लघु सिंचाई साधनों का कृषि उत्पादन एवं रोजगार पर प्रभावः धमतरी जिले के नगरी तहसील के विषेष संदर्भ में
अषोक कुमार पटेल1, डाॅ. मनदीप खालसा2
1शोध छात्र, अर्थषास्त्र, शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, धमतरी ;छ0ग0
2प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, अर्थशास्त्र, शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, धमतरी ;छ0ग0
*Corresponding Author E-mail:
ABSTRACT:
कृषि उत्पादकता को प्रभावित करने वाले तत्वो में सिंचाई साधनों का विषेष महत्व है। प्र्रस्तुत षोध पत्र छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के नगरी तहसील पर आधारित है। षोध पत्र का उद्देष्य अध्ययन क्षेत्र में लघु सिंचाई साधनांे को चिन्हित करना, एवं साधनांे का कृषि उत्पादन तथा कृषकों के रोजगार पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन से पता चला कि सिंचाई साधनों के प्रयोग से कुल उत्पादन में वृध्दि 71.52 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा रोजगाद में वृध्दि दोगुना हुई है।
KEYWORDS: कृषि, सिंचाई साधन।
प्रस्तावना:-
भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान है। देष की लगभग 60 प्रतिषत कार्यषील जनसंख्या कृषि में लगी हुई है। महत्वपूर्ण उद्योगो को कच्चा माल कृषि से ही प्राप्त होता है। कृषि से लोगांे के खाद्यान्न की आवश्यकता की पूर्ति होती है। पशुओ के लिए चारा भी कृषि से ही प्राप्त होता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व इतना अधिक है कि इसे भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जाता है। वही कृषि के लिए जल अनिवार्य तत्व है। यह वर्षा द्वारा अथवा कृत्रिम सिंचाई से प्राप्त किया जाता है। जिन क्षेत्रों में वर्षा उचित और
ठीक समय पर होती है, वहा पानी की कोई समस्या नही होती, विपरीत कम उत्पादन या फसल सूख जाती है। भारत एक कृषि प्रधान देष है। देष का कुल क्षेत्रफल 3287263 वर्ग किमी है, जो विष्व क्षेत्रफल का 2.42 प्रतिषत है। वही जनसंख्या की दृष्टि से चीन के बाद दूसरे नम्बर पर है, इससे जाहिर है कि बड़ी मात्रा में खाद्य पदार्थो की आवश्यकता होगी। अतः स्वतंत्रता के बाद देष में लागु प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) में कृषि के साथ सिंचाई को प्राथमिकता दिया गया। भारत में कृषि क्षेत्र (1999-2000) 141.23 मिलियन हेक्टेयर (कुल भूमि का 43 प्रतिषत) है। जिसमंे सिंचित क्षेत्र फसल भूमि का 40 प्रतिशत हिस्सा मात्र है। जबकी 60 प्रतिषत फसल भूमि मानसून पर निर्भर है। देष की कुल सिंचाई क्षमता दसवीं योजना के अतिंम वर्ष 2006-07 तक 102.8 मिलियन हेक्टेयर अनुमानित की गई थी, जिसमें लघु सिंचाई परियोजना के अन्तर्गत क्षमता 60.42 मिलियन हेक्टेयर थी । बोरा नीता (1991)1 सिंचाई क्षमता में वृध्दि में लघु सिंचाई साधनों का महत्वपूर्ण योगदान है तथा सिंचाई सुविधआंे का विस्तार एक निरन्तर प्रक्रिया है। इसी के परिणम स्वरूप खाद्यान्न के मामले में हमंे आत्मनिर्भरता मिली। आज भी सृजित सिंचन क्षमता तथा वास्तविक सिंचाई के उपयोग में अन्तर है। देष कि विस्फोटक जनसंख्या वृध्दि, बडे पैमाने पर षहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण निरंतर भूमिगत जल संसाधनांे के अत्याधिक दोहन से इसके जल स्तर में गिरावट आई है। अतः जल संसाधनांे को एक बहुमूल्य राष्ट्रीय सम्पति के रुप में स्वीकार करते हुए इसका विकास राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में किया जाए और उपलब्ध सतही तथा भू-जल संसाधनांे का किफायती उपयोग को बढ़ावा दिया जाए (दुबे संजीव 2000)2। तालाब, जल संरक्षण एवं सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण साधन है, वर्तमान में तालबों की दषा अत्यन्त खराब हो रही है। अतः इनके जीर्णोध्दार के लिए जन जागृति और प्रषासन की भूमिका महत्वपूर्ण है (अभिजात अमृत 2007)3। देष में अनेेेक हिस्सांे में जल स्तर घटता जा रहा है। इस विषम परिस्थिति से निपटने के लिए सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। हालाकि इस प्रणाली के कार्यान्वयन से प्रारम्भिक खर्च अधिक पड़ता है। लेकिन बाद मंे जल, ऊर्जा, श्रम व समय की भारी बचत होती है, और यह सिंचाई का सस्ता साधन बन जाती हैं (सिंह रमेष 2009)4 । दष में भूमिगत जल का 80 प्रतिषत भाग का उपयोग कृषि क्षेत्र में किया जाता है। अतः इस क्षेत्र मंे फव्वारा व ड्रिªप सिंचाई विधियांे का उपयोग करके जल की बचत व सदुपयोग को सुनिष्चित करके गिरते भू-जल स्तर को नियंत्रित करना संभव है (मोदी अनिता 2011)5 ।वर्तमान में देष की जनसंख्या 121 करोड़ को पार कर चुकी है, जिससे देष में बेरोजगारी और खाद्य संकट मंड़रा रहा है, इसे दूर करने के लिए सिंचाई सुविधा को बेहतर बनाने के लिए उपाय अधिक कारगर हो सकता है, इसके लिए बड़ी सिंचाई साधनांे के साथ- साथ मध्यम और लघु सिंचाई साधनांे का विकास किया जाना चाहिए। जिससे एक ओेर वर्ष भर लोगों को कृषि क्षेत्र में रोजगार मिलेगा वही उत्पादन में वृध्दि से खाद्यान्न संकट दूर होगा। भारत में अभी सिंचाई के प्रमुख साधन- कुएँँँ, नलकूप, तालाब, नहरें एवं अन्य स्त्रोत है।
लघु सिंचाई साधनों से अभिप्राय-
फसलों के सफल उत्पादन के लिए उन्हे कृत्रिम रूप से जल देने के लिए जिन साधनों का प्रयोग किया जाता है, उन्हे सिंचाई के साधन कहते है। कुआ, तालाब, नहर तथा ट्यूबवेल आदि लघु सिंचाई के साधन है। इन सिंचाई साधनों की आवष्यकता रबी एवं खरीफ फसल को जल देने के लिए पड़ती है, जिससे पौधों को ठीक समय पर पर्याप्त मात्रा में पानी मिलने से फसल की अच्छी पैदावार हो। भारत में केवल 44.6 प्रतिषत कृषि क्षेत्र पर ही सिंचाई की सुविधाएँ उपलब्ध है, जबकि 56 प्रतिषत क्षेत्र अभी भी वर्षा पर निर्भर है। देष में वर्षा प्रायः जून से सितम्बर के बीच मेें ही होती है। शेष महीने सूखे रहतंे है। उत्तरी भारत में दिसम्बर तथा जनवरी में चक्रवाती हवाओं से थोड़ी सी वर्षा होती है। जिन भागों में पर्याप्त वर्षा होती है वहाँ भी शीत ऋतु तथा ग्रीष्म ऋतु में इतनी नमी नही होती कि बिना सिंचाई व्यवस्था के एक से अधिक फसल ली जा सके। देष के अधिकांष भागों में वर्षा इतनी कम होती है, कि गहन खेती की सम्भावनाएँ नही है। अतः कृषि उत्पादकता को प्रभावित करने वाले तत्वो में सिंचाई साधनों का विषेष महत्व है।
लघु सिंचाई साधन
भारत में सिंचाई साधनों के लिए बड़ी परियोजनाएँ जिन पर 5 करोड़ रूपये से अधिक व्यय करना होता है। मझोली परियोजए जिनकी लागत 10 लाख रूपये से 5 करोड़ रूपये के बीच है, तथा लघु परियोजनाँ जिनकी लागत 10 लाख रूपये से कम है। इस वर्गीकरण के अनुसार वे सभी नदी घाटी परियोजनाए बड़ी होगी जिनमें 5 करोड़ रूपये से ज्यादा खर्च किया गया है। नहरो के निर्माण से संबंधित अधिकांष परियोजनाए बड़ी अथवा मझोली होती है। लघु परियोजनाओं में कुओं, तालाबों, तथा नलकूपों द्वारा सिंचाई को षामिल किया जाता है। इसके लिए कम मात्रा में धन की आवश्यकता होती है, और षीघ्र ही अल्पकाल में व्यवस्था कर ली जाती है। परंतु सूखे के समय में ये सिंचाई साधन उपलब्ध नही होते है, क्योकि जल स्तर नीचे चले जाने के कारण इनमें जल का अभाव हो जाता है। इसके अतिरिक्त इनके देख-रेख पर भी बराबर ध्यान देना पड़ता। अप्रैल 1978 में परियोजनाओं का नया वर्गीकरण अपनाया गया। इसके अंतरगत, बड़ी सिंचाई योजनाएँ- इनमें वे परियोजनाए शामिल की जाती है, जिनके नियंत्रण आधीन 10,000 हैक्टेयर से अधिक कृषि योग्य क्षेत्रफल हो। मध्यम सिंचाई योजनाएँ- इनमें वे परियोजनाएँ शामिल की जाती है, जिनके नियंत्रण आधीन 2,000 से 10,000 हैक्टेयर तक कृषि योग्य क्षेत्रफल हो। छोटी सिंचाई योजनाएँ- इनमें वे परियोजनाएँ शामिल की जाती है, जिनके नियंत्रण आधीन 2,000 हैक्टेयर तक कृषि योग्य क्षेत्रफल हो।
लघु सिंचाई साधनों का वर्गीकरण-लघुु सिंचाई साधनों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया गया है-
कुएँ - कुओं का उपयोग भारत में सिंचाई के साधनों के रूप में अत्यन्त प्राचीन काल से किया जाता रहा है। कुओं से पानी निकालने में अधिक श्रम एवं समय की आवष्यकता होती है। इसलिए पानी को मितव्ययिता के साथ खर्च करना पड़ता है। कुओं द्वारा सिंचाई मुख्य रूप से मैदानी भागो में की जाती है जहाँ कि पानी अधिक गहरा नही होता और मिट्टी नरम होती है। कुओं द्वारा सिंचाई मुख्यतः उत्तर प्रदेष, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेष, राजस्थान तथा तमिलनाडु में होती है।
नलकूप - भूमि से पानी निकालने का यह अच्छा तरीका है, क्योकि इसके द्वारा अधिक गहराई से पानी निकाला जा सकता है। पक्के कुओं मंे लोहे के नल बोरिंग करके पम्प द्वारा पानी उठाया जाता है, पम्प से पानी बिजली के मोटर या डीजल इंजन से निकाला जाता है। पाइप का व्यास 10- 20 सेमी. होता है। जिन तहो से जल रिसता है, वहाँ जालीदार तथा अन्य तहों में सादे पाइप लगाये जाते है। इसके द्वारा एक घण्टे में लगभग एक लाख लीटर पानी की निकासी होती है तथा एक दिन में 1 से 1.5 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकती है।
तालाब - भारत के जिन भागों की जमीन पथरीली है, वहाॅ पर कुएँ खोदना सम्भव नही होता है। ऐसे भागों में तालाबों का निर्माण करके सिंचाई की जाती है। तालाबों में वर्षा का पानी संचय कर लिया जाता है, जिन्हे आवश्यकतानुसार कृषि कार्यो में प्रयुक्त किया जाता है। भारत में तालाबों से सिंचाई मुख्यतः आन्ध्र प्रदेष, तमिलनाडु उड़ीसा तथा उत्तर प्रदेष मेें होती है, तालाबों से सिंचाई करने पर कम व्यय होता है। सिंचाई का यह प्राचीन साधन है।
नहर - सिंचाई के विभिन्न साधनों में नहरों का प्रमुख स्थान है। नहरों का निर्माण प्रायः समतल भूमि में किया जाता है तथा ऐसी नदियों के पानी को रोककर करते है, जिनमें प्रायः वर्ष भर पानी बहता रहता है। भारत में लगभग 2.5 करोड़ हेक्टेयर भूमि नहरों द्वारा सिंचित की जाती है। पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेष, उत्तर प्रदेष, गुजरात, महाराष्ट्र, तथा हरियाणा राज्यों में नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है।
अध्ययन का उद्देष्य-
1ण् प्रस्तावित अध्ययन क्षेत्र में लघु सिंचाई साधनांे को चिन्हित करना।
2ण् लघु सिंचाई साधनांे का कृषकांे के उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाना।
3ण् लघु सिंचाई साधनों का कृषकों के रोजगार पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाना।
शोध प्रविधि
प्र्रस्तुत षोध अध्ययन हेतु छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के नगरी तहसील के अन्तर्गत तीन ग्राम- दरगहन, पिपरछेड़ी और बनबगौद का चयन किया गया। चयनित तीनों ग्रामों के कुल परिवारों में 10 प्रतिषत न्यादर्ष परिवार का चयन, निदर्षन विधि से किया गया है। न्यादर्ष परिवारों से आवष्यक जानकारी प्रत्यक्ष रूप से साक्षात्कार अनुसूची द्वारा प्राप्त की गई है, तथा अन्य द्वितीयक आंकड़ों संम्बन्धी जानकारी जनगणना- 2011, जल संसाधन अनुविभागी अधिकारी नगरी, अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) अनुविभाग नगरी, अधीक्षक, भू अभिलेख धमतरी, तथा इंटरनेट से प्राप्त की गई है। प्राप्त आंकड़ों का वर्गीकरण तथा सारणीयन के पश्चात विष्लेषण कर निष्कर्ष प्राप्त किया गया है।
धमतरी जिला एवं नगरी तहसील
धमतरी जिले - छत्तीसगढ़ के मैदानी भाग में स्थित महानदी का उद्गम स्थल धमतरी जिला अविभाजित मध्यप्रदेष के रायपुर जिले के पुनर्गठन के फलस्वरूप 6 जुलाई 1998 को अस्तित्व में आया । जिले की भौगोलिक स्थिति 20॰2’- 21॰1’ उत्तरी अक्षांष एवं 81॰23’- 82॰10’ पूर्वी देषांष के मध्य है। जिले का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 4081.93 वर्ग कि.मी. है । राजधानी रायपुर से 78 कि.मी.दक्षिण में स्थित धमतरी राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक -30 (रायपुर-विजयनगरम) पर स्थित है ।
नगरी तहसील - नगरी तहसील धमतरी जिला से 15.08.1998 को पृथक हुआ। तहसील का कुल क्षेत्रफल 617 वर्ग किलोमीटर है, जिला धमतरी से 64 किलोमीटर पूर्व पर स्थित है।
सिंचाई साधनों की पृष्ठभूमि-
इस क्षेत्र में ही महानदी का उद्गम स्थान है, एवं सोंढूर जलाषय जिसकी स्थापना 1978 में तथा माडमसिल्ली बाॅध की स्थापना इसी क्षेत्र में की गई है, जो मध्यम एवं वृहद सिंचाइ्र्र के लिए इस क्षेत्र में प्रमुख साधन है। लघु सिंचाई को विषेष बढ़ावा देने के लिए जल संसाधन निर्माण अनुविभाग नगरी की स्थापना की गई है। जो कृषकों के आवष्यकतानुसार सिंचाई साधनों के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।
सिंचाई साधनो की पृष्ठ भूमि -नगरी तहसील में मुख्यतः नहर, नलकूप, व्यपवर्तन तथा तालाबों से सिंचाई की जाती है। सिंचाई साधनों की उपलब्धता के आधर पर तालिका में प्रदर्षित किया गया है।
तालिका- 2 कुल सिंचित में से नहरों से 68 प्रतिषत सिंचाई होती है, नलकूप से 17.6 प्रतिषत, कुएँ से 1.17 प्रतिषत तथा तालाबों से 0.93 प्रतिषत सिंचाई होती है। इस प्रकार नगरी क्षेत्र में नहरों से सबसे अधिक सिंचाई होती है।
लघु सिंचाई के साधन
अध्ययन क्षेत्र के न्यादर्शियो के अध्ययन से पता चलता है कि उनके पास लघु सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं। ये सिंचाई साधन कुआ, तालाब, ट्यबवेल तथा व्यपवर्तन के रूप में है। ग्राम दरगहन के सभी न्यादर्शी अपने खेतांे की सिंचाई ट्यबवेल से करते है, वही ग्राम पिपरछेड़ी के सभी न्यादर्शी व्यपवर्तन द्वारा सिंचाई करते है, जबकी ग्राम बनबगौद के न्यादर्शी ट्यूबवेल तथा व्यपवर्तन दोनो सिंचाई साधनों का प्रयोग करते है। सिंचाई साधनों की उपलब्धता संख्या निम्न तालिका द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है।
चयनित कृषकों में 39 प्रतिशत के पास नलकूप की सुविधा उपलब्ध है, वही बाकी 61 प्रतिशत के पास व्यपवर्तन सुविधा ही उपलब्ध है। इनमें से 33 प्रतिशत कृषक केवल नलकूप द्वारा सिंचाई करते है, 6 प्रतिशत कृषक नलकूप तथा व्यपवर्तन दोनो सिंचाई साधनों का प्रयोग करते है, जबकी 32 प्रतिशत कृषक केवल व्यपवर्तन द्वारा ही सिंचाई करते है। इसे तालिका द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
तालिका क्रमांक- 4 से स्पष्ट हो रहा है, कृषक की कुल भूमि में 49.07 प्रतिशत भूमि के सिंचाई के लिए नलकूप का प्रयोग करते है तथा 44.74 प्रतिशत भूमि व्यपवर्तन द्वारा सिंचाई करते है। जबकी 6.18 प्रतिशत भूमि को दोनो (नलकूप, व्यपवर्तन) साधनों का प्रयोग सिंचाई के लिए करते है।
कृषको का वर्गीकरण ;भूमि स्वामित्वताद्ध
निम्न आधार पर न्यादर्ष कृषकों को वर्गीकृत किया जा सकता है-
तालिका में स्पष्ट देखा जा सकता है कि सर्वाधिक न्यादर्षी 59.42 प्रतिषत सीमांत कृषक है। वही अध्र्द मध्यम 18.84 प्रतिषत एवं वृहद कृषको की संख्या शून्य है, जो निरंतर प्रति व्यक्ति प्रति हेक्टेयर भूमि में हो रही कमी की ओर संकेत कर रहा है। जबकी मध्यम कृषक कुल कृषक में मात्र 4.4 प्रतिषत है।
हम कृषकों के श्रेणी एवं उनकी भूमि स्वामित्वता का विष्लेषण निम्न तालिका के माध्यम से कर सकते है- कृषकों श्रेणी ,कृषि भूमि स्वामित्व का क्षेत्र तथा औसत भूमि स्वामित्व का क्षेत्र किस प्रकार है, जो अग्र तालिका में प्रस्तुत है,
तालिका से पता चलता है जहाँ सीमांत कृषको की संख्या ज्यादा 59 प्रतिषत है वही कुल भूमि का मात्र 25.75 प्रतिषत भूमि ही उनके पास है, और प्रति सीमांत कृषक औसत भूमि 0.55 हेक्टेयर मात्र है। वही मध्यम कृषको की लघु कृषकों की संख्या 17 प्रतिषत है, जिनके पास कुल भूमि का 17.36 प्रतिषत हिस्सा, मध्यम कृषक 4 प्रतिषत एवं उनकी कृषि भूमि स्वामित्व का क्षेत्र कुल भूमि में 18 प्रतिषत है। और प्रति मध्यम कृषक औसत भूमि 5.32 हैक्टेयर है। इस प्रकार चयनित कृषक के पास कुल कृषि भूमि 87.52 हैक्टेयर है और इस प्रकार प्रति कृषक औसत उपलब्ध भूमि 1.27 हैक्टेयर है।
सिंचाई साधनों के पूर्व एवं पश्चात उत्पादकता पर प्रभाव
सिंचाई के लिए वर्षा का पानी प्रकृति का मुख्य स्त्रोंत है। अध्ययन क्षेत्र के सिंचाई साधनों में मुख्यतः नलकूप और व्यपवर्तन द्वारा सिंचाई की जाती है। नलकूप आजकल सर्वाधिक प्रचलन में है, क्योकि इसके द्वारा कम समय में, अधिक क्षेत्रफल की सिंचाई की जा सकती है, तथा इसमें श्रम एवं लागत की, भी बचत होती है। नलकूल के द्वारा सघन खेती की जा सकती है, जिसके द्वारा अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इसको चलाने के लिए बिजली अथवा डीजल पम्प का प्रयोग किया जा सकता है, पर बिजली द्वारा उपयोग ज्यादा सुलभ है। वही प्रत्येक कृषक स्वंय का नलकूप खुदवाॅ सकता है, जबकी व्यपवर्तन सिंचाई का सबसे सस्ता साधन है। इसमें नालेे के पानी को नहर में विवर्तित करके कृषकों के खेतों तक पहुचाया जाता है। व्यपवर्तन का निर्माण आमतौर पर सरकार द्वारा कराया जाता है। जहाॅ नालो में पानी वर्षा ऋतू के बाद भी बहता हो। साधरणतः कृषकों को केवल खरीफ फसल मात्र के लिए इससे सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो पाती है। वही लागत की दृष्टि से नलकूप द्वारा सिंचाई करने से प्रतिहेक्टेयर खरीफ फसल 3000-5000 रूपये तथा रबी फसल में 5000-8000 रूपये आती है। और व्यपवर्तन से प्रति हेक्टेयर खरीफ फसल में 200-300 रूपये लागत आती है।
चयनित अध्ययन क्षेत्र में कृषकों द्वारा अधिकांशतः धान का उत्पादन कार्य किया जाता है, अतः इस अध्ययन में सिंचाई साधनों का उत्पादन पर प्रभाव पर किया गया है। कृषकों के सिंचाई साधनों के प्रयोग के पूर्व और पश्चात उत्पादन की आवृत्तियों को हम तालिका के रूप में व्यक्त कर सकते है-
तालिका से स्पष्ट है कि जब सिंचाई साधनों का प्रयोग नही किया जा रहा था तब सभी न्यादर्षी खरीफ की फसल लेते थे, और 11-20 क्ंिवटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन की आवृत्ति सबसे अधिक 29 थी। वही सबसे कम 0-10 क्विटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन की आवृत्ति 8 और सबसे अधिक 41-50 क्विटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन की आवृत्ति 4 थी। सिंचाई साधन उपलब्ध न होने के कारण ये कृषक रबी की फसल लेने में असमर्थ थे। वर्तमान में सिंचाई साधन उपलब्ध है, और सिंचित भूमि में खरीफ फसल के उत्पादन में सबसे कम उपज वर्ग 21-30 क्ंिवटल प्रति हेक्टेयर की आवृत्ति 2 है। वही वर्ग 41-50 क्ंिवटल प्रति हेक्टेयर की आवृत्ति सर्वाधिक 21 है। जबकी अब यही कृषक सिंचाई साधनों के उपलब्ध हो जाने पर रबी की फसल भी लेते है। इसमें वर्ग 41-50 तथा 61-70 क्ंिवटल उपज प्रति हेक्टेयर प्राप्त करने वालो की आवृत्ति 9 - 9 है। इनका कुल योग 35 है, और अब भी 34 कृषक रबी की फसल नही लेते है। सिंचित तथा असिंचित उत्पादन में अन्तर तालिका से स्पष्ट है-
तालिका से स्पष्ट हो रहा है कि असिंचित फसल की तुलना में सिंचित फसल का उत्पादन अधिक हो रहा है, खरीफ में दोनों के बीच अन्तर 1878 क्विंटल है जो कि 49.92 प्रतिषत अधिक है। जबकी रबी फसल में सिंचाई साधन के अभाव में फसल नही ली जाती है, वही सिंचाई साधनों की उपलब्ध होने पर इसका उत्पादन 1884 क्विंटल होता है। इस प्रकार कुल अन्तर 3762 क्विंटल का होता है। जो असिंचित फसल से दो गुना अधिक हैं। इसे ग्राफ में प्रदषर््िात किया गया है।
सिंचाई साधनों का उत्पादन पर प्रभाव
अब हम विभिन्न सिंचाई साधनों का उत्पादन पर प्रभाव तालिका में देख सकते है कि खरीफ और रबी फसल पर क्या प्रभाव पड़ता है।
तालिका से स्पष्ट होता है कि खरीफ फसल में 40.37 हेक्टेयर भूमि पर आवष्यकता पड़ने पर नलकूप से सिंचाई की जाती है, वही 39.15 हेक्टेयर भूमि पर वर्षा के अलावा जरूरत पड़ने पर व्यपवर्तन से सिंचाई की जाती है। नलकूप एवं व्यपवर्तन से सिंचाई करने पर प्रति हेक्टेयर उपज क्रमशः 39.81 तथा 39.53 क्विटल प्राप्त होती है। वही रबी फसल में व्यपवर्तन से पानी उपलब्ध नही होने के कारण, इस क्षेत्र के अन्तर्गत निर्भर भूमि पर फसल नही ली जाती है, जबकी नलकूप की उपलब्धता वाले भूमि के 37.63 हेक्टेयर पर फसल ली जाती है, जिसमें प्रति हेक्टेयर उपज 50.07 क्विटल प्राप्त होती है।
रोजगार पर प्रभाव
लघु सिंचाई साधनों का रोजगार पर प्रभाव - प्रस्तुत अध्ययन में चयनित न्यादर्षीे कृषि से रोजगार प्राप्त करते है। कृषि ही उनकी अजीविका का आधार है। वर्तमान उत्पादन के उन्नत साधनों में खाद, बीज, उपकरण तथा सिंचाई के साधनों का प्रयोग बढ़ा है। इनका न प्रयोग बढ़ है बल्कि इससे उत्पादन, आय तथा रोजगार बढ़ा है। सिंचाई के साधनों का प्रयोग से रोजगार बढ़ता है। जहाॅ सिंचाई सााधनों के प्रयोग पूर्व की तुलना में सिंचाई साधनों के प्रयोंग से रोजगार बढता है। इसे नीचे दी गई तालिका में देखा जा सकता है।
तालिका से स्पष्ट होता है कि सिंचाई साधनों के पूर्व कृषको को सिर्फ खरीफ फसल में ही मात्र 120 दिन का रोजगार मिलता था, वही रबी फसल पानी की उपलब्धता नही होने के कारण नही ली जाती थी, जिससे एक दिन भी रोजगार उपलब्ध नही होता था। जबकी सिंचाई साधनों के प्रयोग के बाद उन्होने रबी तथा खरीफ दोनों फसलों को लेने लगे जिससे दोनो फसलों में 120-120 दिन का रोजगार मिलने लगा है। इस प्रकार सिंचाई साधनों के प्रयोग करने से दोगुना रोजगार मिलता है। अध्ययन क्षेत्र के न्यादर्शियो को सिंचाई के बाद पूर्ण रोजगार होता है या नही जो योजना आयोग के अनुसार कोई व्यक्ति प्रतिदिन 8 घण्टें कार्य करते हुए वर्ष में 273 दिन कार्य करता है, तो उसे पूर्ण रोजगार माना जायेगा, परिभाषित किया गया है। (योजना आयोग - 1980-85), का पता लगाने के लिए अध्ययन करने से पता चलता है कि औसत रूप से वर्ष में 150 दिन के लिए 8 घण्टें तथा 21 दिन के लिए 8 घण्टे से कम रोजगार मिलता है। इसे तालिका में स्पष्ट देखा जा सकता है।
तालिका से स्पष्ट होता है कि न्यादर्षियो को कुल रोजगार दिनों में खरीफ फसल में दिन में 8 घण्टे का रोजगार 72 प्रतिशत मिलता है, रबी में 24 प्रतिषत रोजगार उपलब्ध होता है। जबकी 8 घण्टे से कम का कुल रोजगार दिनों का 18 प्रतिषत है।
निष्कर्ष
वर्तमान में लघु सिंचाई के साधनों का महत्व बढ़ा है। अध्ययन सेे पता चलता है कि नगरी तहसील में मुख्यतः नहर, नलकूप, व्यपवर्तन तथा तालाबों से सिंचाई की जाती है। अध्ययन क्षेत्र के वर्तमान में कृषक की कुल भूमि में 49.07 प्रतिात भूमि के सिंचाई के लिए नलकूप का प्रयोग करते है तथा 44.74 प्रतिशत भूमि व्यपवर्तन द्वारा सिंचाई करते है। जबकी 6.18 प्रतिशत भूमि को दोनो (नलकूप, व्यपवर्तन) साधनों का प्रयोग सिंचाई के लिए करते है। सिंचाई साधनों का उत्पादन पर प्रभाव देखने से पता चलता है कि असिंचित फसल की तुलना में सिंचित फसल का उत्पादन अधिक हो रहा है, खरीफ में दोनों के बीच अन्तर प्रति हेक्टेयर उत्पादन 21.46 क्विंटल है जो। जबकी रबी फसल में सिंचाई साधन के अभाव में फसल नही ली जाती है, वही सिंचाई साधनों की उपलब्ध होने पर इसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 50.06 क्विंटल होता है। इस प्रकार कुल अन्तर 71.52 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन का होता है। जो असिंचित फसल से चार गुना अधिक हैं। रोजगार में प्रभाव का अध्ययन से पता चलता है कि सिंचाई साधनों के पूर्व कृषको को सिर्फ खरीफ फसल में ही मात्र 120 दिन का रोजगार मिलता था, वही रबी फसल पानी की उपलब्धता नही होने के कारण फसल नही ली जाती थी, जिससे एक दिन भी रोजगार उपलब्ध नही होता था। जबकी सिंचाई साधनों के प्रयोग के बाद उन्होने रबी तथा खरीफ दोनों फसलों को लेने लगे जिससे दोनो फसलों में 120-120 दिन का रोजगार मिलने लगा है। इस प्रकार सिंचाई साधनों के प्रयोग करने से दोगुना रोजगार मिलता है। अध्ययन क्षेत्र के न्यादर्शियो को सिंचाई के बाद पूर्ण रोजगार होता है या नही जो योजना आयोग के अनुसार कोई व्यक्ति प्रतिदिन 8 घण्टें कार्य करते हुए वर्ष में 273 दिन कार्य करता है, तो उसे पूर्ण रोजगार माना जायेगा, परिभाषित किया गया है। का पता लगाने के लिए अध्ययन करने से पता चलता है कि औसत रूप से वर्ष में 150 दिन के लिए 8 घण्टें तथा 21 दिन के लिए 8 घण्टे से कम रोजगार मिलता है।
संदर्भ ग्रंथ सूची
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Received on 20.08.2018 Modified on 21.10.2018
Accepted on 20.11.2018 © A&V Publications All right reserved
Int. J. Ad. Social Sciences. 2018; 6(4):172-180.