बालमजदूरी: वर्तमान समाज की उपज
एक समाजशास्त्रीय अध्ययन- जिला-जाॅजगीर चाॅपा के शांतिनगर एवं खड़फड़ी पारा के विशेष संदर्भ मंे
Dr. Vrinda Sengupta1, Dr. S.K.Agrawal2
1Assistant Professor, Sociology, T.C.L. G. Post Graduate College Janjgir [C.G]
2Principal, T.C.L. G. Post Graduate College Janjgir [C.G]
शोधसार-
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश मंे आजादी के 67 साल के बाद भी बाल मजदूरो की संख्या घटने की बजाय निरंतर बढ़ रहा है। 14 नवम्बर को प्रत्येक वर्ष बाल दिवस मनाया जाता है किन्तु शिक्षा स्वास्थ्य बचपन का स्वाभिमान और भविष्य की गारंटी जैसे मुद्दे आज भी पूर्ववत् बने हुए हैा भारत मे 05 वर्ष से कम आयु के 47 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैा यानी भरपेट खाना उनको नसीब नही है हाल ही में यूनीसेफ ने ऐलान किया है कि दुनिया भर मे 5 वर्ष से कम उम्र मे मौत के मुँह मे समा जाने वाले लगभग 97 लाख बच्चे मंे से 21 लाख भारत के है पाँच छरू करोड़ बच्चे बाल मजदूरी के शिकार हैा लाखो बच्चे जानवरो से भी कम कीमत में एक से दूसरी जगह खरीदे और बेचे जाते हैा चालीस पच्चास हजार बच्चे मोबाइल फोन्, बटुए, खिलौने या किसी सामान की तरह प्रत्येक वर्ष गायब कर दिए जाते है अकेले देश की राजधानी दिल्ली मे औसतन 6 बच्चे गायब कर दिए जाते है ।
शब्दकुंजी- बालमजदूरी, संवेदनहीन समाज , आर्थिक विषमता, सामाजिक स्थिति, बालअधिकार
प्रस्तावना:
विगत वर्ष दिल्ली के पास नोएड़ा मंे निठारी वाला केस काफी चर्चित रहा था पर जैसे ही कोई दूसरा मुद्दा आता है ऐसे मुद्दे पीछे धकेल दिया जाता हैा सड़को पर जबरीया भीख मंगवाने की बात सही हैा अंधा पांव काट़ने की कहानी सत्य है शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो जब किसी मासूम बच्ची से बलत्कार करने या उसकी हत्या कर देने की घटनाएँ अखबारो में देखने को न मिलता हो ा घरेलू बाल मजदूरी रोकने के लिए दो साल पहले कठोर कानूनी प्रावधान लाया गया था कभी किसी अदाकारा के घर तो कभी सरकारी अधिकारी और तथाकथित मध्यवर्गीय शिक्षित ब्यवसायी के घर बाल नौकरानियो को गर्म लोहे से दाग या बुरी तरह मारपीट करने की घिनौनी वारदते आये दिन सामने होती हैा निजी संतानो के भविष्य को संवारने के लिए जो लोग कठिन परिश्रम करते है अधिकतर लोग दूसरो के बच्चो को गुलाम बनाने में नही हिचकते हैा किसी चाय के ढाबे पर बेशर्मी से बच्चे के हाथ की चाय पीते हुए अथवा जूता पालिस करते हुए उन्हे यह अहसास नही होता कि भारत का भविष्य सिर्फ स्वंय के बालगोपाल ही नही दूसरे बच्चे भी है।
विषय का महत्व-
सार्वजनिक जीवन मंे मानदण्ड की मिसाल क्या होगी कि नेता और अधिकारी ही नही, बाल अपराधो की बात करने वाले बु़िध्दजीवी सामाजिक कार्यकर्ता तक कुतर्को का अम्बार लगा देते है। जैसे गरीब बच्चा काम नही करेगा तो भूखा मर जायेगा, लडकी वेश्यावृत्ति करने लगेगी । तो इससे अच्छा है कि वह बालमजूरी करे । देश के पास इतने संसाधन कहा है कि हर बच्चे का गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया कराये जा सके । यदि गरीब बच्चो को महंगे अंगे्रजी स्कूलो मंे भर्ती कराया जायेगा तो वहां शिक्षा का स्तर खराब हो जायेगा आदि आदि ।
निम्न कारणो से बालक श्रम कार्य मे संलग्न है -
कुटिर उधोग का पतन कारखाना प्रणाली
जनसंख्या वृध्दि
अशि़क्षा
बालश्रम के कारण
बेरोजगारी
औधौगीकरण
पारिवारिक गरीबी
आयस्तर
बाल मजदूर आर्थिक कारण की वजह से बीच मंे पढ़ाई छोड़. कर काम करते है। 19वी और 20वी सदी के प्रारंभिक वर्षो मे पश्चिमी देशो के बच्चो ने अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करते हुए 06 से 09 वर्ष गुजार दिए थे ।
भारत मे बालश्रमिको की वर्तमान स्थिति-
एक अनुमान के अनुसार भारत मे 6 करोड़ से अधिक श्रमिक हैा जिनकी उम्र 05 से 14 वर्ष के मध्य की है ा ये बालश्रमिक हाथ करघा, होटल, रेस्टोरेंट, सायकिल, मोटर मरम्मत, मछली पालन, जूता पालिस, आदि मे मजदूर अत्यंत दयनीय स्थितियाँ में कार्यरत है ा श्रम मंत्रालय के एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत मंे ही तीसरे मे एक श्रमिक है । भारत मे ग्रामीण क्षेत्रो में सबसे ज्यादा बालमजदूर है ।
बालश्रम की उभरती चुनौतियाँ-
Û बोझढ़ोता बचपन
Û श्रम के आंच में तपता बचपन
Û बचपन छीनती मजदूरी
बालश्रम का इतिहास-
बालश्रम संबंधी समस्याओ का इतिहास लंबा और पुराना हैा इसका मुख्य कारण सामाजिक, आर्थिक आवश्यकता हैा सरकार इसे खर्च करने के लिए करोडो रूपये खर्च करती है माँ बाप अपने बच्चो को ऐसे स्थानो पर काम करने के लिए भेजते मे विवश हो रहे है जहाँ उनकी सेहत के लिए खतरा रहता हैा बालश्रम का इतिहास उतना ही पुराना है जितना की मानव का जीवन ।
साहित्य का पुनरावलोकन-
(1) मजूूमदार- का अध्ययन परिवार कल्याण से संबंधित है अध्ययन तर्क वितर्क करता है । बच्चो से कार्य लेने का कारण शैक्षणिक स्तर मंे गिरावट है शैक्षणिक अवसर वर्तमान राजनैतिक नीति को निर्धारण मे शामिल होना चाहिए ा
(2) बागाची शुबराता शंकर- का अध्ययन यह प्रदर्शित करता है कि बालश्रम गरीबी से लड़ने का और जीवित रहने की भारत में युक्तिषन गई है ।
उददेश्य-
प्रस्तुत शोधपत्र का उददेश्य बालश्रमिको की सामाजिक आर्थिक दशाओ का अध्ययन करते हुए उसे राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखना उन कारणो की खोज करना जिनके कारण बालको को कार्य करने के लिए बाध्य होना पड़ा, बालको के सामाजिक आर्थिक पारिवारिक पृष्टभूमि का अध्ययन करना आदि एवं बालश्रमिको को समाजए परिवार से पूरा निकाल फेकना है एवं बालश्रमिक मुक्त समाज को बनाना है बालश्रम समस्याओ के ओर सरकार का ध्यान आकर्षण करना एवं पुनर्वास के प्रति जागृत करना ।
परिकल्पना- आर्थिक रूप से विपन्न परिवार अर्थात गरीब परिवार के बच्चो मंे बालश्रम की समस्या प्रमुख रूप से है । Û आशिक्षा भी बालश्रम का एक प्रमुख कारण है ।
Û सामाजिक पर्यावरण तथा बच्चो की असंगति भी बालश्रम का एक प्रमुख कारण है ।
Û सामाजिक एवं पारिवारिक विघटन बालश्रम समस्या को और गंभीर बनाता है ।
Û बालश्रम निरोधी कानूनो का समुचित पालन न किया जाना भी बालश्रम को प्रोत्साहित करता है ।
अध्ययन क्षेत्र-
जिला जाॅजगीर चाॅपा के बालश्रमिको का अध्ययन करने के लिए अध्ययन क्षेत्र में जाकर सर्वेक्षण किया गया ा जिला जाॅजगीर चाॅपा के शांति नगर और खड़फड़ी पारा अत्यंत ही गरीब परिवारो से भरा है । वहाँ की आर्थिक स्थिति निम्न है। जिसके कारण 14 वर्ष से कम आयु के लड़के लड़कियो को काम पर लगाया जाता हैा जिसका अध्ययन प्रस्तुत है।
अध्ययन पद्धति-
प्रस्तुत शोध पत्र के आंकड़ो का संकलन स्वयं अध्ययन स्थल में जाकर बालश्रमिको एवं उनके परिवारो से मिलकर प्राथमिक आंकड़ो का संकलन किया गया हैा द्वैतियक आंकड़ो का संकलन पुस्तको से किया गया हैा प्रस्तुत शोधपत्र के लिए दस बालश्रमिको का अध्ययन किया गया है।
परिकल्पना - (1) बालश्रम की समस्या आर्थिक रूप विपन्न अर्थात गरीब परिवार बच्चो मे विधमान है जांच करने पर यह पता चला कि यह परिकल्पना काफी हद तक सही पायी गई है। (2) अशिक्षा भी बालश्रम का एक प्रमुख कारण है
परिकल्पना की सत्यता की जांच- बालश्रम की समस्या आर्थिक रूप से विपन्न अर्थात गरीब परिवार के बच्चो मे विघमान हैा जांच करने पर यह पता चला कि यह परिकल्पना काफी हद तक सही पाई गई हैा
निष्कर्ष-
बालश्रमिको की स्थिति अत्यंत दयनीय है कई दिन तक इन्हे भूखा सोना पड़ता है कई भूख से मर जाते है कई बच्चे कुपोषण का शिकार हो जाते है कई गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो जाते है कई लोगो के सर पे छत नही होता और कई लोगो के तन पर कपड़ा नही होता, समाज सेवी संस्था, सरकार एवं हम सबको मिलकर इन मासूमो को बचाना चाहिए ये हमारे भविष्य है ये अच्छे नागरिक बन सकते है इनको इनका अधिकार दिलाना होगा तभी हम सच्चे मानवतावादी है, समानतावादी है, न्यायवादी बनेंगे ा इन बच्चो का जीवन पर होता है और अपने स्वत्व, आयु समूह, परिवार, समाज और शासन से अलग थलग हो जाते है ा
सुझाव-
स्कूली शिक्षा कि को बालश्रम के खिलाफ तात्कालिक संघर्ष का सशक्त हथियार माना जाना चाहिए प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य एवं सुदृढ बनाया जाये ा शिक्षा के प्रति सकारात्मक कदम उठाये जाने चाहिए, भारत मे 40 प्रतिशत से अधिक ग्रामिण अभी भी निरंथर है ा ग्रामीण परिवार के अभिभावको को बताना चाहिए कि बच्चे कमाई के साधन नही है
Û गरीब परिवार के बच्चो को निःशुल्क शिक्षा, उचित पोषाआहार, छात्रावास की ब्यवस्था की जाय
Û सरकारी एवं गैरसरकारी स्तर पर बच्चो के लिए रोजगार परख योजना चलाई जाये साथ ही श्रम कल्याण की योजना चलाई जाये ा
संदर्भ सूची-
1ण् अग्रवाल, डाॅ, उमेशचन्द ग्रामीण बच्चो के लिए कल्याण कारी योजना 2007, पृष्ट 04 से 08
2ण् अग्रवाल, आभा- चाईल्ड लेबर इन ग्लास इंडस्ट्री, श्रमंत्रालय भारत सरकार 1998
3ण् आहूजा, राम 2006 सामाजिक समस्याएॅ, रावत पब्लिकेशन, जयपुर एवं नईदिल्ली ा
4ण् आर्य चन्दा, बालश्रम एक विडम्बना, योजना नवम्बर 2012 पृ,सं, 45, 46
5ण् उपाध्याय मनोज कान्त, बाल संरक्षण मे बाल कल्याण समिति की भूमिका, योजना नवम्बर 2012 पृ,सं,4
6ण् शान्ता सिन्हा, बाल अधिकारो का संरक्षण, योजना नवम्बर 2012 पृ,सं, 7,9
7ण् डां0 डी0आर, सचदेव, भारत मे समाज कल्याण प्रशासन 2008, किताब महल पब्लिकेशन, इलाहाबाद, पृ0सं0 283
Received on 20.11.2016 Modified on 02.12.2016
Accepted on 27.12.2016 © A&V Publication all right reserved
Int. J. Ad. Social Sciences. 2016; 4(4):208-211.