भीमबैठका के कुछ विशिष्ट शैलचित्र

 

नितेश कुमार मिश्रा

सहायक प्राध्यापाक, प्रा. भा. इति. सं. एवं पुरा. अध्ययन शाला, पं. रविशंकर शुक्ल वि. वि. रायपुर (छ.ग.)

 

प्रागैतिहासिक अध्ययनों में शैलचित्रों का विशेष स्थान है। पुरा-पाषाण काल के अंतिम चरण अर्थात उच्च पुरा पाषाण काल तक आते-आते मानव के जीवन में स्थिरता का समावेश हो गया साथ ही इसी काल में पूर्ण विकसित मान का भी आगमन हो जाता है। प्रागैतिहासिक मानवों ने अपने दैनिक जीवन में घटित होने वाली घटनाओं की अभिव्यक्ति शैलाश्रयों की दीवारों को कागज के रूप में उपयोग कर उन पर चित्रण कर की थी। प्रागैतिहासिक मानव लिखना पढ़ना नहीं जानते थे ऐसी स्थिति में ये चित्र प्रागैतिहासिक मानव जीवन की झांकी हमारे समक्ष प्रस्तुत करते हैं।

 

प्रागैतिहासिक चित्रों की दृष्टि से मध्य प्रदेश का भीमबैठका विश्व प्रसिद्ध पुरास्थल है। भीमबैठका रायसेन जिले में गौहरगंज तहसील के अंतर्गत आता है जो न्छम्ैब्व् द्वारा विश्व धरोहर की सूची में रखा गया है। इस पुरास्थल के नाम के सम्बन्ध में यह किंवदन्ती है कि अज्ञातवास के समय पाण्डवों ने मुख्य रूप से भीम ने इन विशालकालय चट्टानों को अपनी बैठक के रूप में उपयोग किया था, परिणाम स्वरूप इसका नाम भीमबैठका पड़ा।

 

भीमबैठका पुरास्थल भी खोज पद्मश्री डाॅ. विष्णु श्रीधर वाकणकर ने सन् 1957-58 में की थी। बाद में यहां कई पुराविदों ने सर्वेक्षण किया, 1970 के बाद यहां विभिन्न उत्खनन कार्य भी हुये। यहां उत्खनन करने वालों में स्वयं वाकणकर जी, दक्कन कालेज पुणे के प्रो. वी. एन. मिश्र एवं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से अलग-अलग गुफाओं में उत्खनन कार्य किये गये।1 इन विभिन्न उत्खननों के परिणाम स्वरूप यहां से निम्न पुरा पाषाण काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक का क्रमबद्ध स्तरीकृत जमाव प्राप्त होता है।2 भीमबैठका विन्ध्य पर्वत मालाओं में स्थित है यहां से लगभग 750 चित्रित शैलाश्रय प्राप्त हुये है।3

 

भीमबैठका के शैलाश्रयों के चित्र उच्च पुरा पाषाण काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक के है। इन चित्रों की रंग योजना में लाल, हरे, पीले, सफेद तथा काले आदि रंगों का प्रयोग देखने को मिलता है। उत्खननों के दौरान रंगों के टुकड़े भी प्राप्त हुये है। रंगों में लाल या गेरूए रंग का प्रयोग ज्यादा देखने को मिलता है। लाल रंग के लिये लोहे के अयस्क हेमेटाइट का प्रयोग होता था। सफेद रंग के लिये चूने का प्रयोग किया जाता था। विभिन्न विद्वानों ने सुपर इम्पोजिशन चित्रशैली एवं पुरातात्विक उत्खननों से प्राप्त सामाग्री के आधार पर इन शैलचित्रों को उच्च पुरा पाषाण काल से लेकर मध्यकाल तक माना है।4

 

भीमबैठका के शैलचित्रों में विविधता एवं व्यापकता है। यह शैलचित्र मुख्यतः आखेट, युद्ध, नृत्य, पशु-पक्षी, मानव चित्र एवं धार्मिक विषय वस्तु से ओत-प्रोत है। इनमें से कुछ प्रमुख शैलचित्र जो तत्कालीन समाज के विषय में सूूचनाऐं प्रदान करते हैं निम्न हैं-

 

आखेट चित्रण:-प्रागैतिहासिक काल में मानव की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार आखेट था। आदि मानवों ने शिकार करने के लिये ही मुख्य रूप से पाषाण उपकरणों का विकास किया जिनकी बहुतायत संख्या में प्राप्ति पुरास्थलों से होती है। साथ ही शैलचित्रों से भी इस सम्बन्ध में पर्याप्त सूचनाएं प्राप्त होती हैं।

 

शैलचित्रों के माध्यम से पता चलता है कि मानव किस प्रकार से योजनाबद्ध तरीके से पशुआंे का शिकार करता था। भीमबैठका के म्.7 शैलाश्रय में चित्रित एक मानव आकृति को मुखौटा पहने हुए तथा हाथ में लकड़ी के डण्डे के अग्र भाग में लघु आश्मक लगाकर हिरण का शिकार करते हुए गेरूए रंग से चित्रित किया गया है। इसी प्रकार एक जंगली भैंसे को चारों ओर से घेरे हुए मानव आकृतियां बनी हुई है, जो अपने हाथ में धनुष बाण लिये हुए है। यह चित्रण सामूहिक आखेट के विषय में सूचना प्रदान करता है।

पशु-पक्षी का चित्रण:-भीमबैठका के कई शैलाश्रयों से पशु तथा पक्षियों के अंकन प्राप्त होते हैं। शैलाश्रय क्रमांक ।ैप्.15 से एक जंगली सुअर का चित्रण गेरूए रंग से किया हुआ प्राप्त होता है। इसी के समीम छोटी-छोटी मानव आकृतियों को चित्रित किया गया है जो डरी हुई भागती अवस्था में चित्रित है। इस शैलचित्र का महत्व इसलिये है क्योंकि इसमें पशु को मानव आकृति से कई गुना बड़ा चित्रित किया गया है।

 

शैलाश्रय क्रमांक स्ण्श्रण्11में तीन मोरों तथा एक बंदर को चित्रित किया गया है। यह चित्रण सफेद रंग से किया गया है भीमबैठका के शैलचित्रों मंे और भी कई पशु पक्षियों तथा जलचरों का चित्रण देखा जा सकता है। जैसे-हाथी, घोड़ा, शेर, भैंसा, नीलगाय, बैल, हिरण सांप तथा मछली आदि। शैलाश्रय ।ैप्.प्प्प्में गेरूए रंग से एक मानव को रस्सी से खींचते हुए गतिशील अवस्था में एक कुत्ते को चित्रित किया गया है।

 

महावत के साथ हाथी का चित्रण:-भीमबैठका के शैलाश्रय ।ैप्.प्में सफेद रंग से एक हाथी का चित्रण किया गया है। जिसके ऊपर एक मानव बैठा हुआ है। महावत अपने हाथ में अंकुश लिये हुए चित्रित किया गया है।

 

नृत्य का चित्रण:-शैलाश्रय क्रमांक म्.16 में सामूहिक नृत्य का चित्रण गेरूए रंग से किया गया है। इसमें मानव आकृतियों को नृत्य करते हुये दिखाया गया है। इसमें एक आकृति ढोल बजाते हुए बीच में है, जो अंग्रेजी के े आकार में नृत्य कर रहें हैं।

 

मद्यपान का चित्रण:-शैलाश्रय ।ैप्.28 में मानव को बैठकर प्याले में कुछ पीते हुए तथा दूसरे हाथ को जमीन से सहारा लेते हुए चित्रित किया गया है। इसमें पेट में जाती हुई बूंदों का भी चित्रण किया गया है। स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता कि यह मद्यपान कर रहा है किन्तु जिस स्थिति में यह बैठा है उससे यह अनुमान किया जा सकता है कि वह नशे में है।

 

मरीज का चित्रण:-शैलाश्रय ।ैप्.13 में दो मानव आकृतियों का चित्रण हल्के लाल रंग से किया गया है। इसमें एक मानव की आकृति लेटी हुई बीमार अवस्था में चित्रित है तथा दूसरी उसी के पास में झुककर उसके मुंह में कुछ डालती (संभवतः दवा) हुई चित्रित की गयी है। यह अपने प्रकार का अद्भुद चित्रण है।

 

कांवर का चित्रणः-शैलाश्रय क्रमांक ठ.28 में सफेद रंग से चित्रित एक मानव आकृति को कांवर ले जाते हुए जिसके सिर पर मुकुट कमर में तलवार, कांवर रखने के लिये डण्डा तथा दोनों हाथ से कांवर को पकड़े हुये गतिशील अवस्था में चित्रित किया गया है।

प्रतीक चित्रण:-भीमबैठका के कई शैलाश्रयांें में प्रतीक चिन्हों का अंकन देखा जा सकता है। जैसे- हाथ की छाप, ज्यामितीय आकृतियां चैक आदि।

 

सेना के मार्च का चित्रण:-भीमबैठका के एक शैलाश्रय में एक स्थान पर गेरूए रंग से चित्रित सेना का अंकन है जो संभवतः युद्ध के लिये आगे बढ़ रही है इसमें घुड़सवार सेना है, सबसे आगे जो घोड़ा है वह बहुत सजा हुआ है उसको देखकर ऐसा लगता है कि वह विशिष्ट व्यक्ति का घोड़ा का इस घोड़े पर बैठे व्यक्ति ने दाहिने हांथ में भाला एवं बायें हाथ में घोड़े के लगाम को पकड़ा है। इसके पीछे और भी घोड़े है लेकिन वो इतने सजे हुये नहीं है इन सैनिकों के हाथ में भी भांले हैं, कुछ तलवार लिये है तथा कुछ पैदल सैनिकों को भी चित्रित किया गया है। इस चित्रण से सेना के विभिन्न पदों पर प्रतिष्ठित व्यक्त्यिों का चित्रण देखने को मिलता है। इस प्रकार के कई चित्रण भीमबैठका से प्राप्त होते हैं।

 

युद्ध का चित्रण:-भीमबैठका के कई शैलाश्रयों से युद्ध सम्बन्धित अनेकों चित्र देखने को मिलते हैं। इन चित्रों से पता चलता है कि उस समय की महिलाएं भी पुरूषों के साथ युद्ध में हिस्सा लेती थीं। ऐसा ही एक चित्रण शैलाश्रय क्रमांक श्रण्स्ण्.18 में चित्रित है।

 

शैलाश्रय में चित्रित युद्ध का दृश्य सफेद रंग का है, इसमें घोड़े पर सवार एक महिला आकृति को चित्रित किया गया है, वह साड़ी पहने हुए है जो एक हाथ में लगाम तथा एक हाथ में तलवार पकड़े हुये है। उस महिला के सिर पर ताज है तथा वह तलवार से घुड़सवार योद्धा पर प्रहार कर रही है।

 

विजयोत्सव का चित्रण:- शैलाश्रय ।ैप्.प्प् में गेरूए रंग से विजयोत्सव का चित्रण किया गया है। इस शैलाश्रय में एक दृश्य में युद्ध होता हुआ दूसरे चित्रण में सामूहिक नृत्य करते हुए ढ़ोल बजाते हुए मानव आकृतियां वस्त्र तथा आभूषणों से सुसज्जित चित्रित हैं जिनके सिर पर ताज है।

 

इस प्रकार भीमबैठका के शैलचित्रों के माध्यम से हमें तत्कालीन समाज की विभिन्न झलकियों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। भीमबैठका शैलचित्र समूह विश्व के सबसे समृद्ध शैलचित्र समूह में से एक है जो प्रागैतिहासिक मानव की गतिविधियों के विषय में सूचनाएं प्रदान करते है। अतः भीमबैठका इस दृष्टिकोण से भारत ही नहीं बल्कि विश्व में अपना विशिष्ट स्थान रखता है।

 

संदर्भ सूची

1.        मठपाल यशोधर 1984, प्रीहिस्टारिक राॅक पेन्टिंग आफ भीमबैठका, सेण्ट्रल इण्डिया, अभिनव प्रकाशन नई दिल्ली, पृ. 31-33

2.        मिश्रा, वी. एन 1976, द एशलियन इण्ड्रस्टीज आफ राॅक शेल्टर प्प्प् थ् 23। भीमबैठका सेण्ट्रल इण्डिया ए प्रिलिमिनरी स्टडीज, पुरातत्व नं. 8

3.        व्यास एन. 1996 भीमबैठका एवं भोजपुर, आदर्श प्रिंटर्स एवं पब्लिशर्स भोपाल, पृ. 7-8

4.        पाण्डेय एस. के. 1984, इंडियन राॅक पेन्टिंग्स एण्ड इट्स प्राब्लम्स, राॅक आर्ट इन इण्डिया।

 

 

Received on 25.02.2014       Modified on 11.03.2014

Accepted on 18.03.2014      © A&V Publication all right reserved

Int. J. Ad. Social Sciences 2(1): Jan. –Mar., 2014; Page 31-32