समाज में बढ़ता बाल अपराध दोशी कौन?
व्ही. सेनगुप्ता1’, के.पी. कुर्रे1
1सहायक प्राध्यापक शा. ठा. छे.ला. स्नातकोत्तर महा. जंाजगीर
सारांश-
बच्चों में बढ़ती अपराध की प्रवृति दिन पर दिन बढ़ती जा रही है । कहा भी गया है कि अपराधी बनाये नही बन जाते है। अधिक लाड़ प्यार में बच्चों की उचित व अनुचित मांगो को पूरा करना भी ऐसी बातें है जो बालक को प्र्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बाल अपराध की ओर प्रेरित करता है। कुछ बातों का संबंध बच्चे की उम्र के साथ होता है, यदि किसी बच्चे की मां अथवा पिता की मृत्यु उसके बचपन में ही हो जाये तो वात्यलय प्रेम से वंचित रहने के कारण बच्चा बड़ा होकर अपराध एवं नषे की लत की ओर आकृश्ट हो जाता है और इस प्रकार उसमें अनेक अपराध की प्रवृति पैदा हो जाती है आधुनिक समाज में संक्रमण शीलता के विस्तार, औद्योगीकरण के कारण सामाजिक संरचना, सामाजिक मुल्यों में परिवर्तन के पारिवारिक एवं सामुदायिक विघटन तेजी से हो रहा है। बाल अपराध मुलतः इन्ही परिस्थितियों की देन है।
शब्द कुंजीः बाल अपराध, आर्थिक, सामाजिक दशा जिम्मेंदार, पारिवारिक परिस्थिति जिम्मेदार, बाल शोशण, अशिक्षा
प्रस्तावना
परिवार समाज की एक आधार भूत इकाई है। परिवार ही किसी व्यक्ति पर समाज का नियंत्रण रखता है। कोई भी व्यक्ति अपना अधिकतर समय अपने परिवार में ही बिताता है इसलिए उस पर सर्वाधिक प्रभाव भी पड़ता है। कहा जा सकता है कि यदि परिवार ने बच्चे को अच्छे संस्कार दिये हो तो कोइ भी बच्चा अपचार के मार्ग पर आगे नही बढ़ेगा।
इसके विपरित यदि किसी बच्चे से उसका परिवार छिन जाये तो उसके अपचार के मार्ग पर चले जाने की आशंका काफी अधिक हो जाती है। परिवार के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैः
1. परिवार में माता पिता तथा उनकी संताने एक इकाई के रूप में कार्य करते है।
2. परिवार का मुखिया आम तौर पर पिता होता है।
3. पिता ही समान्यतः परिवार की आय का मुख्य स्त्रोत होता है।
4. परिवार एक ऐसा सामुदायिक समुदाय होता है जिसके सदस्यों के बीच परस्पर रक्त संबंध होता है।
5. परिवार के सभी सदस्य परस्पर एक दूसरे को सहयोग करते है।
6. परिवार के कई समाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक कार्य होते है।
7. परिवार के आर्थिक कार्यों से परिवार की बुनियादी जरूरतें पूरी होती है।
8. परिवार ही बच्चों पर नियंत्रण और उनका संरक्षक करता है।
9. परिवार ही समाज का आधार स्तंभ होता है।
10. बच्चे को सामाजिक शिक्षा परिवार से ही मिलती है।
निम्नलिखित प्रकार के अपचार में अधिक संलिप्त पाये जाते हैः
ऽ चोरी करने
ऽ सेंधमारी करने
ऽ जेब तराशी या पाॅकेट मारी
ऽ अन्य व्यक्ति को शारिरिक चोट पहुंचाना
उद्धेश्यः-
ऽ बाल अपराध को जड़ से समाप्त करना।
ऽ बालकों को मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित करना।
ऽ बालकों को नैतिक शिक्षा देना।
ऽ छोटी -मोटी गलतियों से एहसास कराना।
उपकल्पनाः-
ऽ बाल अपराधियों को समाज में सकारात्मक दृश्टिकोण से देखना।
ऽ बाल अपराधियों के सजा से शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन, खेल, भोजन पर विपरित प्रभाव का अध्ययन।
ऽ बाल अपचार के पथ में ले जाने के लिए ब्यसन भी महत्वपूर्ण कारक है।
बाल अपराधी बनने के उदाहरणः
शुरू-शुरू में बुट पाॅलिस का काम किया पर शीर्घ ही छोटी-मोटी चोरी करने, बीड़ी पीने एवं जेब काटने की आदत पड़ गई बार पकड़ा भी गया एक दिन जब शिवपुरी से इंदौर की बस में चढ़ा तो पुलिस ने पकड़ लिया।
वास्तव में देखा जाये तो बच्चों का मन अत्यंत कोमल होता है, घर की परिस्थितियांॅ, वातावरण एवं माता-पिता का व्यवहार ही बाल मन पर सीधा असर डालता है। बाल अपराध का पारिवारिक जीवन से निकट का गहरा संबंध है।
शोध प्रविधिः-
बल अपचार एक सामाजिक समस्या है जिस पर इस बदलते हुए परिवेश में शोध की नितांत आवश्यकता है सभी अनुसंधान का आधारभूत उद्धेश्य ज्ञान की प्राप्ती है। सामाजिक अनुसंधान का संबंध सामसजिक घटनाओं से होता है। इसके अंतर्गत सामाजिक वास्तविकता से संबंधित नवीन तथ्यों का अन्वेशण किया जाता है।
अपराध रोकने के कानूनी प्रयासः-
सरकार के द्वारा प्रत्येक जिले में किशोर न्याय बोर्ड स्थपित किये गये है । जिसमें एक प्रधान मजिस्टेट दो सदस्य की एक कमेटी होती है। जहाॅं बच्चों को प्यार और सहानुभुति के साथ समझाया जाता है। 18 वर्श की आयु के बाद तुम्हे बड़ी जेल जानी पड़ेगी सजा पाकर तुम अपनी जिंदगी बर्बाद कर दोगे सुधार की इस प्रक्रिया में वह अपराध की तरफ ना बड़ कर अच्छे कामों में लग जाते है।
निश्कर्षः-
बाल अपराध जैसी सामाजिक समस्या का हल केवल कानून द्वारा ही नही हो सकता, इस समस्या का हल तभी हो सकता है जब माता-पिता बच्चों के प्रति अपनी पूरी जिम्मेंदारी से काम लें बच्चों को नैतिक शिक्षा देकर सिगरेट व शराब पीने, अश्लील फिल्में विडियों देखने व जुये के अड्डों पर जाने , चोरी करने , हत्या करने, वेश्या वृति करने से रोकें। गैर सरकारी संस्थायें भी सरकारी प्रयासों के साथ अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, तभी हम गर्व से कह सकेंगे की बच्चे ही देश के भविश्य है।
संदर्भ-सूचीः-
1 एम. जे. डाॅ. सेथना 1964 सोसायटी एण्ड दी क्रीमिनल किताब महल, बाम्बे.
2 सदरलैंड प्रिसपल आॅफ क्रिमनालाॅजी राइट्स आॅफ इण्डिया प्रेस बाम्बे 1965
3 साक्षात्कार से प्राप्त आंकड़े
Received on 03.06.2015 Modified on 13.06.2015
Accepted on 26.06.2015 © A&V Publication all right reserved
Int. J. Ad. Social Sciences 3(2): April-June, 2015; Page 83-84