्थव्यवस्था भी सुदृढ़ हो जाएगी। जो प्रवासी मजदूर लौट रहे हैं उनकी मुकम्मल ढंग से स्किल मैपिंग करनी चाहिए जिससे पता किया जा सकता है कि किस सेक्टर के स्किल्ड श्रमिक यहां लौट आया है। इस आधार पर मानव बल की उपलब्धता पता चलेगा और उनको उचित काम में लगाया जा सकता है। प्राइवेट सेक्टर के लिए भी मौका है की परिस्थिति को देखते हुए वे अपना कारोबार बढ़ा सकते हैंए नया प्रोजेक्ट लगा सकते हैं। जैसे अभी जानकारियां मिल रही है उसके आधार पर गारमेंट्स सेक्टरए पैकेजिंग इत्यादि के छोटे बड़े कारोबार बढ़ाकर काम कराया जा सकता है। अगर यहां पर उचित मजदूरी दर के साथ पर्याप्त रोजगार सृजन नहीं हो पाता है तो उनमें से कई मजदूर बेरोजगार के लिए पुनः पलायन कर सकते हैं।21
झारखंड जलए जंगलएजमीन से समृद्ध प्रांत है। झारखंड को बिहार से अलग हुए 20 वर्ष हो चुके हैं। ऐसा माना जाता है कि झारखंड के लगभग 8 से 9 लाख लोग विभिन्न राज्यों में रोजगार की तलाश में रहते हैं। कोविड.19 का आक्रमण नहीं होता तो शायद यह असली तस्वीर सामने नहीं आ पाती। सिमडेगा में अपनी संस्था के माध्यम से काम कर रही सामाजिक कार्यकर्ता पूर्वी पाल का कहना है कि स्किल मैपिंग के बाद काम की योजना बनाने में समय लग रहा है ।22 अभी तो विभिन्न तरह के नए काम की योजनाएं ही बन रही हैं। मनरेगा के अलावा भी बन छेत्र में विकास के अनेक योजना बनाकर रोजगार के अवसर दिए जा सकते हैं। सरकार ने रोजगार सृजन के लिए एमएसएमई और केबीआईसी के बीच समन्वय स्थापित कर योजनाओं की अमलीजामा पहनाने की दिशा में कदम उठाए हैं लेकिन अनेक तकनीकी जाल में उलझने की वजह से संस्थाएं योजनाओं को अंतिम रूप नहीं दे पा रही हैं और रोजगार के अवसर सृजित नहीं हो पा रहे। वापस लौटे मजदूरों को मनरेगा के काम से वह आमदनी नहीं हो पाएगी जो उन्हें बाहर जाकर मिलती है। ऐसा संभव ही नहीं है ।राज्य में गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों का प्रतिशत नोवल कोरोना वायरस महामारी की वजह से बढ़ा है। सरकार नई योजनाओं के साथ काम करने वाले एनजीओ और आदिवासी अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए काम करने वाले विशेषज्ञों को बिठाकर उनसे उचित सुझाव लेकर नया काम प्रारंभ कर सकती है ।सरकार भी सरकार भी कोड़ी कुदाल चलाए और विशेषज्ञों को ढूंढें और रोजगार की नई योजनाओं पर बात करें। झारखंड संसाधनों से परिपूर्ण राज्य है जहां रोजगार की असीम संभावनाएं हैं । वन क्षेत्र में भी रोजगार के नए रास्ते खुल सकते हैं।23
झारखंड गठन के पश्चात औद्योगिक विकास में ठहराव और मजदूरों का पलायन
झारखंड प्रांत के निर्माण के 20 वर्षों के पश्चात भी खनिज बहुल राज्य होने के बावजूद नया औद्योगिक विकास नहीं होने का क्या कारण हैघ् इस प्रश्न के जवाब में रांची विश्वविद्यालय के कार्तिक उरांव महाविद्यालयए गुमला के अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो ;डॉद्ध दिलीप प्रसाद का कहना है किएष् झारखंड प्रांत के निर्माण के बीस वषोँ के पश्चात् भी औधोगिक विकास की सम्पूर्ण संभावना के बावजूद भी औधोगिक विकास नहीं हो पाया। इसके मुख्य कारण हैरू विकास के लिए विस्थापन व पुनर्वास की स्पष्ट नीति का नहीं होनाए भुमि बैंक की रिकार्ड नहीं होनाएनिवेशकों के लिए सुरक्षा की जिम्मेदारीए उदासीन राजनीतिक इच्छा शक्ति जैसी अनेक कारणों के कारण औधोगिक विकास आसानुकूल नहीं पाया है।ष्24
कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से घोषित लॉकडाउन में जब लोग मुश्किलों से घिरेए तो अपने घरों की ओर भागे। झारखंड सरकार ने अलग.अलग राज्यों में फंसे अपने लोगों को लाने की पहल की और करीब 7 लाख लोग अलग.अलग परिवहन माध्यमों से लाये गये। इस दौरान सरकार ने प्रवासी श्रमिकों का एक सर्वेक्षण भी करायाए जिसमें पता चला कि 80 हजार से अधिक परिवार स्वयं सहायता समूह ;ैमस िभ्मसच ळतवनचद्ध का हिस्सा नहीं है।अब इन लोगों को स्वयं सहायता समूह से जोड़कर इन्हें रोजगार उपलब्ध कराया जायेगाए ताकि फिर से इन लोगों को रोजी.रोटी के लिए अपना गांव.घर छोड़कर किसी और राज्य में पलायन न करना पड़ेण् बसए ट्रेन और हवाई जहाज से लौटे 3ए01ए987 लोगों को प्रवासी श्रमिक के रूप में चिह्नित किया गया है। इनमें से 26ण्51 फीसदी परिवार अब तक स्वयं सहायता समूह से नहीं जुड़ पाये हैं।ऐसे 80ए047 परिवारों की पहचान की गयी है।ग्रामीण विकास विभाग की सचिव आराधना पटनायक का कहना है कि इन परिवारों की महिलाओं को एसएचजी से जोड़कर उन्हें स्वावलंबी बनाया जायेगा। उन्होंने कहा कि सरकार के पास ऐसे लोगों का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं था। लॉकडाउन के दौरान सखी मंडल के जरिये यह पता लगाया गया कि कौन.कौन लोग कमाने के लिए बाहर गये हैं और लौटना चाहते हैं। ये लोग वहां क्या काम करते हैंए ष्मिशन सक्षमष् के तहत ष्सखी मंडलष् के जरिये ही यह भी पता लगाया गया कि प्रवासी श्रमिकों के परिवार सरकार की किन योजनाओं का लाभ ले रहे हैं।इसी दौरान मालूम हुआ कि पात्रता के बावजूद वे कम से कम 7 योजनाओं का सरकारी लाभ नहीं ले पा रहे हैं। ग्रामीण विकास विभाग की सचिव ने यह भी बताया कि सर्वेक्षण के दौरान यह भी आंकड़ा एकत्र कर लिया गया है कि प्रवासी श्रमिकों की रुचि किस काम में है। इसके आधार पर सरकार विभिन्न योजनाओं के तहत उन्हें रोजगार उपलब्ध करवायेगी।25
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि वैश्विक महामारी कोविड19 ;कोरोना वायरस डिजीज 2019द्ध की वजह से देश भर में घोषित लॉकडाउन के दौरान देश के अलग.अलग हिस्सों से 6ण्89 लाख से अधिक लोग झारखंड लौटेण् इनमें से 5ए11ए663 ;5 लाख 11 हजार 663द्ध लोगों को प्रवासी मजदूर के रूप में चिह्नि त किया गया।इनमें से 3 लाख से अधिक लोगों का ग्रामीण विकास विभाग ने सर्वे कियाए तो पाया कि 2ण्09 लाख से अधिक लोग कुशल श्रमिक हैंए जबकि 92 हजार से अधिक लोग अकुशल श्रमिक हैं।ज्ञात हो कि 1 मईए 2020 से 238 स्पेशल ट्रेनें अलग.अलग राज्यों से झारखंड के 6ण्89 लाख से अधिक लोग अपने घर पहुंचे। इनमें से 4 लाख 12 हजार 357 लोग झारखंड सरकार की मदद से अपने राज्य और अपने घर पहुंचे ।झारखंड सरकार की मदद से जो लोग लाये गयेए उनमें से 3 लाख 10 हजार 340 लोगों को 238 स्पेशल श्रमिक ट्रेन के माध्यम से लाया गया है। 1 लाख 852 लोगों को बस तथा 1ए165 लोगों को हवाई मार्ग से झारखंड लाया गया और फिर उनके घर पहुंचाने की व्यवस्था की गयी।
क्या झारखंड में तकनीकी संस्थाओं की कमी यहां के युवाओं को दूसरे राज्यों में श्रमिक के रूप में कार्य करने के लिए जिम्मेदार हैघ् रांची विश्वविद्यालय अंतर्गत कार्तिक उरांव महाविद्यालयए गुमला में अर्थशास्त्र के सहायक प्राध्यापक प्रोण् अमिताभ भारती कहते हैंए ष्केवल तकनीकी संस्थाओं में वृद्धि से कुशलता तो बढ़ जाएगी परंतु वे सही रोजगार की तलाश पुनः प्रवासी होने को उद्यत होंगे। अतः अकुशलता को कुशलता में बदलने के साथ ही साथ उनके लिए झारखंड में ही फलदायक रोजगार का सृजन करना श्रेयस्कर होगा। तभी इस प्रवासन की समस्या का समाधान हो पायेगा।ष्26
झारखंड में पूर्व में भी स्वरोजगार के लिए बहुत सारी योजनाएं बनी लेकिन धरातल पर उतरते उतरते भ्रष्टाचार का शिकार हो गई। कार्तिक उरांव महाविद्यालयए गुमला के अर्थशास्त्र विभाग के युवा शिक्षक प्रोण् बिंदेश्वर साहू अपना अनुभव बताते हैं कि सेवा में आने के पूर्व उन्होंने तब कि केंद्र में संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चे की सरकार के समय तब के खाद्य प्रसंस्करण मंत्री श्री सुबोध कांत सहाय के पहल पर ग्रामीण इलाकों के लिए सहकारी मॉडल पर विभिन्न प्रकार के लघु एवं कुटीर उद्योगों के लिए चलाए गए अभियान के तहत 12 सौ लोगों को सहकारी संस्थाओं से जोड़ा था। संचालन कर्ताओं के दिशा निर्देश के अनुसार सभी लोगों से सदस्यता शुल्क के रूप में 1200 रुपए लिए गए। हर दो.तीन गांव को आपस में मिलाकर एक कलस्टर बनना था। उन्हें भी एक कलस्टर में मसाला पीसने और पत्तल बनाने वाली तीन छोटी.छोटी मशीनें दी गई और कहा गया कि उनको कच्चा माल प्रदान किया जाएगा और सरकार द्वारा तय की गई संस्थाएं उन सामानों को देश के विभिन्न भागों में वितरित करेंगी लेकिन कुछ जगह ऐसे केंद्रों का उद्घाटन करने के बाद इनका पता ठिकाना पूछने वाला भी कोई नहीं रहा। बिंदेश्वर साहू याद करते हैं कि उनके जैसे जिन युवाओं ने लोगों को सदस्य बनाने में जोर.शोर से भाग लिया थाए उनको अपने पास से जैसे तैसे शेष सदस्यों की सदस्यता राशि वापस लौटाना पड़ा।27
फिर से उभरता नक्सली उग्रवाद का खतरा
नोबल करोना वायरस जनित महामारी के इस भयानक संकट काल में झारखंड के ऊपर नक्सलवाद के फिर से उभरने का खतरा भी मंडरा रहा है। समाचार पत्रों में आ रहे जानकारी के अनुसार घर लौटे बेरोजगार श्रमिकों पर नक्सलियों की नजर है और उनका इरादा हरगांव से 10ए 10 युवक. युवती की बहाली का है। स्पष्ट है कि नक्सली संगठन प्रवासियों की बेरोजगारी का लाभ उठाना चाहते हैं। अपने संगठन में शामिल करने के लिए साम.दाम.दंड.भेद हर तरीका अपना रहे हैं ।नक्सली संगठन गांव में मुखियाए मुंडा और डाकुआ को पत्र लिख उनसे संगठन के पक्ष में युवाओं को समझाने की अपील की जा रही है वहीं क्षेत्र में घूम.घूम कर नक्सली बंदूक के दम पर गांव से कार्यकर्ताओं की मांग कर रहे हैं । बेरोजगार युवाओं को लुभाने के लिए हर महीने 10000 रुपए तक वेतन का प्रलोभन दिया जा रहा है। झारखंड के चतराए लातेहारए गिरिडीहए हजारीबाग और चाईबासा के गांव में नक्सली नेताओं के हस्तलिखित पत्र बरामद किए गए हैं। पुलिस ने भाकपा माओवादी उग्रवादियों के खिलाफ केस दर्ज किया है। ऐसी स्थिति है कि यदि सरकार ने बेरोजगार युवाओं को काम नहीं दिलाया तो इनमें से कई नक्सलियों के जाल में फंस सकते हैं। अभी बेरोजगार युवा श्रमिकों को संगठन में शामिल होने पर 10ए000 मासिक वेतन लुभावना प्रतीत हो सकता है। इसके साथ.साथ नक्सली संगठनों ने सुरक्षा की गारंटी और जीवन स्तर में सुधार के भरोसा दिला रहे हैं ।उनको यह भी समझाया जा रहा है कि बंदूक के दम पर ही वह अपने गांव का विकास कर लेंगे। जो युवा ऐसे संगठनों से जुड़ना नहीं चाहते तो खास तौर पर दूर.दराज के ग्रामीण क्षेत्र में सक्रिय नक्सली संगठन उनके परिवारों को धमकाते हैं। गांव में परचा फेंककर परिवारों से युवाओं को दस्ते में भेजने के लिए कहा जा रहा है। ऐसा न करने पर अंजाम भुगतने की धमकी दी जा रही है। इतनी ही नहीं सबसे बड़ी बात यह है कि नक्सली गांव के नाबालिग बच्चों को भी संगठन में भेजने की मांग कर रहे हैं। राज्य के डीजीपी ने खुद स्वीकार किया है कि नक्सलियों द्वारा पर्चे बांटनेए पोस्टर लगानेए संगठन के लिए गांव से युवाओं को मांगे जाने की जानकारी पुलिस को है। पुलिस अपना काम कर रही है। ग्रामीणों को जागरूक करने का काम भी किया जा रहा है।करोना कॉल में नक्सलियों की बढ़ती सक्रियता पर पुलिस ने अपनी ओर से गांव में जागरूकता अभियान शुरू किया है लेकिन भयभीत युवा डर के मारे पलायन कर रहे हैं। क्षेत्र में नक्सलियों की सक्रियता को देखते हुए गांव के युवा व युवती गांव छोड़कर बाहर निकल रहे हैं और अपने दोस्त सगे संबंधियों के यहां शरण ले रहे हैं ताकि उनके परिजन यह कह कर नक्सलियों से पीछा छुड़ा सके कि अब वह गांव में रहते ही नहीं है।28
केंद्र और राज्य सरकार ने गरीबों और श्रमिकों के कल्याण के लिए कई योजनाएं चलाई हैं लेकिन इस संकट काल में भी उनका सही लाभ जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पा रहा है। प्रधानमंत्री ने गरीब कल्याण योजना में 5 किलो मुफ्त अनाज देश के करीब 8 करोड़ मजदूरों को देने की योजना नवंबर 2020 तक बढ़ाकर एक बेहद ठोस कल्याणकारी कदम उठाया है। यह मुफ्त राशन गरीबों को राज्य सरकारों के द्वारा बांटा जाना है। जाहिर है यह उदार योजना करोड़ों प्रवासी मजदूरों को लक्षित कर ही बनी थी। बढ़ते जनाक्रोश को देखकर तमाम राज्यों ने जो पहले इन्हें अपने राज्य में लाने में आनाकानी कर रहे थे वापस बुलायाए फिर बड़े.बड़े वादे किए जैसे अब उन्हें वापस दूसरे प्रांतजाने नहीं दिया जाएगाए अपने घर में ही कामए बाहर जाने पर मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएंए बेहतर मजदूरी व उनकी आवास की व्यवस्था के वादे हुए लेकिन हकीकत यह थी कि 26 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने केंद्र द्वारा घोषित सहायता तो उठा लिया लेकिन दो माह केबाद भी केवल जहां से सबसे अधिक प्रवासी मजदूर पूरे देश में जाते हैं वहां स्थिति जस की तस है। मई माह में केवल 2 राज्यों ने2ः अनाज बांटा। ऐसे ही कई राज्य सरकारों जिन्हें अपने कोटे का अनाज केंद्र सरकार से प्राप्त हुआ था और इनका काम बगैर किसी औपचारिकता के मजदूरों को 5 किलो प्रति व्यक्ति की दर से राशन देना था ।केंद्रीय मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि कुछ राज्य सरकारों ने मजदूरों को राहत दी है जबकि हिमाचलए कर्नाटक और असम की सरकारों का काम भी प्रशंसनीय है ।जिन राज्यों ने राशन कोताही से बांटा है यह वही है जहां किसानों से अनाज की सरकारी खरीद में भी कोताही की अकर्मण्यता हर आयाम पर है। राजनीति शास्त्र में पढ़ाते हैं कि प्रजातंत्र में जनमत का दवाब इतना होता है कि राज्य का कल्याणकारी भूमिका में आना मजबूरी होती हैए भारत में यह गलत साबित हो रहा है।
झारखंड के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया है कि वह केंद्र द्वारा भेजे खाद्यान्न को झारखंड के गांव.गांव तक समुचित ढंग से नहीं भेज पा रही है। राज्य की गरीब जनता अनाजके लिए तरस रही है जबकि राज्य के गोदामों में केंद्र से भेजें अनाज भरे हुए हैं। भूख से मौत की खबरें भी आई है पर राज्य सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उनके अनुसार पूरा पीडीएस सिस्टम बिचौलियों और मुनाफाखोरी का अड्डा बन चुका है। राज्य की पूरी जन वितरण प्रणाली ध्वस्त हो चुकी है और मुनाफाखोरो को राज्य सत्ता का संरक्षण है। दीपक प्रकाश के अनुसार केंद्र सरकार ने जुलाई से नवंबर तक 5 महीनों के लिए प्रति व्यक्ति 5 किलो चावल या गेहूं और 1 किलोग्राम चना या दाल देने की योजना शुरू की है जिससे झारखंड के सबसे ज्यादा परिवारों को जोड़ना है लेकिन राज्य सरकार लाभ पहुंचाने में विफल है। दूसरी और सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा .कांग्रेस गठबंधन सरकार विपक्ष के आरोपों को घटिया राजनीति मानती हैं। सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य भाजपा पर पलटवार करते हुए कहते हैं कि झारखंड के जन वितरण व्यवस्था को झारखंड में पिछली रघुवर दास सरकार ने अपने 5 वर्षों के कार्यकाल में ध्वस्त कर दिया जबकि वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पिछले 6 माह में इसे सुधारा है। सुप्रियो भट्टाचार्य ने यह भी कहा कि केवल 5 किलो अनाज से किसी की जिंदगी नहीं संवर जाएगी। सरकार को यह भी सोचना चाहिए कि लोगों के पास रोजगार कहां से आएगाए उसके पॉकेट में पैसे कहां से आएंगे।29
रांची विश्वविद्यालय अंतर्गत कार्तिक उरांव महाविद्यालयए गुमला के स्नातकोत्तर राजनीति विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर ;डॉण्द्ध सुदामा सिंह कहते हैंएष् झारखंड विभाजन के बाद राज्य की राजनीति के आयाम बदल गए और आंदोलनकारी नेताओं के सुदृढ़ झारखंड निर्माण के सपने का स्थान सत्ता के लिए जोड़.तोड़ के प्रयासों ने ले लिया है जो झारखंड के विकास में सबसे बड़ी बाधा है।ष् कार्तिक उरांव महाविद्यालयए गुमला के राजनीति विज्ञान विभाग के ही डॉ सिंह के सहयोगी और और पूर्व में पटना के अनुग्रह नारायण सामाजिक शोध संस्थान में राजनीति विज्ञान के सहायक प्राध्यापक प्रोण् अजीत कुमार हांसदा कहते हैं किए ष्छोटानागपुर और संथाल परगना के क्षेत्र में बाहरी लोगों के बसाव के कारण यहां के लोगों की जीवन शैली में बहुत परिवर्तन आया है और वे परंपरागत जीवन शैली और व्यवसाय से विमुख होकर बाहरी रहन.सहन ही नहीं अपना रहे वर्न अपने प्रांत से बाहर जाकर काम करना उन्हें आनंददायक प्रतीत होता है। ष् दूसरी ओरए झारखंड में काम कर चुके और वर्तमान में बीण्आरण् एण् बिहार विश्वविद्यालयए मुजफ्फरपुर अंतर्गत लक्ष्मी नारायण दुबे महाविद्यालयए मोतिहारी में राजनीति विज्ञान के सहायक प्राध्यापक डॉण् कुमार राकेश रंजन कहते हैंए ष्झारखंड निर्माण के पश्चात झारखंड के लोगों में आत्म संतुष्टि का भाव आ गया और जब तक यह भाव बना रहेगा और वह अपने जनप्रतिनिधियों के ऊपर स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन के लिए दबाव नहीं डालेंगे झारखंड के मजदूरों को भी पूर्व काल के संयुक्त बिहार के मजदूरों जैसी ही कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। ष्30
झारखंड को प्रकृति ने दोनों हाथों से संसाधनों की सौगात दी है। यह पठारी प्रदेश उद्योगों के लिए आवश्यक लगभग सभी आधारभूत खनिजों से संपन्न है।देश में कोयलाए लोहाए चूना पत्थरए तांबाए बॉक्साइटए यूरेनियमए मैंगनीजए अभ्रक जैसे महत्वपूर्ण खनिजों का उत्पादन करने वाला झारखंड अग्रणी राज्य है। झारखंड में उद्योगों की स्थापना के लिए भूमि की भी पर्याप्त उपलब्धता है । देश के दो सबसे बड़े लोहा इस्पात कारखाने झारखंड के जमशेदपुर एवं बोकारो में स्थित हैं। भारी अभियंत्रण निगम जिसे कारखानों का कारखाना कहा जाता हैए रांची में ही स्थित है।
झारखंड की भूमि भी काफी उपजाऊ है और यहां के मेहनती किसान बड़े पैमाने पर चावलए मक्काए उड़दए मूंगए मटरए चनाए मूंगफली जैसे फसलों का उत्पादन करते हैं। इसके अलावा यहां पर लगभग हर प्रकार की सब्जियां उपजाई जाती है ।झारखंड के वनों के अतिरिक्त लोगों द्वारा अपने अपने खेतों में लगाए गए फलदार पौधों से राज्य में पर्याप्त मात्रा में आमए अमरुदए कटहलए कुसुम ए आंवलाए इमलीए लीचीएबेरए नाशपातीए कीनूए नींबूए अनानासए इत्यादिए का भी उत्पादन होता है। राज्य में बड़े पैमाने पर दुधारू पशुओं को पाला जाता है और इसके लिए पर्याप्त बाजार भी उपलब्ध है। झारखंड में मछली पालन एवं कुक्कुट पालन भी सफलतापूर्वक किया जा रहा है तथा इसके और ज्यादा विस्तार की संभावनाएं हैं।
झारखंड पर्यटन की दृष्टि से भी काफी संपन्न है। देवघर का बाबा वैद्यनाथ मंदिरए रजरप्पा में मां छिन्नमस्तिका का मंदिरए पारसनाथ का सम्मेद शिखरए रांची में पहाड़ी मंदिरए जगरनाथ मंदिर एवं बुंडू में सूर्य मंदिरए खूंटी में अंगराबारी स्थित आमरेश्वर धामए सिमडेगा का रामरेखा धाम और गुमला का टांगीनाथ धाम काफी प्रसिद्ध है। गुमला स्थित आंजन ग्राम को भगवान हनुमान की जन्मस्थली माना जाता है। यहीं के पालकोट में सुग्रीव की राजधानी मानी जाती है। गुमला के सिसई में स्थित नवरत्नगढ़ नागवंशी राजाओं की राजधानी का ध्वनषावशेष है जो एक प्रमुख पर्यटन केंद्र बन सकता है। लातेहार जिला स्थित नेतरहाट कश्मीर जैसी जलवायु और पर्वतीय सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। रांचीए खूंटीए गुमलाए लोहरदगा और लातेहार जिले में बहुत सारे जलप्रपात पाए जाते हैं जो देश विदेश के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन सकते हैं। राज्य में बहुत सारे छोटी.बड़ी नदियों पर निर्मित बांध;क्ंउद्ध हैं। रांची.रामगढ़ रोड में चुट्टूपालु घाटी का सौंदर्य देखते ही बनता है। पतरातू एक महत्वपूर्ण पर्यटक केंद्र के रूप में उभर रहा है। हजारीबाग और पलामू में राष्ट्रीय व्याघ्र परियोजना वाले जंगल हैं तो गुमला के पालकोट इलाके में हाथियों की आश्रयस्थली है। राज्य के पहाड़ी इलाकों में राजमार्गों के निर्माण से चलचित्रों के निर्माण के लिए दर्शनीय स्थलों की भरमार हो गई है।
अगर सरकार इन उद्योगों को योजनाबद्ध तरीके से संस्थागत प्रोत्साहन प्रदान करे तो प्रवासी मजदूरों को अपने प्रांत में ही पर्याप्त रोजगार उपलब्ध हो पाएगा। हो सकता है कि यह दूसरे प्रांत में जाकर उनके द्वारा अर्जित किए गए आय से कुछ कम हो लेकिन बाहर रहने पर होने वाले खर्चों को घटा दें तो यहां होने वाली आय बाहर कमाई गई आय के ऊपर भारी साबित होगीए साथ ही साथ अपने घर में रहने का अपने परिवार के साथ रहने का अपने लोगों के साथ रहने का जो शोक और आत्म संतोष प्राप्त होगा दुनिया का कोई धन उसकी बराबरी नहीं कर सकता है।
उपयुक्त आलेख का लेखक परिचय
प्रोण्;डॉद्धसंजय कुमार अविभाजित बिहार में पैदा हुए एवं झारखंड के खूंटी जिले के निवासी हैं। उन्होंने रांची विश्वविद्यालय तथा बीण्आरण् अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर में अध्ययन किया है और वर्तमान में रांची विश्वविद्यालय अंतर्गत कार्तिक उरांव महाविद्यालयए गुमला में स्नातकोत्तर राजनीति विज्ञान विभाग में सहायक प्राध्यापक है।
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11. "औरैया में ट्राला में DCM ने मारी टक्कर, 26 प्रवासी मजदूरों की मौत, 37 घायल" 16 May 2020 Dainik jagran
12. "यूपी, महाराष्ट्र के बाद अब बिहार में सड़क हादसा, ट्रक और बस की टक्कर में नौ मजदूरों की मौत।" न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भागलपुर" , 19 May 2020
13. "घर जाने के लिए चलते-चलते थके तो सीधे पटरी पर ही लेट गए... ट्रेन आई और उसके बाद वो कभी नहीं उठे" indiatimes.com May 08, 2020,
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16. " झारखंड लौटे 72% मजदूर अब दूसरे राज्यों को वापस नहीं जाना चाहते " दैनिक भास्कर -मुख्य पृष्ठ 03 जुलाई 2020
17. "मनरेगा योजना मिशन मोड पर चलाई जा रही है "- मनरेगा आयुक्त। दैनिक भास्कर, रांची 03 जुलाई 2020
18. "मनरेगा को सुधारें शहरों में रोजगार गारंटी का वादा बन सकता है साहसिक पहल"- जया द्रेज। दैनिक भास्कर रांची 03 जुलाई 2020
19. प्रो. शैलेंद्र सिंह भारतीय प्रबंधन संस्थान, रांची के निदेशक हैं।
20. " सरकार सभी को रोजगार नहीं दे सकती आत्मनिर्भर बनाना ही एकमात्र उपाय , प्रो. शैलेंद्र सिंह " डायरेक्टर आईआईएम रांची, दैनिक भास्कर 3 जुलाई 2020
21. " प्राइवेट सेक्टर के लिए भी अवसर,लेबर को देखते हुए बढ़ा सकते हैं अपना दायरा, "- हरीश्वर दयाल, सेंटर फॉर फिजिकल स्टडीज ।दैनिक भास्कर 03 जुलाई 2020
22. डॉ. वासवी किड़ो सिमडेगा की रहने वाली हैं और झारखंड की प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हैं।
23. " सरकार आदिवासी अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञों के साथ मिलकर काम करें ", डॉक्टर बांसुरी कीरो। दैनिक भास्कर 03 जुलाई 2020 पृष्ठ संख्या 2
24. प्रो.( डॉ.) दिलीप प्रसाद कार्तिक उरांव महाविद्यालय, गुमला में अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष हैं।
25. आराधना पटनायक झारखंड के ग्रामीण विकास विभाग की प्रधान सचिव हैं।
26. प्रो. अमिताभ भारती कार्तिक उरांव महाविद्यालय गुमला में अर्थशास्त्र के वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक हैं।
27. प्रो बिंदेश्वर साहू कार्तिक उरांव महाविद्यालय गुमला में अर्थशास्त्र के सहायक प्राध्यापक हैं।
28. घर लौटे बेरोजगार श्रमिकों पर नक्सलियों की नजर हरगांव से मांगे दस दस युवक-युवती, दैनिक भास्कर 3 जुलाई 2020 पेज संख्या 1
29. Statements in Local dalies
30. डॉ. कुमार राकेश रंजन लक्ष्मी नारायण दुबे महाविद्यालय, मोतिहारी में राजनीति विज्ञान के सहायक प्राध्यापक है।
Received on 19.09.2020 Modified on 24.10.2020
Accepted on 15.12.2020 © A&V Publication all right reserved
Int. J. Ad. Social Sciences. 2020; 8(4):196-206